Sunday, 25 March 2012

मिल गयी है अमरता की कुंजी

जी हाँ,मिल गयी है अमरता की कुंजी!नभ थल में नहीं सागर की अतल गहराईयों में ....मजे की बात है कि पुराण काल से ही हमारे यहाँ अमरता की संजीवनी यानी अमृत को सागर प्रसूता ही माना गया है ..हमारे आदि पुरखों को किंचित यह आभास था कि अमरता का मूल मन्त्र कहीं सागर की गहराइयों में ही छुपा है ...और आज भी अमृत की तलाश को सागर संधान हो रहा है ....आधुनिक विज्ञान मानो मानवता को अमृत कलश थमाने को उद्यत है ....

नयी खोज का प्रमाणिक विवरण तो यहाँ है मगर साईब्लाग के पाठकों के लिए एक बानगी  प्रस्तुत है ....धरती को तो मृत्युलोक ही कहते हैं अर्थात जो यहाँ आया है उसका जाना तय है ....जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु:...मगर मनुष्य ने कब कहाँ हार मानी है ..वह अमरता का मन्त्र ढूँढने में लगा रहा है ...अब उसकी खोज उसे एक समुद्री जीव की ओर  ले गया है जो तकनीकी दृष्टि से कभी नहीं मरता ...घोर विपरीत परिस्थितियों के उत्पन्न होने पर वह फिर से जवान और बच्चा होने के उलटे चक्र की ओर चल पड़ता है ....यह है अपनी जानी पहचानी जेली फिश जिसे अगर कोई शिकारी उदरस्थ न कर ले या फिर यह दुर्घटना वश या बीमारियों के चपेट में जान गँवा न बैठे तो यह अमर है ....इस प्रजाति का नाम है ट्यूरीटोप्सिस  न्यूट्रीकुला(Turritopsis nutricula )  जिसे इम्मार्टल जेलीफिश भी कहते हैं ....यह प्रजाति जवान होने पर यानी अपने जीवन काल के मेड्यूसा अवस्था से फिर अपने बाल्यकाल अर्थात पालिप अवस्था को लौट चलने की अद्भुत बेमिसाल  क्षमता रखती है ....

वैज्ञानिकों की बोली भाषा में जेली फिश जो प्राणी समुदाय के मेटाज़ोआ श्रेणी की नुमाईंदगी करती है में रिवर्स एजिंग यानी जीवन के उलटे चक्र की इस विशेषता को ट्रांसडिफरेंसियेशन  कहा जाता है . इस प्रक्रिया के तहत पहले इस जीव की छतरी सिमट जाती है फिर सम्वेदिकाएं और फिर अन्य शारीरिक अवयव/पदार्थ  (मीसोग्लिया ) शोषित हो उठते हैं ...और अब छतरी के विपरीत सिरे से यह किसी सतह पर चिपक कर फिर नए शिशु जेलीफिश -"पालिप"  का अलैंगिक उत्पादन शुरू कर देती है -और यह पूरी प्रक्रिया जैवीय अमरता की  एक अद्भुत मिसाल पेश करती है ....अब वैज्ञानिक कोशिका स्तर पर ट्रांसडिफरेंसियेशन प्रक्रिया को जानने समझने में जुट गए हैं और अगर इस प्रक्रिया का दुहराव अन्य प्राणियों या मनुष्य की कोशिकाओं में किया जाना संभव हो जाय तो फिर क्या अमरता की हमारी चिर कामना पूरी नहीं  हो जायेगी? ...हालांकि अमरता की अपनी मुसीबतें भी हैं .....यह धरती बिना प्राणत्याग के कितने मनुजों की भार ढोती रहेगी ..संसाधन कहाँ से आयेगें? और जब अभी सौ वर्ष का ही जीवन अनेक रोगों ,कष्ट से व्याप्त है तो अमर जीवन क्या नरक तुल्य नहीं हो जाएगा .....? ? 

बहरहाल इन बातों पर सोच विचार के लिए तो हमारा पूरा जीवन ही पड़ा है तब तक आप जेली फिश की अमरता की कहानी का यह यू -ट्यूब देख डालिए ....