पर्यावरण के लिए नोबेल शान्ति पुरस्कार 2007 का शोर अभी थमा भी नहीं है कि विश्व प्रसिद्ध `टाइम´ पत्रिका के 29 अक्टूबर, 2007 विशेषांक ने अपने सालाना आकर्षण `टाइम्स हीरोज´ के रुप में जिन महान हस्तियों का नाम जगजाहिर किया वे भी पर्यावरण से ही जुड़े हैं और उनमें दो भारतीय चेहरे भी शामिल हैं। `हीरोज आफ द इनविरानमेन्ट´ शीर्षक के तहत पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल करने वाले जिन विभूतियों को `टाइम´ पत्रिका ने विश्व के कोने-कोने से ढूढ़ निकाला है उनमें शामिल भारतीय चेहरे हैं- डी0पी0 डोभाल और तुलसी तान्ती। डी0पी0 डोभाल एक ग्लेशियर विद हैं, वहीं तुलसी तान्ती एक इंजीनियर-उद्योगी।
डी0पी0 डोभाल मूलत: एक वैज्ञानिक हैं- सर सी0वी0 रमन की ही परम्परा के एक प्रकृति अन्वेषी विज्ञानी जो वैज्ञानिक अनुसन्धानों के लिए यांत्रिक ताम-झाम और उपकरणों को ज्यादा तरजीह नहीं देते। उन्होंने हिमालयी ग्लेशियरों की लम्बाई, चौड़ाई और ऊंचाई स्थानीय तौर पर उपलब्ध बांस की खपिच्चयों/डंडियों के सहारे ही नाप डाली है। विगत कुछ वर्षों से ये ग्लेशियर वार्मिंग)के चलते तेजी से पिघल रहे हैं, `गरमाती धरती´ के इसी रुख पर मौसम विज्ञानियों की चौकस नजर है। उत्तरी ध्रुव, ऐल्प्स की घाटियों के पिघलते ग्लेशियर पर मौसम विज्ञानियों का विपुल अध्ययन हो चुका है, किन्तु विश्व की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला-हिमालय के ग्लेशियरों पर आश्चर्यजनक रुप से काफी कम अध्ययन हुआ है। डोभाल मूलत: भूगर्भ विज्ञानी हैं जो भारत सरकार पोषित `वाडिया इन्स्टीच्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी´ के लिए अनुसन्धान कर रहे हैं। उनका अध्ययन हिमालय के तेजी से पिघल रहे ऊ¡चाई वाले हिमनदों से मैदानी नदियों में सम्भावित जल प्लावन और दूरगामी सूखे की स्थितियों के आकलन पर केिन्द्रत है।
नदियों में हिमनद पिघलाव से प्रेरित जल प्लावन और कालान्तर के सूखे की भयावहता का मसला भारत के मैदानी इलाकों के करोड़ों लोगों की आजीविका या कहें कि जीवन मृत्यु से जुड़ा हुआ है। इस `हिमालयी हीरो´ के कारनामें को `टाइम´ के संवाददाता साइमन राबिन्सन ने `कवर´ किया है। डी0पी0 डोभाल सहसा ही भारत के पर्यावरण विज्ञानियों के बीच चर्चित हो उठे हैं।
`टाइम´ के दूसरे भारतीय पर्यावरण के हीरो हैं- तुलसी तान्ती। जिनकी पवन-चक्कियों से उत्पादित विद्युत के अजस्र स्रोत ने `टाइम´ संवाददाता आर्यन ब्रेकर का ध्यान अपनी ओर खींचा। तुलसी तान्ती पेशे से इंजीनियर रहे हैं और 1995 के दौरान वे अपनी एक टेक्सटाइल कम्पनी की स्थापना में जी जान से जुटे थे। किन्तु अनियमित विद्युत आपूर्ति और जले पर नमक की भांति प्रति माह आने वाले भारी भरकम बिजली के बिल ने उनकी सारी महत्वाकांक्षाओं पर पानी फेर दिया। 49 वर्ष के इस इंजीनियर ने तब विद्युत उत्पादन के नये किफायती और टिकाऊ स्रोत के विकास का संकल्प लिया। और एक दशक से भी कम समय में उन्होंने ऊर्जा के एक वैकल्पिक किन्तु भरोसेमन्द सस्ते स्रोत को विकसित करने और उसके औद्योगिक उपयोग में सफलता हासिल कर ली।
उन्होंने कपड़ों के निर्माण-उत्पादन के अपने आरिम्भक एजेण्डे को दूसरे नम्बर पर करके पहली प्राथमिकता पवन चक्कियों के विकास को दे दी है और उनकी कम्पनी `सजलोन´ ने `विण्ड टरबाइन के उत्पादन का काम संभाला है और आज `सजलोन´ की चार महाद्वीपों में शाखायें और `विण्ड फार्म´ हैं। यह विश्व की चौथी बड़ी `विण्ड टरबाइन - निर्माता कम्पनी बन चुकी है। इसका वािर्षक लाभ 85 करोड़ डालर तक जा पहुंचा है। इसके बदौलत ही तान्ती भारत के टाप टेन के धन कुबेरों में भी अपना नाम दर्ज करा चुके हैं. मुख्य फैक्टरी पाण्डिचेरी में है जो केवल पवन ऊर्जा से संचालित है।
पर्यावरण के इन दोनो नए चेहरों को सलाम !
डी0पी0 डोभाल मूलत: एक वैज्ञानिक हैं- सर सी0वी0 रमन की ही परम्परा के एक प्रकृति अन्वेषी विज्ञानी जो वैज्ञानिक अनुसन्धानों के लिए यांत्रिक ताम-झाम और उपकरणों को ज्यादा तरजीह नहीं देते। उन्होंने हिमालयी ग्लेशियरों की लम्बाई, चौड़ाई और ऊंचाई स्थानीय तौर पर उपलब्ध बांस की खपिच्चयों/डंडियों के सहारे ही नाप डाली है। विगत कुछ वर्षों से ये ग्लेशियर वार्मिंग)के चलते तेजी से पिघल रहे हैं, `गरमाती धरती´ के इसी रुख पर मौसम विज्ञानियों की चौकस नजर है। उत्तरी ध्रुव, ऐल्प्स की घाटियों के पिघलते ग्लेशियर पर मौसम विज्ञानियों का विपुल अध्ययन हो चुका है, किन्तु विश्व की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला-हिमालय के ग्लेशियरों पर आश्चर्यजनक रुप से काफी कम अध्ययन हुआ है। डोभाल मूलत: भूगर्भ विज्ञानी हैं जो भारत सरकार पोषित `वाडिया इन्स्टीच्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी´ के लिए अनुसन्धान कर रहे हैं। उनका अध्ययन हिमालय के तेजी से पिघल रहे ऊ¡चाई वाले हिमनदों से मैदानी नदियों में सम्भावित जल प्लावन और दूरगामी सूखे की स्थितियों के आकलन पर केिन्द्रत है।
नदियों में हिमनद पिघलाव से प्रेरित जल प्लावन और कालान्तर के सूखे की भयावहता का मसला भारत के मैदानी इलाकों के करोड़ों लोगों की आजीविका या कहें कि जीवन मृत्यु से जुड़ा हुआ है। इस `हिमालयी हीरो´ के कारनामें को `टाइम´ के संवाददाता साइमन राबिन्सन ने `कवर´ किया है। डी0पी0 डोभाल सहसा ही भारत के पर्यावरण विज्ञानियों के बीच चर्चित हो उठे हैं।
`टाइम´ के दूसरे भारतीय पर्यावरण के हीरो हैं- तुलसी तान्ती। जिनकी पवन-चक्कियों से उत्पादित विद्युत के अजस्र स्रोत ने `टाइम´ संवाददाता आर्यन ब्रेकर का ध्यान अपनी ओर खींचा। तुलसी तान्ती पेशे से इंजीनियर रहे हैं और 1995 के दौरान वे अपनी एक टेक्सटाइल कम्पनी की स्थापना में जी जान से जुटे थे। किन्तु अनियमित विद्युत आपूर्ति और जले पर नमक की भांति प्रति माह आने वाले भारी भरकम बिजली के बिल ने उनकी सारी महत्वाकांक्षाओं पर पानी फेर दिया। 49 वर्ष के इस इंजीनियर ने तब विद्युत उत्पादन के नये किफायती और टिकाऊ स्रोत के विकास का संकल्प लिया। और एक दशक से भी कम समय में उन्होंने ऊर्जा के एक वैकल्पिक किन्तु भरोसेमन्द सस्ते स्रोत को विकसित करने और उसके औद्योगिक उपयोग में सफलता हासिल कर ली।
उन्होंने कपड़ों के निर्माण-उत्पादन के अपने आरिम्भक एजेण्डे को दूसरे नम्बर पर करके पहली प्राथमिकता पवन चक्कियों के विकास को दे दी है और उनकी कम्पनी `सजलोन´ ने `विण्ड टरबाइन के उत्पादन का काम संभाला है और आज `सजलोन´ की चार महाद्वीपों में शाखायें और `विण्ड फार्म´ हैं। यह विश्व की चौथी बड़ी `विण्ड टरबाइन - निर्माता कम्पनी बन चुकी है। इसका वािर्षक लाभ 85 करोड़ डालर तक जा पहुंचा है। इसके बदौलत ही तान्ती भारत के टाप टेन के धन कुबेरों में भी अपना नाम दर्ज करा चुके हैं. मुख्य फैक्टरी पाण्डिचेरी में है जो केवल पवन ऊर्जा से संचालित है।
पर्यावरण के इन दोनो नए चेहरों को सलाम !