Saturday 29 January 2011

चुम्बन विज्ञान यानि फिलेमैटोलाजी के बारे में क्या जानते हैं आप ?

कहाँ चुम्बन जैसा सरस मन हरष विषय और कहाँ विज्ञान की नीरसता ..आईये मानवीय सर्जना के इन दोनों पहलुओं में तनिक सामंजस्य बिठाने का प्रयास करे .. चुम्बन के विज्ञान(philematology )  पर एक  नजर डालते हैं! 
विज्ञान की भाषा में चुम्बन -आस्कुलेशन(osculation)   किन्ही भी दो व्यक्तियों के बीच की  सबसे घनिष्ठ अभिव्यक्ति है जिसके चलते कितनी ही साहित्यिक ,सांगीतिक और चित्रकलाओं की गतिविधियाँ उत्प्रेरित - अनुप्राणित हुयी हैं ...कहते हैं कुछ चुम्बनों या उनकी दरकार ने इतिहास के रुख को भी पलट दिया है ..मगर यह सब यहाँ विषयांतर हो जाएगा -यहाँ साईंस ब्लॉग की भी मर्यादा तो बनाए रखनी है न ..बाकी सब के लिए तो क्वचिदन्यतोपि है ही ....निश्चय ही  चुम्बन एक नैसर्गिक सी लगने वाली अनुभूति है मगर क्या यह सहज बोध प्रेरित गतिविधि है ? आकंडे कहते हैं कि दुनिया में तकरीबन दस फीसदी लोग आपस में अधरों का स्पर्श  तक नहीं होने देते ..तब  भी इसे आखिर क्या सार्वभौमिक सांस्कृतिक गतिविधि मान ली जाय ? बहुत से वैज्ञानिक इसे महज सांस्कृतिक गतिविधि नहीं मानते .....चुम्बनों का पारस्परिक विनिमय साथी के कितनी ही जानकारियों का अनजाने ही साझा करा देती है ...हम प्रेम रसायनों -फेरोमोंस का साझा करते हैं ....  प्रेम रसायनों(डोपा माईन,सेरोटोनिन आदि )    का एक पूरा काकटेल ही साझा हो जाता है और हमारे सामजिक बंध को और मजबूती दे देता है ,तनाव घटाता है ,उत्साह उत्प्रेरण और हाँ सुगम यौनिकता की राह भी प्रशस्त करता है यानि जैसा भी  संदर्भ /अवसर हो .....हम पर एक जनून तो तारी हो ही जाता है -यह सचमुच प्रभावकारी और सशक्त है -आजमाया हुआ नुस्खा है अगर किसी ने न आजमाया हो तो फिर हाथ कंगन को आरसी क्या ? 

सहज चुम्बन दिव्य सुखाभास की अनुभूति देता है ...और मस्तिष्क के 'प्रेमिल क्षेत्रों' को प्रेरित कर प्रेम रसायनों का एक पूरा डोज रक्त धमनियों में उड़ेल देता है ...यह सब महज सामाजिक औपचारिकताओं से भी निश्चय ही अलग एक कार्य व्यापार का संसार सृजित करता है ....हम जानते हैं हमारे नर वानर कुल के कुछ सदस्य अपने बच्चों को मुंह से मुंह खाना खिलाने के दौरान अधरों के संपर्क में आते हैं और शायद चुम्बन-व्यवहार का उदगम   इसी गतिविधि से ही  हुआ हो मगर ज्यादातर वैज्ञानिक मानते हैं कि इसका उदगम और विकास साथी के लैंगिक चयन में भी  भूमिका निभाते हैं -इसी दौरान साथी की शारीरिक जांच भी इस लिहाज से हो जाती है कि उनका जोड़ा संतति वहन के लिए  पूर्णतया निरापद है भी या नहीं ...मतलब संतानोत्पत्ति और उनके लालन  पालन में तो कहीं कोई लफड़ा नहीं रहेगा -यह सब रासायनिक परीक्षण चुम्बन के  दौरान ही अनजाने हो जाता है ....कितने ही प्रेम सम्बन्ध इन्ही कारणों से आगे नहीं बढ़ पाते -रासायनिक लाल झंडी है चुम्बन ....फिर शुरू होता है तुम अलग मैं अलग की कहानी और असली माजरा समझ में नहीं आता ...कई बार तो पहला चुम्बन ही निर्णायक हो जाता है ..अवचेतन तुरत फुरत भांप जाता है की अरे यह नामुराद तो बच्चे की जिम्मेदारी नहीं उठा पायेगा ...वैज्ञानिकों की माने तो चुम्बन भावी घनिष्टतम संपर्कों की देहरी है ..लाघ गए तो चक्रव्यूह का  अंतिम फाटक भी फतह नहीं तो देहरी पर ही काम तमाम .....
तो यह चुम्बन -आलेख शेरिल किरशेंनबौम की 'द साईंस आफ किसिंग' पुस्तक से परिचय कराने के लिए और किसी को नजराने के लिये लिखा गया है ...और अगर आपमें और अधिक जिज्ञासा जगा सका तो अंतर्जाल अवगाहन का विकल्प तो आपके पास है ही -हम विज्ञान संचारको का काम बस प्यासे को कुंए तक पंहुचा देना भर है ....पानी आप खुद निकालिए और पीजिये .....
एक मिनट का यह वीडियो भी देख सकते हैं ....



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