शांति पृथ्वी ..शांति वनस्पत्य्हा ..शांति औषध्यः ..ॐ शांति शांति ..कभी पर्यावरण से/में शांति की कामना करने वाले भारतीय मनीषियों के ही स्वर को बुलंद करते हुये इस बार का शांति नोबेल पुरस्कार पर्यावरण के क्षेत्र मे दिया गया है ।
..नोबेल शांति पुरस्कार का ट्रेंड बदल सा गया है ,पिछले वर्ष सूक्ष्म वित्तीयन [माइक्रो फिनेंसिंग ] के लिए यह सम्मान बंगलादेशी मुहम्मद यूनुस को मिला था और इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र के संगठन आईपीसीसी (इंटरगर्वन्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज) और जलवायु परिवर्तन के मामले में दुनिया भर में अभियान चलाने वाले अमरीका के पूर्व उप राष्ट्रपति अल गोर को संयुक्त रुप से नोबेल शांति पुरस्कार देने की घोषणा की गई है. भारत के पर्यावरण वैज्ञानिक आरके पचौरी आईपीसीसी के अध्यक्ष हैं और वे संगठन की ओर से यह सम्मान ग्रहण करेंगे.
नोबेल सम्मान समिति मानती है कि जलवायु परिवर्तन इस समय दुनिया की एक बहुत बड़ी समस्या है. वह चाहती है कि दुनिया का ध्यान जलवायु परिवर्तन की गंभीर समस्या की ओर खींचा जाए और नुक़सान पहुँचाए बिना विकास हो सके. विकासशील देशों को सोचना होगा कि वे किस हद तक विकसित देशों के ढर्रे पर चल सकते हैं और किस हद तक उनकी ग़लतियों को दोहराने से बच सकते हैं.आर के पचौरी ने कहा की उन्होंने नहीं सोचा था कि आईपीसी को यह सम्मान मिलेगा. यह उनकी अतिशय विनम्रता है . संयुक्त राष्ट्र की संस्था आईपीसीसी में जलवायु परिवर्तन से जुड़े तीन हज़ार से अधिक वैज्ञानिक काम करते हैं.
अल गोर ने राजनीति से संन्यास लेने के बाद अपना पूरा ध्यान जलवायु परिवर्तन पर केंद्रित कर रखा है .बिल क्लिंटन के कार्यकाल में वे उप राष्ट्रपति थे, उन्होंने 2001 में जॉर्ज बुश के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे.. मेघालय में बसने वाली खासी जनजाति ने उन्हें जलवायु परिवर्तन के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए पहले ही सम्मानित करने का फ़ैसला ले लिया था . खासी पंचायत के नेताओं ने उन्हें ग्रासरूट डेमोक्रेसी अवार्ड देने की घोषणा की थी .खासी जनजाति पंचायत का मानना है कि वे अल गोर की डाक्युमेंट्री 'द इनकन्विनिएंट ट्रुथ' से बहुत प्रभावित हुए हैं और उन्हें सम्मानित करना चाहते हैं. डाक्युमेंट्री मे ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को बहुत अच्छी तरह समझाया गया है. यह सम्मान 'दरबार ' यानी जनता की संसद में छह अक्तूबर को प्रदान किया जाना था मगर गोर पहुँच नही पाये , इसका आयोजन उस जंगल में किया गया जिसे खासी जनजाति पवित्र मानती है और उसे 700 वर्षों से पूरी तरह सुरक्षित रखा है. सम्मान के रूप में स्थानीय कलाकृतियाँ और 'मामूली धनराशि' भेंट की जानी थी .[स्रोत साभार :बी बी सी हिंदी सेवा ]