Saturday, 16 February 2013

किसी पिंड ने पिंड छोड़ा तो कोई और आ धमका!

पहले से ही अंतर्जाल पर अफवाहें जोर पर थी  कि एक क्षुद्र ग्रह धरती से आ टकराने वाला है -और वह भी प्रेम दिवस के आस पास । जबकि वैज्ञानिक ऐसे अफवाहबाजों को पानी पी पीकर कोस रहे थे और पूरी दुनिया को आश्वस्त कर रहे थे कि कुछ भी अनहोनी नहीं होगी .मगर यह तो संयोगों का संयोग हो गया -लगभग उसी समय रूस के कई शहरों में एक भयानक उल्कापात हुआ -सहसा तो सारी दुनिया के विज्ञान संचारक भी चौक पड़े कि आखिर यह क्या हो गया -मैंने देखा कि  मशहूर विज्ञान संचारक और बैड एस्ट्रोनामी के (कु)-विख्यात ब्लोगर फिल प्लेट ने 15 फरवरी की सुबह ही अपने फेसबुक अपडेट में यह खबर बहुत अनिश्चित से मूड में दे दी कि उन्होंने रूस में एक उल्का गिरने की खबर सुनी है मगर वे दरियाफ्त कर रहे हैं -मैं उनके ब्लॉग अपडेट पर भी नज़र गडाए रहा और मामला आखिर साफ़ हो गया -सचमुच रूस में 15 तारीख यानी शुक्रवार की सुबह सुबह सूरज उगते ही एक और आग का गोला,उतना ही चमकता हुआ अचानक दिखा . भयानक आवाज  हुयी .इसकी विस्फोटक शक्ति पृथ्वी के वायुमडल में प्रवेश करते समय 300 किलोटन से अधिक थी। एक आकलन है कि आसमान में हुए इस विस्फोट की क्षमता सन् 1945 में हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम के विस्फोट की तुलना में कई गुना अधिक(300 kilotons of TNT) थी । यह उल्का सन् 1908 में गिरी तुंगुस्का उल्का के बाद पृथ्वी पर गिरनेवाला सबसे बड़ा खगोलीय पिंड है। गनीमत रही कि यह आसमान में ही विस्फोटित हो गया और एक महा विनाश टल गया हालांकि तब भी 1200 से ऊपर ही लोग घायल हुए हैं जिनमें से 50 से अधिक घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

अब अंतर्जाल पर अफवाह उड़ाने वालों की बन आयी थी -देखा न, हमने तो पहले ही कह रखा था ..... :-) मगर भाई यह वह पिंड  नहीं था  जिसके गिरने की बात वे बड़े जोरशोर से उड़ा रहे थे -वह तो क्षुद्रग्रह 2912 डी ऐ 14 धरती के करीब आया और चुपके से चल भी दिया . यह बात कल ही स्पष्ट हो गयी थी कि 2912 डी ऐ 14 रूस में नहीं गिर। नासा ने साफ़ कर दिया कि जो उल्का गिरी वह तो कोई अनजान राहों का भटका अन्तरिक्षी राही था जो अचानक धरती पर आ टपका -यह उल्कापिंड विपरीत दिशा यानी सूरज के बाईं ओर -उत्तर से दक्षिण की ओर आयी मगर 2912 डी ऐ 14 तो दक्षिण से उत्तर की ओर गतिमान था . फिल प्लेट जी प्लस की हैंग आउट वीडियो चैटिंग पर लाईव बने हुए थे।
यह एक बड़ी खगोलीय घटना थी ,भारतीय लोगों को छोडिये -कितने ही बन्दे यहाँ अज्ञानता के आनंद में गोते लगा रहे हैं मगर मैं तो इस घटना से काफी उद्वेलित  हूँ . इसके कई कारण हैं -क्या धरती पर सचमुच किसी ऐसे ही उल्का पात /वृष्टि से प्रलय दबे पाँव सहसा आ जायेगी? यद्यपि इस घटना के बाद मची खलबली के बीच एक दावा यह आया कि रूस ने समय रहते ही एक मिसाईल इस फ़ुटबाल के मैदान के बराबर की उल्का पर साध दिया था और जिसके चलते वह खंड खंड हो गयी और आसमान में ही भस्म हो गयी? मगर क्या सचमुच? वैज्ञानिक नहीं मानते -उनके मुताबिक़ यह वैसी ही स्थिति है कि कोई क्रिकेट का फील्डर बिलकुल असावधान सा  बाउंड्री पर हो और अचानक बल्लेबाज का अप्रत्याशित छक्का उसकी सहज पहुँच सीमा के कुछ आगे गिरने को बढ़ चला हो तो क्या वह उसे कैच कर पायेगा? यही स्थिति लगभग इन उल्काओं की है -इनमें से कोई अचानक ही मंगल और और वृहस्पति के बीच की खगोलीय पिंड के मलबा पट्टी से धरती की ओर आ टपकता है और इतना कम समय बचता है कि उसे नष्ट करना अभी तक तो असंभव ही रहा है . फिर भी रूस के इसे मिसाईल से मार देने के दावे तो विज्ञान कथाओं में खूब वर्णित है . रूस में अभी भी लोगों में दहशत है -एक राजनेता ने दावा किया किया है कि दरअसल यह अमेरिका का कोई था परीक्षण था .

अमेरिका और रूस में स्पेस -अदावत की जड़ें काफी पुरानी हैं। हाँ एक यह बात हैरत में डालती है और यह बात याहू  इन्डियन साईंस फिक्शन समूह पर भी चर्चा में आयी कि रूस के उल्कापात की जद में क्या कोई विमान नहीं आया जबकि इसने कई प्रदेशों को आच्छादित किया है . 2912 डी ऐ 14 ने भी क्या किसी भी संचार उपग्रह को डिस्टर्ब नहीं किया?
हम विज्ञान संचारक ऐसे मौको का भी एक सकारात्मक उपयोग करते हैं -आपको इस विषय पर थोड़ी जानकारी देने का मौका हम नहीं छोड़ते -क्या आपको कुछ और पूछना है तो स्वागत है!
बहरहाल चैन की नीद सोईये,खतरा फिलहाल टल गया है। 
पुनश्च:कुछ परिभाषाएं यहाँ देखें  

Monday, 11 February 2013

टल जायेगी यह आसमानी बला भी ......!


धरती का एक निकटवर्ती क्षुद्रग्रह -2012 DA14 हमारे काफी पास से 15 फरवरी(2013)  को गुजर जाने वाला है जो किसी आसमानी बला से कम नहीं है . मगर प्रेम दिवस आराम से मनाकर आराम फरमाएं ,कोई खतरा नहीं है। नभ वैज्ञानिकों ने जोड़ घटा कर देख लिया है कि यह  धरती से टकराने वाला नहीं है हालांकि यह धरती से चंद्रमा की कक्षा से भी कम दूरी (27,680किमी ) तक आएगा . यहाँ तक की यह हमारे तमाम भूस्थिर कृत्रिम संचार उपग्रहों (communications satellites) की परिधि के भी भीतर .तक आ जाएगा ,यही नहीं यह अब तक धरती के इतने पास से बिना नुकसान पहुंचाए गुजर जाने वाला सबसे बड़ा क्षुद्र ग्रह है .
यह क्षुद्र ग्रह खुली  आँखों से तो नहीं दिखेगा मगर इसे अंतर्जाल पर दिखाने के इंतजाम किये गए हैं . तो क्या होगा जब यह धरती के सबसे करीब से गुजर जाएगा? उत्तर है कुछ नहीं :-) कम से कम इस बार तो घबराने की कोई बात नहीं है . यह इतने कम गुरुत्व का है कि इसके चलते न तो कोई ज्वार उठेगा और न ही ज्वालामुखी भभक उठेगें . हाँ लगता है अपने टीवी चैनेल और भारत के फलित ज्योतिषी  अभी तक इससे बेखबर हैं नहीं तो अब तक हो हल्ला मच गया होता .
क्षुद्र ग्रह का भ्रमण पथ (साभार ,अर्थस्काई )
हाँ क्षुद्र ग्रहों /ग्रहिकाओं और धूमकेतुओं के धरती से टकराने की संभावनाओं से पूरी तरह इनकार नहीं किया जा सकता -बहुत से लोग मानते हैं कि धरती पर प्रलय के कई कारणों में से एक ये भी हो सकते हैं . कोई छह करोड़ पहले ऐसे ही एक टकराव से डायनासोर के लुप्त हो जाने के कयास हैं . साईबेरिया के तुंगुस्का क्षेत्र में पिछली शती(1908)  भी ऐसे ही एक महा विस्फोट में बहुत विनाश हुआ था . अब जैसे यही गृह है -पूरा 45 मीटर लम्बा और करीब एक लाख तीस हजार मेट्रिक टन भारी है -धरती से इसके टकराने का मतलब है एक साथ अनेक  परमाणु /हाईड्रोजन बमों का फूट  पड़ना-अर्थात महाविनाश! प्रलय! खुदा न खास्ता ऐसा कोई क्षुद्र ग्रह धरती से टकरा जाय तो 2,4 मेगाटन टी एन टी ऊर्जा निकलेगी -ऐसा ही एक छोटा पुच्छल तारा या क्षुद्र ग्रह जब तुंगुस्का से टकराया था तो सारे रेनडियर जानवर मारे गए थे और पूरा वन क्षेत्र विनष्ट हो गया था हालांकि कोई विशाल गड्ढा नहीं पाया गया है . भारत की लोनार झील के भी किसी क्षद्र ग्रह  के टकराने से वजूद में आने की बात कही जाती है . पुष्कर का विशाल जलाशय भी ऐसी ही बना होगा क्योंकि वहां की जन श्रुतियों में आसमान से एक विशाल ब्रह्म कमल के आ टकराने का जिक्र है . तो ऐसे क्षुद्र ग्रह समूची धरती को तो तबाह नहीं कर सकते मगर हाँ एक भरे पूरे शहर का तो सफाया कर ही सकते हैं।
नक्षत्र विज्ञानी इस पर चौबीसों नज़र रखे हुए हैं कोई फ़िक्र की बात नहीं है . सूरज का इसका परिभ्रमण पथ धरती सरीखा है और यह निरंतर अपने भ्रमण पथ पर धरती से दूर पास आता  जाता रहा है -कहते हैं यह 2020 में फिर करीब से गुजरेगा मगर तब भी टकराहट की संभावना नहीं है !