Tuesday 19 August 2008

वे अजन्मी बच्चियां !

अम्नियोसेंटेसिस तकनीक का भी दुरूपयोग
आज की बी बी सी की यह समाचार प्रस्तुति दरअसल एक दर्दभरी दास्तान है -भारत में मादा भ्रूण पात की घटनाओं में तेजी आयी है जब कि लिंग के आधार पर यह भेदभाव या लैंगिक जांच यहाँ कानूनन अपराध है .अल्ट्रासाउंड तकनीक का दुरूपयोग मादा भ्रूणों को नष्ट कराने के लिए बढ़ता ही जा रहा है .स्टीव ब्रैडशा की रिपोर्ट यह खुलासा करती है कि भारत सचमुच नारियों के लिए अभी भी एक कष्टप्रद देश ही है .रिपोर्ट में जो आंकडा उधृत है वह बताता है कि देश में हर वर्ष १० लाख मादा भ्रूण विनष्ट हो रहे हैं -यह सचमुच एक बड़ी संख्या है .दिली में एक हजार लड़कों की तुलना में महज ८८१ लड़कियों का लिंग अनुपात रह गया है ।रिपोर्ट में बंगलौर आदि शहरों के भी हालत का वर्णन है .
यह संयोग ही है कि इस रिपोर्ट से भी कहीं ज्यादा गंभीर अध्ययन का ब्योरा अभी अभी अनवरत ने भी जारी किया है .साईब्लाग की दृष्टि में दरअसल यह ऐसा मुद्दा है जो विज्ञान के सामाजिक सरोकारों की ओर ध्यान आकर्षित करता है -अल्ट्रा साउंड तकनीक उदर संबन्धी बीमारियों के निदान के लिए विकसित की गयी थी .पर मनुष्य ने इसका दुरूपयोग करना शुरू कर दिया है .इसी तरह दूसरी लिंग भेद की तकनीक है अम्नियोसेंटेसिस जिसमें कुछ गर्भजल को सीरिंज से निकाल कर जांच कर गुणसूत्रों के जरिये नर मादा लिंग की जांच प्रसव के पहले हो जाती है .यह तकनीक भी चोरी छिपे प्रयोग में लाई जा रही है .यह तकनीक अल्ट्रा साउंड की तुलना में प्रसवपूर्व जेनेटिक जांच के लिए ज्यादा प्रामाणिक है .मगर यह केवल उन स्थितियों में जेनेटिक परामर्श के लिए विकसित हुयी थी जब भावी नर या नादा संतान किसी लायिलाज जेनेटिक बीमारी से ग्रस्त होने की परबल संभावना रखते हों -पर अफ़सोस की यह तकनीक भी भारत में केवल मादा गर्भ की शिनाख्त और उसे विनष्ट करने के दुष्कर्म में इस्तेमाल हो रही है .यहाँ विज्ञान और तकनीकतथा वैज्ञानिक दोषी नही -दोषी हमारी आदिम मानसिकता है जो आज भी गुफाओं के कैद से मुक्त नही हो पायी है ।
एक बड़ा जनांदोलन ही हमें इस आदिम मानसिकता से मुक्ति दिला सकता है -इसमें वैज्ञानिकों को भी आगे आना होगा !