Monday 28 July 2008

प्रेम के इस प्रतीक चिह्न से कौन अपरिचित है ?


पहले एक निवेदन :

इस सौन्दर्य यात्रा पर कुछ सुधी पाठकों की जेनुईन आपात्तियां मिली हैं -मेरा आग्रह है कि यह आवश्यक नहीं कि जो कुछ यहाँ व्यक्त हो रहा है उससे मेरी अनिवार्यतः सहमति ही हो .व्यवहार शास्त्री कैसे मनुष्य को अन्य पशुओं के परिप्रेक्ष्य में देखते हैं यह लेखमाला उसी के एक पहलू पर पर केंद्रित है .आगे अन्य विषय भी आते ही रहेंगे ।अस्तु ,

[नितम्बों की अगली कड़ी ......जारी .]

सभ्य समाज में भी कई नृत्य प्रारूप नारी नितम्बों के आकार को बढ़ा-चढ़ा कर ही प्रस्तुत करते है। यह सब यही सिद्ध करता है कि नारी नितम्बो की विकास यात्रा में उनके यौनाकर्षण की प्रबल भूमिका रही है। यह सही है कि हमारे पूर्वजों ने लाखों वर्ष पहले ही चार पैरों पर चलना छोड़ दिया था किन्तु आज भी हमारे अवचेतन मन से नारी नितम्बो के प्रति प्रबल मोह का भाव मिटा नहीं है। कहते हैं कि प्रेम का वैिश्वक प्रतीक चिन्ह (हृदयाकृति) दरअसल नितम्ब की ही सरलाकृति है।

इस चिन्ह के ऊपर के मध्यवर्ती गड्ढे (दरार) को देखिए और फिर खुद फैसला कीजिए कि यह दिल सरीखा लगता है या फिर नितम्ब जैसा? अपने प्रबल यौनाकर्षण की क्षमता के चलते नारी नितम्बों को ``चिकोटीबाजों´´ की अप्रिय हरकतों को भी ``सहना´´ पड़ता है।

इटली में चिकोटी बाजों का इतना आतंक है कि शायद ही कोई खूबसूरत (नितम्बों वाली) लड़की अपने अजनबी प्रशंसको को ``चिकोटी´´ से अनछुई बच जाय। भारत में भी भीड़-भाड़ भरे नगरी क्षेत्रों पिकनिक स्थलों पर चिकोटी बाजों की बन आती है। खुशवन्त सिंह की मशहूर कहानी `चिकोटी बाज´ ऐसे दृष्टान्तों की मनोरंजक झलक देती है। व्यंग पर मशहूर इतालवी पुस्तक ``हाऊ टू बी एन इटालियान´´ में नितम्ब चिकोटीबाजी की श्रेणियों तक का मजेदार वर्णन है। वहा¡ तीन तरह की चिकोटिया¡ बतायी गयी हैं। नौसिखियों के लिए ``द पिजिकैटो´´ है जिसमें अंगूठे और मध्यमा के सहयोग से अतिशीघ्रता से चिकोटी काटने का कला का वर्णन है। ``द विवैसी´´ में कई अगुलियों के समवेत प्रयास से एक ही चरण में शीघ्रता से कई बार चिकोटिया¡ काटने की विधि का व्योरा है। ``दु सोस्टेन्यूटों´´ श्रेणी के अन्तर्गत काफी देर तक चिकोटी का जमाव/दबाव नितम्बों पर बनाये रखने की सिफारिश है।

यह महज विवरण है इसकी कोई सिफारिश यहाँ अभिप्रेत नहीं है [सरल हृदयी पाठकों के लिए नोट ]