Wednesday, 11 June 2008

जहाँ वे हमसे बेहतर हैं !

जहाँ वे हमसे बेहतर हैं !जी हाँ, कई पशु पक्षियों के सामजिक जीवन के कुछ पहलू पहली नज़र में हमें ऐसा सोचने पर मजबूर कर सकते हैं .मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मानव व्यवहार दरअसल इन सारे पशु पक्षियों से ही तो विकसित होता हुआ आज उस मुकाम पर है जहाँ मानव एक सुसंस्कृत ,सभ्य प्राणी का दर्जा पा लेने का दंभ भरता है -हमारे राग ,द्वेष ,अनुराग विराग के बीज तो कहीं इन जीव जंतुओं में ही हैं -बस एक पैनी नज़र चाहिए .आईये सीधी बात करें .यानी पशु पक्षियों के सामाजिक जीवन पर एक दृष्टि डालें -
कई जंतु जीवन से बेजार से लगते है और ताजिन्दगी एकाकी रहते हैं -बस प्रणय लीला रचाने मादा तक पहुचते हैं और रति लीलाओं के बाद अपना अपना रास्ता नापते हैं .कई तरह की मछलियाँ जैसे रीवर बुल हेड ,अनेक सरीसृप यानि रेंगने वाले प्राणी -मुख्य रूप से सौंप ,पंडा और रैकून जैसे प्राणी इसी कोटी में हैं .यहाँ शिशु के देखभाल का सारा जिम्मा मादाएं ही उठाती है ,निष्ठुर नर यह जा वह जा ....मगर एक दो अपवाद भी हैं ,जैसे नर स्टिकिलबैक तथा नर घोडा मछली ही बच्चे का लालन पालन करते हैं .यहाँ तो वे हमसे बेहतर नहीं हैं .मनुष्य में ऐसा व्यवहार नही दिखता ,क्योंकि यहाँ मानव शिशु की माँ बाप पर निर्भरता काफी लंबे समय की होती है अतः एकाकी जीवन से उनकी देखभाल प्रभावित हो सकती है और चूँकि वे वन्सधर हैं ,मानव पीढी उनसे ही चलनी है अतः कुदरत ने इस व्यवहार को मनुष्य में उभरने नहीं दिया -पर अपवाद तो यहाँ भी हैं !
एकाकी जीवन से ठीक उलट पशु पक्षियों में हरम /रनिवास का सिस्टम भी है -बन्दर एक नही कई बंदरियों का सामीप्य सुख भोगते हैं !और नर सील को तो देखिये,[बायीं ओर ऊपर ], वह सैकडों मादा सीलों का संसर्ग करता है -हिरणों और मृगों में भी यह बहु पत्नीत्व देखा जाता है .
कुछ बन्दर तो मादाओं के संसर्ग में रह कर जोरू का गुलाम बन जाते हैं -भले ही वह समूह का मुखिया होता है पर मादाओं के सामने मिमियाता रहता है -कहीं यह व्यवहार कुछ हद तक मनुष्य में भी तो नही है ?ख़ास तौर पर जहाँ पत्नी /प्रेयसी की संख्या एकाधिक हो ?
और कहीं कहीं तो पूरा मात्रि सत्तात्मक समाज देखने को मिलता है जैसे अफ्रीकी हांथियों में !उनमें नर हाथीं को दबंग मादा के सामने भीगी बिल्ली बनते हुए देखा जा सकता है .कुछ और व्यवहार प्रतिरूप कल ........

5 comments:

Udan Tashtari said...

यहाँ तो बस एक ही है फिर भी हम मिमियाते हैं. :) बैकयार्ड में एक रैकून आकर रहने लगा है. उसी से कुछ गुर सीखने की कोशिश करता हूँ अब.

बढ़िया जानकारी दी आपने.आभार.

Gyan Dutt Pandey said...

मजा आ रहा है पढ़ने में। और सुनाइये।
और कोई हमारे जैसा जीव भी है - जो इण्डिपेण्डेंस पोज करता हो पर जरा जरा सी चीजों के लिये बैटर हाफ पर पूरी तरह निर्भर हो!

बालकिशन said...

बहुत ही रोचक जानकारी.
ज्ञान भइया के सवाल का जवाब भी दिया जाय.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

Rochak evam majedar jankari hai

arun prakash said...

आपने हाथी का ही उदाहरण दिया है deoria के अपने पड़ोसी त्रिपाठी को याद करें हमें तो आपकी पोस्ट पढ़ कर उनकी सहज याद आ गई जो नर्वस कम नारिवश ज्यादा थे