Monday, 19 October 2009

नारियां क्यों बनाती है यौन सम्बन्ध ? एक ताजातरीन जानकारी !

विश्वप्रसिद्ध साप्ताहिक पत्रिका टाईम(अक्टूबर ६ ,२००९) का यह ताजातरीन लेख  महिला सेक्सुअलिटी में रूचि रखने वालो /वालियों के लिए रोचक हो सकता है ! एलायिसा फेतिनी द्बारा लिखा  'व्हाई वीमेन हैव सेक्स " शीर्षक यह लेख हो सकता है यौन कुंठाओं वाले एक बड़े भू भाग के  भारतीय उपमहाद्वीप  का प्रतिनिधि  चित्रण न करता हो मगर एक प्रजाति के रूप में मनुष्य की सहचरी के गोपन व्यवहार का कुछ सीमा तक अनावरण करता ही है ! नैतिक मान्यताओं को लेकर आज बहुत कुछ अस्पष्ट और संभ्रमित  भारतीय मानस भले ही ऐसे अध्ययनों से प्रत्यक्षतः दूरी बनाए रखना चाहता हो मगर  ऐसे अध्ययनों के अकादमीय महत्व को सिरे से नकारा नहीं जा सकता !

टेक्सास विश्वविद्यालय के मनोविज्ञानी द्वय सिंडी मेस्टन और डेविड बस ने दुनिया भर से १००० के ऊपर महिलाओं को इस अध्ययन के लिए चुना और नतीजों को पुस्तकाकार रूप भी दे दिया है -उन्होंने २३७ कारण गिनाएं है की क्यों महिलायें यौन संसर्ग करती हैं /राजी होती हैं ! सबसे आश्चर्यजनक है की महज उदाद्त्त प्रेम ही यौन सम्बन्ध बनाने का अकेला सहज कारण  कम मामलों में पाया गया !  टाइम ने  यौन विषयक अध्येताओं का साक्षात्कार भी छापा है ! सार संक्षेप यहाँ प्रस्तुत है -विषय की समग्र समझ के लिए उक्त लेख और सम्बन्धित  कड़ियों के अनुशीलन की सिफारिश की जाती है !

नर - नारी यौन सम्बन्धों के पीछे शारीरिक आकर्षण ,सुखानुभूति (चरम  आनंद !) की चाह या प्रेमाकर्षण /अनुरक्त्तता जैसे अनेक कारण हो सकते हैं ,मगर नारी यौनोंन्मुखता के पीछे  भावात्मक लगाव की  भूमिका रेखांकित की गयी  है ! नारी, पुरुष से कहीं अधिक ऐसे मामलों में यौन सम्बन्ध की आकांक्षी हो उठती है जहाँ मानसिक /भावात्मक जुडाव महसूस करती है ! जबकि पुरुष प्रकृति वश   अवसर की ताक में भी  रहता है ! नारियां छोटे अवधि के सांयोगिक संबंधो को लेकर खास तौर पर सतर्क और "चूजी "  होती हैं ! पुरुष की यौन सम्बन्धों की चाह के पीछे सहकर्मियों में अपने स्टेटस को ऊंचा उठाने की भी मनोवृत्ति जहां आम तौर पर  देखी गयी है इस अध्ययन  में कुछ नारियों को भी इसी मानसिकता के वशीभूत पाया गया है !

नारियां यौन सम्ब्न्धोन्मुख  कब और क्यों होती हैं के जवाब में अध्येताओं का कहना है कि  उनमें भी यह चाह  लैंगिक आकर्षण ,भौतिक  सुख,प्रेम के प्रागट्य और किसी के प्रति लगाव की अभिव्यक्ति या उद्दीपित होने पर आवेग के शमन के लिए भी हो सकता है ! या फिर यह आत्म गौरव या यौन गौरव  (सेल्फ एस्टीम या सेक्स एस्टीम ) को ऊंचा  उठाने  ,लचीले सहचर को खुद तक आसक्त बनाए  रखने की युक्ति और कुछ मामलों में तो महज सर दर्द को दूर करने के उपाय (हाँ, यह कारगर है !) के रूप में यौन सम्बन्ध की अभिमुखता   देखी गयी है ! अध्येता द्वय ने कामक्रीड़ा की आर्थिकी पर भी एक भरा पूरा अध्याय  लिख मारा है जिसमें प्रतिदान (और प्रतिशोध की भी ! ) भावना लिए नारियों के यौन संसर्ग वर्णित हुए हैं ! कोई काम करने के लिए -भले ही वह घर के कूड़े की सफाई में सहयोग (याद आयी दीवाली ? ) ,रात्रिभोज का पक्का इंतजाम या फिर महंगे (स्वर्ण ) उपहार को यौन संसर्ग से हासिल करने की भी जुगत इस्तेमाल में है ! पुस्तक का एक अध्याय नारी यौन  सम्बन्धों  के काले अध्याय पर भी है जहां वे  धोखे का शिकार होती है ,छली जाती है और बलपूर्वक यौन कर्म में संयुक्त कर ली जाती है !


अध्ययन की एक चौकाने वाली जानकारी यह रही कि  महिलाओं ने कहीं कहीं सेक्स सम्बन्ध महज प्रतिशोध के लिए बनाए -धोखेबाज प्रेमी को यौन जनित रोगों का 'उपहार " अपनी सहेलियों  के जरिये या फिर ईर्ष्यावश सहेली के पहले से ही 'इंगेज्ड ' पार्टनर को कामपाश में बाँधने (मेट पोचिंग ) को भी बखूबी अंजाम दिया गया ! इस घटना को अंजाम देने वाली रोमान्चिताओं ने जहाँ यह स्व -कृत्य बखाना वहीं  इससे पीड़ित नारियों ने भी अपना दुखडा भी  रोया ! मैं इन दिनों खुद अंतर्जाल पर मेट हंटिंग (सावधान :नामकरण का कापीराईट मेरा है ) के एक रोचक यौन व्यवहार के अध्ययन में लगा हूँ ! नतीजा तो शायद गोपन ही रह जाय !

नारी यौनोंन्मुखता के पीछे बकौल डार्विन "फीमेल च्वायस " की बड़ी भूमिका है और यह आज भी सही है ! आज की आधुनिका भी  लाख डेढ़ लाख पहले की उसी आदि अफ्रीकी महिला की ही अविछिन्न वंशज है जिसने अपने निर्णय में कोई चूक नहीं की थी और सही पुरुष पुरातन के चयन से  हमारी वंश बेलि का मार्ग प्रशस्त कर दिया था  -एक लैंगिक निर्णय की सफल महिला की सफल जैवीय दास्ताँ है मानव विकास ! आज उसी महिला महान की वंशधर नारियां वैसी ही  यौन मानसिकता /मनोविज्ञान -पुरातन ज्ञान  का वरण किये हुए हैं जिसका जीवनीय मूल्य है ! उनका यौन चयन आज भी व्यापक मामलों में बेहतर उत्तरजीविता और प्रजनन सफलताओं की गारंटी है !


और यह हकीकत है कि  लैंगिक प्रतिस्पर्धा के जैवीय परिप्रेक्ष्य में "वरणीय नर " जल्दी ही प्रणय आबद्ध हो इंगेज्ड हो उठते  हैं -कोई न कोई उनकी अंकशायिनी बन ही जाती हैं -इस मानवता के परचम को भी तो बुलंद किये रहना है मेरे भाई !  सुयोग्य वर की तलाश इसलिए ही सदैव मुश्किल रहती है -योग्यतम जल्दी चुन जो लिए जाते हैं - कहीं  न कहीं प्रणय  पाश में बध ही जाते हैं. प्रेम या योजित किसी भी तरह के सम्बन्ध में   ! इसतरह योग्य पुरुष के लिए आज भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, नारियों में मनचाहे पुरुष चयन की प्रतिस्पर्धा जारी है !

पूरी किताब भले  न मिल सके इस पूरे आलेख का आस्वादन  यहाँ  मय समस्त कड़ियों और नयनाभिराम चित्रों के किया ही जा सकता है -मेरी सिफारिश है !

Monday, 12 October 2009

छठी का दूध याद है ? अरे वही पांचवा स्वाद ?

काफी समय  तक यही  माना जाता रहा की  मनुष्य की जीभ चार मूल स्वाद ग्रहण कर सकती है -मीठा ,खट्टा,कसैला/तीता    और नमकीन .स्वाद की अनुभूति में गंध की भी अहम् भूमिका होती है -जुकाम के समय व्यंजनों का स्वाद न मिलने का कारण यही है ! मगर ठीक   १०० साल पहले जापान एक प्रोफेसर  किकुने एकेडा ने एक समुद्री सेवार (सी वीड ) से निकले पदार्थ "अजीनोमोटो" से  पाँचवे स्वाद का जायका लोगों को दिलवाया.  "अजीनोमोटो" यानि ग्लूटामेट  (जो एक  नान -एसेंसियल अमीनो अम्ल है)  को चखने से एक नए स्वाद की अनुभूति लोगों को हुई !  और यही आगे चल कर पांचवा स्वाद कहलाया .बताते चलें कि नान एसेंसियल अमीनो अम्ल वे हैं  शरीर जिनका  उत्पादन  कर सकता है और एसेंसियल अमीनो एसिड वे होते हैं जिनका उत्पादन शरीर नहीं कर सकता और जिन्हें बाहर से लेना जरूरी हो जाता है  .  पाँचवे स्वाद का नामकरण हुआ युमामी (Umami ) जो जापानी शब्द है जिसका हिन्दी में कामचलाऊ अर्थ है "स्वादिष्ट"!अगर अब कोई पूंछे की स्वाद कितने प्रकार का होता है तो  मीठा ,खट्टा ,कसैला  /तीता और नमकीन के साथ  युमामी का जिक्र करना न भूलें .


ग्लूटामेट का इस्तेमाल हम अक्सर चायनीज व्यंजनों में करते हैं - अपने यहाँ मशहूर "चायनीज" व्यंजनों - चाओमिन ,चिली पनीर ,मंचूरियन आदि में मोनोसोडियम ग्लूटामेट (एम् एस जी ) ई -६१  डाला जाता है ! इसका व्यापारिक निर्माण जापान की अजीनोमोटो (Ajinomoto Kabushiki)  नाम से जानी   जाने वाली कम्पनी करती है जो दुनिया में इस पदार्थ के सम्पूर्ण खपत का अकेले ३३% आपूर्ति करती है ! इसलिए ही आम बोल चाल की भाषा में ग्लूटामेट अजीनोमोटो बन गया !


अजीनोमोटो (Aji no Moto = “Essence of Taste,”)  का शाब्दिक अर्थ है स्वाद का सत्व ! यही मोनो सोडीअम ग्लूटामेट है जिसकी खोज  केकुने   इकेदा ने किया और १९०९ में इसे जापान में ही पेटेंट करा लिया ! मुझे याद है मैंने पहली बार MSG(मोनोसोडियम ग्लूटामेट) का स्वाद तब चखा था जब मैगी उत्पादों(नेस्ले) का भारत में चलन शुरू हुआ था -यही कोई बीसेक वर्ष पहले !वैसे इसके पहले ही अजीनोमोटो नाम से यह पदार्थ पंसारी /किराना की दुकानों पर भी मिल जाता था ! मैंने बाद में जाना कि अरे यही अजीनोमोटो ही मोनोसोडियम ग्लूटामेट है !  लेकिन तब तक मैगी ने अच्छा खासा पैसा खलीते से निकाल लिया था ! तब मैगी इसका व्यापार स्वाद वर्धक के रूप  में छोटी पुड़ियों में कर रही थी ! मुझे तभी इसका स्वाद भाया  था  और अब तो आज के बच्चों की यह पहली पसंद बन गया है ! अनेक वैज्ञानिक परीक्षणों में पाया गया है कि यह मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए निरापद है बशर्ते मात्रा का नियंत्रण रखा जाय !




पके टमाटरों में और  चीज उत्पादों में  कुदरती तौर पर ग्लूटामेट मिलता है ! इसमें सोडियम आयन की मात्रा भी खाने वाले सामान्य नमक से काफी कम होती है -मतलब स्वास्थ्य की दृष्टि से ब्लड प्रेशर आदि के कुछ मामलों में साधारण नमक का  यह बेहतर विकल्प हो सकता है ! कई पके फलों और खमीर वाले फरमेंटएड   खाद्य पदार्थों में यह पर्याप्त मात्रा में मिलता है -पके टमाटर में  तो भरपूर ही - २५०-३०० मिली ग्राम /प्रति १०० ग्राम ! और माँ के दूध में भी इसकी मौजूदगी (०.०२%) होती है !फिर तो  इसका स्वाद बचपन से हमारे मुंह लगा हुआ है !  वैसे भी मानुष जाति  यानि हम ठहरे चटोरे जनम के ....

तो पांचवे स्वाद की कहानी कैसी लगी ? खट्टी या मीठी ?...या युमामी !

Wednesday, 7 October 2009

क्या आप बता सकते हैं कि.....

क्या आप बता सकते हैं कि हिरन और मृग में क्या अंतर है ? या फिर उत्तरप्रदेश का राज्य पशु और पक्षी क्या है ? घड़ियाल और मगरमच्छ में क्या अंतर है ? या कौन सा पक्षी है जो अपने पंखों से ही पतवारों का काम लेकर तैरता भी है ? सवाल दर सवाल मगर सब के सही जवाब ! और उत्तर बड़े बूढों ने नहीं दिए बल्कि बच्चों ने उमग उमग कर ये उत्तर दिए -मन  बाग बाग हो गया ! अवसर था चौवन्वे वन्य जीव सप्ताह (१-७ नवम्बर ) के समापन आयोजन का ! जो आज वन विभाग के सौजन्य सारनाथ के मृगदाव पार्क में सम्पन्न हुआ !





                          वाराणसी वृत्त के वन संरक्षक श्री आर एस हेमंत कुमारके साथ मैं
अपने देश में नई पीढी अब जीव जंतुओं की जानकारी के प्रति चैतन्य हो रही है -यह सचमुच बहुत ही सुखद है ! आज वन्य जीवों की जानकारी की ओर बच्चों की रुझान बढ़ने के लिए कई कार्यक्रम /प्रतियोगिताएं आयोजित हुईं जिनमे वन्य जीवन पर चित्रकारी .,निबंध प्रतियोगिता ,भाषण आदि प्रमुख रहे ! मैं इस अवसर पर उपस्थित होकर धय्न्य हुआ -आज का पूरा दिन वहीं बीता ! प्रभागीय वनाधिकारी (डिविजनल फारेस्ट ऑफीसर ) श्री लालाराम बैरवा (आई ऍफ़ एस ) ने कल ही मेरी वन्य जीवों की अभिरुचि को लक्ष्य कर आज के कार्यक्रम में निमंत्रित किया था ! वाराणसी वृत्त के वन संरक्षक श्री आर एस हेमंत कुमार जो मूलतः आंध्र  प्रदेश के हैं  और उत्तर प्रदेश कैडर के सीनियर आई ऍफ़ एस हैं मुख्य अतिथि रहे -विनम्र ऐसे कि मुझसे तब तक  मुख्य अतिथि बनने और उस विशिष्ट्तम  कुर्सी पर बैठने का आग्रह करते रहे जब तक कि मैंने किंचित बल  से ही उन्हें उस कुर्सी पर आसीन नहीं करा दिया ! वे ही उसके सर्वथा योग्य भी थ .कार्यक्रम का सञ्चालन श्री ओ पी गुप्ता उप संभागीय वनाधिकारी ने किया ! श्री आर एस यादव रेंज आफीसर ने कार्यक्रमों का संयोजन किया !


 कार्यक्रम में बच्चों ने ही नहीं बच्चियों ने भी बढ़ चढ़  कर हिस्सा लिया

हमने कार्यक्रमों के औपचारिक समापन के बाद वन्य वशुओं का पालतू बाद भी देखा और उन्हें कुछ खिलाया  भी ! नीचे  चित्र देखिये इसमें आगे की ओर तो कृष्ण मृग है (ब्लैक बग -antelope ) और पीछे चीतल, जो हिरन (deer )  है !  जान लें कि जो हर साल सींगे गिरा देता है वह हिरन है और जो जीवन एक ही सींग से गुजर देता है वह मृग -बच्चों को भी बता देगें यह प्लीज ! और हाँ उत्तर प्रदेश का राज्य पशु बारहसिंगा (हिरन ) है-

और पक्षी सारस यानि क्रौंच  (crane ) ! (पहले जानते रहे इसे ? खैर कोई बात नहीं इस बार के वन्य पश्य सप्ताह पर ही जान लें ! ) घडियाल की लम्बी थूथन होती है जिस के सिरे पर एक घरिया (एक तरह का छोटा मिट्टी का पात्र ) नुमा रचना होती है जबकि मगर का थूथन तिकोना लिए होता है ! और पेंग्विने अपने डैनों से तैरती हैं ! कोयल और पपीहा नीड़ परिजीवी हैं यानि घोसला नहीं बनाती बल्कि दूसरे के घोसले में अंडे पारती हैं -कोयल कौए के और पपीहा सतबहनी (बैबलर ) के ....इन क्विज का जवाब बच्चे बेलौस देते गए और मुख्य अतिथि से  इनाम झटकते गए .





आप भी भारतीय वन्य जीवन से बच्चों को अवगत करने का सिलसिला शुरू करे ! इस वन्य जीव सप्ताह पर यही आह्वान है !

Monday, 5 October 2009

गंगा की गोद की सिसकती सूंस को मिला राष्ट्रीय जल जंतु का दर्जा


वन्य जीव सप्ताह (१ अक्तूबर -७अक्तूबर ) में इससे अच्छी खबर कोई हो नहीं सकती ! पिछले तकरीबन पचास सालों से मनाये जा रहे इस सरकारी पर्व पर इससे अच्छी बात मैंने कभी नहीं देखी सुनी-यह वन्यजीव सप्ताह भी एक और औपचारिक सरकारी आयोजन के रूप में सिमट गया होता मगर अब यह यादगार बन गया है -सूंस (डालफिन)  को राष्ट्रीय जल जंतु का दर्जा दे दिया गया है ! सूंस गंगा की  गोद में न जाने कब से सिसक सिसक कर अपनी जान की दुहाई मांग रही थी -अब सरकार के कानो पर जू रेंग गयी है !

वात्सल्यमयी गंगा न केवल हमारी वरन अनेक जल जंतुओं की प्राण दायिनी रही हैं -मगर कृतघ्न ,लोभी और अदूरदर्शी मानव के पर्यावरण विरोधी कारनामों से गंगा की छाती विदीर्ण होती रही है -उसकी आँचल की छाव तले पल बढ़ रहे अनेक जीवो की जान पर बन आई है -जिसमें सबसे बुरी गति गंगा की डालफिन (Platanista gangetica ) यानि अपनी सूंस की हुई है -दरअसल गांगेय सूंस एक विलक्षण प्राणी है -यह अंधी है बेचारी मगर मनुष्य की मित्र है ! हिन्दी में तो सूंस मगर बंगाल में सुसक या सिसुक और संस्कृत में सिसुमार के नाम से विख्यात इस जलीय जीव का अस्तित्व संकट में पड़ गया है !






प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में अभी कल ही सम्पन्न राष्ट्रीय गंगा रीवर बेसिन अथारिटी की बैठक में जब बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार ने गंगा की डालफिन को राष्ट्रीय जलीय जंतु बनाए जाने की घोषणा की तो इसे सहज ही स्वीकार कर लिया गया .इस तरह नितीश कुमार अब जीव  जंतु प्रेमियों के भी हीरो बन गये हैं ! सूंसों की संख्या तेजी से गिरी है और ये अब २०० से भी कम रह गयीं है -मादा सूंस नर से बड़ी होती है और दूर से देखने में भैंस के छोटे से बच्चे की तरह लगती है काली सी मगर दिल वाली ऐसी कि कई डूबते लोगों की सहायता के भी इसके किस्स्से सुने गए हैं ! बाढ़ के दिनों में ऐसा लगता है कि भैसके बच्चे पानी के भीतर अठखेलियाँ खेल रहे हों ! गंगा की डाल्फिने समुद्र में प्रवेश नहीं करतीं और शायद इनकी मुसीबत का एक करण यह भी है -बाकी डालफिन प्रजातियाँ फिर भी समुद्र की अपार जलराशि में अपनी वंश रक्षा कर ले रही हैं .




बाघ के राष्ट्रीय पशु और मोर के राष्ट्रीय पक्षी घोषित होने के बाद गंगा की  डालफिन को राष्ट्रीय जल जंतु का दर्जा दे दिया गया है -इस तरह अब गंगा की डालफिन के जीवन मृत्य का प्रश्न अब हमारी राष्ट्रीय पहचान से जुड़ गया है ! यह वन्य जीव अधिनियम १९७२ के अधीन पहले से ही अबध्य प्राणी है -शिड्यूल एक में है ! अब यह राष्ट्रीय गौरव का भी प्रतीक बन गयी है ! मुख्यमंत्री नितीश कुमार की इस पहल के लिए वे वाहवाही के हकदार हैं .

Sunday, 4 October 2009

वैज्ञानिकों ने जाना चिर युवा होने का राज !

अखबारों में  यह खबर सुर्खियों में है ! कभी च्यवन ऋषि ने चिर युवा बने रहने का नुस्खा हासिल किया था च्यवनप्राश के रूप में ! मगर आज का च्यवनप्राश मानकों पर खरा नहीं उतरता ! उम्र की ढलान को रोकने के लिए दुनिया भर में वैज्ञानिक कब से लगे हुए हैं -नए नए नुस्खों और माजूमों के साथ ! नित नई नई पेशकशें ! और अब यह -

वैज्ञानिकों का नया दावा है कि है कि बढ़ती आयु और आयु संबंधी बीमारियों का उपचार संभव है। हाल ही में चूहों व बंदरों पर किए गए शोध में वैज्ञानिकों ने जीवनकाल बढ़ाने के तरीके को खोज निकाला है। इससे इंसान लंबे समय तक युवा रह सकेगा।


यूनिवर्सिटी कालेज लंदन के इंस्टीट्यूट आफ हेल्दी एजिंग के वैज्ञानिकों ने मानव जींस 'एस6 कायिनेज 1' [एस6के1] में हेरफेर कर उम्र बढ़ाने वाले प्रोटीन के उत्पादन को रोके रहने में सफलता पायी है । चूहों पर किये गए प्रयोगों में शोधकर्ताओं   ने यह भी पाया है कि  कैलोरी खपत की मात्रा को 30 प्रतिशत तक घटाकर जीवनकाल को 40 फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है। अमेरिकी पत्रिका 'साइंस' में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक एस6के उत्पादन को रोककर भी यही फायदे हासिल किए जा सकते हैं। इसके लिए आहार  में कमी करने की कोई जरूरत नहीं। एस6के1 भोजन में बदलाव के बारे में शरीर की प्रतिक्रिया निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाता है।



देखा गया की ऐसे चूहों जिन के जीन में वांछित बदलाव कर दिए गए थे अन्य चूहों से २० फीसदी अधिक काल तक जिए -वे कुल ९५० दिन जिए आम चूहों से १६० दिन अधिक ! इन चूहों में टाईप २ मधुमेह जैसी बीमारियां भी नहीं हुईं ! उनकी  टी कोशिकाएं जो रोगरोधी होती हैं भी तरोताजा देखी गयीं -मतलब उम्र के बढ़ने  के साथ मनुष्य की रोग रोधन क्षमता का ह्रास होना भी इस अध्ययन से प्रमाणित हुआ है !वेलकम ट्रस्ट द्वारा पोषित इस अध्ययन से जुड़े डेविड जेम्स का कहना है की "इस अध्यन से हम उम्र की बढ़त को रोकने का सहसा ही एक कारगर नुस्खा पा गए हैं ! चूहों पर इस शिद्ध के बाद मेटफोमिन नामक दवा का ट्रायल अब मनुष्य पर किया जाएगा ! रापामायासिन  भी सामान प्रभावों वाले औषधि के रूप में देखी जा रही है !