Saturday, 24 July 2010

सौन्दर्य प्रसाधन प्रेमी सुमुखियों के लिए आख़िरी चेतावनी ...

यह  खबर विश्वप्रसिद्ध पत्रिका टाइम में पढी  तो सोचा ब्लॉग सुंदरियों से साझा कर लूं -क्योंकि मैं जानता हूँ वे कोई न कोई सौन्दर्य प्रसाधन जरूर इस्तेमाल में लाती हैं ...मेरी एक मित्र तो लिपस्टिक की ही बड़ी शौक़ीन हैं .एक बार बहुत आग्रह पर न जाने कौन कौन सा ब्रांड शरमा शरमा के बताने लगीं -मैंने अपनी डायरी में नोट कर रखा है ..बहरहाल जिन्हें अंगरेजी से परहेज नहीं है वे सीधे टाईम पत्रिका पर ही अपना समय जायज कर सकती है और जिन्हें परहेज है वे मेरे साथ ही आगे बढ़ती रहें ..और आप पाने प्रिय जन को सचेत कर कर सकते हैं ,जैसा मैं कर रहा हूँ ,उनके लिए और आप सभी  के लिए भी !



यह खुलासा दो पत्रकारों ने अपने शोध की बदौलत किया -जब उन्हें यह लगा कि अरबों की इंडस्ट्री कास्मेटिक्स के नाम  पर लोगों को जहर बेंच रही है तो उन्होंने अपने शोध को एक किताब में प्रकाशित कर दिया -नो मोर डर्टी लुक्स ! इसमें कास्मेटिक्स के विषैले तत्वों के बारे में तो चेताया ही गया है ,साथ ही उनके  विकल्पों को भी सुझाया गया है .
बाल
आपके बाल कितने अच्छे हैं ना अक्सर याद आ जाती है  -वह लम्बी केशराशि ! 
मगर ध्यान दें ,कई शैम्पू और कंडीशनर सल्फेट्स और पैराबेंस जैसे  प्रिजर्वेटिव्  लिए होते हैं जिससे शरीर का  हार्मोन संतुलन गडमड हो सकता है .
सलाह -आर्गेनिक शैम्पू और कंडीशनर्स इस्तेमाल में लायें या फिर बे किंगसोडा और मायो (mayo ) मिलाकर अपना खुद शैम्पू तैयार कर लें .
आँखें
बस आपकी उन मदमाती आंखों के लिए -
मस्कारा पारे का मिश्रण लिए हो सकता है जो न्यूरोटाक्सिक   है मतलब दिमाग के लिए ....समझ रही हैं ना ? कहीं इसलिए ही तो हरवक्त भुनभुनाई हुई तो नहीं रहतीं आप ...और हाँ इसमें कोलतार जो एक कैंसरकारी तत्व है शामिल है  ...और आई शैडो में १,४ डाई आक्सेन होता है ,यह भी कैंसरकारी रसायन है .
हल -केवल एक्टीवेटेड चारकोल ही इस्तेमाल में लायें या स्वच्छता के साथ पुरानी विधि से बना काजल ही पर्याप्त है ..
त्वचा
इन दिनों बहुत से मायस्चरायिजर बाजार में हैं जिसमें पैराबेंस और दूसरे प्रिजर्वेटिव  होते हैं और कई सनस्क्रीन लोशन आक्सी  बेन्जोन लिए हो सकते हैं और ये हारमोन असंतुलन पैदा कर सकते हैं .
हल -एक्स्ट्रा -विरिजिन आलिव आयल एक कुदरती मायस्चरायिज़र है ,इसे इस्तेमाल में लायें .
होठ
हे ,आप जो दोनों लिपस्टिक बदल बदल कर लगाती हैं उनमें सीसा मिला होता है और यह भी एक न्यूरो टाक्सिन है (तभी तो मैं कहूं इस गुस्से का कारण क्या है !) .साथ ही इनमें कैंसर कारी तत्व भी होते हैं ...
हल -अब कई आर्गेनिक लिपस्टिक अ रहे हैं -RMS Beauty Lip2Cheek ढूंढें (मैं मदद करुँ ? ) -यह एक  ब्लश भी है -

 आपका सौन्दर्य मुबारक -चश्में बद्दूर !

Tuesday, 20 July 2010

एक मछली जो वैज्ञानिको को छकाती रहती है!

आज बनारस के दैनिक जागरण ने एक सचित्र खबर प्रमुखता से छापी है जिसमें एक मछली के आसमान से बरसात के साथ टपक पड़ने की खबर है.मछलियों की बरसात की ख़बरें पहले भी सुर्खियाँ बनती रही  हैं ,पूरी दुनिया में कहीं न कहीं से मछलियों के साथ ही दूसरे जीव  जंतुओं  की बरसात होने के अनेक समाचार हैं .बनारस में कथित रूप से आसमान से टपकी मछली कवई मछली है जो पहले भी वैज्ञानिकों का सर चकराने देने के लिए कुख्यात रही है .

यह कभी पेड़ पर मिलती है तो जमीन पर चहलकदमी करते हुए दिखी है ...इसका इसलिए ही एक नाम क्लायिम्बिन्ग पर्च है .अब इस बार यह बरसात की बूंदों के साथ जमीन पर आ धमकी है यहाँ सारनाथ में जैसा कि कई चश्मदीदों का कहना है. .वैज्ञानिक संकल्पनाएँ करते /देते थक से गए हैं -यह मानसूनी /चक्रवाती हवाओं के चलते पहले बादलों के संग जा मिली और फिर बरस पडी या किसी पक्षी के चोंच से छूट कर धडाम हुई -अब किसी ने यह सब देखा नहीं -बस घनघोर बारिस के बाद यह जमीन पर उछलती हुई दिखी ...बस तमाशबीनो की भीड़ आ  जुटी  .
 दंतकथाओं की जनक कवई (अनाबास ) मछली

यह भी होता है कि भरपूर वर्षा होने पर  जलराशि  नदी नालों की ओर उमड़ पड़ती है और मछलियाँ  चूंकि पानी की धारा के विपरीत चलती है ये नदी नालों से निकल कर   उथली जगहों पर आ जाती हैं .और बरसात के बाद लोग बाहर निकलते ही इनका दर्शन कर आश्चर्य में पड़ जाते हैं और तरह तरह के कयास लगाने लग जाते हैं .सारनाथ में सड़क पर दिखी मछली की यही कहानी लगती है .

यह अनाबस मछली है जो अपने मजबूत पेक्टोरल फिन से जमीन पर घिसट घिसट कार आगे बढ सकती है ...चांदनी रातों में इसे एक तालाब से दूसरे तालाब पर झुण्ड में इसे  जाते देखे जाने की रपटे हैं !

Wednesday, 14 July 2010

कुकडू कूँ खसम और मुर्गी का कुनबा ..शायद अब राज खुल जाय

शायद  अब राज खुल जाय कि क्यों कुछ किस्म के खसम लोग कुनबे की मुर्गी के सामने सिर झुकाए कुक्डूं कूँ कुकड़ू कूँ करते रहते हैं -अरे वही जिन्हें हेनपेक्ड  हस्बैंड्स कहते हैं ...मुझे ताज्जुब होता आया है कि आखिर मुर्गी  के कुनबे की यह एक ख़ास विशेषता मनुष्य में कैसे आ गयी .जो लोग जानवरों के व्यवहार में तनिक रूचि लेते हैं उन्हें पता  होगा कि मुर्गियों में एक पेक आर्डर होता है जिसमें कुनबे की मुर्गी (जेंडर इनर्ट शब्द )  जब तक दाना चुगने के लिए चोंच नहीं मारती बाकी का कुनबा मुंह ताकते देखता रहता है ...क्या मजाल कि कोई और दूसरा (कुनबा)  सदस्य भले ही भूख से बिलबिला रहा हो खाने के दाने पर चुग्गा मार ले ...कहने को तो भारतीय नारियां सताई हुई प्रजाति हैं मगर मैंने खुद कितने घरों में देखा है पुरुष बकरी की तरह मिमियाता रहता है ..मगर वो बकरी वाली बात फिर कभी आज साईब्लोग मुर्गियों के कुनबे की प्रतीति कराते  इस विचित्र मानवीय व्यवहार का कोई सूत्र सम्बन्ध ढूँढने निकला है ...
एक कुकड़ू कूँ मुर्गा


हकीकत यह है कि पुरुष के लैंगिक क्रोमोजोम वाई पर जीनों की संख्या महिला के लैंगिक एक्स क्रोमोजोम की तुलना में बहुत कम है ....एक्स पर वाई की तुलना में १४०० जीन अधिक पाए गए हैं ..भले ही किसी दैहिक एक्स क्रोमोजोम (आटोजोम ) पर जीनो की संख्या लैंगिक एक्स से ज्यादा हो मगर पुरुष का अभागा लैंगिक वाई पूरे शरीर के सबसे कम जीनो को रखने वाला  क्रोमोसोम है ...बिल्कुल इसी तरह मुर्ग परिवार में भी नर जेड जीन पर सबसे कम जीन होते हैं -दरअसल स्तनपोषी जीवों में तो लिंग निर्धारण की एक्स वाई प्रणाली है जिसमें एक्स मादा और वाई पुरुष का प्रतिनिधित्व करते हैं मगर चिड़ियों में डब्ल्यू जेड प्रणाली होती है जिसमें जेड नर की नुमाईंदगी करता है -मतलब स्तनधारियों में एक्स वाई जहां नर  और एक्स एक्स जहाँ मादा होती है वहीं मुर्गों और दीगर चिड़ियों में जेड जेड नर और डब्ल्यू जेड मादा होती है -
निरीह कुकड़ू कूँ पति बेचारा

पाया गया है कि बिचारे मुर्गे के जेड जेड गुणसूत्र पर बहु कम जीन होते हैं ...और उसी तरह मनुष्य के वाई पर भी एक्स की तुलना में बहुत कम जीन ...मुर्गी का डब्ल्यू जेड काम्बो ज्यादा जीनो को रखता है बनिस्बत नर के जेड जेड  के ....तो भैया जीनो का जज्बा देखें तो नारियां मुर्ग काल से ही जायदा दबंग हैं और आज भी यही ट्रेंड बना हुआ है ..तब बिचारा मुर्गा क्यों न मिमियाता फिरे ...

मनुष्य और मुर्गे की जीनों का यह समान्तर दास्ताँ साईंस की मशहूर शोध पत्रिका नेचर के ११ जुलाई १० के ताजातरीन अंक में छपी है ....

Sunday, 11 July 2010

तीन दिल और तेज दिमाग वाले होते हैं ऑक्टोपस -आज क्या हारेंगे पॉल बाबा ?

जी हाँ आक्टोपस सचमुच बुद्धिमान होते है -उन सभी प्राणियों में तो निश्चित ही जिनमें रीढ़ नहीं होती ..आठ भुजाओं वाला यह जीव सचमुच रोमांचित करता है -इसलिए कामिक्स कहानियों ,कार्टूनों आदि में दिखता ही रहता है .जिन्होंने ली फाल्क की मशहूर मैन्ड्रेक जादूगर कामिक्स पढ़ा है उनके मन में 'अष्टपाद संगठन ' की असहज करने वाली यादें होगीं .
भविष्य वक्ता(?) ऑक्टोपस पॉल

अब विश्वकप फ़ुटबाल में भविष्यवाणी करने वाले एक जर्मन ऑक्टोपस ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खीचा है .यह सच है कि ऑक्टोपस बुद्धि का इस्तेमाल करते हैं मगर वे उन्हें किसी मानवीय  घटना का बिल्कुल सही सही पूर्वाभास हो जाय यह महज हास्यास्पद ही है .हाँ ओक्टोपसों के कई कारनामें ऐसे हैं जो आश्चर्य में डालते हैं -जैसे उनका बंद  शीशी /बोतल का कैप घुमाकर खोलना और अपना प्रिय पदार्थ प्राप्त कर लेना ..यह युक्ति उन्होंने बिना किसी प्राथमिक ट्रेनिंग के खुद सीखी .स्पष्ट है कि उनमें तर्क की क्षमता है .सभी आक्टोपस विषैले होते हैं मगर ब्लू रिंग्ड ऑक्टोपस तो मनुष्य के लिए भी घातक है .इस समुद्री जीव की ३०० से ऊपर प्रजातियाँ हैं ! ये बिचारे अल्पजीवी होते हैं -एक प्रजाति तो महज ६ माह में ही अपनी जीवन लीला समाप्त कर देती है .और कुछ ४-५ वर्षों तक जीती हैं .ये एक नहीं तीन दिल वाले हैं!और तेज दिमाग के तो वे हैं ही !

प्रयोगशालों के परिणाम बताते है कि ऑक्टोपस तेजी से सीखते हैं -किसी युक्ति को देख देख कर और अनुभव से सीख  लेते हैं -मतलब इनमें याददाश्त भी होती है .ऑक्टोपस की एक प्रजाति ने नारियल को इकठ्ठा करना और इसी से अपना शरण स्थल बनाने की कला सीखी -वैज्ञानिकों ने इस दास्तान की वीडियो बनायी ! दुश्मनों से अपनी रक्षा के लिए ये काली रोशनाई जैसा पदार्थ निकालते हैं जिसमें शिकारी अँधा सो हो जाता है और ये भाग निकलता है
.
जर्मनी का ऑक्टोपस पॉल निश्चय तौर पर अपने ट्रेनर को फालो कर रहा है .दरअसल फ़ुटबाल विजेता की भविष्यवाणी उसका ट्रेनर ही कर रहा है -ऑक्टोपस बस उसका छुपा कमांड फालो कर रहा होता है . मतलब इस सबके पीछे एक मानव बुद्धि काम कर रही है -एक शातिराना बुद्धि ! कौन जाने आज ओक्टो बाबा हार ही न जाय ? मगर मानव  बुद्धि कहती है कि स्पेन की टीम तगड़ी है ! ..वही तो आक्टो बाबा भी बोल रहे हैं !

Tuesday, 6 July 2010

वह ब्रह्माण्ड जो अनादि ,अखंड ,अभेद है तस्वीर में समा सकता है भला -आप ही बताईये न !

यूरोपीय अन्तरिक्ष एजेंसी के एक सैटलाईट ने अन्तरिक्ष की  एक खूबसूरत सूक्ष्मतरंगीय फोटो उतारी है जिसे वे ब्रह्माण्ड की तस्वीर बताकर पुलकित हो रहे हैं ....चित्र वाकई खूबसूरत है ..बीच की उज्जवल पट्टी आकाशगंगा है और किनारे किनारे पर का प्रकाश महाविस्फोट की आदि किरणे हैं -सचमुच कितना रोमांचक ! 

 सैटलाईट से प्राप्त यह चित्र मैक्स प्लांक वेधशाला द्वारा जारी किया गया है ...इसके लिए अभियान मई २००९ में शुरू  किया गया था.आप जानते हैं कि सूक्ष्म तरंगे दृश्य प्रकाश की तुलना में लम्बी  तरंगदैर्ध्यो किन्तु कम बारम्बारता लिए होती हैं ....यह पूरा मानचित्रण इन्ही तरंगो की ही सहायता से किया हुआ है .


आज सभी अखबारों में भी यह खबर सुर्ख़ियों में है .दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट जो मुझे पसंद आई ,जस की तस इस तरह है-
यह लगभग असंभव की तस्वीर सामने आने जैसा है। दावा है कि वैज्ञानिकों ने 'पूरे ब्रह्मांड' की तस्वीर खींचने में कामयाबी हासिल कर ली है। यह नहीं, इस तस्वीर में ब्रह्मांड में 'जन्मी' सबसे पुरानी रोशनी भी कैद है। इस असाधारण तस्वीर में उस 'बिग बैंग' के अवशेष भी छुपे हैं, जिससे 13.7 अरब साल पहले हमारा अंतरिक्ष अस्तित्व में आया था। 

यह तस्वीर यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के टेलीस्कोप 'प्लेंक' ने खींची है। इस टेलीस्कोप को 14 महीने पहले पृथ्वी से कई लाख मील दूर स्थित किया गया था। तब इस टेलीस्कोप ने अंतरिक्ष के एक-एक हिस्से की तस्वीरें खींचना शुरू की थी। जो अब मुकम्मल रूप में सामने है। पांच फीट लंबे इस टेलीस्कोप को बनाने में 16 साल लगे थे। प्लेंक के द्वारा खींची गई तस्वीर सोमवार को जारी की गई। 

इस तस्वीर से कुछ बहुत ही रोचक तथ्य सामने आए हैं। जिनमें एक यह है कि अपने जन्म के वक्त ब्रह्मांड का रंग बैंगनी था। वर्तमान में इस बैंगनी, हल्के बैंगनी, लाल और गहरे गुलाबी रंग के अंतरिक्ष के मध्य में एक सफेद चमकदार रोशनी की पंट्टी है, जिसे हम आकाशगंगा कहते हैं। जो हमारे सौरमंडल का 'घर' है। 

यूरोपीय स्पेस एजेंसी, ईएसए के डायरेक्टर ऑफ साइंस एंड रोबोटिक एक्सप्लोरेशन, डेविड साउथवुड ने कहा, 'यही वह पल है, जिसके लिए हमने प्लेंक का निर्माण किया था।' उल्लेखनीय है कि यह टेलीस्कोप बनाने में 90 करोड़ डॉलर [42 अरब रुपये] का खर्च आया था। उन्होंने कहा, 'हम इसके माध्यम से कोई जवाब नहीं दे रहे, बल्कि हम वैज्ञानिकों के लिए असीम संभावनाओं वाली जादुई दुनिया को खोल रहे हैं। इससे वे पता लगा सकेंगे कि हमारा ब्रह्मांड कैसे जन्मा और उसका उत्तरोत्तर विकास कैसे हुआ। कैसे वह सक्रिय है और उसकी गतिविधियां किस प्रकार की हैं।' 

वैसे प्लेंक का काम इस तस्वीर के साथ खत्म नहीं हुआ है। यह सिर्फ शुरुआत है और यह टेलीस्कोप 2012 तक अपना मिशन खत्म होने से पूर्व पूरे ब्रह्मांड की कुल चार तस्वीरें तैयार करेगा। उसकी आने वाली तस्वीरों में और बेहतर परिणामों की उम्मीद की  जा सकती है (आभार :दैनिक जागरण )
खबर के पीछे की खबर जैसा कि आप अब तक समझ गए होंगें यह है कि यह तस्वीर माईक्रोवेव से तैयार  एक आकाशीय तस्वीर है जिसे बढा चढ़ाकर अलंकारिक रूप से ब्रह्माण्ड की तस्वीर बाताया जा रहा है ...वह ब्रह्माण्ड  जो अनादि ,अखंड ,अभेद है तस्वीर में समा सकता है भला  -आप ही बताईये न !

Tuesday, 8 June 2010

आईये मनोविज्ञान और व्यवहार शास्त्र के फर्क को समझें!

मनोविज्ञान मानव व्यवहार का अध्ययन है-फ्रायड,कार्ल जुंग  से लेकर पैवलाव तक की व्याख्याओं से इसकी पीठिका तैयार हुई है ...किन्तु उत्तरोत्तर यह विचार बल पाने लगा कि चूंकि मनुष्य एक लम्बे जैवीय विकास का प्रतिफल रहा है अतः उसका अध्ययन एकदम से 'आइसोलेशन ' में नहीं किया जाना चाहिए ! जिन्हें मनोविज्ञान विषय का पल्लव ग्राही (सतही ) ज्ञान  है वे यही समझते रहते हैं कि मनोविज्ञान केवल और केवल मनुष्य के व्यवहार का पूरी पृथकता में किया जाने वाला अध्ययन है जबकि यह सही नहीं है .पैवलाव ने कुत्तों पर प्रयोग करके  कंडीशंड रिफ्लेक्स की अवधारणा को बहुत खूबसूरत तरीके से सामने लाया था .पैवलाव ने क्या किया था कि कुत्तों को उनका आहार देने के पहले घंटी बजाने का एक नियमित क्रम रखा .बाद में उन्होंने देखा कि मात्र घंटी बजाने से ही कुत्तों के मुंह में लार की काफी मात्रा इकट्ठी हो जाती है -इस तरह उन्होंने प्रथम उद्दीपन स्रोत और दूसरे उद्दीपन स्रोत में एक सम्बन्ध स्थापित करा दिया! अब कुत्तों के मुंह में लार लाने के लिए खाना दिखाने की जरूरत नहीं थी बस घंटी का बजना पर्याप्त  हो गया था ---उन्होंने और आगे के मनोविज्ञानियों ने  मनुष्य के संदर्भ में इस प्रयोग के निहितार्थों  और प्रेक्षणों से मजेदार बाते जानी, बताईं -जैसे किसी प्रेम पत्र पर अगर कोई सुगंध भी छिडका गया हो तो वर्षों के अंतराल पर भी मात्र उस सुगंध के सम्पर्क से प्रेम पत्र का या कम से कम प्रेमी /प्रेमिका का चेहरा याद हो आएगा ! यह दो उद्दीपनो के आपसी जुड़ाव के  फलस्वरूप ही है -प्राथमिक  स्टिमुलस द्वीतीय स्टिमुलास से मानस में  जुड़ गया ....

जब मनुष्य के कई मूल व्यवहारों के उदगम और विकास की बातें शुरू हुईं तो उत्तरोत्तर यही सहमति बनी कि कई तरह के व्यवहार प्रतिरूपों के अध्ययन के लिए मनुष्य के वैकासिक अतीत के वर्तमान प्रतिनिधि जीवों -कपि वानरों का अध्ययन भी जरूरी है !

और तब एक नया शास्त्र उभरा -ईथोलोजी यानि व्यवहार शास्त्र जहाँ मनुष्य व्यवहार  का अध्ययन भी पशुओं के साथ और सापेक्ष ही किया जाना आरम्भ हुआ और आज यह एक समादृत अध्ययन क्षेत्र है ! इसके सबसे बड़े चैम्पियन रहे कोनरेड लोरेन्ज ,कार्ल वान फ़्रिश और निको टिनबेर्जेंन जिन्हें उनके जंतु व्यवहार के अतुलनीय योगदान  के लिए नोबेल से सम्मानित किया गया -आज के प्रसिद्ध व्यवहारविद  डेज्मांड मोरिस निको टिनबरजेंन के ही शोध छात्र रहे ...आज मनोविज्ञानी अपने अध्ययन और निष्कर्षों में व्यवहार विदों के नजरिये को सामाविष्ट करते हैं -क्योंकि मूल स्थापना यही है कि मनुष्य एक पशु ही है -हाँ एक सुसंस्कृत पशु ! मगर उसके पशुवत आचार अभी कायम हैं बस संस्कृति का  आवरण उस  पर चढ़ गया है ! लेकिन वह स्किन डीप  भी नहीं है ....हमारे समाज के कितने ही सुनहले नियम उसकी इसी पशु वृत्ति को नियमित करने में लगे हैं क्योकि उनकी उपेक्षा /अनदेखी नहीं की जा सकती ! 

अब जैसे सहज बोध -इंस्टिंक्ट को ले ...ज्यादातर जानवरों में यह बुद्धिरहित व्यवहार है -एक पक्षी ने समुद्र से ऊपर गुजरते हुए उस मछली के मुंह में चारा डाल दिया जो क्षण भर के लिए अपना मुंह हवा लेने के लिए खोल कर ऊपर उछल आई थी-चिड़िया के लिए यह उसके चिचियाते बच्चों की चोंच सरीखा लगा बस उसने चारा वहां डाल दिया -यह  बुद्धि विचार रहितसहज बोधगत व्यवहार है .बिल्लियों में शिकार की प्रवृत्ति सहज बोध है मगर हाँ उनकी माँ इस बोध को उन्हें सिखाकर और भी पैना ,सटीक ,त्रुटिहीन बना देती है ....मनुष्य में सहज बोध के भी अनेक उदाहरण हैं -नवजात बच्चा आँखों को देखकर मुस्कुरा पड़ता है -आँखों के चित्र को भी देखकर -यह वह अपनी सुरक्षा पाने की युक्ति में कुदरती तौर पर करता है -ताकि लोग उसकी देखभाल में लगे रहें! जो नवजात जितना ही मुस्कुराएगा उतना ही लाड प्यार और सुरक्षा पायेगा!  ---मनुष्य का नारी स्तन के अग्रकों के प्रति भी सहसा आकर्षित होना सहज बोध है ....विदेशों के कितने ही टोपलेस माहिला बैरा रेस्टोरेंट मे उन्हें ग्राहकों से अपने स्तन अग्रकों को बचाए रखने की बाकायदा  ट्रेनिंग दी जाती है -सहज बोध एक बुद्धिरहित आवेगपूर्ण व्यवहार है .

 चिड़िया ने मछली का मुंह खुला देखा बस आव न देखा ताव चारा उसके मुंह में डाल दिया -बुरा हो इस सहज बोध व्यवहार का जिससे चिड़िया के बच्चे चारे से वंचित हो रहे

खेदजनक यह है कि   बहुत से लोग इन अधुनातन ज्ञान विज्ञान की प्रवृत्तियों से  आज के इस सूचना प्रधान युग में भी अलग थलग बने हुए हैं जिनमे या तो उनका पूर्वाग्रह है या फिर वे अच्छे अध्येता नहीं है .ऐसे लोग समाज के लिए बहुत हानिकर हो सकते हैं -ज्ञान गंगा को कलुषित करते हैं और भावी पीढ़ियों को भी गुमराह कर सकते हैं -इनसे सावधान रहने की जरूरत है -एक विनम्र और गंभीर अध्येता इनसे  लाख गुना  बेहतर है! पुरनियों ने कह ही रखा है अधजल गगरी छलकत जाय !
इस विषय और भी कुछ कुछ अंतराल पर यहाँ मिलता रहेगा  आपको ! यह विषय केवल एक ब्लॉग पोस्ट में समाहित नहीं किया जा सकता है ! मगर यह परिचय जरूरी था ....विषय के सही दिशा देने के लिए ! 

आप को कुछ कहना है ? कोई क्वेरी ?


Wednesday, 26 May 2010

जिन्हें आपके सहानुभूति की दरकार है!

इन दिनों पेटा- 'पीपल फार द एथिकल ट्रीटमेंट्स ऑफ़ एनिमल्स ' जीव जंतुओं के प्रति मानवीय सहानुभूति को जुटाने में एक रायशुमारी में लागा हुआ है -मेरे पास  भी उनकी चिट्ठी आई है .दुनिया भर में वैज्ञानिक प्रयोगों के नाम पर  ,सौन्दर्य प्रसाधनों की जाँच के नाम पर और शिकार की प्रवृत्ति के शमन हेतु  जानवरों पर आज के कथित सभ्य मनुष्य द्वारा भी कम जोर जुल्म नहीं ढाए जा रहे हैं .ब्रिटेन में लोमड़ी का शिकार ,जापान द्वारा व्हेल , औए सील जैसे स्तनपोषियों का कत्ले आम ऐसी ही नृशंस घटनाएँ हैं .आज भी काम काज के सिलसिले पर जानवरों के प्रति सहानुभूति न दिखाकर उनसे अमानवीयता की बर्बर सीमा तक जाकर कार्य लिया जाता है -बैलगाड़ियों और भैसागाडियों को देखकर आपको ऐसा जरूर लगा होगा.


कई लोग देखा देखी जानवरों को पाल तो लेते हैं मगर उनका ध्यान नहीं रखते ..कई पालतू कुत्ते भी बदहाली की दशा में दिखते हैं .यह तो अच्छा हुआ कि अब ज्यादातर बंदूकों की जगह जानवरों को कैमरों से शूट किया जा रहा है मगर फिर भी इनके प्रति जन जागरूकता और सहानुभूति के लिए पता निरंतर प्रयास में जुटी एक वैश्विक चैरिटी संस्थान है .मैंने इसका सदस्य बनने का निर्णय लिया है और एक हजार रुपये की दान राशि इन्हें भेज रहा हूँ -इसके एवज में ये अपनी पत्रिका की एक वर्ष की सदस्यता भी देंगें .

मेरी सिफारिश है आप भी इस अभियान से जुड़े और जानवरों के प्रति सहानुभूति का जज्बा कायम करने में अपना सहयोग दें! मगर एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि पेटा द्वारा जानवरों के प्रति नैतिकता की दुहाई को लेकर ऐसे चित्रों का प्रमोशन कही आपत्तिजनक तो नहीं ?