आज जीनोग्रैफी को लेकर हल्का सा विज्ञान बतियाता हूँ पर कोशिश यह रहेगी कि यदि आप थोडा सा समय निकाल कर इसे पढ़ लेगें तो यदि आपका विज्ञान का बैकग्राउंड नही भी है तो आप मामले को समझ जायेंगे ।
अब प्रश्न यह है कि इन आलतू फालतू चीजों को आप पढ़े ही क्यों ?यह आपकी बढ़ती महंगाई में कोई मदद तो नही करने वाली है .मगर मुझे जानकारी है कि हिन्दी ब्लॉग जगत में एक से एक ज्ञान पिपासु जन हैं जिन्हें मानव के अतीत में रूचि हो सकती है .यह उनके लिए ही है.और सौ पते की बात यह कि मैं अपना काम कर रहा हूँ बाकी आप जानें ।
स्पेन्सर वेल्स ने `नेशनल जियोग्राफिक´ के वेबसाइट `नेशनल जियोग्राफिक डाट काम´ पर इस परियोजना में अपनायी जाने वाली डीएनए विश्लेषण प्रविधि का विस्तृत व्योरा दिया है।
आप सभी जानते ही हैं कि डीएनए वह आनुवंशिक, जैवरासायनिक पदार्थ है जो मनुष्य के विकास की दिक्कालिक यात्रा में कई नैसर्गिक उत्परिवर्तनों को समेटता रहता है और ऐसे उत्परिवर्तनों को जांचने के तरीके आनुवंशिकीविदों द्वारा विकसित किए जा चुके हैं, फलस्वरुप खास चिन्ह धारक मानव वंशजों/विरासतों वाली आबादियों को स्पेन्सर द्वारा पहचाना और वर्गीकृत किया जा रहा है। इसी प्रक्रिया को ही `जीनोग्राफी´ का नामकरण मिला है। यानी पारम्परिक `जियोग्राफी´ (धरती का मान चित्रण-भूगोल) के बाद, अब ज्ञान की एक नई शाखा `जीनोग्राफी´ यानि कि `जीन मानचित्रण।
धरती के विभिन्न भूभागों में रहने वाली देशज मानव आबादियों के सन्दर्भ में इस जीन मानचित्रण के महत्व को विशेष रुप से आँका जा रहा है। मनुष्य के जीन मानचित्रण में वाई गुण सूत्रों तथा माइटोकािन्ड्रल डीएनए की प्रमुख भूमिका है। वाई गुणसूत्र जहाँ एक अन्तर्नाभिकीय रचना है, माइटोकािन्ड्रयल डीएनए नाभिक के बाहर साइटोप्लाज्म में पाये जाने वाले `ऊर्जा भण्डारों´ यानि माइटोकािन्ड्रया के भीतर मिलता है, किन्तु इसकी भी प्रकृति आनुवंशिक होती है। वाई गुणसूत्र जहाँ पिता से मात्र पुत्र की वंश परम्परा में अन्तरित होता चलता है, माइट्रोकािन्ड्रयल डीएनए मां से पुत्रियों की वंशावली में भी संवाहित होता है।
नृशास्त्रियों और आनुवंशिकी विदों की टोलियों ने मानव के वंश परम्परा के उद्गम-अतीत की खोज में ऐसे `आदि मनु´ (!) और ऐसी `आदि (सतरुपा!) के जीवाश्मों को ढूंढ निकाला है, जिनसे मौजूदा मानवों का उद्भव हुआ है। दरअसल हमारी आदि मां जो आज के सभी नर-नारियों की निकटतम पुरखा मानी गई है, अफ्रीका के इथोपिया प्रान्त में करीब डेढ़ लाख वर्ष पहले गुजर बसर कर रही थीं। स्पेन्सर के अनुसार हमारी-आदि पुरखा मां की यह खोज ``जैव-आणुविक´´ घड़ी तकनीक के सहारे सम्भव हुई है, जिसमें व्यतीत हुए समय और मातृ परम्परा के डीएनए में हुए वंशाणुवीय विचलनों के अन्तर्सम्बन्धों को जाँचा जाता है। इससे मानव के विकास से जुड़ी कड़ियों की जानकारिया¡ हासिल की जाती हैं। इसी तरह, वाई गुणसूत्रों के चिन्ह की पुरखों तक हुई खोजबीन से यह जानकारी मिली है कि हम जिस आदि पुरुष (मनु या आदम) के वंशधर हैं वह अफ्रीका में करीब 60 हजार वर्ष पहले जीवनयापन करता था। डीएनए चिन्हकों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मनु या सतरुपा/आदम और हव्वा से जुड़ी हमारी पौराणिक मान्यताओं के विपरीत इनके काल खण्डों में बड़ा अन्तराल है, यानि हमारी आदि मां तथा आदि पिता -मनु में समय का फासला लगभग एक लाख वर्ष का है। मतलब यह कि `जेनेटिक´ आदम और हौवा (या मनु और सतरुपा) न तो धरती पर साथ जन्में और न ही एक साथ रह पाये!
अभी आगे भी है .........
9 comments:
अगले भाग का इंतजार रहेगा...
रोचक है, नियमित पाठकों में शामिल हो गए हैं। कभी न भी टिपिया पाएँ तो भी समझिएगा कि हम ने पढ़ जरूर लिया है।
bahut hi sundar aur rochak jankari.
बेचारे वैवस्वत मनु; आपने तो उनकी पत्नी उनसे छीन ली!
आभार आपका इस विषय को रोचक बनाने के लिए.
रोचक जानकारी है। इस विषय पर जितना पढ़ें कम ही लगता है।
घुघूती बासूती
आपने रोचक तथ्य स्थापित किये हैं। अब बेचारे धर्मगुरू क्या करेंगे?
आप एक बहुत ही जटिल विषय को बहुत ही रोचक ढ़ंग से प्रस्तुत कर रहे हैं और वो भी हिन्दी में जब कि ये सारी जानकारी आप को अग्रेजी में ही उपल्ब्ध होगी। इससे न सिर्फ़ हम लाभ उठा रहे हैं बल्कि भविष्य के लिए भी हिन्दी में दस्तावेज बन रहे हैं , क्या मैं सही हूँ या ये जानकारी हिन्दी में पहले से ही उपलब्ध है। दिनेश जी की तरह हम भी आप के नियमित पाठकों में शामिल होने जा रहे हैं।
`जेनेटिक´ आदम और हौवा (या मनु और सतरुपा) न तो धरती पर साथ जन्में और न ही एक साथ रह पाये!
Yadi aisa hai to ye hamare aadi purvaj kaise kahe ja rahe hain!!! Samkalin Manu aur satrupa ke astitva mein kya samasya hai?
Post a Comment