Wednesday 23 February 2011

सौर सुनामी चुपके से आयी और चली भी गयी.....

सारी दुनिया जब वैलेंटाईन समारोहों में मुब्तिला थी एक सौर लपट उठी और धरती को अपने आगोश में लेने चल पडी -मानो यह एक अन्तरिक्षीय वैलेंटाईन का नजारा हो!बहरहाल वैज्ञानिकों ने अब राहत की सांस ली है की इस सौर ज्वाला  ने धरती पर ज्यादा क़यामत नहीं ढाई ....जैसा कि २००३ में दुनिया के कई देशों में सौर ज्वालाओं के चलते ब्लैक  आउट की नौबत आ गयी थी -रेडिओ सिग्नल और विद्युत् आपूर्ति तक लडखडा गयी थी ..विगत  14 फरवरी  को सौर  ज्वालाओं का तूफान  पिछले अनेक सौर लपटों की तुलना में कम शक्तिशाली था , लेकिन इसने डरा  तो दिया ही था ....

 इक सौर लपट जो  उठी है अभी 
 
दरअसल सौर लपटें सूरज के सतह पर उसकी आंतरिक विद्युत चुम्बकीय गतिविधियों से निकली अपार ऊर्जा है जो कभी कभी सूरज की समस्त ऊर्जा के दस फीसदी तक भी जा पहुँचती है -यह अन्तरिक्ष में बेलगाम दौड़ पड़ती है ...और धरती तक भी दो चक्रों में आ पहुँचती है -जिसमें पहले चक्र में तो इसका प्रकाश है जो विद्युत् चुम्बकीय चमक के रूप में धरती तक बस मिनटों में आ पहुँचता है जो विगत १३ तारीख की ही रात में आ पहुंचा था और वैलेंटाईन की पूर्व संध्या पर ही धरती का संस्पर्श कर चुका था -दूसरा उप परमाणवी कणों का भभूका है जिसे धरती का चुम्बकीय कवच रोकने में सफल होगा ,हाँ  संचार प्रणालियां अस्त-व्यस्त जरुर हो सकती हैं और उपग्रहों और अंतरिक्षयात्रियों के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है।मगर लगता है संकट टल गया है .

दरअसल सौर गतिविधियों का एक ११ वर्षीय चक्र है जिसका नया दौर बस शुरू ही हुआ है .. और सौर ज्वालाओं जैसी गतिविधि की सक्रियता एक आम बात है -जिसे वैज्ञानिकों की भाषा में कोरोनल मॉस इजेक्शन भी      कहते हैं .कुछ लोगों ने इसका एक और रोचक नामकरण किया है -सौर सुनामी! फिलहाल यह समझ लीजिये कि एक सौर सुनामी चुपके से आयी और चली भी गयी है ..हाँ चुम्बकीय कणों ने ध्रुवों पर इन्द्रधनुषी आभा जरुर बिखेरी!आप स्पेस वेदर  डाट काम पर इन सौर लप्यों की ताजा तरीन जानकारी पर नजर रख सकते हैं!यूनिवर्स टुडे पर भी नजरें गडाई जा सकती हैं .





Wednesday 2 February 2011

सैन्य अधिकारियों ने जब पूछा मछली मछली कितना पानी!

सैन्य अधिकारियों के एक हाई प्रोफाईल पंद्रह सदस्यीय दल ने कल शाम वाराणसी के राजकीय प्रक्षेत्र ऊंदी पर मछलियों की विविध प्रजातियों का अवलोकन किया और भारत में मत्स्य पालन की तकनीकों की जानकारी ली ..उन्होंने जाना कि भारत में प्रचलित मिश्रित (कम्पोजिट ) मत्स्य पालन में कैसे तीन देशज प्रजातियों कतला ,रोहू ,नैन और तीन विदेशी प्रजातियों ग्रास कार्प, सिल्वर कार्प, और कामन कार्प को एक साथ तालाबों में पाला जाता है .इनसे एक वर्ष में एक हेक्टेयर के तालाब से आसानी से पांच हजार किलो मछली का उत्पादन कर एक लाख रूपये तक का शुद्ध लाभ लिया जा सकता है .
 उंदी मत्स्य प्रक्षेत्र की जल श्री -रोहू 

भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के नियंत्रणाधीन राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय के मेजर जनरल अनिल मलिक के नेतृत्व में दक्षिण अफ्रीका, जापान, मलेशिया, यूएई व भूटान सेना के अफसरों समेत 15 सदस्यीय दल के प्रत्येक सदस्य को राज्य अतिथि का दर्जा दिया गया था ...सभी सदस्यों ने मछलियों की पाली जा रही प्रजातियों ,उससे जुड़े क्षेत्रीय विकास ,लाभ लागत से जुडी अनेक जिज्ञासाएं प्रगट कीं ....जिनका समाधान वर्तमान में उंदी पर कृषि तकनीक प्रबंध समिति  (आत्मा -एग्रीकल्चर टेक्नोलोजी मैनेजमेंट कमेटी ) के अधीन गठित कृषक सहायता समूह के अध्यक्ष मक़सूद आलम और मेरे द्वारा दी गयी .
बनारस में उंदी मत्स्य प्रक्षेत्र पर वर्तमान में मछली पालन का एक प्रदर्शनीय माडल तैयार हो गया है जिसे दूसरी जगहों पर अंगीकार किया जा सकता है ...आप भी जब बनारस आयें तो इस मत्स्य प्रक्षेत्र पर आपका स्वागत है ,सैन्य अधिकारियों ने इसे पसंद किया तो आप भी पसंद कर सकते हैं ..

स्थानीय अखबारों ने इस खबर को सुर्ख़ियों में जगह दी है -

सैन्य अफसरों ने उंदी में देखा मत्स्य पालन