वादे के मुताबिक आर्थर सी क्लार्क पर मैं कुछ ऑर लेकर हाजिर हूँ मगर इधर उधर से जुटाए मैटर के आधार पर तैयार इस आलेख के बजाय हिन्दी ब्लॉग जगत मे इस महान शख्सियत पर चन्द्रभूषण जी का फर्स्ट हैण्ड लेखन ऑर उन्मुक्त जी की चिपकी जरूर देखी जानी जाहिए ।
आर्थर सी क्लार्क का जन्म 16 दिसबंर 1917 को इंग्लैण्ड में हुआ था। वे एक बार श्रीलंका में स्कूबा -समुद्री खेल प्रतियोगिता में भाग लेने पहुंचे तो यहाँ की धरती से उन्हें ऐसा मोह पैदा हुआ कि वे यहीं के हो के रह गए। उन्होंने लगभग १०० किताबें लिखी लेकिन जिस किताब को सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मिली वह है 1968 में लिखी '2001 ए स्पेस ओडिसी\ कथा प्रेमियों से इतर पाठकों मे भी लोकप्रिय हुयी । क्लार्क की इसी कृति पर स्टैनले कुब्रिक की फिल्म भी दुनिया भर मे चर्चा का विषय बनी । वे अपनी कथाओं में अंतरिक्ष यात्रा, स्पेस शटल, कंप्यूटर और सुपर कंप्यूटर के इस्तेमाल और संचार उपग्रहों के बारे में जिक्र करने के कारण दुनिया भर में पहचाने जाने लगे थे और \'इलेक्ट्रॉनिक कुटिया \'के पहले निवासी कहलाए थे।
क्लार्क ने १९४५ मे एक लेख लिखा था जिसमे यह दर्शाया गया था कि यदि भू स्थिर कक्षाओं मे उपग्रहों को स्थापित कर उनसे संचार संवहन कराया जाय तो समूची दुनिया मे एक साथ ही सहजता से संचार स्थापित हो सकता है .यद्यपि उन्होंने इस युक्ति को पेटेंट नही कराया मगर उनका यह स्वप्न जल्दी ही साकार हुआ और एक दशक बीतते बीतते पहला संचार उपग्रह धरती के भू स्थिर कक्षा मे स्थापित कर दिया गया . उन्होंने 1940 में यह भी घोषणा की थी कि मनुष्य सन १९८० के दशक तक तक चांद पर जा पहुंचेगा, चालीस के दशक में मनुष्य के चांद पर पहुंच जाने की कल्पना प्रस्तुत करने पर लोगों ने उनका उपहास किया,1969 में ही अमरीकी नागरिक नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर कदम रख दिए .तब अमरीका ने क्लार्क की सराहना करते हुए कहा था कि उन्होंने हमें चांद पर जाने के लिए बौद्विक रूप से प्रेरित किया.
आर्थर सी. क्लार्क महज लेखक ही नहीं एक भविष्यद्रष्टा थे, जिन्हे मानो दिक्काल की अनेक गुत्थियों के बारे मे आश्चर्यजनक रूप से मालूम हो जाता था . श्रीलंका में आजीवन रहे इस ब्रिटिश लेखक ने अभी पिछले दिसम्बर मे अपने 90 वें जन्मदिवस पर कुछ गिने चुने श्रोताओं के सामने अपनी \'अन्तिम इच्छा \'व्यक्त की थी कि श्रीलंका में जातीय संघर्ष खत्म हो जाए, दुनिया को स्वच्छ ऊर्जा का अजस्र स्रोत मिल जाए और अंतरिक्ष में बुद्धिमान प्राणियों से सम्पर्क बन जाय .
आसिमोव के रोबोटिक्स के तीन नियमों की ही तर्ज पर उन्होंने भी तीन नियमों की सौगात दी है -
1-यदि कोई मशहूर और सीनियर वैज्ञानिक कहता है कि अमुक चीज संभव है, तो वह निश्चित ही सही है। मगर यदि वह कुछ असंभव मानता है, तो वह संभवत: गलत हो सकता है।
2- संभावना की सीमाओं की थाह पाने के लिए असंभव की तरफ बढ़ना चाहिए और
3- कोई भी नई आधुनिक प्रौद्योगिकी किसी जादू से कम नहीं होती।
अनेक विज्ञान कथाकारों की ही भाति उनका भी मत था कि भविष्य के बारे में कोई नहीं बता सकता, अलबत्ता अगर कोई लेखक किसी आविष्कार का जिक्र करता है तो वह असल में एक संभावित दुनिया की बात कर रहा होता है जो वजूद मे आ सकती है और नही भी आ सकती है. अंतरिक्ष के बारे में क्लार्क के मन में निरंतर जिज्ञासा बनी रही ,यह बात दीगर थी के वे वैध लाईसेंस के बावजूद भी कभी ड्राईव नही किए . 1998 में महारानी ब्रिटानिया द्वारा नाइट की उपाधि से सम्मानित क्लार्क शीतयुद्ध के तनाव से परेशान थे, इसकी झलक उनके उपन्यासों में मिलती है।
वर्ष 1960 से पोलियो से ही ग्रस्त क्लार्क कभी-कभी व्हील चेयर का भी इस्तेमाल करते थे।
मृत्यु से पूर्व उन्होंने लिखित निर्देश छोड़ा था, जिसमें उन्होंने अपने अंतिम संस्कार में किसी तरह की धार्मिक रीति का पालन करने से मना किया है .
5 comments:
आर्थर सी क्लार्क की जिन तीन नियमों की सौगात के बारे में आपने लिखा, वे प्रगति और रचनात्मकता के लिये बहुत आवश्यक हैं।
उनके विषय में दी जानकारी के लिये बहुत शुक्रिया।
अच्छी जानकारियों वाला ब्लॉग।
आर्थर सी क्लार्क के बारे में अच्छी जानकारी मिली, धन्यवाद।
आर्थर सी क्लार्क के जीवन के छुपे पहलुओं के बारे में बताने के लिए शुक्रिया उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए आशा करता हूँ की भाविश्व्य की वैज्ञानिक इनकी कहानियो से अनुप्राणित होते रहेंगे
कलार्क ने बेहतरीन विज्ञान कहानियां लिखीं है। भविष्य दृष्टा के रूप में उनकी पुस्तक 'Profiles of the Future: An Inquiry into the Limits of the Possible' पढ़ने योग्य है। इसी पुस्तक के बाद के प्रकाशन में, इन नियमों में चौथा नियम भी जोड़ा।
इस, पुस्तक और इस नियम के बारे में, मैंने यहां पर चर्चा की है।
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