Sunday, 19 April 2009

पाँव छूता पुरूष पर्यवेक्षण -३ ( श्रृंखला समापन प्रविष्टि )

विश्व की कुछ संस्कृतियों खासकर भारत में किसी के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रर्दशित करने और आशीर्वाद प्राप्त करने की प्राचीन परम्परा रही है.यहाँ पाँव शरीर के एक गौण और उपेक्षित अंग होने के बावजूद भी पूजित और प्रतिष्ठित हैं ! मानो सम्मान देने वाला यह कह रहा हो की मेरे लिए तो आपके शरीर का यह निचला हिस्सा भी शिरोधार्य है .कहते हैं इसी श्रद्धाभाव के अधीन रहकर ही रामायण के एक प्रमुख पात्र लक्ष्मण ने कभी भी नायिका सीता के पाँव के ऊपर उन्हें देखा तक नही था ! भारत में भला पाँव का इससे बढ़कर महत्व भला और क्या हो सकता है की मात्र एक चरण पादुका ने वर्षों तक अयोध्या के सिंहासन पर आरूढ़ हो राज काज संभाला था ।

आईये तनिक देह की भाषा में पांवों के व्याकरण की भी एक पड़ताल कर ली जाय .आम जीवन में जब हम लोगों से मिलते जुलते हैं तो एक दूसरे के चेहरों पर वही भाव लाते हैं जो हम देखना दिखाना पसंद करते हैं .इस तरह हम अपने चेहरों पर मिथ्याभिव्यक्ति के तहत जबरन हंसी और हिकारत के भाव लाने में सिद्धहस्त हो जाते हैं .मगर जैसे जैसे पर्यवेक्षण का सिलसिला चेहरे से दूर निचले अंगों की ओर बढ़ता हैं हम पाते हैं वे उतनी दक्षता से मिथ्याभाव प्रगट नही कर पाते हैं -अब निचले अंगों के हाव भाव मानों उत्तरोत्तर चेहरे की अभिवयक्ति की मानों चुगली करने लग जाते हैं .हाँथ शरीर के लगभग आधे हिस्से तक पहुँचते हैं तो वे सप्रयास चेहरे के झूंठ का अनुसरण करते तो हैं मगर इस उपक्रम में आधे ही सफल हो पाते हैं .यानि वे मुंहदेखी मुंहकही की आधी पोल तो खोल देते हैं ! किसी को संभाषण करते समय जरा उसके हांथों को भी देखते चलिए आपको ख़ुद आभास हो जायेगा की कहीं न कहीं कुछ विरोधाभास है ! साक्षात्कारों में भी और व्याख्यान के अवसरों पर वक्ताओं के लिए सबसे राहत की बात तो यह होती है कि उनके पाँव या तो मेज या फिर पोडियम के पीछे छुपे रहते हैं नहीं तो उनके चेहरे और पांवों के भावों के अंतरविरोधों की पोल खुल जाती ! ऐसे अवसरों पर पैर अक्सर हिलते डुलते रहते हैं मानों वे झूठ और फरेब की दुनिया से भाग निकलना चाहते हों ।

आज भी बहुत से लौकिक कार्यों में बाएँ पाँव को अशुभ और दायें को शुभ माना जाता है -मजे की बात तो यह है कि जब सेना दुश्मन को नेस्तनाबूद करने की आक्रामक मुद्रा में निकले को उद्यत होती है तो वही पुराने रिवाज के अधीन ही लेफ्ट राईट मार्च ही करती है -यानि पहले बायाँ पैर आगे ! अज लेफ्ट राईट मार्च करने वाले रंगरूट भला इस पुराने ज्ञान से कहाँ भिग्य होते हैं ?

पुरूष पर्यवेक्षण की यह श्रृखला यही समाप्त होती है ! यह मेरे नववर्ष के एक संकल्पों में था और मन आज एक गहन प्रशांति के भाव से भर उठा है कि मैंने यह उत्तरदायित्व आज पूरा कर लिया ! मैं इस श्रृखला के प्रशंसकों और आलोचकों दोनों का समान भाव से कृतग्य हूँ कि उनके सतत उत्प्रेरण से यह काम आज अंजाम पर पहुच गया -शिख से नख तक की यह पुरूष पर्यवेक्षण श्रृखला पूरी हो गयी ! मैं ख़ास तौर पर उस सुमुखि ( व्यक्तित्व ) का आभारी हूँ जिनके आग्रह और आह्वान ( भले ही उसका कोई भी मकसद रहा हो ) पर मैंने यह प्रोजेक्ट स्वीकार किया !


अब यह मौलिक काम / शोध प्रबंध जो पहली बार चिट्ठाजगत में शोभित /चर्चित हुआ पिछली श्रृंखला -नारी नख शिख सौन्दर्य के साथ ही समाहित हो " नर -नारी नख शिख सौन्दर्य " शीर्षक से शीघ्र प्रकाश्य है !

Friday, 17 April 2009

पाँव छूता पुरूष पर्यवेक्षण -2

हमने गतांक में जाना कि कैसे आज के जूते मोजे वाले आधुनिक मानव के लिए उसके पाँव की आदिम गंध क्षमता एक बड़ी मुसीबत बन चुकी है ! बस फायदा केवल सौन्दर्य प्रसाधन की निर्माता कम्पनियों को है जो पैरों को साफ़ सुथरा बनाए रखने के नित नए उत्पादों को लांच कर मालामाल हो रही हैं ! हमारी एक जबरदस्त आदिम क्षमता की कितनी बुरी गत बन चुकी है ! आईये आगे बढ़ें !

जिस तरह शिनाख्त के मामलों में हमारे अन्गुलि छाप बड़े काम के हैं उससे ज़रा भी कमतर नहीं है हमारे पाँव की उँगलियों की छाप ! यह भी मनुष्य दर मनुष्य पहचान की जीवंत दस्तावेज हैं ! मगर अब चूंकि पांवों की अंगुलियाँ ज्यादातर मोजे और जूतों की आवरण लिए रहती हैं ये प्रायः छुपी रहती हैं और अपराधी तक को भी इन्हे ढंकने के लिए अतिरिक्त दस्तानों की जरूरत ही कहाँ पड़ती है ! उनके लिए तो मोजे ही स्थायी दास्ताने बने रहते हैं . इसलिए ही अपराध स्थल से उँगलियों के निशान लेने का प्रचलन रहा है -और पद गंध के अनुसरण के लिए कुत्तों का सहारा लिया जाता है !

कुछ और पद पदावलियाँ ! पाँव के तलवे और एंडी के चमड़ी का रंग सदैव जन्मजात ही रहता है -भले ही इन्हे कितना "सन टेन " किया जाय ! ये हमेशा सफ़ेद या कंट्रास्ट कलर लिए रहते हैं -जिससे इच्छित भाव सिग्नलों को और भी उभार कर सम्प्रेषित किया जा सके ! पाँव की नीचे की चमड़ी और हथेली की चमड़ी का कंट्रास्ट रंग में होना एक मकसद से है ! अब खुली हथेली /पंजे का अंदरूनी चमड़ी का भाग किस तरह आशीर्वाद के पारम्परिक भूमिका के साथ ही एक प्रमुख राष्टीय राजनीतिक दल का प्रचार चिह्न बना हुआ है इस सन्दर्भ में दृष्टव्य है ! मगर याद कीजिये कैसे इसी पैर के तलवे की चमक कृष्ण के लिए जानलेवा भी बन गयी जिन्हें एक व्याध ने उनके तलवे की कौंध के चलते सर संधान से उन्हें तब हत किया था जब वे बिचारे सद्य समाप्त महाभारत की सोच में विचार मग्न किसी वन में बैठे थे ! तथ्य यह है कि पाँव और हथेली की चमड़ी में रंगोत्पादक मिलानिन तत्व नही होता या नगण्य होता है !

सबसे आश्चर्यजनक तो यह ही कि हाथों की विकलांगता में यही पाँव ही सहरा बन जाते हैं ! आपने हाथों के विकलांग ऐसे कई साहसी लोगों की शौर्य कथाएं भी देखी सुनी होगी जिन्होंने असम्भव कामों को भी पांवों से अंजाम दे दिया ! लिखने का काम ,चित्रकारी और यहाँ तक कि मैंने पांवों से एक नाई को हजामत-दाढी बनाते देखा है ! फिजी और भारत में भी कई लोग दहकते अंगारों पर पाँव डालते निकल जाने का हैरत अंगेज प्रदर्शन करते देखे गए हैं ! अभी तक इस प्रदर्शन की संतोषप्रद वैज्ञानिक व्याख्या नही हो पायी है !

प्राच्य -संस्कृति में जहाँ नर पांवों को मार्शल आर्ट की दीक्षा से विभूषित कर उसे एक प्रहार -आयुध के रूप में विकसित किया जाता रहा है वहीं नारी को पावों को और भी स्त्रैण बनाए रखने का कुचक्र रचा गया है -इन्हे छोटा बनाए रखने की यातनाएं चीन में दिए जाने का एक नृशंस इतिहास रहा है ! इन दिनों भारत में जूतम पैजार का जो नजारा दिख रहा है वह पाँव पर्यवेक्षण के संदर्भ में भी बड़ा मौजू है ! किसी पर जूता फेंकना भले ही अपमानजनक कृत्य हो मगर किसी से मिलने के पहले जूता उतार देना एक तरह से उसका सम्मान करना ही हुआ ! उसका स्वामित्व स्वीकारना हुआ ! अब मंदिरों और कई पूजा स्थलों के बाहर जूता निकलने के पीछे अपने आराध्य का सम्मान ही तो है ! अब हमारे "देव तुल्य " नेताओं से मिलने के पहले भी जूता बाहर ही निकालने की आचार संहिता बस लागू ही होने वाली है !

Wednesday, 15 April 2009

....और अब पाँव छूता पुरूष पर्यवेक्षण !

पाँव छूता पुरूष पर्यवेक्षण !
जैवीय विकास की गाथा में मनुष्य ही अकेला प्राणी है जिसके पूरे शरीर का भार उसके दोनों पांवों पर ही टिका है -जाहिर है मनुष्य के दोनों पाँव ही उसे संभाले रहने और संतुलित बनाये रखने की भूमिका में हैं ! चाहे हम पहाड़ की ऊंचाई चढ़ रहे हों या फिर सुरंग की गहराईयाँ नाप रहे हों यही पाँव हमें आगे पीछे ,दायें बाएँ लुढ़क जाने से भी बचाते हैं ! नहीं तो एक बेजान पुतले को ज़रा थोडा सा आगे पीछे और दायें बाएँ धकेलिए बस फर्क समझ में आ जायेगा ....ये दोनों पाँव ही हैं जो हमें संभाले रखते हैं ! !


महान चित्रकार अन्वेषी लियोनार्दो डा विंची ने मनुष्य के पाँव को उसकी इन्ही विशेषताओं के चलते अभियांत्रिकी का मास्टरपीस और कलात्मकता का अनुपम उदाहरण कहा था .मनुष्य का पाँव २६ हड्डियों ,११४ अस्थि बंधों (लिगामेंट ) और २० तरह की मांशपेशियों की मौजूदगी के कारण ही इस उत्कृष्टता को प्राप्त हुआ है ! लम्बी पदयात्राएं राजनीतिक लाभ के लिए ही नही स्वास्थ्य लाभ के लिए भी बड़ी मुफीद सिद्ध हुयी हैं ! यह पाया गया है कि ९० -१०० वर्ष के दीर्घ जीवी भी पदयात्राओं के मुरीद रहे हैं बल्कि नियमित तौर पर कई किलोमीटर लम्बी यात्राओं के शौकीन रहे हैं ! यह कूता गया है कि एक सामान्य स्वास्थ्य का मनुष्य जीवन भर में एक करोड़ से भी अधिक डग भर लेता है !


आप को यह जानकार हैरत होगी कि पाँव के अंगूठे और तलवे एक तरह के पाँव गंध छोड़ते रहते हैं और आज भी कई मूल आस्ट्रेलियाई कौमें परिजन और दोस्त दुश्मन की पहचान के लिए पदचिह्नों को सूंघने का उपक्रम करती हैं ठीक वैसे ही जैसे प्रशिक्षित कुत्ते मुलजिमों की आवाजाही को सूंघ कर भांप लेते हैं ! हाँ वे इस काम में काफी दक्ष हैं क्योंकि वे ऐसे लोगों के पैरों की गंध भी सूंघ लेते हैं जो अपने पैरों को मोजे और जूते से पूरी तरह ढंके रहते है !


तनाव के क्षणों में मनुष्य के तलवे से पर्याप्त स्राव निकलता है जो मोजे और जूते तक को भी नही बख्शता ! और जब जीवाणुओं की फौज उस स्राव या पसीने को विघटित करती है तो उनसे निकलने वाली दुर्गन्ध आस पास के लोगों को भी बेचैन करती है ! अब जिन लोगों के मोजे बहुत बदबू करते हैं तो जान लीजिये वह बन्दा तनाव में रहकर बड़ी मात्रा में पाँव गंध को निःसृत कर रहा है और मोजे की साफ़ सफाई के प्रति भी सचेष्ट नही है ! ऐसे लोगों को तो प्रति दिन अपने मोजे को साफ़ करते रहना चाहिए ताकि जीवाणुओं की छावनी वहाँ काबिज न हो जाय !


ऐसे तनाव के क्षणों में पसीने से लबरेज मोजे और जूतों के द्वारा छोड गए गंध को सहज ही इंगित कर लेना एक ब्लड हाऊंद कुत्ते के लिए तो बहुत ही आसान है !यह बहुत सम्भव है कि हमारे पुरखों में कुछ ऐसे भेदिये भी जरूर रहे होंगें जो दोस्त और दुश्मन के पदचिह्नों को सूंघ कर उनका अता पता रखते हों -कब कौन बस्ती में दबे पाँव आया और कौन निकल गया ! आज के सभ्य मानव में यह क्षमता तो क्षीण होती गयी है मगर यह एक नयी मुसीबत के रूप में हमारे सामने है -लोगों के मोजों से निकलने वाली असहनीय दुर्गन्ध के रूप में !


Tuesday, 7 April 2009

पुरूष पर्यवेक्षण की अगली चाल !



धावक की दौड़ चाल -स्प्रिंट ! ( ऐविअरी )
बात पुरूष- चालों की चल रही थी ...मैं फिर यह स्पष्ट कर दूँ कि ऐसा नहीं है कि जिन चाल प्रारूपों की चर्चा यहाँ हो रही है उन पर महज पुरुषों का ही एकाधिकार है -मगर पुरूष पर्यवेक्षण में नारी की ख़ास चालों के जिक्र का औचत्य नही इसलिए उनकी खास चालों का जिक्र भी यहाँ नही है ! अब आईये गत चाल से आगे चलें !
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१८ -अकडू चाल ( the strut ) -अति आत्मविश्वास की अकड़ भरी चाल -इठलाने का प्रदर्शन !
१९ -अति अकडू चाल (the swagger ) -अकडू पॅन की पराकाष्ठा दिखाती चाल -चाल से ही शेखी बघारना .
२०- अकडू मगर कुछ दोस्तानी चाल (the roll )-अकड़पन तो है मगर लहजा दोस्ताना .रास्ते में कोई मिला तो उसका रुक कर /मुड कर हालचाल भी पूछने की सदाशयता का प्रदर्शन !
२१-सभ्रांत चाल -(the stride ) -सभ्रांत ,ऊंचे तबके अभिजात्य वर्ग की ख़ास चाल -लंबे डग /कदम की चाल ..अब महिलाओं की भी पसंद !
२२- धब धब चाल ( the tramp )-कोल्हू के बैल वाली चाल मगर डग भरना जल्दी जल्दी !
२३-कमजोर की चाल ( the lope ) -ऐसे कमजोर सीकियाँ पहलवान की चाल जिसे चलते हुए देखकर ऐसा भान हो कि यह बन्दा अगर चलता ही नही गया तो शरीर को संभाल नही पायेगा और आगे भहरा उठेगा !
२४-चौंक चाल (the dart ) -चौंक कर खिसक चलने की चाल -स्त्रियों में एक डरी सहमी चाल ,तेज और व्यग्र ,इधर जायं या उधर जाय -अनिर्णय की चाल !
२५- पैर घसीटा चाल ( the slog ) -लम्बी दूरी की तेज चाल मगर पावों को लगभग घसीटते हुए से !
२६-उतावली चाल ( the hurry) - उतावले पॅन और हडबडी की चाल जैसे कोई तात्कालिक काम आ पड़ा हो -दौड़ पड़ने के ठीक पहले जैसी चाल !
२७-दौड़ धूप की चाल (the bustle ) -तीव्रता और व्यग्रता लिए दौड़ भाग की चाल
२८-उछल कूद की चाल (the prance ) -नाचने कूदने फांदने की चंचल चाल -बच्चे किशोरों की ।
२९- सेहत की चाल (the jog )-सेहत बनाने की नीयत से सुबह सुबह की मंथर दौड़ ! मगर सावधान बड़ी उम्र के लोग बिना डाक्टर की सलाह के इसे न अपनाएं .कहीं लेने के देने ना पड़ जायं -सेहत सुधरने के बजाय बिगड़ ना जाय ।
३०-चल कदम दर कदम, चाल -(the march ) -मिलिटरी स्टाईल की चाल -तेज कदम ,कदमके फासले लंबे ,हाथों का आगे पीछे होते रहना ।
३१ -हंस कदम चाल -( the goose step ) मार्च करने की ऊपरी स्टाईल का ही एक नाटकीय रूप -कैसे परेडों के दौरान पैर बिल्कुल सख्त -लम्बवत /सीधा रखते हुए आगे बढ़ते हैं !
३२ -दौड़ चाल ( the run ) -शिकार के लिए दौड़ पड़ने की याद दिलाती चाल -आगे झुक कर पैरों को जमीन पर मजबूती से टिका कर आगे की ओर उछलते हुए दौड़ लगा देना .चहलकदमी में जहाँ किसी भी समय जहाँ दोनों पैर अथवा एक पैर जमीन पर होता है -इस दौड़ चाल में महज एक पैर जमीन पर अथवा कोई भी पैर जमीन पर नही हो सकते !
३३- कम दूरी की दौड़ ( the sprint ) -प्रति सेकेण्ड ४-५ पग की बहुत तेज चाल की छोटी दौड़ ! इसमें जमीन पर एंडी नही पड़ती बस पैर का पंजा जमीन पर आता रहता है !

तो ये रहीं वे चालें जिनमें अधिकाँश का हम अपने जीवन में स्वेच्छा और भावनात्मक कारणों से या सामाजिक जरूरतों के मुताबिक उपयोग करते हैं !

टांगों की कुछ संकेत भागिमायें भी हैं .जैसे जंघे पर ताली का प्रहार -ताल ठोकना ! यह विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में चुनौती देने ,ललकारने ( महाभारत के लगभग अवसान पर तालाब के भीतर छुपे दुर्योधन को बाहर निकालने के उपक्रम में उसे उकसाने के लिए भीम बार बार ताल ठोकते हैं ) ,आश्चर्य और हर्ष ,शर्म ,दुःख और अति आनंद के लिए इस भंगिमा को अपनाया जाता है !

और एक भंगिमा है पैरों को टेकने की -घुटने की -एक पैर का घुटना टेंकना या फिर दोनों पैर के घुटने टेंक देना -यह स्वामित्व स्वीकारने की भंगिमा है । मगर दोनों पैर अब असीम /सर्वोच्च सत्ता के सामने ही टेंकने का रिवाज है !

Friday, 3 April 2009

पुरूष पर्यवेक्षण - किसिम किसिम की चालें !

एक मित्र काफी दिनों बाद दिखे -सहज ही मैंने पूंछ लिया -क्या हाल चाल हैं आपके ? जवाब था हाल तो ठीक है पर चाल कुछ गड़बड़ है ! बात मजाक में कही गयी थी आयी गयी हो गयी ! पर पुरूष पर्यवेक्षण के सिलसिले में जब मुझे टांगों पर नजर गडानी पडी तो मैं किसिम किसिम की चालों को देख कर हैरान हो गया हूँ ! आप भी लुत्फ़ उठाईये ! और हाँ पुरूष अंग प्रत्यंगों के बहाने यह चर्चा प्रकारांतर से मानव व्यवहार की भी तो है -केवल स्थूल अंगों की ही नहीं ! यह बात इस श्रृंखला और पूर्व वर्णित नारी नख शिख सौन्दर्य पर समान रूप से लागू है -पुराने और नियमित पाठक इस तथ्य की तस्दीक़ करेंगें !

व्यवहार विज्ञानियों -खासकर डेज्मांड मोरिस ने मनुष्य प्रजाति के ३६ तरह की चालों का वर्णन किया है इसमें अधिकाँश तो नर नारी दोनों के लिए समान हैं मगर कुछ में दोनों के अन्तर साफ़ दीखते हैं ! तो यहाँ महज "तोबा ये मतवाली चाल " के विवरणों से न चाहते हुए भी किनारा करते हुए केवल पुरूष चालों या फिर नर नारी दोनों में समान चालों की ही चर्चा की जा रही है !

कदमताल और चहलकदमी में ये टांगें ही जलवाफरोश होती हैं ! चार्ली चैपलिन से लेकर अपने सदाबहार देवानद की चाल के तो चर्चे रहे हैं ! कुछ चालों की हालचाल यूँ है -
१-चहलकदमी (the stroll ) -धीमी चाल -सुबह शाम की चहलकदमी -प्रति पग /कदम एक सेकेण्ड की गति से
२-मंथर गति चाल (the amble)- निरुदेश्य टहलना (लौकिक हिन्दी शब्द -भड़छना ) निश्चिंत और आराम से -कोई ख़ास दिशा नहीं -इधर उधर !
३-मटरगश्ती (the sunter) -फुरसतिया चाल ! दिखावटी मस्त चाल -हम फुरसत में हैं !
४-आवारागर्दी (the dwadle )- समय गवाने -आवारगी की चाल -धीमी मंथर गति !
५-कोल्हू के बैल की चाल (the plod ) -ऐसी चाल जिससे खटने -किसी काम में पिसते रहने का भान -भारी मन से चलते रहना -आहिस्ता आहिस्ता ! जैसे कोई सीधी चढाई चढ़ रहे हों !
६-निढाल चाल (the slouch ) -सेवकों और अनुचरों के स्थायी भाव की चाल -कुछ पस्त और ढीली -थके मांदे होने का अहसास !
७-थुल थुल चाल (the waddle) -मोंटे तुंदियल लोगों की थुल थुल चाल जैसे बत्तखें चलती हैं ।
८-भच्कनी चाल (the hobble) -ऐसे जैसे जूते ने काट खाया हो -लंगडाहट भरी चाल .
९-शराबी की चाल ( the totter) -लडखडाते हुए ,पियक्कड़ की चाल
१०-लंगडी चाल (the limp ) -ऐसे लंगडाते हुए जैसे की एक पैर में तकलीफ /चोट हो
११-बीमारी की चाल (the shuffle )-आपरेशन के बाद अस्पताल में मरीज की चाल -पैरों को घसीटते हुए ।
१२-गीदड़ गश्त (the prowl ) -शिकार की टोह की चाल -जैसे दबे क़दमों से गीदड़ शिकार की ओर बढ़ रहा हो -चोर की सी चाल -छुपते छुपाते -बचते बचाते !
१३-दबे पाँव (the tip toe ) -शिकार के बिल्कुल पास पहुँच कर अति मंथर गति से पांवों को आगे बढ़ाना -आक्रमण के ठीक पहले की चाल
१४-घुमक्कडी चाल (the promenade ) -सैर सपाटे की की चाल ,मौज से घूमने फिरने की चाल -चहलकदमी और तेज चाल के बीच की गति !
१५-घूमना ( the walk) -दो पग प्रति सेकेण्ड की सामान्य चाल -ऐंडी जमीन पर फिर पूरा पाँव !
१६-छोटे पग की तेज चाल (the mince ) -छोटे पग उठाना मगर चाल की तेजी प्रमुखता से दिखना -महिलाओं की भी एक प्रचलित चाल ।
१७-नौजवान चाल -(the bounce ) -ऊर्जा और शक्ति से लबरेज स्वस्थ किशोर और युवा की तेज क़दमों की आत्मविश्वास भरी से चाल

अरे अभी ऊब गए आप ? अभी तो इतनी ही चालें और आपका बाट जोह रही हैं -जारी ......

Sunday, 29 March 2009

पुरूष पर्यवेक्षण -अब टांगों पर टंगी नजरें !

जी हाँ पुरूष पर्यवेक्षण अब अपने अन्तिम पड़ाव तक बस पहुँचने वाला ही है -इसी क्रम में लम्बी टांगों पर नजर है कि बस टंग गयी ! मनुष्य की टांगें उसकी लम्बाई का आधा हिस्सा जो हैं ! जब एक चित्रकार मनुष्य के शरीर का चित्रांकन करता है तो वह अपने सुभीते के लिए उसके चार हिस्से करता है ! तलवे से घुटने तक ,घुटने से कमर तक .कमर से वक्ष तक और अंततः वक्ष से सिर तक ! हाँ बच्चों में टाँगें छोटी रहती हैं ! समूचे नर वानर कुल में मनुष्य की टांगें ही शरीर की तुलना में सबसे बड़ी हैं ! टांगों के ऊपर भागों में मनुष्य के शरीर की सबसे बड़ी और मजबूत हड्डी फीमर होती है !

अपनी टांगों की ही बदौलत आदमी दो ढाई मीटर तक की ऊंची कूद सहज ही लगा लेता है और ८ से ९ मीटर की लम्बी छलांग भी ! तभी तो अपनी इसी क्षमता के आरोपण को अपने इष्ट देव हनुमान में कर देने से भक्तजनों को उनके 'जलधि लांघि गए अचरज नाही ' के रूप का दर्शन हुआ ! यह मजबूत टांगों का ही जलवा है कि २१५ दिनों से भी अधिक अनवरत नाचते रहने के रिकार्ड भी बन गए हैं ! दरअसल यह मजबूत विरासत हमें अपने शिकारी अतीत से ही मिली है जब शिकार को घेर कर पकड़ने की आपाधापी में हमारे पूरवज दिन भर में सैकडों मील का चक्कर लगा लेते थे ! हमारी ऊंची कूद की क्षमता का एक मिथकीय रूप विष्णु के वामन रूप में भी दीखता है जो समूचे ब्रह्माण्ड को ही महज ढाई पगों में नाप लेने को उद्यत और सफल हुए ! और वर्तमान दुनिया के उन पगों को भला कौन भूल सकता है जिसके बारे में कहा गया -चल पड़े जिधर डग मग में चल पड़े कोटि पग उसी ओर ! आज कितने ही राष्ट्र नायकों की पदयात्रा प्रिय राजनीतिक शगल है ! सो ,यदि टाँगें स्थायित्व ,शक्ति .और गरिमा की प्रतीक हैं तो इसमे आश्चर्य नही !
टांगों के जरिये कुछ तीव्र भाव मुद्राए भी प्रगट होती हैं खड़े लेटे और बैठे टांगों के बीच का बढ़ा फासला दृढ़ता , आत्म विश्वास और यौनाकर्षण के भावों का संचार करता है ! रोबदाब वाले लोग अक्सर खडे होने के समय पैरों का फैसला बढ़ा कर रखते हैं ,मगर पैरों को फासले के साथ करके बैठने से एक कम शालीन भाव बल्कि कभी कभी उत्तेजक अंदाज बन जाता है क्योंकि यह निजी अंगों को भले ही वे ढंके छुपे है को प्रगट करता है इसलिए ही आचार विचार की कई किताबे पैरों को फैला कर बैठने लेटने की मनाही करते हैं ! टांगों को क्रास कर बैठना एक अनौपचारिक बेखौफ मुद्रा है !
जारी .....

Friday, 27 March 2009

आज " धरती -प्रहर" में एक वोट धरती को भी दीजिये !


आज धरती प्रहर में आप अपना एक वोट धरती को दें ! कोटि कोटि नर मुंडों के बोझ से आक्रान्त धरती की फिक्र आख़िर कृतज्ञ मानवता ही कर रही है .आज एक वैश्विक मतदान प्रहर -रात्रि ८.३० और ९.३० के बीच में आपका वोट लेने की मुहिम है ! आप किसे चुनेंगें -पर्यावरणीय संघातों से विदीर्ण धरती को बचाने की मुहिम को या फिर उन कारकों को जिनसे यह धरती तबाह होने को उन्मुख है ? फैसला आपके हाथ में है !

यह सिलसिला सिडनी से वर्ष २००७ से शुरू हुआ जब २२ लाख लोगों ने अपने बिजली की स्विच को एक घंटे के लिए आफ कर दिया ! वर्ष २००८ में पाँच करोड़ लोगों ने यही काम दुहराया और अपने बिजली स्विचों को आफ किया भले ही सैन फ्रैंसिस्को का मशहूर का गोल्डन गेट ब्रिज ,रोम का कोलेजियम ,सिडनी का ऑपेरा हाउस ,टाईम्स स्क्वायर के कोकोकोला बिल्ल्बोर्ड जैसे मशहूर स्मारक भी अंधेरे से नहा गए !


इस वर्ष यह अभियान दुनिया के एक अरब लोगों तक मतदान की अपील ले जाने को कृत संकल्प है .यह आह्वान किसी देश ,जाति ,धर्म के बंधन को तोड़कर अपने ग्रह -धरती के लिए है -धरती माँ के लिए है ! और इसकी आयोजक संस्था कुछ कम मानी जानी हस्ती नही है बल्कि वर्ल्ड वाईड फंड (WWF) है जिसकी वन्यजीवों की रक्षा के उपायों को लागू करने के अभियान में बड़ी साख रही है -अब यह पूरे धरती को ही संरक्षित करने के लिए लोगों के ध्यान को आकर्षित करने की मुहिम में जुट गयी है ! VOTE EARTH नारे के साथ यह आज एक अरब लोगों तक अपनी अपील लेकर जा पहुँची है ! मेरी यह दरख्वास्त भी इसी अपील का एक बहुअल्प विनम्र हिस्सा भर है !इसका पूरा ब्योरा कोपेनहेगेन में इसी वर्ष तय वर्ल्ड क्लाईमेट चेंज कांफ्रेंस में रखा जायेगा ! जिसमें विश्व की सरकारों द्वारा ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ प्रभावी कदम के लिए प्रबल जनमत जुटने की तैयारी है !

तो आज आप अपने मतदान के लिए अपने घर के बिजली के स्विचों को मतदान -स्विच बनाएं -ठीक रात्रि साढे आठ बजे स्वेच्छा से घर की बिजली गोल कर दें और एक घंटे बिना बिजली के बिताएं -यह आपका प्रतीकात्मक विरोध होगा उन स्थितियों से जिनसे धरती की आबो हवा ही नही ख़ुद धरती माँ पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं !

भारत सहित ७४ दूसरे देशों का यह संकल्प है ! धरती प्रहर ( रत्रि साढे आठ बजे और साढे नौ के बीच ) में अपना वोट दीजिये ताकि धरती तरह तरह के पर्यावरणीय आघातों ,प्रदूषणों से बची रहे और प्रकारांतर से ख़ुद हमारा अस्तित्व भी सही सलामत रहे !

वाराणसी के टाइम्स आफ इंडिया ने आज इस मुहिम को बुलंद स्वर दिया है जबकि हिन्दी अख़बार बस भारतीय जनतंत्र के चुनावी महायग्य से ही ध्यान नही बटा पा रहे !
आईये धरती माँ के लिए एक वोट आप भी दीजिये !