Wednesday 28 May 2008

सुखी एक बन्दर परिवार ,दुखिया सब संसार !


जीव जंतुओं के व्यवहार -अध्ययन को 'ईथोलोजी' कहते हैं -पहले ज्ञान की इस विधा को विज्ञानी गंभीरता से नही लेते थे .मगर जब १९७३ में इस विधा पर कोनरेड लोरेंज़ ,निको टीनबर्जेन ऑर कार्ल वोन फ्रिश की तिगड़ी को नोबेल मिल गया तो लोगों की आँखे खुली .तब से तो ज्ञान विज्ञान के इस अनुशाससन ने उपलब्धियों की कई मंजिलें हासिलकी हैं ।
ईथोलोजी का अध्ययन कितना रोचक है आईये बंदरों की ऊपर की तस्वीर से थोडा समझें -
आराम फरमा रहे इस बन्दर परिवार मे क्या ख़ास बात नोटिस की आपने ?एक बन्दर दूसरे के जुयें खोज रहा है .यही न ?नहीं, एक व्यवहार विद की नज़र में यह माजरा इतना ही नही है -उसके शब्दों में यह दृश्य 'अपीज्मेंट बिहैविअर 'प्रदर्शित कर रहे नर बन्दर का है .बन्दर समुदायों में परिवार में दबंगता का बड़ा खौफ रहता है .परिवार का मुखिया प्रायः बहुत ही आक्रामक ऑर दबंग होता है .अपनी इस दबंगता की स्थिति को बनाए रखने के लिए वह अनायास ही बात बात पर गुस्सा करता रहता है .उसके इसी गुस्से को शांत करने की ही एक जुगत है यह अपीज्मेंट व्यवहार -प्रशान्तिदायक व्यवहार जो यहाँ अपवाद के तौर पर नर प्रदर्शित कर रहा है .जबकि ऐसा व्यवहार अमूमन मादा नर के लिए या दब्बू सदस्य दबंग के लिए करता है , ताकि परिवार का सुख चैन बना रहे ।वह एक इकाई के रूप मे बना रहे -बिखरे नही .लगता है इस परिवार में मादा दबंग है .उसका सदयजात बच्चा भी साथ है ,अतः उसका इस समय आक्रामक होना सहज ही है .जुयें खोजना तो महज एक बहाना है ,यहाँ उससे भी बड़ा काम संपादित हो रहा है .
हम ऑर आप भी विकास के एक दौर में इन्ही बंदरों से होकर आए हैं -ऐसे व्यवहार हमारी जीनों मे भी होना सहज है .अब जरा गौर फरमाएं हम अपने परिवार के मुखियाके प्रति कौन कौन से अप्पीजमेंट व्यवहार अपनाते हैं ?
यही आज की इस पोस्ट की छोटी सी इक्सेर्साईज है -ऑर इथोलोजी का आपका पहला पाठ भी .यदि आप ने रूचि दिखाई तो इथोलोजी बेसिक्स पर मैं कुछ ऑर पोस्ट कर सकूंगा.

9 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

अरे वाह! नया विज्ञान पता चला ईथॉलॉजी! यह तो मानव से इतर लोगों का मनोविज्ञान सा कुछ हुआ।
कुछ रोचक इथॉलॉजिकल बिहेवियर जानने की इच्छा है आपकी भविष्य की पोस्टों से।

बालकिशन said...

ज्ञान भइया ने मेरे मन की बात कह दी.
क्या कहूँ.

Udan Tashtari said...

इथोलोजी बेसिक्स पर आपकी पोस्टों का इन्तजार रहेगा. शुभकामनाऐं.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

मेरे खयाल मेँ हर भारतीय कन्या को "इथोलोजीकल बीहेवीयर " सीखलाया जाता है ! " जाओ, दादा जी की छडी ले आओ "" नाना जी को पानी दे आ " फिर पिता के लिये , " पापा के हाथ से समान ले लो " इत्यादी --बँदर जैसे प्राणीयोँ मेँ " हिन्सा और आक्रमण से बचने के लिये एपीज़मेन्ट अपनाना एक सावधानी ही कहलायेगी - after all, who wants to face wrath ?

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

इथोलॉजिकल बेसिक्स के बारे में जानकर सुखद आश्चर्य हुआ। वैसे यह गुण मनुष्यों में भी समान रूप से पाया जाता है, जरूरत है बस अपने आसपास देखने और समझने की।
लगातार ब्लॉग्स जगत पर इतनी पोस्ट करने के लिए बधाई स्वीकारें।

Pankaj Oudhia said...

बढिया पोस्ट। अगली पोस्ट की प्रतीक्षा है। आपसे मछलियो के विषय मे भी बहुत कुछ सीखना है।

मीनाक्षी said...

gyan ji ke blog se aapki rochak post paddne ko mili. agli nayee aur rochak post ka intezar rahega.

Anita kumar said...

आप की अगली पोस्ट का इंतजार

arun prakash said...

श्रंखला जारी रखे हम भी तो देखे क्या क्या बदला है आप भी लगता है मोहल्ले के बंदरो व उनके परिवारजनों का अध्ययन लाइव कर रहे है अब इसे आप जो भी नाम दे सर आँखों पर
मौरिस साहिब से प्रेरित तो नही है यह आलेख