Friday 29 August 2008

पुरूष पर्यवेक्षण :बड़ी आँखें ,छोटी आँखें !

रोती आँखें -नर की या नारी की ?साभार :मूव -4
मैं तो यही जानता था कि मृगनयनी का विशेषण नारियों के लिए इसलिए है कि उनकी आँखें बड़ी होती होंगी !मगर मेरी आँखें यह जानकर खुल गयीं कि पुरूष की ऑंखें नारियों की आंखों से इत्ता भर ही सही बड़ी होती हैं -तो अब चाहें तो आप अपने किसी पुरूष मित्र को म्रिग्नैन कहकरसंबोधित कर सकते/सकती हैं .हिन्दी के साहित्यकार नाक भौ सिकोणे तो बला से !
समूचे थलचरों में मनुष्य ही अकेला प्राणी है जो अपने भावोंद्गारों को आसुओं के जरिये भी व्यक्त कर सकता है .मतलब केवल वही रो सकता है अन्य प्राणी नहीं .घडियाली आंसू भी आप सभी जानते हैं नकली होते हैं .विश्व की अनेक संस्कृतियों की भावुक नारियों में अश्रु ग्रंथि भावुक नरों की अपेक्षा अधिक सक्रिय देखी गयी हैं -ऐसा होना महज सांस्कृतिक /सांस्कारिक लालन पालन जो पुरुषों को भावुकता के प्रदर्शन पर अंकुश रखना सिखाते हैं ,की देन है अथवा कोई जैवीय कारण यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाया है .मगर नारियों में यह अश्रु व्यवहार समूची दुनिया में इस कदर व्याप्त है कि इसके पीछे महज सामाजिक संस्कारों की भूमिका ही नही लगती ।
मनुष्य की पुतलियाँ किसी प्रिय या प्रिय वस्तु को देखकर फैल जाती हैं -यह एक अनैच्छिक क्रिया है .मतलब यह कि आप झूठ मूठ चाहकर भी अपनी पुतलियों को फैला कर यह प्रर्दशित नहीं कर सकते कि मोगाम्बो खुश हुआ .पुतलियाँ झूठों की पोल खोल देती हैं .मगर प्रिय/प्रिया दर्शन पर ये पुतलियाँ अनचाहे ही काफी फैलती जाती है -चहरे करीब आते जाते हैं और ये फैलती जाती हैं -पर यहीं एक मुश्किल आन पड़ती है -पुत्ल्यों के फैलते जाने से उनमें प्रवेश करने वाली रोशनी की मात्रा भी काफी बढ़ जाती है जो रेटिना पर चका चौंध उत्पन्न करती है -दो प्रेमी चहरे काफी करीब हो जाने पर अब एक दूसरे की धुंधली धुंधली सी तस्वीर ही देख पाते हैं .डेजमानड मोरिस कहते हैं कि यह इसलिए ठीक है कि काफी करीब आए चेहरे एक दूसरे के मुहांसे ,फुंसी और पिर्कियों,धब्बों -यानि चहरे की बदसूरती से विकर्षित भी हो सकते हैं -तो यह प्रकृति प्रदत्त छुपा हुआ वरदान उनकी राहें आसान कर देता है .जब मामला किस तक जा पहुंचा हो तो नर के लिए काहें का ब्रेक !प्रकृति का छुपा मंतव्य तो सदैव संतति संवहन का ही है ।
अब कुछ आंखों की बरौन्यों पर -जो आंखों पर एक सुरक्षा घेरा बनाती हैं .भौहें तथा अन्य हिस्सों के बाल सफ़ेद हो सकते हैं पर अमूमन बरौनियाँ उम्रभर काली ही बनी रहती है -शायद इस अर्थ में ये पुरुषों की सच्ची मित्र हैं .प्रत्येक आंख में ऊपर नीचे लेकर औसतन २०० बरौनी बाल होते हैं .ऊपर के पलक में ज्यादा नीचे कम ।
जारी ..........

8 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

पुरुष और नारी
सुंदरता के समान अधिकारी
शारीरिक परिवर्तन भी हैं
आदतन
दोनों का एक साथ जिस तरह आप वर्णन कर रहे हैं अच्छा लग रहा है।

Gyan Dutt Pandey said...

बड़ी और जीवन्त आंखें तो नर की हों या नारी की, सुन्दर लगती हैं। पर कई लोगों की बड़ी और डायलेटेड (विस्फारित) आंखें तो भयोत्पादक होती हैं!
और यह डायलेशन उनकी आंखों की समान्य अवस्था है।
अघोरी और तांत्रिक ऐसे दीखते हैं - गांजे के प्रभाव में?!

seema gupta said...

"very informative post , got knowledge about the comparision about the eyes of man and woman, enjoyed reading it lot many new things for me'

Regards

रंजू भाटिया said...

रोचक है यह जानकारी ..शुक्रिया

L.Goswami said...

dekh rahen hain abhi....

योगेन्द्र मौदगिल said...

जानकारी पूर्ण आलेख के लिये बधाई स्वीकारें...

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

“दो प्रेमी चेहरे काफी करीब हो जाने पर अब एक दूसरे की धुंधली-धुंधली सी तस्वीर ही देख पाते हैं ...”

रोचक, मजेदार, ज्ञानवर्द्धक...साधुवाद। जारी रखें।

admin said...

आँखों ही आँखों में क्या कह दिया,
इस लाइन का मतलब बहुत कुछ अब समझ में आया।