Saturday 26 July 2008

नारी-नितम्बों तक आ पहुँची सौन्दर्य यात्रा !

आज जीवित प्राइमेट (नरवानर) समुदाय) प्रजाति के लगभग २०० सदस्यों में से केवल मानव प्रजाति को ही अभारयुक्त गोलाकार नितम्बो की सौगात मिली है। नितम्बों का विकास तभी से आरम्भ हुआ जब मानव दो पाया बना और सीधे खड़े होकर चलने लगा। नितम्बों के साथ सबसे दिलचस्प बात यह है कि वे मानव शरीर के ``जोक रीजन´´ का प्रतिनिधित्व करते हैं। यानि हंसी ठट्ठे का केन्द्र हैं वे !

फिर भी नारी नितम्बों का सौन्दर्य पक्ष अनदेखा नहीं किया जा सकता। नितम्बों का आकार एक सशक्त कामोद्दीपक नारी अंग की भूमिका निभाता है और हमारे उस पशु अतीत की ध्यान दिलाता रहता है, जब कामोन्मत्त नर कपि रति क्रीड़ाओ हेतु मादा के पृष्ठ भाग पर आरोही हो रहे थे। पुरुष की तुलना में नारी के नितम्ब भारी और अधिक उभार वाले होते हैं। इतना ही नही नारी कूल्हों के ``मटकाने´´ के गुणधर्म के चलते नारी-नितम्बों का यौनाकर्षण बढ़ जाता है। इस तरह नारी नितम्ब की तीन प्रमुख विशेषताए¡-अधिक चर्बी , उभार और मटकाने (अनडुलेशन) की स्टाइल उसे पुरुष के लिए एक अत्यन्त प्रभावशाली यौनाकर्षण का केन्द्र बिन्दु बना देती हैं।

प्रख्यात व्यवहार शास्त्री डिज्माण्ड मोरिस तो यहाँ तक कहते हैं कि अतीत की नारी के नितम्ब यौनाकर्षण की अपनी भूमिका में इतने बड़े और भारी होते गये कि रति क्रीडा का मूल उद्देश्य ही बाधित होने लगा । लिहाजा मानव को सामने से यौन संसर्ग (फ्रान्टल कापुलेशन) का विकल्प चुनना पड़ा। कालान्तर में नारी स्तनों ने नितम्बो के `सेक्स सिग्नल´ की वैकल्पिक भूमिका अपना ली और तब कहीं जाकर नारी नितम्बो के बढ़ते आकार पर अंकुश लग सका।

किन्तु आज भी एक जैवीय स्मृति शेष के रूप में विश्व की कई आदिवासी संस्कृतियों में नारी नितम्बों को बहुत उभार कर दिखाने की प्रथा है। अफ्रीका की ``वुशमेन´´ आदिवासी´´ औरतें अपने नितम्बों को एक विशेष पहनावे के जरिये बहुत उभार कर ``डिस्प्ले´´ करती हैं।

50 comments:

Anonymous said...
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Arvind Mishra said...

अनोनीमस भाई !आपके आदेश का आंशिक अनुपालन कर दिया है -लगे हाथ यह भी साफ़ कर दूँ कि जिन ब्लॉग पोस्टों का आप उल्लेख कर रहे हैं उनका सम्बन्ध बस शिक्षा से तो हो सकता है -वे यौन शिक्षा का हिम्मत/हिमाकत नहीं रखतीं .
ये वे जैवीय जानकारियाँ हैं जो मुझे पढ़ते वक्त लगीं कि मैं इन्हे दूसरों तक भी पह्चाऊँ बस यही हेतु है इनके यहाँ होने का ......टिप्पणियाँ कम जरूर हैं मगर ये पढी जा रही हैं -ब्लागवाणी के आंकडें यह बताते हैं .और जो पाठक टिप्पणी कर रहे हैं वे मेरी नजर में अकेले कम से कम सौ के बराबर हैं .आप भी उन्ही में हैं .पुरूष सौन्दर्य का वर्णन तो बेहतर कोई नारी या किन्नर ही के द्वारा हो सकेगा .
आपके हस्तक्षेप के लिए आभार !

L.Goswami said...
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Arvind Mishra said...

आपकी टिप्पणी पढ़ कर मेरी स्थिति कुछ किंककर्तव्यविमूढ़ता की सी है .यह नारी की बखिया कहाँ से उधेड़ने की बात हुयी -यह कसीदे तो नारी के सर्वोच्च सम्मान में काढे जा रहे हैं -इससे बढ़कर एक पुरूष नारी के लिए क्या कह सुन सकता है ?
ये जानकारियाँ वैज्ञानिकों के शोध का परिणाम हैं -ये सेक्स से सम्बन्धित तो कतई नही हैं -यह मेरी पोस्ट तो नारी को सस्नेह सर्मपित है -पुरूष पर लिखना शायद और आंखों में खटके ........

Anonymous said...

आपकी बातें तथ्यात्मक से ज्यादा फंतासी लग रही हैं. वैसे भी मानवीय अंगों में कालक्रम में बदलाव तो हुए ही हैं लेकिन इतना जितना आप लिख रहे हैं यह थोड़ी अतिशयोक्ति लगती है.
बहुत मुश्किल है यह कहना कि ऐसे विषयों पर और इस तरह से साफ्ट पोर्न की तर्ज पर लिखना चाहिए या नहीं. लेकिन लवली की टिप्पणी देखकर खुशी हो रही है. ऐसी हिम्मती और खुलकर बोल सकें. हिन्दी पट्टी में लड़कियों के साथ यही सबसे बड़ी समस्या है कि वे शील-संकोच में मुखर ही नहीं हो पाती. यह टिप्पणी सिर्फ लवली की हिम्मत के लिए.

L.Goswami said...
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L.Goswami said...
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Anonymous said...
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Gyan Dutt Pandey said...

एनॉनिमासाय: नम:।

Anonymous said...

अगर शोध के स्रोत की कडी होवे और उसे उपलब्ध करवा सकें तो आक्षेप करने वालों के मूह खुद ब खुद बंद हो जाएंगे. चलिये इस बार मैं आपकी मदद कर देता हूं - आपकी लिखी हर बात १००% सही और सच्ची है - अंग्रेजी वाले भी लिख रहे हैं यही - अंग्रेजी में लिखा मतलब पत्थर की लकीर.. है ना!

www.wsu.edu:8080/~taflinge/biosex2.html

मैं दावे से कहता हूं की हिंदी-पाठक इतने कामचोर हैं की ९५% उपरोक्त कडी पर क्लिक कर के पढेंगे नहीं.

यहां लेखक की स्टाईल भी देखिये!

ये हिंदी के पाठक हैं अगर कोई बात हिंदी में लिखी जाए और सही भी हो तो भी कई कोणों से छीछलेदारी करेंगे लोग.

औरतें आपका ब्लाग पढ कर कहेंगी की हम शरीर मात्र नहीं हैं - जो की सही है.

और टाईटल में भी हिट काऊंट बढाने का डेस्परेशन दिखता है.

आपके पक्ष में कहूंगा की आप जो जानकारी दे रहे हैं, ना ही वो अश्लील है ना ही सॉफ़्ट पॉर्न है - वो बस जानकारी है.

हां आप स्वयं औरतों के शरीर पे आसक्त हैं ये दिखता है - कोई समस्या वाली बात नहीं है. स्टाईल पे फ़र्क डालती है ये बात. आपका ब्लाग विज्ञान को नहीं नारी को समर्पित है ये बात आज पता चली. तो नाम sciblog काहे रखे?

ओझाजी के गणित ब्लाग से कुछ सीखिये. आपके ब्लाग से विषयों की विविधता बढी है.

Anonymous said...

हिन्दी मे सवाल कंटेंट का कभी रहा ही नहीं हैं यहाँ तो भारतीय संस्कृति का सवाल हैं और होता रहा हैं . और बार बार वही लोग करते रहे हैं जो टिपियाते हैं इंग्लिश पढ़ना और इंग्लिश या वेस्टन संभ्यता मे तो ये सब मान्य हैं अपर यहाँ नहीं और इस्वामी तो ख़ुद इस पोस्ट
भारतीय लोग इतने बेवकूफ़ क्यों हैं?
पर कह चुके है की पाश्चात्य सभ्यता को माने से हमारी संस्कृति धरातल मे चली जायेगी और यहाँ इसको शोध का नाम दे रहे हैं . सो इंग्लिश पढ़ना , इंग्लिश संस्कृति को समझना और मानना फिर सबके लिये अलग अलग हो गया ?? इसे hypocracy कहते हैं इंग्लिश मे

Anonymous said...

"हिन्दी मे सवाल कंटेंट का कभी रहा ही नहीं हैं यहाँ तो भारतीय संस्कृति का सवाल हैं और होता रहा हैं"

नहीं जी!

विश्व को कामसूत्र और कोकशास्त्र हमारी संस्कृति की ही देन हैं. वात्स्यायन के पहले से लेकर रजनीश के बाद तक हमारी महान संस्कृति में क्या नहीं है. अत: sciblog के लेखों से हमारी संस्कृति को कोई खतरा नही है.

और हां ..मेरे लेख की कडी का प्रचार करने के लिये धन्यवाद मेरे अनानिमस पाठक!

व्यक्तिगत आक्षेप कर के विषय से ना हिलें तो बेहतर .. अपने विचार अपने ब्लाग पर लिख कर स्वस्थ्य बहस करें तो और बेहतर .. बस इतना ही.

वंदे मातरम.

L.Goswami said...
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मुनीश ( munish ) said...

y r u all fighting ? author has not compelled anybody to come n cry here! i think he is a man of good reputation and just giving expression to his emotions , that's it! Stand tall, luv all but trust none ok?

दिनेशराय द्विवेदी said...

भारतीय संस्कृति के वाहक जी बुरके में छुप के बात करते हैं। यह आज पता लगा, किस बात से भय खाते हैं? डरपोक लोगों की बात को कोई महत्व नहीं देना चाहिए।
भारतीय संस्कृति तब कहाँ जाती है जब तंत्रवाद के नाम पर यौन संबंधों को खुली छूट दे दी जाती है। और खुले आम पूरे शहर बस्तियाँ मदनोत्सव मनाती हैं।

Anonymous said...

का हो संजय तिवारी, विस्खोटक कुमार। जहाँ जाते हो अंगुली कर देते हो। तुम तो बस ब्लैक मेलिंग वाली पत्रकारिता करो फिर अपने ब्लाग मे छापो और खुदे ही पढो।

ये सभ्य लोगो की बस्ती है। दूर ही रहो। अरविन्दम को समझने के लिये सात जन्म लगेंगे। और अभी तुम्हारा पहला ही जन्म नही हुआ है।

Anonymous said...

बड़ी अजीब बात हैं "चोखेर बाली" , "नारी" और वह कोई भी ब्लॉग जहाँ स्त्री स्वतंत्रता और बराबरी पर विचार होता हैं हमारी संस्कृति का पतन होने लगता हैं और यहाँ खुले आम विज्ञान के नाम पर बिना कोई " टैग " लगाए स्त्री के अंगो के ऊपर लिखा जा रहा हैं और वह कोई भी ब्लॉगर जो चोखेर बाली और नारी पर आकर अपशब्द लिखता हैं कमेंट्स मे , या अपनी नाराजगी दीखता हैं यहाँ बिल्कुल चुप हैं . जो बोल रहे हैं वह भी कामसूत्र का हवाला दे रहे हैं . और लवली की बात पर जरुर गौर करे अगर विज्ञान की ही बात है . स्वतंत्रता हैं अभिव्यक्ति की , अपना निज का ब्लॉग हैं सब सही हैं पर फी बाकि सब पर भी टिका तिपानी बंद करे .

Arvind Mishra said...

अब मैं क्या कहूं ?मैं तो बस एक विनम्र प्रयास कर रहा हूँ कि हिन्दी साहित्य को वैश्विक स्तर देने में अपना अल्प योगदान दें सकूं .ई स्वामी ने जो लिंक दिया है वह पुरुषों के शरीर सौस्ठव् का भी वर्णन करता है -यदि रूचि है तो उसे भी देख सकते हैं . मेरी तो हिम्मत नही है अब आगे विज्ञान को समर्पित इस ब्लॉग पर मानव और मानवी शरीर पर चर्चा करने की ..बस ले दे कर यह नारी सौन्दर्य की श्रृखला के दो तीन पडाव पूरा कर इस विषय से तोबा ....हिन्दी को संमृद्ध करने का ठेका अकेले मैंने ही तो नही ले रखा है .....
संस्कृति वादियों आप जीते मैं हारा !
साईब्लाग की अन्य चर्चाओं से आपको यह प्रमाण मिल जायेगा कि यह किसी भी तरह से साफ्ट या हार्ड पॉर्न नही है ...
गोबर पट्टी की बड़ी मुश्किले हैं !!!
अस्तु ,

सुजाता said...

@ अरविन्द जी ,
आप क्या लिखें और क्या नही इस पर मैं नही जाना चाहती , और कौन कौन इसे सराह रहा है उस पर भी नही जाना चाहती ।
पर इस पोस्ट को लिख कर अगर आपको यह दम्भ हुआ है कि आपने जानकारी दी है - तो मुआफ कीजिये इसे अपने आप को शील्ड करना कहूंगी क्योंकि स्त्री के शरीर में कौन कौन से अन्ग किस किस स्वरूप और आकार के होने पर कितने कामुक होते हैं यह ज्ञान इस देश में सभी को है ।8 साल के बच्चे से लेकर 80 साल के वृद्ध तक को । इसमें कुछ भी नया तो नही है !

सुजाता said...

मैं तो बस एक विनम्र प्रयास कर रहा हूँ कि हिन्दी साहित्य को वैश्विक स्तर देने में अपना अल्प योगदान दें सकूं ........हिन्दी को संमृद्ध करने का ठेका अकेले मैंने ही तो नही ले रखा है .....

-----
अरविन्द जी ,
यूँ यह गुमान किसी भी भले आदमी को होना ही नही चाहिये कि वह हिन्दी की सेवा के लिए काम कर रहा है । आप भी न , किस चक्कर में पड़ गये हैं !
यह देखिये और समझने की कोशिश कीजिये -

http://anamdasblog.blogspot.com/2007/07/blog-post_16.html

सुजाता said...

यह किसी भी तरह से साफ्ट या हार्ड पॉर्न नही है ...
गोबर पट्टी की बड़ी मुश्किले हैं !!!
----
सहमत हूँ ।
इस बात से भी कि यह व्यवहार शास्त्र का विषय है । मैने पहले भी कहा कि आप क्या लिखें और कैसे लिखें इस पर टिप्पणी करने का मेरा इरादा नही ।

Anonymous said...
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Anonymous said...
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Dr. Zakir Ali Rajnish said...

Gajab bhayo rama, julam bhayo re.

Agar maine ye post likhi hiti, to is samay mere munh se yahi nikalta.

Is post ko lekar jitna BAWAL macha huaa hai, wah vishay janya na lagkar vyaktitv janya lagta hai.Meri samajh se Anonymous ke roop men koi peedit aatma hai, jo apni khunnas nikal raha hai.
Aur jahan tak ashleel aur shleel ka sawal hai, wah bhee logon ki mansikta se juda huaa hai. Kyonki khoobsoort ya asleelta vishay/vastu men nahi dekhne wale ki nazar men hoti hai. Aisa vidwatjanon ka kathan hai.

L.Goswami said...
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Arvind Mishra said...

साईब्लाग की नेक नीयती पर शक न करें -पूरी ईमानदारी से मैंने जो जानकारी आप सभी से साझा करना चाहा उसके पीछे केवल यही सोच है की यह ज्ञान बांटा जाय .लेकिन यह भी सही है कि लोगों की रुचियाँ अलग अलग होती हैं -जिन्हें यह पसंद नहीं उनके लिए कुछ और जानकारी परक आगे आना ही है -
क्या विज्ञान में सौन्दर्यबोध की जगह नही है -दरसल आज सेक्स एक टैब्बू बना हुआ है .यह हमारे समाज का पाखंड है या अज्ञानता जनित आक्रोश यह विवादित मुद्दा है और साईब्लाग की सीमाओं से बाहर का विषय है .और फिर यहाँ तो मैं व्यवहार शास्त्र [इथोलोजी ] की ही चर्चा कर रहा हूँ .मेरे कुछ मित्र जो मुझे भली भाति पिछले दशकों से जानते हैं उनका विचार है कि मैं इन सारे सवालों का जवाब ही क्यों दे रहा हूँ !मगर मेरा मानना है कि संवादहीनता बिल्कुल नही होनी होनी चाहिए क्योंकि संवादहीनता से तो मेरा विज्ञान संचार का मूल उद्येश्य ही धरा का धरा रह जायेगा .
मैं यह भी पूरी विनम्रता के साथ कह रहा हूँ कि जो भी सामग्री साईब्लाग पर जा रही है सभी से मेरा मतैक्य हो यह जरूरी नहीं है .और न ही मेरा ज्ञान या यहां प्रस्तुत ज्ञान अन्तिम सत्य है .
विज्ञान में कहीं भी कठमुल्लापन नही है -यह बदलता रहा है .यह फतवे जारी नही करता .
स्वस्थ विवेचन स्वागत योग्य है आप की जिज्ञासा [यदि कोई हो ?] सर माथे पर आग्रह है व्यक्तिगत टीका टिप्पणी न की जाय .कोई भी सुरुचिपूर्ण व्यक्ति दूसरों की निजी गरिमा का भी आदर करता है -यह उपदेश नही अनुरोध है -यहाँ माडरेशन की जुगत मैंने जान बूझ के नही लगाई है -मैं इसकी आवश्यकता नही समझता -वह तो संवाद की सबसे बड़ी बाधा है -मैं यहाँ संचार के लिए हूँ न कि असंवाद के लिए ...
मेरी कथित सौन्दर्य यात्रा बस एक दो और पडावों की मुन्तजिर है उसे झेल लें फिर साईब्लाग ज्ञान के असीम दिक्काल में दूसरे विषयों को तरजीह देगा !
किमाधिकम ?

arun prakash said...

अनोंय्मोउस से ले कर सभी टिप्पनिओं को पढा अनोंय्मोउस ने अपनी फर्स्ट कमेन्ट में लिखा है वो पुरूष यौन सिक्षा ले रहे हैं जो अपनी उम्र पार कर चुकें है उन्हें इस सिक्षा का क्या लाभ इसके अलावा उन्होंने एक महिला टिप्पणीकार सुजाता और रचना जी पर नितांत व्यक्तिगत आक्षेप भी लगा दिया है यह तो स्वस्थ आलोचना नहीं हुई की जो हमारे से सहमत नहीं उस पर वोह भी महिला पर जिसकी देह सौंदर्य की चर्चा पर इतना हंगामा खडा कर दिया जाए
जहाँ तक पूर्व टिप्पणीकारों का प्रश्न है मैंने भी टिप्पणिया की हैकिन्तु यह कहना पूर्व के लोअग उम्र पार कर चुकें है कोरी कल्पना है आश्चर्य हो रहा है ऐसे टिप्पणीकारों पर की अब तक ये खामोश रहे जब तक देह की यात्रा केश से लेकर नितम्ब तक आई तब तक इन लोगों ने इसका आनंद या जानकारी ली किंतु नितम्बों तक आने पर किसीको ये सॉफ्ट किसी को हार्ड पॉर्न लगनें लगा है यह सब इनके मनो मस्तिष्क की कल्पना की उपज है जो इस बात से ही की कल कहीं योनी सौंदर्य पर चर्चा न होने लगी इस ब्लोग्कार को ऎसी बातों में उलझा दिया जाए जिससे चर्चा बंद हो जाए मैं यह नहीं कहता की क्या अश्लील है और क्या नहीं जहाँ तक अदुल्ट कंटेंट की बात है यदि अन्नोंय्मुस और अन्य विरोधी टिप्पणीकार अडल्ट नहीं है तथा उन्हें शर्म आ रही है तो कृपया सॉफ्ट व हार्ड पॉर्न का विश्लेषण न करके सोफ्टी या हार्डी का तत्त्व उन साइट्स में तलाशें
क्या एक वैजानिक सोच वाले व्यक्ति को शुष्क व गूढ़ विषयों पर ही चर्चा करते रहनी चाहिए यह हक किसने किसी को दे दिया है
रही महिला टिप्पणीकारों की इस बात पर की पुरुषों के शरीर सौष्ठव पर चर्चाएँ क्यो नहीं होती मैं उनसे इस पर सहमत हूँ किंतु क्या भारतीय समाज की साडी संस्कृति धर्म नैतिकता नारी देह की चर्चा पर ही दूषित हो जाती है
आप लोग इस देह वाद से ऊपर उठिए और भी गम है जमानें में मुह्बात के सिवाय
क्या अरविन्द के अन्य vagayanik विषयों की चर्चा जिसमें उन्होंने G स्पॉट की चर्चा की थी क्या उसे अश्लील माना जाए या वैज्ञानिक इस पर कभी आप लोगों ने चर्चा नहीं की आपलोग रोज अखबार खास तौर से हिन्दी अखबार में आयुर्वैदिक दवाओं और claassified विज्ञापनों में लिंग्बर्धक यंत्र का विज्ञापनों को नहीं पढ़ रहे है क्या आप सभ नें कभी इसका विरोध संपादकों से किया है या आपने इसे अश्लील मान कर अखबार को पढ़ना बंद कर दिया है यदि आपका उत्तर हाँ हो तो आप सुचायण के अधिकारी अवस्य हैं
आप सभी टिप्पणीकारों नें अरविन्द को यह नहीं बताया की सौंदर्य के अन्य अंग भी हैं जैसे चिबुक कपोल पर डिम्पल पतली उंगलियाँ पतली कलैइयान आदि
मुझे तो यह लग रहा है की नितम्बों के कंटेंट तक आते आते इन टिप्पणीकारों की वासनाएं अवस्य भरका दी हैं आपने तथा यद्यपि आप का उद्देश्य यह कदापि नहीं रहा होगा पर दिमागी हारमोनों का क्या करेंगे आप इस पर अवस्य ही चर्चा करें की हारमोनों की खुराफातों से आदमी की सोच खास कर सेक्स जसे विषयों पर कैसे भिन्न भिन्न हो जाती है क्या करेंगे आप इन सुधारवादियों का जिन्होंने धर्म शास्त्रों में उल्लिखित देवी स्तोत्रों की चर्चा नहीं पढ़ी है क्या उसमें देवी केलिए वासनात्मक तत्त्व है सुमेरु युगल स्तनौ तथा लम्बवती स्थूल स्तनों की चर्चा भी इन्हे देवी के सौंदर्य नहीं बल्कि वासनात्मक और पोर्नात्मक (पुरानात्मक नहीं ) लगेगी
इन्ही लोगों ने सेक्स सिक्षा का विरोध किया और हमारे समाज में सबसे ज्यादा AIDS के मरीज हो गए येही लोग विदेशी वलावों और मिस वर्ल्ड की प्रतियोगिताएं में भारतीय की जीत को ऐसे प्रकट और खुश होतें है जैसे जग जीत लिया हो तथा वोही प्रतियोगिता अपने देश में होने पर संस्कृति दोषित होने का आरोप भी लगा कर तोड़ फोड़ करतें है धन्य है हिप्पोक्रेसी धन्य है the best part of beauty is that which no picture can express. keep it up इसलिए यात्रा जारी रखें चैन पुलर या लेग पुल्लर पर ध्यान न दें ये फ़िर यात्रा पर आयेंगे अवस्य एक निवेदन है भारतीय साहित्यों के भी उपमानों का अवस्य प्रयोग किया करें

Unknown said...

नारी नितम्ब पुरूष के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं. पर क्या कोई यह बताएगा कि सम्लेंगिक पुरुषों में पुरुषों के नितम्ब के प्रति आकर्षण होता है क्या, और अगर होता है तो क्या नारी नितम्ब जितना?

L.Goswami said...
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impact said...

नारी शरीर प्राकृतिक रूप से पुरूष के आकर्षण का केन्द्र है. पुरातन काल से ही सभी क्षेत्रों में इसकी महिमा मंडित की गई. अगर संस्कृति की बात करें तो खजुराहो और एलोरा की कलाएं, कामसूत्र जैसे शास्त्र और योनी की पूजा जैसी चीज़ें इसी संस्कृति और धर्म में शामिल हैं. भगवान् श्री कृष्ण की रास लीलाएँ भी कुछ अलग नहीं. दूसरे धर्मों की बात करें तो इस्लाम की परदा प्रथा दरअसल नारी सौंदर्य पर अधिकार को दर्शाना है. जिसे किसी हीरे की तरह छुपाकर रखने की मंशा है. कला जगत में भी सौंदर्य को दर्शाने के लिए नारी शरीर का ही सहारा लिया जाता है. महलों के गोलाकार गुम्बद, सुराहियाँ, नारी नयनों का स्टाइल मारती दवा की टेबलेट, अंगूठियाँ और न जाने क्या क्या. ऐसे में बेचारा वैज्ञानिक इससे अछूता कैसे रह सकता है? उसे भी अधिकार है नारी सौंदर्य की व्याख्या अपने ढंग से करने का. जीवन का शाश्वत सत्य है स्त्री - पुरूष के बीच योनाकर्षण. बाकि सब तो बाद में.

राज भाटिय़ा said...

अजी एक तरफ़ तो यह अपने आप को हमारे से ऊचा उठा रही हे, हम से मुकाबला कर रही हे एक तरफ़ एक अच्छे लेख पर भडक रही हे , वाह री नारी,जनाब आप किसी एक नारी को निशाना बना कर तो नही लिख रहे फ़िर यह बबाल क्यो? लिखो जी लिखो,

Anonymous said...
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L.Goswami said...
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Anonymous said...
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राज भाटिय़ा said...

लवली जी , मुझे आप से या किसी भी नारी से कोई शिकायत नही, ओर ना ही बह्स करना चहता हू अर्विन्द जी ने कुछ गलत नही लिखा, यह हमारी अपनी अपनी नजर हे, आप किसी भी मन्दिर मे जाओ, वहां सभी देवियो की मुर्तिया धयान से देखे, लेकिन मन मे गन्दगी नही आती, किसी नारी को कभी बस या कही भी देखे जिस के जिस्म पर फ़ंटे कपडे हो तो आप को कभी भी उस मे अशीलता नजर नही आये गी, बल्कि एक हमदर्दी आती हे, कोई मां अपने बच्चे को दुध पिला रही हे तो आप उस को सेकसी रुप मे नही देखेगे, बल्कि मां के रुप मे देखेगे, आप मन्दिर मे शिव लिंग पर जब जल चढाती हे, तो उसे लिंग के रुप मे ना देख कर भगवान के रुप मे देखती हे, कई बददिमाग ऊपर लिखी बातो मे भी सेक्स ही देखते हे, मेरी आप से यही विनती हे अरविन्द जी के लेख को समझे, उन्होने उस भावना से यह लेख नही लिखा की नारी को नीचा दिखाया जाये, या एक भोग की चीज बनाया जाये,आप कया मे सभी नारियो मे बेटी बहन ओर मां ही देखता हु, लेकिन कई बार बेटी, बहन ओर मां को समझाने के लिये आंखे भी दिखानी पडती हे, ओर अगर बेटी सोचे की वो अब बाप से ज्यादा समझ दार हो गई तो ??? धन्यवाद यह बहस यही खतम .
****
यह बेनाम के नाम
ओर भाई/ बहिन या जो भी हो तुम बीच मे भडवे का काम मत करो ,या तो खुल कर सामने आओ या फ़िर अपना मुहं काला करो,मर्द हो तो जरुर अपने असली नाम से आओगे,धन्यवाद

राज भाटिय़ा said...

बेनामी हम तुम्हे पहचान गये हे,सच मे तुम्हे लोग कमीना क्यो कहते हे अब पता चला, आग लगाना ,लोगो को गालिया देना,अपिस मे लडना, यह तुम्हारी फ़ितरत हे,सच मे लोगो ने तुम्हे मुंह लगाना इसी लिये छोड दिया कि तुम पक्के क....
तुम्हे पहचाना केसे ?? मे तुम जेसो के मुंह नही लगना चाहता जिसे अपनी इज्जत प्यारी नही वो दुसरो की इज्जत कया करे गा,

L.Goswami said...
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डा. अमर कुमार said...

.
सर्वप्रथम यह स्पष्ट करें,
क्या नर होकर भी नारियों के हित में कुछ कहा जा सकता है ? हाँ...तो,

कुल मिला कर यह आलेख वैज्ञानिक तो कतई नहीं है,
मैं साहस के साथ कह सकता हूँ कि श्री मिश्राजी इस विषय पर घंटों ही नहीं
बल्कि कई दिनों तक लगातार शास्त्रार्थ करने के लिये आमंत्रित हैं ।

कुल मिला कर यह आलेख वैज्ञानिक तो कतई नहीं है,
अपने गुरु डिज़्माण्ड के हवाले से वह फरमा रहे हैं
कि, ' नारी के नितम्ब यौनाकर्षण की अपनी भूमिका में इतने बड़े और भारी होते गये कि रति क्रीडा ...'
वैज्ञानिक निष्कर्ष किंन्हीं आँकड़ों के आधार पर निकलते हैं, न कि व्यक्तिगत अवधारणाओं पर !
हॆई मिसिर महाराज..तनि रऊआ हमनि के समझायीं
कि ' यौनाकर्षण की अपनी भूमिका ' के गुरुजी का व्याखिया देले हऊँवें ?

माई डियर मिसिर डाक्टर अपना परवर्जन आप
कंटेन्ट के नाम पर क्यों पड़ोसते हो, वह भी रतिया पौने आठे बजे ?

कुल मिला कर यह आलेख वैज्ञानिक तो कतई नहीं है,
अपने गुरुदेव डिज़्माण्ड जी के फ़क़त तीन पेपर्स का लिंक उल्लेख आदि दे कर
हम मूढ़ पाठकों का भला करते तो जयकारा लगवा देता ।
डिज़्माण्ड जी किस मुलुक मौज़ा मोहल्ले में बरामद होते हैं,
यह भी खुलासा कर देते तो ऋणी होता ।

कुल मिला कर यह आलेख वैज्ञानिक तो कतई नहीं है,
क्योंकि मुझे इस टिप्पणी के बाद अपनी हाज़त का खुलासा करने जाना है,
नहीं तो मैं यहीं मल विसर्जन की प्रक्रिया सचित्र प्रेषित कर अपने को वैज्ञानिक कहलाने का मौका न छोड़ता ।

एक भोंड़ा सा अवैज्ञानिक प्रश्न छोड़ रहा हूँ,
आख़िर लौंडों कि लुनाई और नितम्ब हथियाने की प्रतिस्पर्धा में ..
छुरे क्यों चल जाया करते हैं ?
जवाब सोच कर रखें, मैं शीध्र ही शौच कर आता हूँ !

अरे अरविन्द भाई, अच्छा लिखते हो..
तो अच्छा अच्छा ही लिखो न !
और भी टापिक हैं, ज़माने में...चूतड़ों के सिवा ..हा हा हा ही ही

impact said...

डॉक्टर साहब,
अगर आप मिश्रा जी को ग़लत कह रहे हो तो लैमार्क और डार्विन को भी ग़लत कहना पड़ेगा. अटकलें तो उनहोंने भी लगाईं. बन्दर को इंसान जैसा देखा तो उसे इंसान का पूर्वज बता दिया. जिराफ की गर्दन लम्बी देखी तो अपनी अटकल लगा दी. इन अटकलों में आंकडे तो कदापि शामिल नही थे.

डा. अमर कुमार said...

.

श्रीमान इम्पैक्ट जी,
मैं तो आपको ज़वाब देना भी उचित नहीं समझता,
केवल अन्य पाठकों की जानकारी के लिये
अपना टाइम खोटी कर रहा हूँ !

क्यों बतंगड़ खड़ा कर रहे हो भाई ?
ज़रा पढ़ा लिखा भी करो,
कि सिर्फ़ ब्लागर पर ही अपना x...x बघारोगे ?
नवीनतम अनुसंधानों के परिणाम देखो..डार्विन ने
विश्व को आगे चलने के एक दिशा दी और सफल रहे ।
किंतु आज वह सिद्ध नहीं हो पा रहे हैं ।

चलो छोड़ो, मँहगी किताबें कहाँ खरीदोगे,
अपने यहाँ रद्दी में पड़ी हुई कोई भी
10 साल पुरानी विज्ञान की किताब उठा लो,
फिर इस दौर की किताबों में फ़र्क़ करो ।
मैं ग़लत हो सकता हूँ..मैं कोई विश्वकोष भी नहीं,
मैं भी तो जानना चाह रहा हूँ कि
यह नितम्ब विज्ञानी ' डिज़्माण्ड ' साहब कहाँ पाये जाते हैं ?
ज्ञान में इज़ाफ़ा करते रहने की कोई आयुसीमा तो है नहीं ?

लेकिन..छोड़ो, मैं भी कहाँ उलझ गया ? अपना चेहरा न सही
किंतु प्रोफ़ाइल पर अपना नाम पता देने का साहस तो रखो !
क्या पता, कल को यह नाचीज़ ..
तुम्हारा शिष्यत्व ग्रहण करने पहुँच ही जाये ।

इति..बोले तो It is enough, now !

L.Goswami said...

sach kaha it is enough now.

Arvind Mishra said...

डॉ अमर कुमार
desmond morris का आधुनिक जैविकी में वही जगह है जो नभ भौतिकी में स्टेफेन हाकिंग का ..अब यह मत कहियेगा कि स्टेफेन हाकिंग कौन हैं -तथापि कुछ इन लिंक्स का अनुशीलन करना चाहें -मैं आपके विचारों पर सोच विचार कर रहा हूँ -बस वही थोडा छिछले मजाक से आपने बहस के स्तर को हल्का न किया होता तो .....बहरहाल -
http://books.rediff.com/bookshop/buyersearch.jsp?lookfor=DESMOND%20MORRIS&search=1
http://www.cuil.com/search?q=Desmond%20Morris&sl=long

impact said...

डॉक्टर साहब,
मैं धन्य हुआ की आपने मेरी टिप्पणी का उत्तर दिया. चलिए आपने माना की डार्विन आज सिद्ध नहीं हो पा रहे हैं. वास्तव में अमेरिका जैसे देशों में डार्विनवाद पर तीखी बहस हो रही है. वो भी वैज्ञानिकों के बीच. और जो थयोरी बहस का मुद्दा होती है वो थयोरी नहीं बल्कि सिर्फ़ एक अटकल (परिकल्पना) ही होती है विज्ञान की दृष्टि में. अभी तक डार्विन थयोरी का कोई ठोस प्रूफ़ नहीं मिल सका है. बन्दर और मनुष्य के बीच की कड़ी पिल्ट डाउन मैन का जीवाश्म फ्राड साबित हो चुका है.ऐसे में चलिए मैं भी एक अटकल सोरी थयोरी दे देता हूँ, कि वास्तव में बन्दर के पूर्वज मनुष्य थे. किसी कारणवश उनके जींस में कुछ परिवर्तन हुए और वे बन्दर बन गये. खैर इसके बाद भी अगर आप डार्विन को वैज्ञानिक मानते हो तो मिश्रा जी के इस लेख को विज्ञानिक मानना होगा और मेरी थयोरी को भी.

डा. अमर कुमार said...

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आज्ञा शिरोधार्य, गुरु्देव

The Naked Woman:
A Study Of The Female Body

पढ़ने का अवसर मुझे भी मिला है, बल्कि
कल से मेरे टेबल पर ही मौज़ूद है । क्या आपको
न्यूज़-स्टैंड वैल्यू बढ़ाने के लिये यह पल्प-लेखन
नहीं लगता है ? आपने भी तो अब तक शायद
35-40 टिप्पणिया बटोर ही ली होंगी ?

यदि आप मानते हैं कि यह संदर्भणीय लेखन
है, तो मैं अपनी सभी टिप्पणियाँ समय की बरबादी
मान वापस लेता हूँ , डिलीट नहीं करूँगा.. आपके
बेस कंटेन्ट में मेरा चेहरा भी शामिल रहे..हा हा हा !

छिछला मज़ाक ? नहीं श्रीमान.. भला 8 भाषाओं
की जानकारी..जो अब 9 होने वाली है, के बावज़ूद
मुझे बनारस रेलवे कालोनी से विरासत में मिली यह
भदेसपन कठिन क्षणों में बखूबी शांति देती है ।

विज्ञान यदि अपने तथ्यों के अंदर सतत झाँकते रहना
सिखाता है..और बासी माल..अप्रासंगिक तथ्य..और
कचरे की छानबीन करता रहता है, तो यह आलेख भी
कुछ ऎसा ही कह रहा है !

कल तक मंगल पर पानी नहीं..
आज मंगल का पानी दिखने लगा
किसको सच मानें , सहायता करें..
मैं अभी इतना पानीदार नहीं हूँ ।

मित्र, विज्ञान सतत भूलसुधार की
प्रक्रिया है, और आप तो वैज्ञानिक भी हो !

zeashan zaidi said...

Lagta hai Maamla Thanda Ho gaya

Anonymous said...

अरविन्द जी, ब्लाग आपका है, अच्छा बुरा जो भी लिखना चाह्ते हैं उसके लिए स्वतन्त्र हैं. किन्तु यह श्रंखला ग्यान वर्धक तो है ही नहीं वरन सौन्दर्यबोध का भी अभाव है न केवल देह के स्तर पर वरन नारी मन के स्तर पर भी. तथाकथित देशी विदेशी विद्वान जो इस विषय पर लिख रहे हैं, वात्सयायन के कामसूत्र का पासंग भी नहीं है. इसी श्रंखला में एक अन्य प्राचीन ग्रन्थ है अनंग रंग, संम्भवतः चौखम्बा नें काफी पहले छापा था, उसे भी देंखें, जो लिख रहे हैं उससे कहीं ज्यादा पुष्ट और आश्चर्य चकित कर देने की हद तक ग्यान वर्धक. किन्तु लवली का प्रश्न जो वह बार-बार उठा रही हैं,कि पुरुष देह विमर्श पर भी क्यों नहीं लिखा जाता या आप उस पर क्यॊं नहीं लिखते यह प्रश्न महत्वपूर्ण है? क्या ऎसा कोई ग्रन्थ किसी भी देसी विदेशी लिक्खाड़ का लिखा, आपकी नज़रों से गुजरा है? सिवाय चिकित्सा शास्त्रीय ग्रन्थों के मुझे तो ऎसा कोई ग्रन्थ हस्तगत नही हो पाया, जिसमें पुरुष देह का विमर्ष कामशास्त्रीय आधार पर किया गया हो.अगर यह तथ्य ठीक है तो यह किस बात का संकेत है???? क्या स्कूल स्तर पर जो यौन शिक्षा देंने की बात की जा रही है, उसमें नारी को केन्द्र में रखकर ही यह शिक्षा दी जाएगी? इलावा इसके इस शिक्षा का उद्देश्य, सुरक्षित सम्भोग कैसे किया जाए, क्या मात्र इतना ही है, जैसा आज कल विग्यापनों में प्रचारित-प्रसारित किया जा रहा है? पति को कंड़ोम खरीदनें की याद दिलानें या गर्भ निरोधक टैब्लेट खाकर पति को बतानें की इकतरफा जवाबदेही क्या सिर्फ स्त्री की है, रत्यानन्द क्या सिर्फ स्त्री के अकेले के लिए है, यदि नहीं तो पति स्वयं इन आवश्यकीय जवाब देही से मुक्त क्यों रहना चाहता है? अचरज की बात तो यह है कि अधेड़ से लेकर बुढ़ाए ब्लागिये जो आपकी वाह-वाह कर रहे हैं,अधिकांश में, समतावादी-समाजवादी-साम्यवादी हैं जो नारी स्वातन्त्र्य के बड़े झंड़ाबरदार बनते हैं? क्या यह एड्स -" अक्वायर्ड इन्टलेकचुअल डेफिसिएन्सी सिन्ड्रोम " का सिम्पटम तो नही? माना कि वात्सयायन भी मिश्र थे लेकिन यह व्यर्थ की विपरीत रति आप को शोभा नहीं देती.

अनूप भार्गव said...

अपने प्रिय कवि ’अशोक वाजपेयी’ जी की एक छोटी सी कविता :

जब
===

जब एक सुडौल गोरा नितम्ब
थोड़ा सा मुड़ता है
तो देवताओं को हिचकी आने लगती है ।
=====
’उम्मीद का दूसरा नाम’ पुस्तक से साभार
---

अब इस कविता की व्याख्या के लिये अशोक जी से सम्पर्क स्थापित करें ।

Unknown said...

यह सर्व्भोमिकता नहीं विलाप्ता हैं | जिसमे स्त्री सौन्दर्य को आदि काल से ही नही अनादी काल से ललकारा गया हैं |
सौन्दर्य या तो बाह्य हो या आंतरिक मान्यता दोनों ही रखती हैं |
क्या आप जानते हैं ?

नकली कॉस्मेटिक का बाजार धडल्ले से आगे बढ रहा हैं |

अच्छा दिखने और सजने-संवरने की चाहत भला किसमें नहीं होती है? यही वजह है कि हम बाजार से कई बार बिना सोचे-समझे कुछ ऐसे उत्पाद उठा लाते हैं और उनमें मौजूद कुछ तत्व हमारी सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं। ये मूल्य में अपेक्षित मूल्य से सस्ते होते हैं | पर ये स्वास्थ्य पे इतना बुरा असर डालते हैं की – चर्म रोग, कैंसर और भी अधिक बिमरिवो का कारण बन जाते हैं | ये कितने प्रकार के हानिकारक केमिकल्स से बने होते हैं –जो मुख्य घटक पारा का प्रयोग करते हैं - पारा की अधिकता शरीर में अवशेषित होने से किडनी को नुकसान पहुंच सकता है। ऐसे प्रोडक्ट प्रयोग करने पे किडनी फ़ैल होने चांसेस लगभग ६०% से ७० % तक का हो जाता हैं | मेरा सभी माता बहनों से अनुरोध हैं की – कुछ चंद मूल्यों का कारण अपने स्वास्थ्य से समझौता न करे | ख़रीदे वही जो आपके लिए बेहतर हो – जो आपको सुन्दरता के साथ- साथ आपके स्वास्थ्य का भी ख्याल रखे |

अगर गुणवता की बात करे तो प्रोडक्ट वही ख़रीदे जो ऑफिसियल वेबसाइट से बेचे जा रहे हैं – और अपने क्वालिटी को मेन्टेन किये हुए हो | जैसे colorbar cosmetics – अपने गुणवत्ता को बनाये रखने में विगत 25 सालो से नंबर १ के पावदान पे स्थापित हैं | कंपनी ने प्रोडक्ट बनाते हुए , प्रोडक्ट की क्वालिटी को ज्यदा महत्ता दी हैं | तो अब समय हैं सही चीजो को जानने का समझने का और परखने का, उसके बाद इस्तेमाल करने का |

कॉस्मेटिक प्रोडक्ट खरीदने हो तो मेरे सुझाव से colorbar cosmetic से बेहतर कोई अन्य नहीं हैं | तो आज ही आर्डर दे सभी कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स – www.colorbarcosmetics.com से लॉग इन कर |

ManglaRam Bishnoie said...

स्त्री-सौंदर्य-आकलन का नजरिया
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भारत में नितंबिनी को मोहिनी कहा जाता था! किसी स्त्री के सौंदर्य की कसौटी उसकी पतली कमर मानी जाती थी!

जब उन्नत उरोज (स्तन, छाती) और पीन (पुष्ट) नितंब के कारण स्त्री की कमर स्वत: क्षीण (पतली) दिखाई देती थी!

जैसे किसी रेखा के ऊपर और नीचे उससे बडी रेखाएं खींचने पर मूल रेखा छोटी दिखाई देती है!
काव्य में इस तथ्य को रेखांकित करता शेख-आलम का छंद उल्लेखनीय है!

जैसे -
*कनक छरी सी कामिनी, काहे की कटि खीन(क्षीण)!*

*कटि का कंचन काटि विधि, कुचन मध्य धरि दीन!*

अर्थात् - *सोने की छडी के समान कामिनी (स्त्री) की कमर पतली (क्षीण) कैसे है?*
उसका जबाब है -
*विधाता ने कमर का *कंचन* काट कर कुच पर रख दिया!*

लेकिन यह तथ्य नहीं, बल्कि गॉसिप मात्र है !

यह छंद इस जिज्ञासा का सटीक जबाब देता है!
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*कनक छरी सी कामिनी, काहे की कटि खीन(क्षीण)!*

*विधि सजायौ घर नये वर्त पयोधर पीन!*
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अर्थात् विधाता ने अपने नैसर्गिक सृजन-उद्देश्य (एकोSहम बहुस्याम:) के लिए ही स्त्री-देह ने कैंप लगाया है!


जहाँ नौ मास तक निवास करेगा! अपने पैर पसार कर आराम से सोने के लिए पीन नितंब-वर्त क्षेत्र के साथ पोषऩ के लिए उन्नत उरोज बनाये!

सवैया छंद-
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*आन बसै निज काज कहै विधि ढोल दियाँ हम कीन तियारी!*

*पैर पसार कै पोढन आस समेट धरी कटि खीन पथारी!*

*पीन पयोधर भेख उठी जद गोद निवास की 'हूक' हमारी!*

*झोंक दियो 'मधुमास' यहीं सुन 'भृंग' करि यह 'भूख' तुमारी!*
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अर्थात् विधाता (नेचर) ने ही सृजन कार्य के लिए स्त्री शरीर में काम भाव को उद्दीप्त करते (ढोल देते) हुए के यह तैयारी की है!

नौ मास तक पैर पसार रह सकूँ, इसके लिए कटि को समेट कर रिजर्व रख लिया!


जब गोद-निवास(पुनर्सर्जन) की उत्कट इच्छा (हूक) पीन-पयोधर के रूप में छाती फाड कर बाहर उमड आई .....
तब मैंने नारी यौवन में अपना सौंदर्य-स्टॉक ही खाली कर दिया (पूरा वसंत ही झोंक दिया)!
और हे भृंग (पुरुष), तू भी सुन! ये फूल-फूल पर मंडराने की जो तुम्हारी भूख है, वह भी मैं (नेचर) ने ही भरी है!

(एक पूरक छंद और भी है, डिमांड पर भेंट करूंगा!)

इस तरह पीन नितंब विधाता के वसंत का ही करिश्मा है! नितंब और पीन पयोधर (ब्रैस्ट) भावी शिशु के सरल-सफल प्रजनन और पोषण-क्षमता का विज्ञापन है! क्योंकि *हम अपनी संतानों के रूप में जारी होकर ही अमरता पाते हैं* और ये पीन नितंब और पुष्ट उरोज संतान-प्रजनन-पोषण की वास्तविक संभावनायें हैं,नैसर्गिक सर्टिफिकेट है, इसी कारण ये सुंदर लगती है!

यह विषय लाज-शर्म का नहीं, बल्कि संभावना, क्षमता और गौरव प्रदान करने वाला है!

(२)
*मंगल* दो अरधांग जुडा, नटराज नचावन रंग लियो है!

फूल बन्यो मकरंद सजा, जिन चूम लजावन भृंग पियो है!

अंग अटारि अनंग अड्यो, इन भूत भगावन चंग दियो है!

जंग ठन्यो मनभावन यै, उन आप बढावन ढंग कियो है!

(यह मेरा दूसरा छंद है!!)

manglaram744@gmail.com

(ph +919610005326)
Dt 01-01-19
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ManglaRam Bishnoie said...

नारी सौंदर्य पर जिज्ञासा शुरु से रही है, बस शील और लंपटता के बीच महीन रेखा को पहचानना चाहिए।
जैसे -*कनक छरी सी कामिनी काहे को कटी खीन!*
*कटि को कंचन काटि विधि, कुचन मध्य धरि दीन!*
यह मांसल नजरिया है!
संतुलित नजरिया यह है कि
*कनक छरी...... !
*विधि सजायो घर नये, वर्त पयोधर पीन!*
यानी विधाता ने अपने *एकोअहम् बहुस्याम :* के महत् उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही नारी के युवा तन में निवास कर सजाया है और वर्त (जंघा-नितंब) तथा स्तनों को पीन(पुष्ट) किया है!

इसके दो सवैया छंद हैं-़
(१) -
ढोल दियाँ तन आन बसै विधि बोल कहै यह कीन तियारी!
पैर पसारिकै पौढन आस समेट धरि कटि खीन पथारी!
पीन पयोधर भेख उठी जद गोद-निवास की हूक हमारी!
झोंक दियो मधुमास यहीं सुन भृंग करी 'यह भूख' तुम्हारी!

(२)
मंगल को अरधांग जुडा नटराज नचावन को रंग लियो है!
फूल बन्यौ मकरंद सजा, जिन चूम लजावन भृंग पियो है!
अंग अटारि अनंग अड्यौ इन भूत भगावन चंग दियो है!
जंग ठन्यौ मनभावन यै उन आप बढावन ढंग कियो है!*

पाठकों की जिज्ञासा होने पर इनके मौलिक-अप्रकाशित छंदों का भावार्थ दिया जायेगा!
धन्यवाद!
मंगलाराम विश्नोई
Email - manglaram744@gmail.com
25-3-19