Friday, 3 December 2010

विज्ञान संचार के पांच सौ देशी विदेशी वैज्ञानिकों का भारत में जमावड़ा

आम जनता में  वैज्ञानिक जानकारियों  की पहुँच  और उनमें वैज्ञानिक नजरिये की दशा  और दिशा पर वैचारिक मंथन के लिए पूरी दुनिया के पचास से भी अधिक देशों के लगभग पांच सौ वैज्ञानिकों का जमावड़ा भारत में हो रहा है .विज्ञान और प्रौद्योगिकी की जन समझ(पब्लिक अंडरस्टैंडिंग आफ साईंस एंड टेक्नोलोजी )  पर भारत में आयोजित हो रहे ग्यारहवें अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन को भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अधीन राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद् (नेशनल  काउन्सिल फार साईंस एंड टेक्नोलोजी कम्युनिकेशन ) द्वारा दिनांक  चार  दिसंबर से ग्यारह  दिसम्बर २०१० के मध्य आयोजित किया जा रहा है .इस आयोजन के संयोजक डॉ .मनोज पटैरिया ने बताया की यह अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन आरम्भिक ,मुख्य  और आख़िरी इन तीन चरणों में खजुराहो ,दिल्ली और जयपुर  में संयोजित किया गया है जिसमें दिनांक ४  से ५ दिसंबर  खजुराहो ,६ से ९ नई दिल्ली और १०  से ११ जयपुर में विभिन्न कार्यक्रम और विचार  मंथन सत्र आयोजित होंगें !

डॉ. पटैरिया ने बताया कि   नेशनल एग्रीकल्चरल साईंस काम्प्लेक्स ,पूसा नई दिल्ली मुख्य सम्मलेन का आयोजन स्थल होगा जहाँ भारत सरकार के माननीय मंत्री ,विज्ञान और प्रौद्योगिकी कपिल सिबल की अध्यक्षता में  ७ दिसम्बर को  आहूत उद्घाटन सत्र में पूर्व राष्ट्रपति डॉ पी जे अब्दुल कलाम का मुख्य संबोधन होगा और विषय प्रवर्तन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. टी रामासामी करेगें!  भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार और एन सी एस टी सी के मुखिया डॉ. कमल कान्त द्विवेदी स्व्वागत संबोधन करेंगे !

नई दिल्ली में आयोजित होने वाले पब्लिक कम्युनिकेशन आफ साईंस एंड टेकनलोजी  सम्मलेन में देश विदेश के प्रख्यात विज्ञान संचारक और विज्ञान और प्रौद्योगिकी की जन समझ  के क्षेत्र में शोधरत वैज्ञानिक अपने शोध पत्र पढ़ेगें और सम्बन्धित पहलुओं की विवेचना हेतु  विचार विनिमय भी करेगें .आयोजित विभिन्न  सत्रों में विज्ञान संचार के वैश्विक परिदृश्य ,ज्ञान की अल्पज्ञता और बहुलता के संतुलन ,वैज्ञानिक साक्षरता ,वैज्ञानिक जन जागरूकता ,विज्ञान संचार के जनतांत्रिक पहलुओं पर विस्तृत विचार विमर्श के साथ ही विज्ञान संचार को एक पाठ्यक्रम विषय के रूप में प्रतिष्ठा दिलाये जाने के मुद्दे पर  मंत्रणा होगी ..  सम्मलेन  की शुरुआत इस अवसर पर  खजुराहो में  आयोजित दसवें विज्ञान संचार कांग्रेस के थीम -'टुवर्ड्स अ सायिन्टिफिकली अवेयर एंड अट्टीच्यूडनली रेशनल वर्ल्ड 'पर प्रतिभागियों के विचार मंथन से होगी और  जयपुर में आयोजित कार्यशिविर, 'ब्रिंगिंग साईंटिस्टस   एंड मीडिया टूगेदर  फार बेटर साईंस कम्यूनिकेशन 'से इस अभूतपूर्व सम्मलेन का समापन होगा .

Saturday, 16 October 2010

दर्शन कीजिये नीलकंठ का ,अपना दिन शुभ कीजिये!


आज विजयादशमी के दिन नीलकंठ के दर्शन की परम्परा रही है. क्यूँकि राम के आराध्य शिव हैं फिर  इस खुशी के मौके पर उनके रूप प्रतीति का दर्शन क्यूँ न किया जाय ? एक पक्षी का नाम ही नीलकंठ पड़ गया -अपने पंख पर नीले रंग की अनुपम छटा के कारण यह पक्षी जिसे अंगरेजी में Indian Roller (Coracias benghalensis), या  Blue Jay  कहते हैं , शिव का ही प्रतिरूप बन  गया है !आप इस बेहद खूबसूरत पक्षी को बाग़ बगीचों ,वन उपवनों ,टेलीफोन ,बिजली के तारों पर बैठे और सहसा जमीन पर आ पहुँच कीट पतंगों को  चोंच में भर ले उड़ने और उनके हवाई नाश्ते के दृश्य को देख सकते हैं ..अगर आज यह आपके आसपास न दिखे तो दुखी मत होईये ऊपर  का चित्र देखकर रस्म अदायगी तो कर ही लीजिये !

राहत की बात यह है कि अभी भी यह पक्षी खात्मे की राह  पर नहीं है मगर इसका दिखना कुछ कम जरुर हुआ है .भारतीय महाद्वीप में यह हिमालय से लेकर श्रीलंका ,पाकिस्तान आदि सभी जगह मिलता है .विकीपीडिया के मुताबिक़ यह बिहार ,कर्नाटक ,उडीसा और आन्ध्रप्रदेश का राज्य पक्षी है .

 आज नीलकंठ देखकर अपना दिन शुभ कीजिये मगर इसके संरक्षण में भी आप भी कुछ भूमिका निभा सकें तब  बात बने

Friday, 3 September 2010

कामनवेल्थ गेम्स के शुभंकर के नाम का लफडा

कामनवेल्थ खेल -२०१० का शुभंकर एक बाघ का शावक है जिसे शेरा नामकरण मिला है -यह नामकरण उसी महाभूल का परिणाम है जिसके चलते यहाँ शेर और बाघ में देश की अधिकाँश जानता अपने देश के इन बिलावों की सही पहचान नहीं कर पाती -पर दोष उनका नहीं  है दोष हमारे संचार तंत्र और शीर्ष पर बैठे करता धर्ताओं का है जिन्हें शायद खुद शेर और बाघ का फर्क नहीं पता ..फिर अक्षम्य भूल हो रही है और बाघ के बच्चे को शेरा नाम देकर शेर और बाघ के पहचान को भ्रामक बनाया  जा रहा है -गनीमत बस इतनी है कि टाईगर के बच्चे को चीता नहीं कह दिया गया जैसा कि अभी कई समाचार पत्र अपनी रिपोर्टों में पकड़ी गयी बाघ की खाल को चीते का खाल लिख देते हैं .ऐसे ही मीडिया के माहानुभावों ने तमिल टाईगर्स का नुवाद तमिल चीते कर डाला जो अब रूढ़ हो गया है जबकि सही अनुवाद होना था तमिल व्याघ्र .

 चेहरा मोहरा बाघ का और नाम शेरा ?

कामनवेल्थ के व्याघ्र शावक शुभंकर के शेरा नामकरण से फिर ऐसी भ्रम पूर्ण स्थिति उत्पन्न होने जा रही है ..शेरा नाम ही रखना था तो भारत में लुप्त हो रहे एशियाई सिंह के शावक को ही लाईम लाईट में लाते -उसे शेरा कहते तो फिर कोई बात न थी ...मेरी सम्बन्धित लोगों से पुरजोर है कि इस नाम को बदल कर कोई और नाम रख लें क्योंकि अब शुभंकर तो बदलना अशुभ हो जायेगा और यह संभव भी नहीं है फिर किसी दूसरे नाम की तलाश यथाशीघ्र हो जानी चाहिए ..
मुझे दुःख है कि सीधे प्रधान मंत्री कार्यालय द्वारा बाघ को बचाए जाने के कार्य की समीक्षा हो रही है तो फिर यह  चेहरा और बाघ का और नाम शेर का गड़बड़झाला क्यों ? आम जनता तो इससे भ्रमित ही होगी! 

क्या आप शेरा के स्थान पर कोई नया नाम सुझायेगें ?  बाघा.... बाघू .....या फिर एकदम से अलग कोई नाम ...
आभार :प्रियेषा मिश्रा ,दिल्ली विश्वविद्यालय जिन्होंने मेरा ध्यान इस विसंगति की ओर आकर्षित किया

Monday, 23 August 2010

सुअरा की विदाई!

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि सुअरा ,अरे वही स्वाईंन  फ़्लू H1N1 के दिन लद गए ..अब यह विश्व व्यापी नहीं रहा .निदेशक मार्गरेट चैन का कहना है कि अब पूरी दुनिया ' पोस्ट पैन्ड़ेमिक पीरियड ' से गुजर रही  है ..अब यह यत्र तत्र मात्र सीजनल बीमारी होकर रह गयी है .मनुष्य की शारीरिक प्रतिरक्षा ने इसे धता बता दिया है .फिर भी  यह अभी खतरे के निशान ५ पर है ,जबकि यह सबसे खतरनाक स्तर पर जा पहुंचा था .अब इसकी हैसियत केवल सीजनल वाईरस की रह गयी है .मगर नेस्तनाबूद नहीं हुआ है यह .

तो क्या दुनिया भर में मची उहापोह और वैक्सीन तथा टामीफ्लू दवा के लिए मची हड़बोंग फिजूल ही थी ? विश्व स्वास्थ्य संगठन के अधिकारी ऐसा नहीं मानते -उनका कहना है की मानव स्वास्थ्य के लिए ज़रा भी चूक बड़ी भयावह हो सकती है .हम इन मामलों को ऐसे ही नहीं ले सकते .निदेशक चैन का कहना है कि हम भाग्यशाली रहे ..एच १ एन १ विषाणु बहुत आक्रामक नहीं हुआ ...यह अच्छा हुआ की यह विषाणु नए रूपों में उत्परिवर्तित नहीं हुआ और अपने एकमात्र इलाज टामी फ्लू /ओसेल्टामिविर के प्रति सहनशीलता नहीं विकसित कर पाया नहीं तो स्थिति निश्चित रूप से भयावह हो गयी होती .

अजब संयोग है की यह घोषणा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तब हो रही है जब भारत में इस रोग के लक्षण कहीं कहीं देखे जा रहे हैं ...हमें याद रखना चाहिये की विदाई के बाद जैसे कुछ बिन बुलाये मेहमानों के फिर आ धमकने की असहज संभावनाएं बनी रहती हैं वैसे ही इन रोगाणुओं की भी वापसी संभव है ..इनकी और से हमें हमेशा सतर्क और  सजग रहना चाहिए ..

Tuesday, 27 July 2010

यौनिक रिश्तों की पड़ताल के कुछ नए परिणाम !

टाइम पत्रिका का ताजा एशियन संस्करण एक लीड स्टोरी समेटे  हुए हैं .कौगर (cougar sex ) यौन सम्बन्ध पर .अब कौगर क्या है आप खुद क्लिक कर पढ़ें .भारतीय समाज यौन मुद्दों पर खुलकर बात करने से कतराता है ,हमारे संस्कार ,हमारे कतिपय सुनहले नियम इसका प्रतिषेध करते हैं .और एक दृष्टि से यह उचित भी है .किन्तु जब ऐसी वर्जनाएं यौन कुंठाओं को जन्म देने लगे तो हमें कुछ स्वच्छन्दता लेनी चाहिए  -और वैज्ञानिक निष्कर्षों के प्रति एक खुली दृष्टि रखनी चाहिए -विचार विमर्श होते रहना चाहिए नहीं तो खाप पंचायतों जैसी हठधर्मिता ,भयावह सामाजिक स्थितियां भी मुखरित हो उठती हैं .

चलिए आज के मुद्दे पर विचार कर लिया जाय .नए अध्ययन  के मुताबिक़ जहाँ टीन एजर्स युवकों में यौन इच्छा प्रबल होती है   वहीं   मध्य  उम्र की महिलाओं में काम भावना अधिक पाई गयी है .टेक्सास विश्वविद्यालय के यौनिक मामलों के विशेषज्ञ डेविड बास और उनके तीन छात्रों के नए शोध अध्ययन में पाया गया है कि ३०  वर्ष से ऊपर की किन्तु ४७ से कम  उम्र की महिलाओं में यौन भावना की तीव्रता होती है .उनकी यौन सबंध बनाने की फ्रीक्वेन्सी  भी १८ से २६ वर्ष की युवतियों  से अधिक होती है .यही वह तबका है जिसे यौनिक सम्बन्धों में ज्यादा लिप्त पाया गया है यहाँ तक कि आकस्मिक और एक रात्रि की  घनिष्टता तक में भी ये अधिक स्वच्छंद  हैं.

इसके उलट पुरुषों में यौनिक सक्रियता टीन एजेर्स में सबसे अधिक होती है और फिर एक स्थायित्व पा लेती है और जीवन भर उसी पर थमी रहती है .७० वर्ष के ऊपर तक के पुरुषों में यौनिक सक्रियता एक आम बात है  जबकि रजो निवृत्ति के बाद स्त्रियों में यौन रुझान घटने लगती है .तो आखिर स्त्रियाँ अपने टीन एज और  बीसोत्तरी वर्षों के उपरान्त के  मध्यवर्ती उम्र में ही इतनी यौन सक्रिय क्यों होती हैं ? ऐसा इसलिए है कि जैसे ही उनकी रजोनिवृत्ति नजदीक आने लगती है उनकी सगर्भता की संभावनाएं न्यून होने लगती हैं  और इसलिए नैसर्गिक प्रेरणा से वे ज्यादा  यौन सम्बन्ध के लिए तत्पर रहती  हैं ...

चूंकि  टीन अवस्था वैसे ही काफी उर्वर होती है इस काल में सगर्भता  के लिए यौनिक सम्बन्ध बनाने की अतिरिक्त तत्परता की आवश्यकता ही नहीं रहती ..ज्यादातर अवांछित  गर्भधारण  टीनएजर्स में ही देखा जाता है इसलिए उन्हें सावधान भी रहना चाहिए .  .मगर उम्र के मध्यकाल में उन्हें खुद  सक्रिय होना होता है . उम्र की यह अवधि  २७ से ४७ के वर्ष के बीच पाई गयी है .पाया गया कि १८ से २६ और पुनः ४७ से आगे की उम्र में स्त्रियों में यौन संपर्कों मे खास रूचि नहीं रहती ..यह दोनों अवधियाँ गर्भ धारण की दृष्टि से विशेष है -एक में गर्भ धारण सहज ही हो जाता  है जबकि बाद में इसकी नौबत ही नहीं रह जाती ..अतः  २७ से ४७ वर्ष की उम्र ऐसी होती है कि इसमें उनके स्थायी सहचर/पति  से दीगर अस्थायी सम्बन्धों की संभावनाएं बढी हुई होती हैं .
 डेविड बास ने एक  चर्चित  पुस्तक  भी लिखी  है -
इन निष्कर्षों के भारतीय निहितार्थों पर विचार आमंत्रित हैं !


Saturday, 24 July 2010

सौन्दर्य प्रसाधन प्रेमी सुमुखियों के लिए आख़िरी चेतावनी ...

यह  खबर विश्वप्रसिद्ध पत्रिका टाइम में पढी  तो सोचा ब्लॉग सुंदरियों से साझा कर लूं -क्योंकि मैं जानता हूँ वे कोई न कोई सौन्दर्य प्रसाधन जरूर इस्तेमाल में लाती हैं ...मेरी एक मित्र तो लिपस्टिक की ही बड़ी शौक़ीन हैं .एक बार बहुत आग्रह पर न जाने कौन कौन सा ब्रांड शरमा शरमा के बताने लगीं -मैंने अपनी डायरी में नोट कर रखा है ..बहरहाल जिन्हें अंगरेजी से परहेज नहीं है वे सीधे टाईम पत्रिका पर ही अपना समय जायज कर सकती है और जिन्हें परहेज है वे मेरे साथ ही आगे बढ़ती रहें ..और आप पाने प्रिय जन को सचेत कर कर सकते हैं ,जैसा मैं कर रहा हूँ ,उनके लिए और आप सभी  के लिए भी !



यह खुलासा दो पत्रकारों ने अपने शोध की बदौलत किया -जब उन्हें यह लगा कि अरबों की इंडस्ट्री कास्मेटिक्स के नाम  पर लोगों को जहर बेंच रही है तो उन्होंने अपने शोध को एक किताब में प्रकाशित कर दिया -नो मोर डर्टी लुक्स ! इसमें कास्मेटिक्स के विषैले तत्वों के बारे में तो चेताया ही गया है ,साथ ही उनके  विकल्पों को भी सुझाया गया है .
बाल
आपके बाल कितने अच्छे हैं ना अक्सर याद आ जाती है  -वह लम्बी केशराशि ! 
मगर ध्यान दें ,कई शैम्पू और कंडीशनर सल्फेट्स और पैराबेंस जैसे  प्रिजर्वेटिव्  लिए होते हैं जिससे शरीर का  हार्मोन संतुलन गडमड हो सकता है .
सलाह -आर्गेनिक शैम्पू और कंडीशनर्स इस्तेमाल में लायें या फिर बे किंगसोडा और मायो (mayo ) मिलाकर अपना खुद शैम्पू तैयार कर लें .
आँखें
बस आपकी उन मदमाती आंखों के लिए -
मस्कारा पारे का मिश्रण लिए हो सकता है जो न्यूरोटाक्सिक   है मतलब दिमाग के लिए ....समझ रही हैं ना ? कहीं इसलिए ही तो हरवक्त भुनभुनाई हुई तो नहीं रहतीं आप ...और हाँ इसमें कोलतार जो एक कैंसरकारी तत्व है शामिल है  ...और आई शैडो में १,४ डाई आक्सेन होता है ,यह भी कैंसरकारी रसायन है .
हल -केवल एक्टीवेटेड चारकोल ही इस्तेमाल में लायें या स्वच्छता के साथ पुरानी विधि से बना काजल ही पर्याप्त है ..
त्वचा
इन दिनों बहुत से मायस्चरायिजर बाजार में हैं जिसमें पैराबेंस और दूसरे प्रिजर्वेटिव  होते हैं और कई सनस्क्रीन लोशन आक्सी  बेन्जोन लिए हो सकते हैं और ये हारमोन असंतुलन पैदा कर सकते हैं .
हल -एक्स्ट्रा -विरिजिन आलिव आयल एक कुदरती मायस्चरायिज़र है ,इसे इस्तेमाल में लायें .
होठ
हे ,आप जो दोनों लिपस्टिक बदल बदल कर लगाती हैं उनमें सीसा मिला होता है और यह भी एक न्यूरो टाक्सिन है (तभी तो मैं कहूं इस गुस्से का कारण क्या है !) .साथ ही इनमें कैंसर कारी तत्व भी होते हैं ...
हल -अब कई आर्गेनिक लिपस्टिक अ रहे हैं -RMS Beauty Lip2Cheek ढूंढें (मैं मदद करुँ ? ) -यह एक  ब्लश भी है -

 आपका सौन्दर्य मुबारक -चश्में बद्दूर !

Tuesday, 20 July 2010

एक मछली जो वैज्ञानिको को छकाती रहती है!

आज बनारस के दैनिक जागरण ने एक सचित्र खबर प्रमुखता से छापी है जिसमें एक मछली के आसमान से बरसात के साथ टपक पड़ने की खबर है.मछलियों की बरसात की ख़बरें पहले भी सुर्खियाँ बनती रही  हैं ,पूरी दुनिया में कहीं न कहीं से मछलियों के साथ ही दूसरे जीव  जंतुओं  की बरसात होने के अनेक समाचार हैं .बनारस में कथित रूप से आसमान से टपकी मछली कवई मछली है जो पहले भी वैज्ञानिकों का सर चकराने देने के लिए कुख्यात रही है .

यह कभी पेड़ पर मिलती है तो जमीन पर चहलकदमी करते हुए दिखी है ...इसका इसलिए ही एक नाम क्लायिम्बिन्ग पर्च है .अब इस बार यह बरसात की बूंदों के साथ जमीन पर आ धमकी है यहाँ सारनाथ में जैसा कि कई चश्मदीदों का कहना है. .वैज्ञानिक संकल्पनाएँ करते /देते थक से गए हैं -यह मानसूनी /चक्रवाती हवाओं के चलते पहले बादलों के संग जा मिली और फिर बरस पडी या किसी पक्षी के चोंच से छूट कर धडाम हुई -अब किसी ने यह सब देखा नहीं -बस घनघोर बारिस के बाद यह जमीन पर उछलती हुई दिखी ...बस तमाशबीनो की भीड़ आ  जुटी  .
 दंतकथाओं की जनक कवई (अनाबास ) मछली

यह भी होता है कि भरपूर वर्षा होने पर  जलराशि  नदी नालों की ओर उमड़ पड़ती है और मछलियाँ  चूंकि पानी की धारा के विपरीत चलती है ये नदी नालों से निकल कर   उथली जगहों पर आ जाती हैं .और बरसात के बाद लोग बाहर निकलते ही इनका दर्शन कर आश्चर्य में पड़ जाते हैं और तरह तरह के कयास लगाने लग जाते हैं .सारनाथ में सड़क पर दिखी मछली की यही कहानी लगती है .

यह अनाबस मछली है जो अपने मजबूत पेक्टोरल फिन से जमीन पर घिसट घिसट कार आगे बढ सकती है ...चांदनी रातों में इसे एक तालाब से दूसरे तालाब पर झुण्ड में इसे  जाते देखे जाने की रपटे हैं !