Friday 3 October 2008

पुरूष पर्यवेक्षण : दाढी का सफाचट होना !

बस यही एक ही दाढी मुझे पसंद आयी
आईये तनिक विचार कर ही लें कि दुनिया के असंख्य लोग क्यों सुबह सुबह हजामत करने करवाने को अमादा हो जाते हैं ? उत्तर बड़ा सीधा सा है ( शायद आप सोच भी लिए हों ) .दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ती भीड़ भाड़ वाली इस दुनिया में दबंग और आक्रामक दीखते रहना अब बड़ा रिस्की हो गया है .कब कहाँ बात का बतडंग हो जाए कौन जानता है -दाढी दबंगता,दबंगई की द्योतक है -कम से कम यह हमारे अवचेतन में पुरूष पुरातन की छवि ला देती है .अब की दुनिया में यह छवि खतरे से खाली नहीं !तो दाढी से पिंड छुडाने का मतलब हुआ ऐसी ईमेज को प्रेजेंट करना जो प्रेम की वांछना रखती है न कि संघर्ष की ! जो सहयोग चाहती है न कि प्रतिस्पर्धा !!
दाढी विहीन चेहरा अपने सहकर्मियों को आश्वस्त करता है कि ," भाई ! मैं तो दोस्ती का तलबगार हूँ और तुमसे भी दोस्ती का वायदा चाहता हूँ .चलो हम पारंपरिक प्रतिस्पर्धा को दरकिनार कर मिल जुल कर रहें और जीवन को धन्य करें " इसी लिहाज से शेविंग दुनिया भर में एक गैर दबंगता का व्यवहार प्रदर्शन (अपीज्मेंट बिहैवियर ) बन गया .इसके कई और फायदे भी हैं .चूंकि बच्चों की दाढी नहीं होती इसलिए बिना दाढी वाला चेहरा बच्चों की सी मासूनियत की ही प्रतीति कराता है .बिना दाढी कासाफ़ सुथरा चेहरा भावों का खुला प्रदर्शन करता है -दूसरों से पूरा संवाद करता है .यहाँ चोर की दाढी में तिनका की खोज किसी दूसरे अंग के हाव भाव से नही की जाती -चहरे का हर हाव भाव प्रगट होता चलता है -इसलिए बिना दाढी का चेहरा आमंत्रित करता है .दाढी से ढंका छुपा चेहरा दोस्ताना नहीं लगता.
शेविंग किसी भी पुरूष के चहरे को बाल सुलभ सरलता और साफ़सुथरा , स्वच्छ परिक्षेत्र प्रदान कर देती है -रोजमर्रा के दुनियावी कामों के लिए फिट बना देती है .मगर दाढी विहीन चेहरा लोगों को थोडा स्त्रीवत भी तो बना देता है -और बिना दाढी वाले अक्सर इसीलिये दाढीवालों से कटूक्तियां /फब्तियां सुनते रहते हैं बिचारे !तो एक विश्वप्रसिद्ध समझौता हो गया -मूंछ का अवतरण ! दाढी तो सफाचट हुयी पर मर्दानगी की निशानी अभी भी बरकरार है -मूंछों पर ताव बरकरार है -हिटलर से लेकर चार्ली चैपलिन की मूंछों और उसके आगे तक भी मूंछों कीकहानी पुरूष की एक बेबसी भरी मर्दानगी की ही चुगली करती रही है .चहरे की दबंगता तो दाढी के सफाचट होते ही गयी पर पौरुष की एक क्षीण रेखा अभी भी तमाम चेहरों पर विराजमान है -मिलट्री ( मैन )की मूंछों की साज सवार और उनके घड़ी की सुईओं के मानिंद हमेशा ११ बजाते रहना एक आक्रामक अतीत का ही ध्वंसावशेष है ! वे यह ताकीद भी करती हैं कि भई मिलो तो मगर लेकिन इज्ज़त से पेश आओ !
ढाढी प्रकरण सामाप्त हुआ !

12 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

एक और बेहतरीन जानकारी से लबालब पोस्ट ! दाढी और बिना दाढी का नफ़ा नुक्सान तो समझ आगया ! पर मूंछों का क्या ? बात फ़िर वही मूँछो द्वारा आक्रामकता की सो इनका भी बोलो राम कर दिया हमने ! भाई शान्ति से जियो और जीने दो !
बहुत उम्दा जानकारी ! शुभकामनाएं !

भूतनाथ said...

भाई अपने पास तो झंझट ही नही इन सब बातों की ! पर लेख बहुत जानकारी वर्धक है ! बहुत धन्यवाद !

Anil Pusadkar said...

दाढी तो सालों पहले मुंडवा चुके महाराज लेकिन गुस्सैल इमेज नही टूटी थी। अब पता चल रहा है लफ़्डा मूंछों की वजह से है। मूंछों को तो नही निपटा पाऊंगा महाराज्। अच्छी पोस्ट्।

seema gupta said...

"is it so, amezing"

regards

Gyan Dutt Pandey said...

डार्वीनियन दाढ़ी आकर्षक तो लगती है। पर दाढ़ी में स्वच्छता की समस्या तो है ही।
या यह भ्रम है अपना?!

रंजू भाटिया said...

रोचक है यह भी जानकारी

admin said...

दाढी दबंगता, दबंगई की द्योतक है।

यह मेरे लिए एक आश्चर्यजनक तथ्य है। दाढी को आपने किस प्रकार दबंगता से जोडा है, यह समझ पाने में मैं पूरी तरह से अस्मर्थ हूं।

महेन्द्र मिश्र said...

बेहतरीन जानकारी धन्यवाद.

Udan Tashtari said...

अच्छी ज्ञानवर्धक पोस्ट..

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

शानदार पोस्ट। आप निरन्तर इसी प्रकार आगे बढ़ते रहें।

आज सत्यार्थमित्र पर शरीर के सभी अंगो की सूची ठेली गयी है। कुल ७९ अंग आ पाये हैं।

...आप अपनी श्रृंखला की लम्बाई बढ़ाने को सोचें।

योगेन्द्र मौदगिल said...

॥ क्या बात भाई अरविन्द जी
हमनै तो कईं बार इसी दाढ़ी रखने की सोच्ची पर घरआली नै दाढ़ी पसंद कोनी
इस बात पै म्हारा कईं बार जूत बाज्या
फेर एक दफा हमने मिल कै आपस म्हं हल निकाला
अर आधी दाढ़ी रख ली सन १९९४ तै
ताऊ रामपुरिया नै खोज करकै बताया
बच्चन जी के छोरे अमिताभ नै बी मेरी दाढ़ी देख कै मेरे जैसी दाढ़ी रख ली
मनै कोई एतराज नहीं करया
बाकी एक बात साफ सै अक ना मेरै ना अमिताभ कै
ठोड्डी पै फोड़ा कोनी

Shastri JC Philip said...

आज आपके चारों लेख एक साथ पढे और लगा कि अच्छा हुआ कि एक साथ पढ कर समग्र जानकारी हासिल कर ली.

दाडी के बारे में एवं क्लीनशेव आदि के विज्ञान के बारे में कई बार सुना है, लेकिन इतना विस्तृत आलेख पहली बार पढने का मौका मिला है.

जानकारी उपयोगी है, एवं मनोविज्ञान को समझने में मदद करती है.

सस्नेह

-- शास्त्री

-- हिन्दीजगत में एक वैचारिक क्राति की जरूरत है. महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)