Friday 27 June 2008

आख़िर जीनोग्रैफी परियोजना है क्या बला ?

जीनोग्रैफी परियोजना के बारे में मेरी पिछली पोस्ट पर कुछ मित्रों ने कई तरह की जिज्ञासाएं प्रगट की हैं .अतः इसके बारे में थोडा परिचित हो लें ।
मशहूर अमेरिकी संस्था, नेशनल जियोग्रैफिक और आई0बी0एम0 (कम्प्यूटर) प्रतिष्ठान ने मिलकर एक लाख से भी अधिक मनुष्यों के डी0एन0ए0 की जा¡च का बीड़ा उठाया है। अप्रैल, 2005 में शुरू हुई पाँच वर्षीय इस मुहिम का नाम `जीनोग्रैफिक प्रोजेक्ट´ रखा गया है। उद्देश्य है अफ्रीकी महाद्वीप से, मनुष्यों के उद्भव/उद्गम के उपरान्त धरती के कोने-कोने तक फैल चुकी मानव आबादियों के प्रवास गमन मार्गों की खोज और डी0एन0ए0 के विश्लेषण से विभिन्न देशज मानव आबादियों की आपसी समानताओं और विभिन्नताओं की पड़ताल करना। यह महत्वाकांक्षी परियोजना लोगों को उनके आदि पुरखों और वंश - इतिहास की भी मुकम्मल जानकारी मुहैया करायेगी। साथ ही, इस परियोजना के चलते भारत तथा विश्व इतिहास तथा पुराण के कई अन्धेरे पक्षों को भी आलोकित हो उठने की उम्मीदें जग गई हैं।
मसलन, भारत में मनु पुत्रों के पहले पग चिन्ह कब और कहाँ पड़े? भारत में आर्य बाहर से आये या नहीं। सिन्धु घाटी की सभ्यता से पूर्व भी क्या भारत में कोई सभ्यता मौजूद थी? पुराणों में वर्णित देवासुर-संग्राम तथा राम रावण युद्ध का यथार्थ क्या है, आदि, आदि। इसी तरह वैिश्वक इतिहास के अनेक अध्यायों को पुनर्परिभाषित किये जाने की स्थिति भी उत्पन्न हो गयी है। शायद यही कारण है कि इस परियोजना के प्रयोग परिणामों की ओर अनेक बुिद्धजीवियों, इतिहासकारों, प्राच्यविदों की सतर्क निगाहें उठ चुकी हैं और वे पल-पल इसकी प्रगति की जानकारी ले रहे हैं। इस परियोजना के मुखिया स्पेन्सर वेल्स स्वयं एक प्रतिभाशाली इतिहास वेत्ता रहे हैं और वे एक जाने माने आनुवंशिकी विशेषज्ञ भी हैं।एक मणि कांचन संयोग . उन्होंने विश्वभर में फैले कई देशज/मूल निवासियों के डीएनए में पाये जाने वाले खास जीन चिन्हकों की पहचान कर ली है जिससे समान या असमान मानव वंशजों की खोज खबर काफी आसान सी हो गई है। यही नहीं अब अनेक वंशावलियों के प्राचीन जेनेटिक-इतिहास को जानना भी सम्भव हो चला है। चालीस लाख डालर के शुरुआती फंण्ड से संचालित इस जीन मानचित्रण परियोजना को वैट्ट फैमिली फाउण्डेशन का भी उदात्त सहयोग मिला है।
क्रमशः ........