Science could just be a fun and discourse of a very high intellectual order.Besides, it could be a savior of humanity as well by eradicating a lot of superstitious and superfluous things from our society which are hampering our march towards peace and prosperity. Let us join hands to move towards establishing a scientific culture........a brave new world.....!
Monday 20 July 2009
अदृश्य होना एक साक्षात प्रगट देवता का !
चाँद की छत्र छाया धरती पर ..........इस चित्र के जीवंत रूप को यहाँ जरूर देखें !
कल यहीं हमने चर्चा की थी हमारे साक्षात देवता सूर्य के ग्रहण के कुछ मिथकीय पहलुओं की ! फिर से याद दिला दूँ कि राहु -केतु नामक एक ही दैत्य के सर और धड को सूर्यग्रहण -चंद्रग्रहण के लिए उत्तरदायी माना गया है- यह कितना रोचक है कि ईसा के हजारो साल पहले ही भारतीय ज्योतिषियों को पता था कि आकाश (खगोल पथ ) पर सूर्य के आभासी भ्रमण पथ को प्रत्येक माह चन्द्रमा भी दो बार काटता है एक उत्तर की ओर से और फिर दक्षिण की ओर से -यही कटान के दोनों बिन्दु -ल्यूनर नोड -चन्द्र बिन्दु -राहू केतु कहे गए और इसी कटान की ही कुछ विशेष कोण की स्थितियों में ग्रहण लग जाता है मतलब सूरज पर चाँद की चकती कुछ ऐसा फिट बैठती है कि चन्द्र्छाया धरती पर सूर्यग्रहण का भान करती है ! इस पर्यवेक्षण के बाद ही राहू केतु के मिथक ने जन्म लिया होगा और पुराण शैली में जन मानस को यह कथा बतायी गयी होगी जिससे लोगों का बहुधा यह सवाल कि सूर्य और चन्द्रमा को यह क्या हो जाता है का एक संतोषप्रद उत्तर मिल जाय ! मगर दुखद है कि आज भी जनता उसी दैत्य राहु के कोप से आक्रान्त अपने प्यारे सूरज के दुःख दर्द के निवारण हेतु उपवास व्रत रखती है -पवित्र नदियों में डुबकियां लगाती है ! फलित ज्योतिषी इस माहौल में -बहती गंगा में हाथ धो लेते हैं -इस वैज्ञानिक युग में भी वही सदियों पुरानी कहानी को जिन्दा बनाये हुए हैं -अफ़सोस !
एक फलित ज्योतिषी का बनाया चित्र जो सूर्य और चन्द्रमा के भ्रमण पथों के कटान को राहु केतु मानता है ! ( आधुनिक ज्योतिर्विज्ञान सूर्य को स्थिर मानता है और यही सच है मगर हमें आसमान में सूर्य ही चलता दिखता है जैसा कि इस चित्र में दर्शित है -चित्र को कृपया क्लिक कर बड़ा कर लें )
अमावस्या यानि न्यू मून डे को चन्द्रमा की एक ऐसी स्थिति हो जाती है जब वह सूर्य और धरती के बीच ऐसी सांयोगिक स्थिति में आ जाता है कि सूर्य का प्रकाश अवरुद्ध हो जाता है -सांयोगिक इस लिए कि सूर्य की चकती चन्द्र चकती से ४०० गुना बड़ी है और अद्भुत संयोग यह कि पृथ्वी से सूर्य की दूरी भी पृथ्वी -चद्र दूरी का ४०० गुना ही है जुलाई माह में जब चन्द्रमा अपने अंडाकार पथ पर धरती से बहुत करीब होता है चन्द्र चकती सूर्य की चकती पर बिल्कुल फिट बैठ जाती है -लिहाजा सम्पूर्ण सूर्य ग्रहण लग जाता है -नीचे के चित्र में यह साफ़ दृष्टिगत है -
चन्द्रमा की सम्पूर्ण छाया अम्ब्रा एक पट्टी तरह धरती पर बढ़ती जाती है और पूर्ण ग्रहण दिखाती है !
अब २२ जुलाई का सूर्यग्रहण इस शती का सबसे बड़ी अवधि का ग्रहण है -ऐसा कोई ग्रहण २११४ में ही दिखेगा .यहअलग अलग जगहों से कुछ कुछ मिनटों के लिए खग्रास /सम्पूर्ण दिखेगा -भारत में सूरत ,बडोदरा ,इंदौर ,भोपाल ,जबलपुर ,इलाहाबाद ,वाराणसी .पटना और सिलीगुडी की भौगोलिक पट्टी पर पूरा दिखेगा -प्रातः ६ बज कर २१ मिनट से चन्द्रमा की छाया की केन्द्रीय रेखा भारत के पश्चिम तट से आरम्भ होगी और सूर्य को चपेट में ले लेगी -अपने आरम्भिक समय में ही यह पूर्ण सूर्यग्रहण का पथ २०५ किलोमीटर चौडा होगा ! सूरत में सम्पूर्ण सूर्यग्रहण ३ मिनट १४ सेकेण्ड (क्षितिज से सूर्य की ऊँचाई महज ३ डिग्री ) ,इंदौर में तीन मिनट पाँच सेकेण्ड ,भोपाल में ३ मिनट ९ सेकेण्ड ,वाराणसी में ३ मिनट ७ सेकेण्ड तथा पटना में तो ३ मिनट ४७ सेकेन्ड पूर्ण ग्रहण दिखेगा ! पटना के निकटवर्ती क्षेत्रों से सूर्य की ऊँचाई १३-१४ डिग्री ऊपर हो जाने से यह ग्रहण वहाँ से बहुत अच्छादिखेगा -मगर यह जुलाई का महीना भले ही वर्षा कम हो रही हो बादलों से आच्छादित है -आज भी पूरी तरह से आसमान को बादलों ने ढँक रखा है -इसलिए मैं तो पहले से ही अपने उत्साह को अनुशासित कर रहा हूँ जबकि मेरे एक मित्र की खगोलप्रेमी मित्र वायुयान से यह नजारा देखने आज हीयहाँ दिल्ली से पहुँच रही हैं -सनक भी अजब होती है ! एक ब्लॉगर मित्र कानपूर से आने वाले थे -उनका कन्फर्मिंग फोन फिर से अभी आया नही है !
वह अम्ब्रा पट्टी जिस पर सम्पूर्ण ग्रहण दिखेगा !
पूर्ण सूर्यग्रहण सबसे अधिक समय तक दोपहर में जापान के रुऊक्यू द्वीप से ६ मिनट ३९ सेकेण्ड तक दिखेगा !सम्पूर्ण ग्रहण की स्थिति में आसमान में बुध ,शुक्र और मंगल तथा बृहस्पति को देखा जा सकता है -हाँ क्षितिज पर नीचा होने के कारण पूर्व में बुध और पशिम में बृहस्पति को देखने में थोड़ा मुश्किल हो सकती है !
चित्र विकीपीडिया एवं कुछ अन्य वेब स्रोतों से
अरे, एक साक्षात देवता का सहसा अदृश्य हो जाना !
मिथकों का राहु जो सूर्य को निगल लेता है -ऐसी मान्यता है !
कैसा लगेगा जब एक साक्षात देवता परसों २२ जुलाई को सहसा अदृश्य हो जायेगें ! बात सूर्य देवता की हो रही है जो २२ जुलाई प्रातः ६ बज कर २१ मिनट से अदृश्य होते होते कुछ मिनटों के लिए पूरी तरह अदृश्य हो जायेगें -यानी सम्पूर्ण /समग्र सूर्य ग्रहण ! सूर्य हमारे नजरों के सामने उपस्थित /दृश्यमान एक साक्षात देवता है -बाकी किस्से कहानियों में भले प्रगट होते हैं ,वैसे तो अदृश्य ही रहते हैं -मगर सूर्य सदैव प्रगट देव हैं .मगर इन पर भी ग्रहण लग रहा है -और ये कुछ मिनटों के लिए ही सही अदृश्य होने वाले हैं !
आख़िर सूर्यग्रहण क्यों लगता है ? यह सवाल जब हजारो साल पहले लोगों ने गुनी जनों /तत्कालीन बुझक्कडो से पूंछा होगा तो अपने तब के ज्ञान और कल्पनाशीलता के मुकाबले उन्होंने लोगों की जिज्ञासा शान्त करने के लिए जो कुछ कहानी गढी होगी वह विश्व के मिथकों का एक रोचक दास्तान बनी -भारत में यह कथा अदि समुद्र मथन से जुड़ती है जिसमें मंथन से निकले कई रत्नों मे से एक अमृत के बटवारे में राहु का छुप कर देवताओं के बीच आ धमकना सूर्य और चन्द्रमा से छिपा नही रह गया तो उन्होंने विष्णु को इशारे से इस घुसपैठिये राक्षस के बारे में बता दिया और उन्होंने झटपट सुदर्शन चक्र से राहु का सर काट दिया , धड केतु बन गया -अब चूंकि वह अमृत पान तब तक कर चुका था इसलिए जिंदा रह कर आज भी सूर्य और चन्द्रमा को रह रह कर मुंह का ग्रास बना लेता है ! अब यह कहानी आउटडेटेड हो गयी है -आज हमें पता है की सूर्य की परिक्रमा के दौरान धरती और चन्द्रमा जो ख़ुद धरती की परिक्रमा करता है ऐसे युति बना लेते हैंकि सूरज के प्रकाश को देख नही पाते तब सूर्य ग्रहण लग जाता है ! दरअसल राहु केतु का कोई अस्तित्व नही है ! यह महज कपोल कल्पना है -हाँ ज्योतिषीय गणनाओं की परिशुद्धि के लिए इन्हे छाया ग्रह मानकर काम चलाया जाता है !
भारतीय वान्गमय में सूर्यग्रहण का पहला उल्लेख जयद्रथ वध के मिथक को माना जाता है -निहत्थे अभिमन्यु को जयद्रथ द्वारा नृशंस तरीके से मार दिए जाने से क्षुब्ध अर्जुन प्रतिज्ञा करते हैं कि अगले ही दिन सूर्यास्त के पूर्व वे अगर जयद्रथ को नही मार पाते तो प्राण त्याग देगें -ख़ुद की चिता बनाकर ! मगर दूसरे दिन तो अभूतपूर्व सैन्य -व्यूह रचना के चलते दिन बीत चला ,सूर्य डूबने को आया और लो डूब भी गया मगर जयद्रथ तक अर्जुन नहीं पहुँच सके ! लिहाजा उनकी चिता बनाई गयी और वे जैसे ही चिता पर आरूढ़ हुए सूर्य फिर से चमचमा उठा -कृष्ण मानो तैयार बैठे थे -जयद्रथ अर्जुन की अन्त्येष्टि देखने को उतावला सामने ही था -कृष्ण के एक इशारे से धनुर्धर अर्जुन ने जयद्रथ का सर काट दिया -सूर्य अब अस्ताचल की ओर बढ़ चुके थे ! महाभारत की कथा में सूर्य को ढकने का कौशल कृष्ण के सुदर्शन चक्र को जाता है मगर जरा सी समझ से आप इस पूरे वृत्तांत के मर्म को समझ सकते हैं -दरअसल यह एक सम्पूर्ण ग्रहण ही था और जिसकी जानकारी कृष्ण को थी और उन्होंने यह जानते हुए जयद्रथ वध की रणनीति बनाई थी जो कामयाब हुयी !
कितनी बार सूर्यग्रहण लगा है -मगर आदमी का बाल भी बांका नही हुआ है ! इस बार भी कुछ नही होने वाला है !
अरे सब आज ही लिख दूंगां तो कल परसों क्या लिखूंगा ?
कल सूर्यग्रहण के वैज्ञानिक पक्ष को सामने रखूंगा ! और परसों भी !
कैसा लगेगा जब एक साक्षात देवता परसों २२ जुलाई को सहसा अदृश्य हो जायेगें ! बात सूर्य देवता की हो रही है जो २२ जुलाई प्रातः ६ बज कर २१ मिनट से अदृश्य होते होते कुछ मिनटों के लिए पूरी तरह अदृश्य हो जायेगें -यानी सम्पूर्ण /समग्र सूर्य ग्रहण ! सूर्य हमारे नजरों के सामने उपस्थित /दृश्यमान एक साक्षात देवता है -बाकी किस्से कहानियों में भले प्रगट होते हैं ,वैसे तो अदृश्य ही रहते हैं -मगर सूर्य सदैव प्रगट देव हैं .मगर इन पर भी ग्रहण लग रहा है -और ये कुछ मिनटों के लिए ही सही अदृश्य होने वाले हैं !
आख़िर सूर्यग्रहण क्यों लगता है ? यह सवाल जब हजारो साल पहले लोगों ने गुनी जनों /तत्कालीन बुझक्कडो से पूंछा होगा तो अपने तब के ज्ञान और कल्पनाशीलता के मुकाबले उन्होंने लोगों की जिज्ञासा शान्त करने के लिए जो कुछ कहानी गढी होगी वह विश्व के मिथकों का एक रोचक दास्तान बनी -भारत में यह कथा अदि समुद्र मथन से जुड़ती है जिसमें मंथन से निकले कई रत्नों मे से एक अमृत के बटवारे में राहु का छुप कर देवताओं के बीच आ धमकना सूर्य और चन्द्रमा से छिपा नही रह गया तो उन्होंने विष्णु को इशारे से इस घुसपैठिये राक्षस के बारे में बता दिया और उन्होंने झटपट सुदर्शन चक्र से राहु का सर काट दिया , धड केतु बन गया -अब चूंकि वह अमृत पान तब तक कर चुका था इसलिए जिंदा रह कर आज भी सूर्य और चन्द्रमा को रह रह कर मुंह का ग्रास बना लेता है ! अब यह कहानी आउटडेटेड हो गयी है -आज हमें पता है की सूर्य की परिक्रमा के दौरान धरती और चन्द्रमा जो ख़ुद धरती की परिक्रमा करता है ऐसे युति बना लेते हैंकि सूरज के प्रकाश को देख नही पाते तब सूर्य ग्रहण लग जाता है ! दरअसल राहु केतु का कोई अस्तित्व नही है ! यह महज कपोल कल्पना है -हाँ ज्योतिषीय गणनाओं की परिशुद्धि के लिए इन्हे छाया ग्रह मानकर काम चलाया जाता है !
भारतीय वान्गमय में सूर्यग्रहण का पहला उल्लेख जयद्रथ वध के मिथक को माना जाता है -निहत्थे अभिमन्यु को जयद्रथ द्वारा नृशंस तरीके से मार दिए जाने से क्षुब्ध अर्जुन प्रतिज्ञा करते हैं कि अगले ही दिन सूर्यास्त के पूर्व वे अगर जयद्रथ को नही मार पाते तो प्राण त्याग देगें -ख़ुद की चिता बनाकर ! मगर दूसरे दिन तो अभूतपूर्व सैन्य -व्यूह रचना के चलते दिन बीत चला ,सूर्य डूबने को आया और लो डूब भी गया मगर जयद्रथ तक अर्जुन नहीं पहुँच सके ! लिहाजा उनकी चिता बनाई गयी और वे जैसे ही चिता पर आरूढ़ हुए सूर्य फिर से चमचमा उठा -कृष्ण मानो तैयार बैठे थे -जयद्रथ अर्जुन की अन्त्येष्टि देखने को उतावला सामने ही था -कृष्ण के एक इशारे से धनुर्धर अर्जुन ने जयद्रथ का सर काट दिया -सूर्य अब अस्ताचल की ओर बढ़ चुके थे ! महाभारत की कथा में सूर्य को ढकने का कौशल कृष्ण के सुदर्शन चक्र को जाता है मगर जरा सी समझ से आप इस पूरे वृत्तांत के मर्म को समझ सकते हैं -दरअसल यह एक सम्पूर्ण ग्रहण ही था और जिसकी जानकारी कृष्ण को थी और उन्होंने यह जानते हुए जयद्रथ वध की रणनीति बनाई थी जो कामयाब हुयी !
कितनी बार सूर्यग्रहण लगा है -मगर आदमी का बाल भी बांका नही हुआ है ! इस बार भी कुछ नही होने वाला है !
अरे सब आज ही लिख दूंगां तो कल परसों क्या लिखूंगा ?
कल सूर्यग्रहण के वैज्ञानिक पक्ष को सामने रखूंगा ! और परसों भी !
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