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Sunday, 30 March 2008
रिपोर्ट :विज्ञान की जन समझ पर एक अन्तर्राष्ट्रीय पहल
विज्ञान की जन समझ पर एक अन्तर्राष्ट्रीय पहल [ सम्पूर्ण रिपोर्ट ]
{ इस आयोजन से लौटते ही मैंने एक अति लघु रिपोर्ट इस ब्लॉग पर दाल दी थी ...यह पूरी रिपोर्ट इस विषय पर कार्यरत अकादमिक व्यक्तियों ,संस्थाओं के लिए ही है -आम पाठक गण हाईलाईटेड अंशों पर नजर फिरा कर मामला भांप सकते हैं .}
लन्दन की रायल सोसायटी ने `वैज्ञानिक समझ के अन्तर्राष्ट्रीय संकेतकों´ पर एक कार्यशिविर का आयोजन विगत् वर्ष (5-6 नवम्बर, 2007) किया था। इस बहुउद्देश्यीय आयोजन के अन्तर्गत वैश्विक जन समुदायों के विज्ञान सम्बन्धी ज्ञान, विज्ञान की जनरूचि, आम आदमी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण और उनकी वैज्ञानिक साक्षरता आदि मुद्दों पर विषय विशेषज्ञों का व्यापक विचार विमर्श हुआ था। इसी अन्तर्राष्ट्रीय पहल की अगली कड़ी के रुप में ही विगत 7-8 मार्च, 2008 राष्ट्रीय विज्ञान, प्रौद्योगिक और विकास अध्ययन संस्थान नई दिल्ली (निस्टैड्स) के तत्वावधान में राजधानी दिल्ली में राष्ट्रीय विज्ञान ऑर प्रौद्योगिकी संचार परिषद (एन0सी0एस0टी0सी0) नई दिल्ली के सहयोग से ``वैज्ञानिक संचेतना के परिमापन के राष्ट्रीय एवं वैश्विक प्रयास - एक अन्तर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समागम´ विषयक आयोजन विज्ञान संचारकों के लिए आकर्षण का सबब बना। यह आयोजन नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और लाइब्रेरी, तीन मूर्ति भवन, सेमिनार हाल में सम्पन्न हुआ।
उद्घाटन समारोह में विषय का प्रवर्तन करते हुए इस आयोजन के संयोजक और विज्ञान की जन समझ पर कार्यरत प्रतिष्ठित वैज्ञानिक श्री गौहर रज़ा ने विषयगत अनेक पहलुओं पर प्रकाश डाला और विज्ञान की समझ के भारतीय परिप्रेक्ष्यों को भी इंगित किया। उन्होंने भारत सरीखे समृद्ध सांस्कृतिक विरासत वाले देश के लिए विज्ञान की जन समझ के मापने के नये संकेतकों की आवश्यकता पर भी बल दिया। राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद के प्रमुख डॉ0 अनुज सिन्हा ने अपने विशिष्ट सम्बोधन में भारत में वैज्ञानिक जन जागरण के अब तक के उल्लेखनीय प्रयासों का एक लेखा-जोखा प्रस्तुत किया और जन मानस में विज्ञान की समझ को बढ़ाने में विज्ञान जत्था, विज्ञान रेल आदि चर्चित अभियानों की भूमिका को खास तौर पर रेखांकित किया। निस्टैड्स प्रमुख डा0 पार्थ सारथी बनर्जी ने अपने संक्षिप्त सम्बोधन में भारत में विज्ञान की जन समझ के शोध सम्बन्धी पहलूऑ के सतत् प्रोत्साहन में निस्टैड्स के योगदानों की चर्चा करते हुए इस संस्थान में ऐसे अनुसंधान के लिए माकूल माहौल बनाये रखने के संकल्प को दुहराया।
उद्घाटन सत्र का विशेष आकर्षण था- विज्ञान और प्रौद्योगिकी के निवर्तमान सचिव प्रोफेसर राममूर्ति द्वारा दिया गया मुख्य अभिभाषण। प्रोफेसर राममूर्ति ने पण्डित जवाहर लाल नेहरू के ``वैज्ञानिक नजरिये´´ (साइंस टेम्पर) के प्रसार के समर्पित प्रयासों की चर्चा करते हुए कई उन विसंगतियों की भी चर्चा की जो भारत में विज्ञान की सहज जन समझ को विकसित करने में बाधाओं के रुप में चिह्नित होते आये हैं।
प्रोफेसर राममूर्ति ने कहा कि यहाँ की अनेक बोली भाषाओं ऑर अलग-अलग सांस्कृतिक परिवेशों में विज्ञान की जन समझ के किसी एक सर्वसम्मत सर्वग्राह्य अभियान का संचालन सचमुच एक चुनौती भरा दायित्व है- हमें वैज्ञानिक लोकप्रियकरण के प्रयासों का सजग अनुश्रवण करते रहने होगा ताकि उनकी अपेक्षित प्रभावोत्पादकता सुनिश्चित की जा सके। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि भारतीय परिवेश में जहाँ सब और विविधता-अनेकता ही परिलक्षित होती है, विज्ञान-जागरूकता के अनेक प्रयासों की सफलता के सूचकांकों को नियत करना कम चुनौती भरा नहीं है। उन्होंने विज्ञान की जन समझ के नवीन प्रयासों की शुरुआत का स्वागत तो किया किन्तु आगाह भी किया कि अभी इस दिशा के मानक तय होने हैं, संकेतकों की उपयुक्तता और औचित्य पर व्यापक विचार-विमर्श होना है, नये प्रश्नों को चिन्हित किया जाना है ताकि उनका सम्यक उत्तर मिल सके। विज्ञान की जन समझ का भारतीय परिदृश्य ऐसा है कि अभी यहाँ प्रश्नों को उत्तर की दरकार नहीं उल्टे उत्तर ही प्रश्नों की बाट जोह रहे हैं।
उन्होंने जन समस्याओं को हल करने में वैज्ञानिक हस्तक्षेपों की वकालत तो की किन्तु यह भी कहा कि अनेक वैकल्पिक माध्यम भी हैं जो जन समस्याओं के निवारण में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। उदाहरणस्वरूप उन्होंने राजधानी दिल्ली में परिवहन जनित वायु प्रदूषण को दूर करने में सी0एन0जी0 चालित वाहन परिचालन की व्यवस्था को सख्ती से लागू करने में न्यायिक सक्रियता की भूमिका का हवाला दिया। आशय यह कि भारतीय लोकतन्त्र में अभी भी शायद वैज्ञानिकों के विचारों-आह्वानों को व्यापक जनस्वीकृति मिल पाने का वातावरण नहीं बन पाया है।
अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में नई दिल्ली स्थित संस्थान `नेशनल कौंसिल आफ अप्लॉयड इकोनोमिक रिसर्च´ के महानिदेशक श्री सुमन बेरी ने विज्ञान की जन समझ के परिमापन के विश्वव्यापी प्रयासों में संस्थान के सीनियर फेलो डॉ0 राजेश शुक्ला के योगदान की प्रशंसा करते हुए इस नये विषय में उनके द्वारा विकसित किये गये सांिख्यकीय विधियों खासकर `साइंस कल्चर इन्डेक्स´ की भी चर्चा की। उद्घाटन सत्र का समापन निस्टैड्स के वैज्ञानिक श्री दिनेश अबराल के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
तदनन्तर आयोजित कुल छ: तकनीकी सत्रों में विज्ञान समझ के सम्बन्धित विश्लेषण मॉडलों के प्रस्तुतीकरण, आंकडा संग्रहण और आधारों की स्थापना, उपयुक्त सांिख्यकी विधियों का चयन, विज्ञान शिक्षा एवं समाज के अन्तर्सम्बन्ध, विज्ञान की जन समझ में शोध की नई सम्भावनायें जैसे अद्यतन विषयों पर गम्भीर विचार मन्थन हुआ। इन सत्रों की अध्यक्षता विज्ञान संचार की नामचीन हस्तियों-डॉ0 अनुज सिन्हा (भारत) डॉ0 हेस्टेर डू प्लेसिस (दक्षिण अफ्रीका), प्रोफेसर लोयेट लेडेसडार्फ (नीदर लैण्ड्स), डॉ0 राजेश शुक्ला (भारत), प्रोफेसर फ्यूजिओ निवा (जापान), डॉ0 जेनिफर मेटकाल्फ (आस्ट्रेलिया), द्वारा की गयी।
यथोक्त सत्रों में अफ्रीका में वैज्ञानिक संचेतना के परिमापन की कठिनाईयों, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में ब्रितानी आम जनता की संलिप्तता के स्तर पर ऑकलन, फिलीपीन में विज्ञान संचार के प्रयासों से विज्ञान की जन समझ को बढ़ाने के प्रयास, विज्ञान की जन समझ में मीडिया चैनलों का योगदान, विज्ञान की जन साक्षरता और संलिप्तता के संकेतकों का विकास, पशु प्रयोगों पर स्विटजैरलैंड के लोगों की प्रतिक्रिया, विज्ञान की समझ के सार्वभौमिक संकेतकों की पहचान, श्रीलंका में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की लोकगम्यता, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संग्रथित सूचकांकों की संरचना के अवधारणात्मक एवं पद्धतिगत स्वरुप का निर्धारण, समतामूलक समाज की स्थापना में जन विज्ञान आन्दोलनों की भूमिका, विज्ञान-पाठ्यक्रमों में सुधार के प्रयास, चीन में विज्ञान साक्षरता पर लिंग भेद के प्रभाव, जापान के अभिजात्य जीवन में प्रौद्योगिकी साक्षरता, क्षेत्रीय समाजार्थिकी के विकास में वैज्ञानिक गतिविधियों की प्रभावोत्पादकता आदि विषयों पर सारगर्भित शोध पत्र पढ़े गये और उन पर चर्चायें आमिन्त्रत की गयीं। शोधपत्रों को प्रस्तुत करने वालों में डा0 हेस्टेर डू प्लेसिस (दक्षिण अफ्रीका), सुश्री सैली स्टैयर्स (इंग्लैण्ड), श्री गौहर रज़ा (भारत), प्रोफेसर लोयेट लेडेसडार्फ (नीदरलैण्ड), सुश्री जेनिफर मेटकाल्फ (आस्ट्रेलिया), डा0 फेबिन क्रेटाज (स्विटजरलैण्ड), डा0 वैलेरी टोडोरोव (बुल्गारिया), सुश्री रोहिनी विजेरत्ने (श्रीलंका), डॉ0 राजेश शुक्ला (भारत), डॉ0 अनिल राय (भारत), डॉ0 ए0आर0 राव (भारत), डा0 बेवेरेली डैमोन्से (दक्षिण अफ्रीका), श्री दिनेश अबराल (भारत), डॉ0 किन्या शिमिजू (जापान), डा0 झैंग चाओ (चीन), प्रो0 फिल फूजिओ निवा (जापान), सुश्री प्रीति कक्कड़ (भारत), डॉ0 सीमा शुक्ला (भारत), डा0 वैगू ए (सेनेगल), डा0 टी0वी0 वेन्कटेश्वरन (भारत) आदि प्रमुख रहे।
दूसरे दिन सायंकाल आयोजित समापन समारोह में पारित संकल्पों का संक्षिप्त ब्यौरा निम्नवत् रहा -
- विज्ञान की जन समझ के मापांकन हेतु संगठित प्रयास किये जाने और इस दिशा में आ¡कड़ों के संग्रहण और सूचीबद्ध करने के साथ ही व्यापक आ¡कड़ा-आधार बनाया जाये। विज्ञान की जन समझ सम्बन्धी अध्ययनों को सर्वसुलभ कराने हेतु के संकेतकों की एक `ओपेन एक्सेस वेबसाइट/पोर्टल´ को विकसित किया जाय।
- सूचनाओं और संसाधनों के सुचारु विनिमय की दृष्टि से `विज्ञान की जन समझ के क्षेत्र में कार्यरत अनुसन्धानकर्ताओं, विद्वानों के नेटवर्क का विकास किया जाय।
- विज्ञान की जन समझ को समर्पित शोध और शिक्षा संस्थानों की संस्थापना की जाय।
- ऐसे संस्थानों का दूसरे समान संस्थानों से सतत् सम्पर्क - समन्वय भी अभीष्ट है।
- विभिन्न स्तरों पर विज्ञान की जनसमझ के ऐसे सामान्य संकेतकों को चििºनत करना होगा जिनका विभिन्न `दिक्काल में सहज पारस्परिक मूल्यांकन किया जा सके।
- ऐसे अध्ययनों - प्रयासों के सातत्य हेतु धन मुहैया कराना भी एक बड़ी प्राथमिकता है।
समूचा आयोजन जन सामान्य पर विज्ञान संचार के विविध प्रयासों के आ¡कलन की दिशा में एक गम्भीर शैक्षणिक प्रयास के रूप में याद किया जायेगा। इस लिहाज से इसके आयोजकों की सूझ और श्रम की प्रंशसा की जानी चाहिए। खासकर डा0 गौहर रज़ा (निस्टैड्स) और डॉ0 राजेश शुक्ला (एन0सी0ए0ई0आर0) के लिए यह समूचा आयोजन इन्हीं के शब्दों में आवधारणा से मूर्त रुप लेने तक एक स्वप्न के साकार होने जैसा अनुभव रहा।
निश्चय ही यह आयोजन भारत में विज्ञान के सामाजिक सरोकारों और संदर्भों को व्याख्यायित करने की दिशा में मील का पत्थर बन गया है।
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3 comments:
कार्यशिविर पर समग्रता से लिखने के लिये धन्यवाद। वास्तव में "साइण्टिफिक टेम्पर" अभी भी जन सामान्य में प्रसारित नहीं हुआ है। लोग तकनीकी सुविधाओं का प्रयोग करने लगे हैं। पर सोच में एक प्रकार का जड़त्व दीखता है जो जाने का नाम नहीं लेता।
इस बारे में ज्यादा सोचा नहीं। पर साइण्टिफिक टेम्पर का अभाव महसूस जरूर होता है। आप जैसों का लेखन शायद प्रभाव डाले।
ज्ञान जी ,आपने बिल्कुल ठीक कहा -लोग तकनीकी के शिकंजे मे ऐसे पड़े हैं कि वैज्ञानिक नजरिये को तिलांजलि देते जा रहे हैं .तकनीक को विज्ञान समझना बड़ी भूल है .तकनीक तो मात्र वेदी है ,जो बिना विज्ञान रूपी मंत्रोच्चार निर्जीव है .
विज्ञान की जन समझ पर विस्तार से लिखने के लिए धन्यवाद। निश्चय ही यह विचार मुझ जैसे व्यक्ति के लिए मार्गदर्शक का काम करेंगे।
मैंने इस लेख का प्रिंट आउट भी निकाल लिया है, आपकी अनुमति मिलने पर उसका अन्यत्र भी सदुपयोग किया जा सकेगा।
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