Tuesday 12 June 2012

भारत में पहली बार मकड़ियों का हमला

ऐसी घटना भारत में पहले कभी नहीं घटी। असम के सादिया शहर में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान भगदड़ मच गयी जब रहस्यमयी मकड़ियों का एक विशाल झुण्ड न जाने कहां से आ गया। इन मकड़ियों ने लोगों पर हमला कर दिया। जिन्हें इन मकड़ियों ने डसा उनमें से दो के मरने की खबर है। हालांकि शवों का पोस्टमॉर्टम नहीं हो पाया मगर कुछ कीट विज्ञानी मानते हैं कि ये मकड़ियां विषैली रही होंगी। चूंकि भारत में ये मकड़ियां पहले कभी देखी नहीं गईं इसलिए इन्हें लेकर विश्वभर के कीट विज्ञानियों में जिज्ञासा है। यहां तक कि विश्व प्रसिद्ध टाइम पत्रिका ने भी इस खबर को प्रमुखता से 4 जून 2012 के अंक में प्रकाशित किया है। मकड़ियों का यह आक्रमण पिछले महीने में देखा गया था और एक प्रमुख अंग्रेजी अखबार ने इस पर ख़ास 'स्टोरी' की थी।
टैरनटूला   से मिलते जुलते  ऐसे ही थे वे मकड़े 

डिब्रूगढ़ और गुवाहाटी विश्वविद्यालय के कीट विज्ञानियों ने इस मकड़ी या मकड़े को पहचानने में असमर्थता व्यक्त की है मगर कहा है कि ये विश्व के एक खौफनाक विशाल मकड़े टैरनटुला के परिवार की हो सकती हैं। एक दूसरे कीट विज्ञानी ने कहा कि यह दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया मूल की मकड़ी ब्लैक विशबोन हो सकती है। मगर ऑस्ट्रेलिया की मकड़ी आखिर यहां कैसे आ पहुंची? मधुमक्खियों का झुंड में हमले करना एक आम घटना है और हॉलीवुड की कई फिल्मों में मधुमक्खियों के झुंडों में हमले के खौफनाक दृश्य भी दिखाए गए हैं। हालांकि हॉलीवुड मकड़ियों के हमले पर भी फिल्में बना चुका है। '8 लेग्ड फ्रीक्स' काफी चर्चित हुई थी। मगर मकड़ियों/मकड़ों का ऐसा आक्रमण कम से कम भारत में तो अब तक कहीं से सूचित नहीं है।
'8 लेग्ड फ्रीक्स' का एक दृश्य 
ब्रितानी प्रकृति विज्ञानी विजय के सिंह ने कहा है कि मकड़ियों का झुंड में हमला करना एक बहुत कम घटने वाली घटना है। उनके अनुसार पर्यावरण में हुआ कोई असामान्य परिवर्तन उनकी जनसंख्या वृद्धि को उकसा सकता है। जैसे पिछले वर्ष ऑस्ट्रेलिया में बाढ़ के पश्चात मकड़ियों के एक विशाल झुंड ने खेतो को मकड़जालों में तब्दील कर दिया था। पाकिस्तान में भी आयी विशाल बाढ़ के पश्चात मकड़ियों ने पेड़ पौंधों को मानो ढक सा दिया हो। सदिया की मकड़ियों को पहचान के लिए महाराष्ट्र के मकड़ी संस्थान (इन्डियन सोसायटी ऑफ अरैक्नोलॉजी) को भेजा गया है।
बहुत से लोग कई तरह के जीव जंतुओं को डर के चलते भरीपूरी आंख से देख भी नहीं सकते। मकड़ी ऐसे टॉप टेन भयावने जंतुओं की सूची में है। गोलियेथ टैरनटुला सबसे बड़ा मकड़ा है जो छोटी हमिंग चिड़ियों को भी अपना शिकार बना लेता है। यह एक फुट तक बड़ा हो सकता है और इसके विषदंत भी काफी बड़े होते हैं। माना जा रहा है कि सादिया का मकड़ा इसी नस्ल से मिलता जुलता है। इस तरह के मकड़ा-आक्रमण ने भारतीय मकड़ी विज्ञानियों की पेशानी पर बल ला दिया है। आगे की खोजबीन जारी है।

Monday 4 June 2012

सूर्य पर शुक्र की चहलकदमी


जी हाँ आप भारत के किसी भी हिस्से से कल सुबह उठते ही एक बहुत दुर्लभ अद्भुत आकाशीय नज़ारा देख सकेगें जिसे शुक्र का पारगमन कहा जाता है .दरअसल यह सूर्य पर शुक्र का ग्रहण है .ठीक वैसे ही जैसे सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण वैसे ही शुक्र ग्रहण ..मतलब सूर्य और धरती के बीच अपने परिक्रमा पथ पर शुक्र का आ टपकना..अब जब चंद्रमा सूर्य और धरती के बीच होता है तो चंद्रमा की पूरी चकती सूर्य को ढक लेती है- कारण यह कि नजदीक होने से चंद्रमा की चकती सूर्य की चकती के बराबर ही लगती है ..मगर शुक्र तो दूर होने से काफी छोटा लगता है और इसलिए यह सूर्य की बड़ी चकती पर बस चहलकदमी करता नज़र आता है ...कहने भर को ग्रहण होना चरितार्थ करता है ....और यह पूरा तमाशा सात घंटे चलेगा और इस बीच शुक्र सूर्य की चकती के इस पार से उस पार हो जाएगा -बस यही तो है शुक्र पारगमन जिसे लेकर इतना हौवा मचा हुआ है .
मगर यह एक दुर्लभ दृश्य इसलिए है कि जल्दी जल्दी नहीं घटता .अगला शुक्र पारगमन ११ दिसम्बर २११७ को घटित होगा और तब हम आप इस दुनिया में नहीं होंगे ....जाहिर है इस शताब्दी में यह अंतिम अवसर है इस आकाशीय नज़ारे को देखने का .....पिछली बार यह जून ८ ,२००४ को घटित हुआ था . दरअसल प्रत्येक २४३ वर्षों  में यह घटना जोड़ों में घटती है -इस शती में २००४ और २०१२ में यह घटना घटी है -इसके पहले जोड़े में आठ वर्षों के अंतराल पर १८७४ और १८८२ में घटी थी . इस नयनाभिराम दृश्य को सीधे नहीं देखा जा सकता .बल्कि ख़ास चश्मों से या रिवर्स इमेज तकनीक के सहारे जिसमें दूरबीन को सूर्य की ओर  बिना देखे फोकस कर रिवर्स तस्वीर कागज़ पर ली जाती है और घटना की प्रगति देखी जाती है . ऐसी तस्वीरो में सूर्य की चमकदार चकती पर शुक्र का काला धब्बा आगे बढ़ता हुआ दिखता जाता है .इस बार यह लगभग सात घंटे का मजमा है .

 भारत में कई वेधशालाएं इस दृश्य को आम लोगों को दिखाने का जतन   कर रही हैं .आप अपने शहर में ऐसे किसी अस्ट्रोनोमी क्लब ,या वेधशाला तक पहुँच कर इस दृश्य का लुत्फ़ उठा सकते हैं .या फिर इस मकसद हेतु ख़ास तौर पर बनाए काले चश्मों से सीधे भी देख सकते हैं या फिर वेबकैम के जरिये कम्प्युटर पर भी देख सकते हैं -कोई जुगाड़ न हो पाया तो परेशान न हो इस  वेबसाईट पर जाकर इस घटना क्रम के पल पल की जानकारी और दृश्य देख सकते हैं . टी वी भी इस दृश्य को फोकस करेगें ही ....हाँ इतना जरुर गाँठ बाँध लें कि दुर्लभ होने के बावजूद भी यह एक सामान्य खगोलीय  घटना ही है और मनुष्य के ऊपर इसका कोई विपरीत प्रभाव नहीं पढने वाला है . अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन से इस बार इस घटना को कैमरे में कैद करने की तैयारी है .यह वीडियो  देखिये -