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Tuesday, 28 December 2010

मानसरोवर से आये एक मेहमान से मुलाक़ात!

इन दिनों इलाहाबाद के संगम और वाराणसी में गंगा में हजारो की संख्या में प्रवासी पक्षी घोमरा (Larus brunicephalus ) डेरा डाले हुए हैं और इन्हें पर्यटक चारा भी खिलाने में मशगूल दिख रहे हैं .बल्कि सैलानियों के लिए ये आकर्षण का केंद्र बन गए हैं -आवाज देने पर झुण्ड के झुण्ड बिल्कुल पास आकर चारा झपट लेते हैं -हवाई करतब दिखाते हुए या फिर पानी की सतह पर झपट्टा मारकर .इनकी बोली काफी तेज, कर्कश है .पर्यटकों को चारे के रूप में लाई ,सस्ती नमकीन बेंचकर कुछ्का अच्छा धंधा भी चल पडा है .

मगर आश्चर्य यह है कि अखबारों में इनकी चित्ताकर्षक फोटो तो छप रही है ,ये वी आई पीज के लिए कौतुहल के विषय भी बन रहे हैं (सामान्य जानकारी से जो जितना ही रहित है भारत में वही सबसे बड़ा वी आई पी है :) ) मगर इनकी सही पहचान के बजाय तरह तरह के कयास ही लगाए जा रहे हैं -कोई कहता है कि ये साईबेरिया से आये फला पक्षी हैं तो कोई और कुछ ...दरअसल ये 'गल' की एक प्रजाति है -ब्राउन  हेडेड गल यानि सफ़ेद सिरी गल -हिन्दी में धोमरा या घोमरा .अब इसे शुभ्र सफ़ेद सिर के बजाय ब्राउन हेडेड क्यों कहते हैं कोई भाषा विद अच्छी तरह बता सकता है -शायद अंगरेजी में ब्राउन और सफ़ेद बालों का कोई भाषाई फर्क न हो!


गल की यह प्रजाति वैसे तो समुद्र के तटों ,बंदरगाहों पर मछलीमार बड़ी नौकायों के पीछे दिखती है मगर बड़ी नदियों में भी इनकी अच्छी खासी तादाद जाड़ों में दिखती है .ये प्रवासी पक्षी हैं ,जाड़ों में अक्टोबर माह तक लद्दाख और तिब्बत ,मानसरोवर और आसपास के झीलों जहां ये घोसला बनाती हैं उड़कर भरात की तमाम नदियों और समुद्र तटों तक आ पहुँचती हैं -इनकी एक काले सिरों वाली प्रजाति भी है जो इधर इक्का दुक्का ही दिखती है .सालिम अली जहाँ इनका मूल आवास तिब्बत और आस पास बताते हैं एक दूसरे पक्षीविद सुरेश सिंह ने अपनी पुस्तक भारतीय पक्षी में इन्हें यूरोपीय देशों का मूलवासी बताया है -यह खोज का विषय है -लगता तो यह है कि इनकी दो तीन नसले हैं जिन्होंने तिब्बत और यूरोपीय देशों में बसेरा  कर रखा है.



देखने में मनोहारी इन पक्षियों की आँखें सबसे खूबसूरत हैं और बड़े मासूम से दिखते हैं ये .अभी कल ही जब हम गंगा में नौकायन कर रहे थे-नाविक ने हाथ से ही एक को धर लिया -मैंने भी थोड़ी देर इन्हें दुलारा,पुचकारा फिर मुक्त कर दिया .जां की अमान पाते ही यह एक लम्बी उडान भरती हुई सुदूर क्षितिज में विलीन हो गयी .नाविक ने बताया कि यह जल्दी ही फिर अपने झुण्ड मेंआ  मिलगी ..उसे तब शायद अपने मानव मुठभेड़ की याद भी  न रहे ...चिड़ियों की याददाश्त भला ज्यादा थोड़े ही होती होगी -यह तो मनुष्यों की थाती है जो अच्छी  बुरी  घटनाओं के  पुलिंदे सहेज कर रखती है - दूसरों की कृतघ्नताएँ हम भूल पाते हैं भला !पक्षी ही भले हैं इस मामले में .
बहरहाल कुछ चित्र और यदि लोड हो सका तो एक वीडियो भी देखिये  इन मासूम पक्षियों से मेरी मुलाकात का और हाँ अब इन्हें पहचाने की भूल मत करिएगा !

Saturday, 16 October 2010

दर्शन कीजिये नीलकंठ का ,अपना दिन शुभ कीजिये!


आज विजयादशमी के दिन नीलकंठ के दर्शन की परम्परा रही है. क्यूँकि राम के आराध्य शिव हैं फिर  इस खुशी के मौके पर उनके रूप प्रतीति का दर्शन क्यूँ न किया जाय ? एक पक्षी का नाम ही नीलकंठ पड़ गया -अपने पंख पर नीले रंग की अनुपम छटा के कारण यह पक्षी जिसे अंगरेजी में Indian Roller (Coracias benghalensis), या  Blue Jay  कहते हैं , शिव का ही प्रतिरूप बन  गया है !आप इस बेहद खूबसूरत पक्षी को बाग़ बगीचों ,वन उपवनों ,टेलीफोन ,बिजली के तारों पर बैठे और सहसा जमीन पर आ पहुँच कीट पतंगों को  चोंच में भर ले उड़ने और उनके हवाई नाश्ते के दृश्य को देख सकते हैं ..अगर आज यह आपके आसपास न दिखे तो दुखी मत होईये ऊपर  का चित्र देखकर रस्म अदायगी तो कर ही लीजिये !

राहत की बात यह है कि अभी भी यह पक्षी खात्मे की राह  पर नहीं है मगर इसका दिखना कुछ कम जरुर हुआ है .भारतीय महाद्वीप में यह हिमालय से लेकर श्रीलंका ,पाकिस्तान आदि सभी जगह मिलता है .विकीपीडिया के मुताबिक़ यह बिहार ,कर्नाटक ,उडीसा और आन्ध्रप्रदेश का राज्य पक्षी है .

 आज नीलकंठ देखकर अपना दिन शुभ कीजिये मगर इसके संरक्षण में भी आप भी कुछ भूमिका निभा सकें तब  बात बने

Thursday, 6 August 2009

इक प्रणय कुटीर बने न्यारा : पशु पक्षियों के प्रणय प्रसंग (10)-(डार्विन द्विशती विशेष)

बना यह प्रणय कुटीर आलीशान
सबसे अनोखा प्रणय मंच कर्मी (स्टेज परफार्मर ) तो आस्ट्रेलियाई बोवर बर्ड है जिसकी १८ प्रजातियाँ हैं और सभी अपने अपने अनूठे तरीके से प्रणय पर्ण कुटीर का निर्माण मादा को रिझाने के लिए करती हैं -टूथ बिल्ड बोवरबर्ड घने जंगल की फर्श के एक नन्हे से टुकड़े को बड़ी परिश्रम से साफ़ करता है और तृन - तिनकों को बीन बीन कर एक आठ फीट का घेरा लिए हुए प्रणय कुटीर तैयार करता है और उसे तरह तरह की रंग बिरंगी चीजों से सजाता है .पत्तियों का उल्टा पीला भाग यह सामने की ओर करके पर्ण कुटीर पर चस्पा करता रहता है -मानो इसके प्रणय बसंत का भी संकेत रंग पीला ही हो ! पत्तियों की सजावट के बाद नाचना गाना शुरू हो जाता है !

बोवर बर्ड की दूसरी प्रजाति है एवेन्यू बिल्डर्स की जो अपने कुटीर में एक प्रेम गली का निर्माण करने में निपुण हैं और वह भी कोई बहुत संकरी नहीं ,अच्छी खासी चौड़ी जिससे उसकी महबूबा खरामा खरामा आराम से भीतर आ सके ! स्पाटेद बोवर बर्ड अपने प्रणय कुटीर को सफ़ेद रंग के साजो सामान से सजाती है -सफ़ेद हड्डी के टुकड़े ,पत्थर के टुकड़े ,छोटे घोंघों के सफ़ेद कवच आदि यह ढूंढ ढूंढ कर लाकर कुटीर के इर्द गिर्द बिखेरती है और मानो अपनी शान्ति प्रियता की मिसाल देना चाहती हो प्रणय संगिनी को ! फान बोवर बर्ड को हरा और गहरा नीला रंग पसंद है -सब प्रजातियों ने मानो कामवश हो इन्द्रधनुष के सभी रंगों को थोड़ा थोड़ा सा चुरा लिया हो ! डेविड अटेंन्ब्रो का यह वीडियो जरूर देखिये !

सबसे भव्य प्रदर्शन तो satin bower bird का है और इसप्रजाति पर व्यवहार विदों ने व्यापक अनुसंधान किया है .गहरे नीले काले रंग और नीली आंखों वाला नर अपने प्रणय कुटीर के एक हिस्से में एक ५ इंच चौड़ी रास गली बनाता है जिसकी दीवारें १२ इंच ऊंची और चार इंच मोटी होती हैं -कुटीर के उत्तरी सिरे पर यह रगीन वस्तुओं का मानो भानुमती का पिटारा ही चुरा लाता हो -तोतों के नीले पर ,नीले फूल ,नीले चेरी के फल ,नीले कांच के टुकड़े ,नीले फीते -रस्सी के टुकड़े ,नीले कपड़े ,नीले बटन और यहाँ तक की शहरी बस्ती के निकट के जंगलों में यह बसों के नीले टिकट ,धोबी घाट से ले उडे नीले रूमाल और थैले सभी कुछ .प्रणय की इस नीलिमा को प्रणाम ! गोपियों को कृष्ण का नीला रंग ही तो कहीं भा नही गया था -नील सरोरुह श्याम !

अब प्रणय के इस नीले रंग /ब्लू फिल्म का एक त्रासद पक्ष भी देखिये कि जब इन पक्षियों को अध्ययन के लिए बने बड़े पिजरों में दूसरी चिडियों के साथ रखा गया तो प्रणय काल में इन्होने दी गयी टहनियों और फुन्गों से कुटीर तो बना लिया मगर नीले रंग के अभाव में नैराश्य जनित क्रोध के चलते इन्होने नीले रंग की चिडियों को ही मार मार कर प्रणय कुटीर के सामने प्रदर्शित कर दिया -प्रेम के नाम पर निरीहों के बलि ! हे राम !

Monday, 3 August 2009

प्रणय घरौदे और अभिसार मंच !-पशु पक्षियों के प्रणय सम्बन्ध (9)-(डार्विन द्विशती विशेष)



तीतरों
और बटेरों की कुछ प्रजातियों में तीतरों की एक प्रजाति सेज ग्राउस में मादा से संसर्ग की इतनी होड़ होती है बस केवल कुछ हर दृष्टि से सक्षम नर ही अपनी मुहीम में कामयाब हो पाते हैं -एक प्रेक्षण में पाया गया कि ४०० नरों में से केवल चार ही स्वयम्बर की इच्छुक ७४ फीसदी मादाओं से घनिष्ठ हो गए -बाकी सब के सब महज २६ प्रतिशत पर कामयाब हो पाये ! मतलब प्रणय शूरमा निकले केवल चार !
प्रणय रत नर मादा सेज ग्राउस

आस्ट्रेलिया की लम्बी पूंछो वाली लायिर बर्ड का नर तीन फिट के लगभग दस गीली मिट्टी के प्रणय घरौदें (love mounds ) बनाता है और अपने प्रणय याचन की विभिन्न भाव भंगिमाओं से मादा को रिझा लेता है !

लायिर बर्ड का प्रणय प्रदर्शन



इसी
तरह बर्ड आफ पैराडाईज घने जंगलों में जहाँ सूरज का प्रकाश तक नही पहुँचता जमीन के छोटे छोटे स्थलों की साफ़ सफाई करके अभिसार /स्वयम्बर मंच बनाते हैं और फिर घने लता गुलमो की कटाई छटाई करके प्रकाश की एक रेख स्वयम्बर मंच तक ला पाने में सफल हो जाते हैं -सूर्य की यह प्रकाश रेखा स्वयम्बर मंच पर मनो स्पाट लाईट का काम करती है ! फिर नर की नाच कूद मादा को रिझाने के लिए शुरू हो जाती है !
यह वीडियो जरूर देख लें !

Thursday, 30 July 2009

कैसे कैसे स्वयम्बर ?-पशु पक्षियों के प्रणय सम्बन्ध (8)-(डार्विन द्विशती विशेष)

अब एरेना डिसप्ले मतलब रंगभूमि प्रदर्शन की कुछ बानगी भी देखिये जो आपके सामने यह भी खुलासा करेगी कि चिडियों की कुछ प्रजातियों में स्वयम्बर की क्या रूप रेखा है -मादाएं नर का चुनाव कैसे करती हैं ?

एक पक्षी है यूरोपियन सैंड पाईपर -भारत में भी प्रवासी है -ruff नर को कहते हैं reeve मादा को ! हिन्दी नाम है गेह वाला या कहीं कहीं बागवाद ! नर की उन्नत कलंगी होती है जो अपने रंगीले परो व कालर से सहज ही पहचाना जा सकता है .ये बसंत ऋतु के आगमन के साथ ही कुछ पारम्परिक रंग भूमियों पर अपना अनंग आसन जमा लेते हैं -नरों में उच्च अनंग आसन यानी पर्वत की चोटी को हथियाने की होड़ और घमासान मचता है. मतलब रंगभूमि का यह हिस्सा सबसे महत्वपूर्ण होता है जहां ज्यादा से ज्यादा नर पहुचने की कवायद करतेहैं- यह नरों की जमावट के कारण फूलों की सेज सा दीखता है -पहाड़ की चोटी , और सेज पिया की,वाह! क्या कहने! सबसे दबंग नर यहाँ कब्जा जमा लेते हैं और ढेर सारे दब्बू नर इर्द गिर्द जमा होते हैं !

मादाएं परिधि के दब्बू नरों की उपेक्षा कर चोटी के गहरे रंगों की कलगी वालों नरों की और आकर्षित होती हैं -उनके आगमन के साथ ही नर प्रणय याचन का जबरदस्त प्रदर्शन करते हैं -मादाएं मनचाहे नर का वरण करती हैं और घनिष्ठ संसर्ग के बाद स्वयंबर सम्पन्न हो जाता है ! प्रणय संसर्ग संपन्न होते ही मादाएं नरों को अलविदा कह देती हैं और अपने वात्सल्य बसेरे की और लौट चलती हैं जहां नीड का निर्माण और अंडे देने ,सेने ,शिशुओं का लालन पालन खुद करती हैं ।रंगभूमि में मादाओं का आगमन और प्रणय प्रसंग कुछ मिनटों में ही निपट जाता है .

यहाँ कुछ हैरतअंगेज भी घटता है. दरअसल इस महा -स्वयम्बर में दो तरह के नर होते है ,एक तो 'सेज पिया की ' पर कब्जा किये अखाडिया नर (रेसिडेंट मेल्स ) और दूसरे अखाडे के किनारे पर जमे लग्गू भग्गू या भडुआ नर (सैटेलाईट मेल्स )। अखाडिया नरों की कलगी गहरे रंग की होती है जबकि भडुआ नर फीकी कलगी वाले होते हैं ! मादा के साथ मुख्य यौन संसर्ग तो अखाडिया नर ही करते हैं मगर भडुआ नर भी किनारे से मादा पर कामुक गिद्ध दृष्टि जमाये रहते हैं ! और मजे की बात तो ये कि अखाडिया नरो से भडुआ नर बिलकुल भी नहीं झगड़ते बल्कि उनकी मिजाज पुरसी /ठकुर सुहाती में लगे रहते हैं! तो फिर इनकी जैवीय जरूरत ही क्या है ? रंगभूमि में फिर इनका क्या काम ?


जोहन फ्रेडरिच नौमान (1780-1857) का "लेक " का चित्रण


दरअसल भडुए नर अपनी उपस्थिति से चोटी /सेज पिया पर काबिज नरों की भीड़ का हिस्सा बनते हैं और मादाओं को दूर से यह अहसास दिला देते हैं कि वहां नरों की भीड़ अधिक है ! इस तरह वे अखाडिया नरो की मदद ही कर रहे होते हैं ! मादाओं का अवचेतन "अधिक नर ,उपयुक्त के चयन के अधिक अवसर " का अनुसरण करता है और वे पिया की सेज पर आ धमकती हैं ! फिर भी इससे भडुआ नरों का क्या सीधा लाभ ? क्या वे निरपेक्ष भाव से केवल अखाडिया नरों के यौन लाभ के लिए आत्मोत्सर्ग कर रहे होते हैं ? नहीं ! ये भी मौके की तलाश में होते हैं और अखाडिया नरो की आपसी प्रतिस्पर्धा जनित द्वंद्व युद्धों में यौनोन्मत्त मादा से क्षण भर के लिए भी विरत नर के स्थान पर ये सहसा ही आ धमकते हैं और ख़ुद द्वारा चयनित नर के युद्ध कौशल को निहार रही और उसके वापस लौटने की प्रतीक्षा कर रही मादा पर आरूढ़ हो जाते हैं -मानो कुदरत भी एक विचित्र असमंजस की स्थिति को बनाये रहती है और मादा के प्रतिकार के पूर्व ही भडुआ नर अपना शुक्र दान कर चुके रहते हैं -विजयी नर के आते आते ये फिर फुर्र से अखाडे के किनारे उड़ चलते हैं -परिस्थितियों का पूरा लाभ उठाने वाले घोर अवसरवादी भडुआ नर बस इन्ही चुराएं हुए काम केलि के तोहफों पर जीवन गुजार देते हैं।

कुछ और पक्षी प्रजातियों में स्वयम्बर की दास्तान जारी रहेगी .......

Monday, 27 July 2009

एक स्वयम्बर यहाँ भी है - पशु पक्षियों के प्रणय सम्बन्ध (7)-(डार्विन द्विशती विशेष)


बर्ड आफ पैराडाईज का नर भी एक बहुगामी एरेना बर्ड है

इन दिनों एक सिने तारिका का रियलिटी -स्वयम्बर शो दूरदर्शन पर छाया हुआ है ! आईये हम आपको स्वयम्बर की प्रवृत्ति के उदगम के खोज यात्रा पर लिए चलते हैं चिडियों की मनमोहक दुनियां में ! यहाँ के स्वयम्बर के आगे बड़े बड़े स्वयम्बर भी फीके हैं ! वैसे तो चिडियों की 8700 प्रजातियों में से अधिकाँश में नर नारी का एकल जोड़ा ही सारी पैत्रिक /मातृत्व की जिम्मेदारियों का वहन करता है -मगर ८५ प्रजातियों में जो कुल के महज एक फीसदी हैं जोड़े नही बनते -इनमें नर बहुगामी होते हैं ,मतलब पालीगैमस ! मगर क्या मजाल किसी मादा से कोई जोर जबरदस्ती हो -यहाँ मादा ही एक विशाल स्वयम्बर में नर का वरण करती है -

इन चिडियों में कोई जोड़ा -बंध (पेयर बोंड) नही बनता .नर और मादा अल्प काल के लिए मिलते हैं -नर जीवन का सर्वोत्कृष्ट आकर्षक प्रदर्शन -प्रणय याचन करता है मादा वर माला डालती है -संसर्ग होता है और फिर मादा नर को छोड़ अलग चल देती है -नर अभी भी और मादाओं के लिए पलक पावडे ही बिछाए रहते हैं और अवसर का लाभ उठा कर एक से भी अधिक मादाओं से प्रणय सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं . इसके बाद नर मादा हमेशा के लिए बिछड़ जाते हैं -मादा घोसला बनाने ,अंडे सेने ,शिशुओं के लालन पालन का जिम्मा ख़ुद निभाती है, नर से कोई मतलंब नही रह जाता !

ये बहुगामी नर ,प्रणय लीला के सिवा बस उठल्लू के चूल्हा होते हैं ,कुछ करते धरते नहीं बस केवल प्रणय कला प्रवीण होते हैं और दिन रात कोई और काम धाम न करके अपने पौरुष प्रदर्शन में ही लगे रहते हैं -अपने डैनों ,पखों -परों को सजाना सवारना ही इनका मुख्य काम होता है ! चूकिं इनमें जोड़ा बाँधने की प्रवृत्ति नहीं होती अतः कई मादाओं से प्रणय बंध स्थापित करने में इन्हें कोई रोक टोक नहीं रहती .नरों में एक दूसरे से बढ़ चढ़ कर खूबसूरत दिखने की चाह और प्रतिस्पर्धा होती है -जो नर जितना ही स्फूर्त ,मुखर और चमक दमक लिए होता है वह मादाओं को उतना ही आकर्षित कर लेता है.

इन पक्षी प्रजातियों जिनमे मुख्य रूप से कई मुर्गों ,तीतर , बटेर ,रफ (नर)और रीव (मादा ) की पक्षी प्रजातियाँ आती हैं में एक विशाल स्वयम्बर का आगाज होता है -पहाडों की ऊंची एकांत निर्जन चोटियां सैकडों नरों से गुंजायमान हो कर "रंगभूमि "का नजारा पेश करती हैं ! इन पारम्परिक रंगभूमियों में आने वाले नर अपने पौरुष का बढ़ चढ़ कर प्रदर्शन शुरू कर देते हैं -मादाएं भी उसी रंगभूमि को चुनती हैं जहाँ ज्यादा नरों की भीड़ होती है -ताकि उनमे चुनाव के अधिक मौके मौजूद रहें ! मादाओं के आते ही एक साथ सारे नर प्रणय याचना शुरू कर देती है -मगर मादा ऐसा दिखाती है की जैसे कुछ हो ही नहीं रहा उसके सामने -प्रत्यक्षतः उदासीन सी वह नर लीलाओं का बस तटस्थ भाव से लेकिन बारीक निरीक्षण करती है -पक्षी प्रणय के इस रंगभूमि को अंग्रेजी में एरेना -arena या स्कैन्देनिविआयी भाषा में Leka मतलब "टू प्ले ' कहते हैं और यहाँ हो रहे प्रणय प्रदर्शन को 'एरेना डिस्प्ले '- इन पक्षियों का एरेना ही वह अभिसार स्थल है जो केवल प्रणय लीला का केंद्र है ,यहाँ घोसला बनाना ,शिशुओं का लालन पालन सभी वर्जित है -मादा नर से संसर्ग के बाद अन्यत्र घोसला बनाने और भावी पीढी के लालन पालन की तैयारियों की और चल देती है !

यह वर्णन अभी आगे भी है मगर अभी तो मुझे रामचरित मानस का वह प्रसंग याद हो आया -रंगभूमि जब सिय पगु धारी,देखि रूप मोहे नर नारी -मगर मनुष्य कितना विकसित हो गया है -यहाँ स्वयम्बर में राम को वरण करने के बाद सीता उनकी जीवन सगिनी बन जाती हैं मगर एरेना बर्ड्स में नर को मादा की परवाह कहाँ ?


अभी जारी रहेगा यह पक्षी प्रणय पुराण

Friday, 24 July 2009

......और हो आग दोनों तरफ़ बराबर लगी हुयी .... पशु पक्षियों के प्रणय सम्बन्ध (6)-(डार्विन द्विशती विशेष ब्लागमाला )

जी हाँ ,इश्क में हो दोनों ओर आग बराबर लगी हुई की सोच का उदगम लगता है इन पशु पक्षियों के प्रणय याचन के व्यवहार से ही है -नर और मादा में काम विह्वलता की बराबरी और उनकी समकालिकता का होना जरूरी है तभी उनमें रति मिलन सम्भव है ! प्रणय याचन के व्यवहार इसी ओर उकसाते हैं ! यदि नर मादा में से कोई एक भी काम विह्वलता के समान स्तर पर नहीं पहुँच पाता तो रति प्रसंग सफलता पूर्वक संयोजित नही हो सकता .अनिश्चय की स्थिति प्रायः मादा की ओर से ही होती है अतः नर बार बार अपने चित्र विचित्र प्रणय व्यवहारोंकी पुनरावृत्ति करता रहताK है और यह एक भरे पूरे अनुष्ठान का रूप तक ले लेता है-बहुत कुछ किसी सेरीमनी जैसा ! जिससे मादा का असमंजस दूर हो जाय !

स्वार्ड टेल मछली का नर अपनी तलवार जैसी पूंछ से बार बार मादा के मुंह के सामने पंख झलने सा उपक्रम करता है -वह दूर भागना चाहती है तो भी नर उसका रास्ता रोक रोक कर अपनी पूंछ दिखाना चाहता है -यह तब तक चलता रहता है जब मादा भी पूर्ण समर्पण के लिए तैयार नही जाती


नर स्वार्ड टेल मादा को बार बार अपनी तलवारनुमा पूँछ दिखा कर रिझाता है


मछलियाँ प्रणय याचन के दौरान तीन तरह का व्यवहार प्रर्दशित करती है -भय (फियर ),आक्रामकता (एग्रेसन ) और यौन संसर्ग (mating) की उन्मुखता -यानि 'FAM '-जब तक पहले की दोनों प्रवृत्तियों का शमन नहीं होता -अंतिम यानि यौन संसर्ग हो पाना मुश्किल है !

नर स्टीकल बैक मछली का नर इतना आक्रामक हो उठता है की वह मादा के करीब आने पर उस पर भी आक्रमण कर सकता है -प्रणयातुर मादा अण्डों से भरा पेट तो दिखाती है मगर नर के पास आने पर भाग भी खडी होती है -मगर अण्डों से भरे पेट को देखते ही नर की आक्रामकता का शमन होने लगता है -वह मादा को खुद अपने बनाए गए नेस्ट -घोसले तक ले जाता है ,इसके दौरान वह एक विशेष तरह का टेढा मेढा नृत्य भी करता है ! यह नृत्य नर के उहा पोह को दर्शाता है की कही मादा के रूप में यह कोई आक्रान्ता हो जो उसके इतने परिश्रम से बनाए गए घोसले को उजाड़ दे !नर की इस दुविधा का लाभ उठाते ही मादा घोसले में घुस लेती है और मादा के घोसले में जाते ही नर की आक्रामकता नाटकीय तरीके से छू मंतर हो जाती है -वह मादा की पूँछ को बार बार आलोडित करता है -मादा अंडे दे देती है और नर उनपर अपने शुकाणुओं को छोड़ देता है -मगर तभी एक विचित्र स्थिति उत्पन्न हो जाती है -जैसे ही मादा अंडे दे देती है उसका पेट पिचक जाता है और नर उसे घोसले में आया कोई घुसपैठिया समझ लेता है और खदेड़ बाहर करता है ! अब नर ही अण्डों के सेने और बच्चे निकलने तक की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेता है !

स्टिकल बैक नर मादा को घोसले में घुसने को गाइड करता है और उसकी पूँछ को आलोडित करता है


पक्षियों में भी मादा की अनिच्छा को दूर करने के तरह तरह के प्रणय प्रदर्शन किये जाते हैं -जेब्रा फिंच नर मादा के सामने एक मजेदार नृत्य करता है -"कभी पास कभी दूर ' होने का और जैसे जैसे मादा उत्प्रेरित होती जाती है वह पास खिसकता आता है ! गौरया के नर को कभी प्रणय याचन /प्रदर्शन करते हुए देखिये -वह शिशुओं की तरह पंखों को सिकोड़ और सर नीचे कर मानो मादा से स्नेह -दुलार की याचना करता हो -मादा इस प्रदर्शन के वशीभूत हो प्यार करने की रजामंदी दे देती है.



जेब्रा फिंच का प्रणय नृत्य -वह धीरे धीरे मादा के निकट आता जाता है -एक रेखाचित्र


जो इन बारीक बातों को नहीं समझते उन्हें पशु पक्षियों के प्रणय व्यवहार अजीब से और हास्यास्पद लग सकते हैं -अब आप भी जब किसी पशु पक्षी को कोई अजीब सा व्यवहार करते देखें तो पहली इसी सम्भावना पर धयान दें की कहीं यह उसका प्रणय याचन तो नहीं है ?आपके प्राणी व्यवहार विद बनने के एक सुनहरे अवसर की शुरुआत हो सकती है यह ! आजमा के देखिये !