Friday 6 March 2009

पुरूष नितम्ब -एक पर्यवेक्षण ! (होली विशेष )

क्या पुरूष नितम्ब भी आकर्षण के केन्द्र हैं ?चित्र सौजन्य -Enlighter
नारी नितम्ब वर्णन पर कुछ काबिल दोस्तों की भृकुटियाँ तन गयीं थीं -कुछ ने चुनौती भी दे डाली थी कि मैं उसी तर्ज पर पुरूष पर्यवेक्षण करके दिखा दूँ तो वे जानें ! तो जानी ये लो हाजिर है पुरूष पर्यवेक्षण की यह अगली कड़ी -नितम्ब निरीक्षण ! पर एक बात पहले ही कह देता हूँ -मैं हूँ तो सार्वजनिक शिष्टाचार और जीवन मूल्यों का धुर समर्थक(निजी जीवन की बात बिल्कुलै अलग है ) पर ये होली कहीं कहीं हावी हो जाय तो मुआफ कर दीजियेगा ! मैं यह और आगे के दो ढाई अंग होली को भेंट कर रहा हूँ !

पूरी दुनिया में पाये जाने वाले १९३ नर वानर प्रजातियों में से केवल मनुष्य ही उभरे हुए मांसल गुम्बदाकार नितम्बों का हकदार है .वह अपनी विकास यात्रा में जैसे ही उठ खडा हो दो पैरों पर चलना लग गया और शेष कपि भाई भतीजों से अलग एक विशिष्ट जीवन शैली का वाहक बन बैठा तो उसके पैरों पर अधिक भार के आने तथा कुछ सेक्स जनित कारणों से नितम्बों की ग्लूटियल पेशी पुष्ट होने लगी ! फैलाव पाने लगीं !

नितम्बों को हंसी ठिठोली का फ़ोकस माना जाता है .कितने ही गंदे चुटकुले मनुष्य के इस अंग को समर्पित हैं -लातों के भूत बातों से नहीं मानते वाली हिंसा में ये बिचारे नितम्ब ही प्रमुख रूप से पाद प्रहार झेलते हैं ! यह आश्चर्य है कि गुप्तांग के इतने सामीप्य के बाद भी विशेष देखभाल की कौन कहें ये अक्सर चिकोटी या प्रहार की पीडा झेलते हैं .नितम्बों का सार्वजनिक प्रदर्शन कई देशों में अश्लील और कानून कलह का बायस बन बैठा है .यहाँ तक कि कुछ मामले सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंचे हैं जहाँ क़ानून के जानकारों ने सार्वजनिक नितम्ब प्रदर्शन के औचत्य पर जोरदार बहस की है.स्विट्जरलैंड का तो एक मुकदमा नजीर बन बैठा जब सर्वोच्च न्यायालय ने नितम्ब प्रदर्शन को आपत्तिजनक तो माना पर अश्लील नहीं . अश्लील इसलिए नहीं कि यह मनुष्य का कोई प्रजनन अंग थोड़े ही है ।

नितम्ब नारी के मामले में तो यौनाकर्षण की भूमिका में हैं हीं -एक सर्वेक्षण में यह भी उजागर हुआ कि यह अंग नारियों की भी पसंद है .रायशुमारी में जाहिर हुआ कि नारी की रुझान छोटे मगर कसे (मस्कुलर ) हुए नितम्बों में होती है -व्यवहारविदों द्वारा इस अभिरुचि के विश्लेषण पर पाया गया कि ऐसा इसलिए है कि छोटा पुरूष नितम्ब नारी के सहज ही भारी नितम्बों से बिल्कुल विपरीत होकर पुरुषत्व की भूमिका को इंगित करता है .छोटे कसे हुए गठे नितम्ब इस तरह पौरुष शक्ति का भान कराते हैं ! और शायद ये यौन क्रिया में भी अतिशय सक्रियता ( athletic पेल्विक thrusting ) के प्रति आश्वस्त करते हैं !

मानव अंगों में नितम्बों का प्रमुख होना मानवीयता का द्योतक है इसलिए भूतों, पिशाचों ,जिन और राक्षसों के चित्रांकन में नितम्बों को एक तरह से गायब ही कर दिया गया है .और यह भी मान्यता बन बैठी कि पुष्ट मानव नितम्ब का दर्शन मात्र ही बुरी आत्माओं को भयग्रस्त कर देती हैं -इसलिए पुराने भित्तिचित्रों ,शिला -शिल्पांकनों में मानव नितम्बों को उभार कर दिखाया गया है ताकि बुरी नजरों से मानवता बची रहे ! जर्मनी में आज भी ग्राम्य इलाकों में लोग बाग भयंकर तूफानों के समय मुख्यद्वार पर तूफ़ान की दिशा में नितम्ब अनावृत हो खडे हो जाते हैं ।

भारत के कई मंदिरों की बाह्य भित्ति नितम्बों के विविध दृश्यावलियों से भरे हैं -अब इसके पीछे कामोत्तेजना और बुरी नजरों से रक्षा की भावना में से कौन प्रमुख है कौन गौण यह चिंतन और मनन का विषय हो सकता है -इस बार की होली पर यह विषय बौद्धिक विमर्श के लिए चुना जा सकता है ! और विमर्श तो चलते ही रहते हैं !
जारी .....