आस्था और विज्ञान को लेकर इन दिनों काफी चर्चाएँ हो रही हैं .यह एक जटिल विषय है .सवाल यह है कि क्या मानव मस्तिष्क की सबसे खूबसूरत और परिस्कृत खूबी-तार्किकता को दरकिनार कर हमे आस्था का दामन ही थामे रहना चाहिए ?अगर ऐसा होता तो हम गुफा जीवन से आगे नही बढ़ पाते. आज हम जिस मुकाम पर हैं अपनी तर्क शक्ति के सहारे हैं .आज हमारे सामने इन तमाम सवालों के सही जवाब मौजूद हैं कि बादल क्यों गरजते हैं ,पानी क्यों बरसता है?सूर्य और चंद्र ग्रहन क्यों लगता है?आज इन मामलों मे इंद्र ,राहू केतु की कोई भूमिका नही है .हाँ कभी हमारे ज्ञानी पुरखों ने लोगो की जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए रोचक जवाबों को ,मिथकों को रचा था .उनकी कल्पना शक्ति अद्भुत थी .लेकिन हम आज भी उन्ही जवाबों को लकीर के फकीर की तरह मान लिए बैठे हैं ,अपनी आस्था से जोडे हुये हैं .आज के ज्यादातर मिथक हमे मनुष्य की उर्वर कल्पना शक्ति की एक झलक दिखाते हैं. उनमें तत्कालीन विज्ञान की समझ भी हो सकती है ,मगर आज के विज्ञान की जानकारियों के मुताबिक उन्हें अद्यतन करने के बजाय हम उन्हें जस का तस् स्वीकार किये बैठे हैं -आस्था के नाम पर.
आज के विज्ञान से जोड़कर हमअपनी अतीत की अनेक आस्थाओं को नया कलेवर दे सकते हैं ,नए आयाम दे सकते हैं .ठोस आधार देकर उनकीपुनर्रचना कर सकते हैं.आज का विज्ञान ही दरअसल मानवता की सबसे बड़ी आस्था होनी चाहिए . हाँ, मानव चमत्कार और अनुष्ठान प्रेमी भी है ,तो उसके लिएभी विज्ञान सम्मत रास्ते हैं.आज भगवान् आनलाइन हैं ,शमसान के बजाय आधुनिक दाह गृह हैं जो हमारीअनुष्ठान प्रियता को बनाए रख कर भी हमारे मनचाहे कर्मकांडों को पूरा कर सकते हैं .आस्था के नाम पर हम कब तक पुरातन अवशेषों को सर पर लिए फिरतें रहेंगे .रही धर्म और विज्ञान की बात तो उसकी भी चर्चा हम इस ब्लॉग की भूमिका मे आगे करेंगे .
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