Tuesday, 7 April 2009

पुरूष पर्यवेक्षण की अगली चाल !



धावक की दौड़ चाल -स्प्रिंट ! ( ऐविअरी )
बात पुरूष- चालों की चल रही थी ...मैं फिर यह स्पष्ट कर दूँ कि ऐसा नहीं है कि जिन चाल प्रारूपों की चर्चा यहाँ हो रही है उन पर महज पुरुषों का ही एकाधिकार है -मगर पुरूष पर्यवेक्षण में नारी की ख़ास चालों के जिक्र का औचत्य नही इसलिए उनकी खास चालों का जिक्र भी यहाँ नही है ! अब आईये गत चाल से आगे चलें !
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१८ -अकडू चाल ( the strut ) -अति आत्मविश्वास की अकड़ भरी चाल -इठलाने का प्रदर्शन !
१९ -अति अकडू चाल (the swagger ) -अकडू पॅन की पराकाष्ठा दिखाती चाल -चाल से ही शेखी बघारना .
२०- अकडू मगर कुछ दोस्तानी चाल (the roll )-अकड़पन तो है मगर लहजा दोस्ताना .रास्ते में कोई मिला तो उसका रुक कर /मुड कर हालचाल भी पूछने की सदाशयता का प्रदर्शन !
२१-सभ्रांत चाल -(the stride ) -सभ्रांत ,ऊंचे तबके अभिजात्य वर्ग की ख़ास चाल -लंबे डग /कदम की चाल ..अब महिलाओं की भी पसंद !
२२- धब धब चाल ( the tramp )-कोल्हू के बैल वाली चाल मगर डग भरना जल्दी जल्दी !
२३-कमजोर की चाल ( the lope ) -ऐसे कमजोर सीकियाँ पहलवान की चाल जिसे चलते हुए देखकर ऐसा भान हो कि यह बन्दा अगर चलता ही नही गया तो शरीर को संभाल नही पायेगा और आगे भहरा उठेगा !
२४-चौंक चाल (the dart ) -चौंक कर खिसक चलने की चाल -स्त्रियों में एक डरी सहमी चाल ,तेज और व्यग्र ,इधर जायं या उधर जाय -अनिर्णय की चाल !
२५- पैर घसीटा चाल ( the slog ) -लम्बी दूरी की तेज चाल मगर पावों को लगभग घसीटते हुए से !
२६-उतावली चाल ( the hurry) - उतावले पॅन और हडबडी की चाल जैसे कोई तात्कालिक काम आ पड़ा हो -दौड़ पड़ने के ठीक पहले जैसी चाल !
२७-दौड़ धूप की चाल (the bustle ) -तीव्रता और व्यग्रता लिए दौड़ भाग की चाल
२८-उछल कूद की चाल (the prance ) -नाचने कूदने फांदने की चंचल चाल -बच्चे किशोरों की ।
२९- सेहत की चाल (the jog )-सेहत बनाने की नीयत से सुबह सुबह की मंथर दौड़ ! मगर सावधान बड़ी उम्र के लोग बिना डाक्टर की सलाह के इसे न अपनाएं .कहीं लेने के देने ना पड़ जायं -सेहत सुधरने के बजाय बिगड़ ना जाय ।
३०-चल कदम दर कदम, चाल -(the march ) -मिलिटरी स्टाईल की चाल -तेज कदम ,कदमके फासले लंबे ,हाथों का आगे पीछे होते रहना ।
३१ -हंस कदम चाल -( the goose step ) मार्च करने की ऊपरी स्टाईल का ही एक नाटकीय रूप -कैसे परेडों के दौरान पैर बिल्कुल सख्त -लम्बवत /सीधा रखते हुए आगे बढ़ते हैं !
३२ -दौड़ चाल ( the run ) -शिकार के लिए दौड़ पड़ने की याद दिलाती चाल -आगे झुक कर पैरों को जमीन पर मजबूती से टिका कर आगे की ओर उछलते हुए दौड़ लगा देना .चहलकदमी में जहाँ किसी भी समय जहाँ दोनों पैर अथवा एक पैर जमीन पर होता है -इस दौड़ चाल में महज एक पैर जमीन पर अथवा कोई भी पैर जमीन पर नही हो सकते !
३३- कम दूरी की दौड़ ( the sprint ) -प्रति सेकेण्ड ४-५ पग की बहुत तेज चाल की छोटी दौड़ ! इसमें जमीन पर एंडी नही पड़ती बस पैर का पंजा जमीन पर आता रहता है !

तो ये रहीं वे चालें जिनमें अधिकाँश का हम अपने जीवन में स्वेच्छा और भावनात्मक कारणों से या सामाजिक जरूरतों के मुताबिक उपयोग करते हैं !

टांगों की कुछ संकेत भागिमायें भी हैं .जैसे जंघे पर ताली का प्रहार -ताल ठोकना ! यह विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में चुनौती देने ,ललकारने ( महाभारत के लगभग अवसान पर तालाब के भीतर छुपे दुर्योधन को बाहर निकालने के उपक्रम में उसे उकसाने के लिए भीम बार बार ताल ठोकते हैं ) ,आश्चर्य और हर्ष ,शर्म ,दुःख और अति आनंद के लिए इस भंगिमा को अपनाया जाता है !

और एक भंगिमा है पैरों को टेकने की -घुटने की -एक पैर का घुटना टेंकना या फिर दोनों पैर के घुटने टेंक देना -यह स्वामित्व स्वीकारने की भंगिमा है । मगर दोनों पैर अब असीम /सर्वोच्च सत्ता के सामने ही टेंकने का रिवाज है !

Friday, 3 April 2009

पुरूष पर्यवेक्षण - किसिम किसिम की चालें !

एक मित्र काफी दिनों बाद दिखे -सहज ही मैंने पूंछ लिया -क्या हाल चाल हैं आपके ? जवाब था हाल तो ठीक है पर चाल कुछ गड़बड़ है ! बात मजाक में कही गयी थी आयी गयी हो गयी ! पर पुरूष पर्यवेक्षण के सिलसिले में जब मुझे टांगों पर नजर गडानी पडी तो मैं किसिम किसिम की चालों को देख कर हैरान हो गया हूँ ! आप भी लुत्फ़ उठाईये ! और हाँ पुरूष अंग प्रत्यंगों के बहाने यह चर्चा प्रकारांतर से मानव व्यवहार की भी तो है -केवल स्थूल अंगों की ही नहीं ! यह बात इस श्रृंखला और पूर्व वर्णित नारी नख शिख सौन्दर्य पर समान रूप से लागू है -पुराने और नियमित पाठक इस तथ्य की तस्दीक़ करेंगें !

व्यवहार विज्ञानियों -खासकर डेज्मांड मोरिस ने मनुष्य प्रजाति के ३६ तरह की चालों का वर्णन किया है इसमें अधिकाँश तो नर नारी दोनों के लिए समान हैं मगर कुछ में दोनों के अन्तर साफ़ दीखते हैं ! तो यहाँ महज "तोबा ये मतवाली चाल " के विवरणों से न चाहते हुए भी किनारा करते हुए केवल पुरूष चालों या फिर नर नारी दोनों में समान चालों की ही चर्चा की जा रही है !

कदमताल और चहलकदमी में ये टांगें ही जलवाफरोश होती हैं ! चार्ली चैपलिन से लेकर अपने सदाबहार देवानद की चाल के तो चर्चे रहे हैं ! कुछ चालों की हालचाल यूँ है -
१-चहलकदमी (the stroll ) -धीमी चाल -सुबह शाम की चहलकदमी -प्रति पग /कदम एक सेकेण्ड की गति से
२-मंथर गति चाल (the amble)- निरुदेश्य टहलना (लौकिक हिन्दी शब्द -भड़छना ) निश्चिंत और आराम से -कोई ख़ास दिशा नहीं -इधर उधर !
३-मटरगश्ती (the sunter) -फुरसतिया चाल ! दिखावटी मस्त चाल -हम फुरसत में हैं !
४-आवारागर्दी (the dwadle )- समय गवाने -आवारगी की चाल -धीमी मंथर गति !
५-कोल्हू के बैल की चाल (the plod ) -ऐसी चाल जिससे खटने -किसी काम में पिसते रहने का भान -भारी मन से चलते रहना -आहिस्ता आहिस्ता ! जैसे कोई सीधी चढाई चढ़ रहे हों !
६-निढाल चाल (the slouch ) -सेवकों और अनुचरों के स्थायी भाव की चाल -कुछ पस्त और ढीली -थके मांदे होने का अहसास !
७-थुल थुल चाल (the waddle) -मोंटे तुंदियल लोगों की थुल थुल चाल जैसे बत्तखें चलती हैं ।
८-भच्कनी चाल (the hobble) -ऐसे जैसे जूते ने काट खाया हो -लंगडाहट भरी चाल .
९-शराबी की चाल ( the totter) -लडखडाते हुए ,पियक्कड़ की चाल
१०-लंगडी चाल (the limp ) -ऐसे लंगडाते हुए जैसे की एक पैर में तकलीफ /चोट हो
११-बीमारी की चाल (the shuffle )-आपरेशन के बाद अस्पताल में मरीज की चाल -पैरों को घसीटते हुए ।
१२-गीदड़ गश्त (the prowl ) -शिकार की टोह की चाल -जैसे दबे क़दमों से गीदड़ शिकार की ओर बढ़ रहा हो -चोर की सी चाल -छुपते छुपाते -बचते बचाते !
१३-दबे पाँव (the tip toe ) -शिकार के बिल्कुल पास पहुँच कर अति मंथर गति से पांवों को आगे बढ़ाना -आक्रमण के ठीक पहले की चाल
१४-घुमक्कडी चाल (the promenade ) -सैर सपाटे की की चाल ,मौज से घूमने फिरने की चाल -चहलकदमी और तेज चाल के बीच की गति !
१५-घूमना ( the walk) -दो पग प्रति सेकेण्ड की सामान्य चाल -ऐंडी जमीन पर फिर पूरा पाँव !
१६-छोटे पग की तेज चाल (the mince ) -छोटे पग उठाना मगर चाल की तेजी प्रमुखता से दिखना -महिलाओं की भी एक प्रचलित चाल ।
१७-नौजवान चाल -(the bounce ) -ऊर्जा और शक्ति से लबरेज स्वस्थ किशोर और युवा की तेज क़दमों की आत्मविश्वास भरी से चाल

अरे अभी ऊब गए आप ? अभी तो इतनी ही चालें और आपका बाट जोह रही हैं -जारी ......

Sunday, 29 March 2009

पुरूष पर्यवेक्षण -अब टांगों पर टंगी नजरें !

जी हाँ पुरूष पर्यवेक्षण अब अपने अन्तिम पड़ाव तक बस पहुँचने वाला ही है -इसी क्रम में लम्बी टांगों पर नजर है कि बस टंग गयी ! मनुष्य की टांगें उसकी लम्बाई का आधा हिस्सा जो हैं ! जब एक चित्रकार मनुष्य के शरीर का चित्रांकन करता है तो वह अपने सुभीते के लिए उसके चार हिस्से करता है ! तलवे से घुटने तक ,घुटने से कमर तक .कमर से वक्ष तक और अंततः वक्ष से सिर तक ! हाँ बच्चों में टाँगें छोटी रहती हैं ! समूचे नर वानर कुल में मनुष्य की टांगें ही शरीर की तुलना में सबसे बड़ी हैं ! टांगों के ऊपर भागों में मनुष्य के शरीर की सबसे बड़ी और मजबूत हड्डी फीमर होती है !

अपनी टांगों की ही बदौलत आदमी दो ढाई मीटर तक की ऊंची कूद सहज ही लगा लेता है और ८ से ९ मीटर की लम्बी छलांग भी ! तभी तो अपनी इसी क्षमता के आरोपण को अपने इष्ट देव हनुमान में कर देने से भक्तजनों को उनके 'जलधि लांघि गए अचरज नाही ' के रूप का दर्शन हुआ ! यह मजबूत टांगों का ही जलवा है कि २१५ दिनों से भी अधिक अनवरत नाचते रहने के रिकार्ड भी बन गए हैं ! दरअसल यह मजबूत विरासत हमें अपने शिकारी अतीत से ही मिली है जब शिकार को घेर कर पकड़ने की आपाधापी में हमारे पूरवज दिन भर में सैकडों मील का चक्कर लगा लेते थे ! हमारी ऊंची कूद की क्षमता का एक मिथकीय रूप विष्णु के वामन रूप में भी दीखता है जो समूचे ब्रह्माण्ड को ही महज ढाई पगों में नाप लेने को उद्यत और सफल हुए ! और वर्तमान दुनिया के उन पगों को भला कौन भूल सकता है जिसके बारे में कहा गया -चल पड़े जिधर डग मग में चल पड़े कोटि पग उसी ओर ! आज कितने ही राष्ट्र नायकों की पदयात्रा प्रिय राजनीतिक शगल है ! सो ,यदि टाँगें स्थायित्व ,शक्ति .और गरिमा की प्रतीक हैं तो इसमे आश्चर्य नही !
टांगों के जरिये कुछ तीव्र भाव मुद्राए भी प्रगट होती हैं खड़े लेटे और बैठे टांगों के बीच का बढ़ा फासला दृढ़ता , आत्म विश्वास और यौनाकर्षण के भावों का संचार करता है ! रोबदाब वाले लोग अक्सर खडे होने के समय पैरों का फैसला बढ़ा कर रखते हैं ,मगर पैरों को फासले के साथ करके बैठने से एक कम शालीन भाव बल्कि कभी कभी उत्तेजक अंदाज बन जाता है क्योंकि यह निजी अंगों को भले ही वे ढंके छुपे है को प्रगट करता है इसलिए ही आचार विचार की कई किताबे पैरों को फैला कर बैठने लेटने की मनाही करते हैं ! टांगों को क्रास कर बैठना एक अनौपचारिक बेखौफ मुद्रा है !
जारी .....

Friday, 27 March 2009

आज " धरती -प्रहर" में एक वोट धरती को भी दीजिये !


आज धरती प्रहर में आप अपना एक वोट धरती को दें ! कोटि कोटि नर मुंडों के बोझ से आक्रान्त धरती की फिक्र आख़िर कृतज्ञ मानवता ही कर रही है .आज एक वैश्विक मतदान प्रहर -रात्रि ८.३० और ९.३० के बीच में आपका वोट लेने की मुहिम है ! आप किसे चुनेंगें -पर्यावरणीय संघातों से विदीर्ण धरती को बचाने की मुहिम को या फिर उन कारकों को जिनसे यह धरती तबाह होने को उन्मुख है ? फैसला आपके हाथ में है !

यह सिलसिला सिडनी से वर्ष २००७ से शुरू हुआ जब २२ लाख लोगों ने अपने बिजली की स्विच को एक घंटे के लिए आफ कर दिया ! वर्ष २००८ में पाँच करोड़ लोगों ने यही काम दुहराया और अपने बिजली स्विचों को आफ किया भले ही सैन फ्रैंसिस्को का मशहूर का गोल्डन गेट ब्रिज ,रोम का कोलेजियम ,सिडनी का ऑपेरा हाउस ,टाईम्स स्क्वायर के कोकोकोला बिल्ल्बोर्ड जैसे मशहूर स्मारक भी अंधेरे से नहा गए !


इस वर्ष यह अभियान दुनिया के एक अरब लोगों तक मतदान की अपील ले जाने को कृत संकल्प है .यह आह्वान किसी देश ,जाति ,धर्म के बंधन को तोड़कर अपने ग्रह -धरती के लिए है -धरती माँ के लिए है ! और इसकी आयोजक संस्था कुछ कम मानी जानी हस्ती नही है बल्कि वर्ल्ड वाईड फंड (WWF) है जिसकी वन्यजीवों की रक्षा के उपायों को लागू करने के अभियान में बड़ी साख रही है -अब यह पूरे धरती को ही संरक्षित करने के लिए लोगों के ध्यान को आकर्षित करने की मुहिम में जुट गयी है ! VOTE EARTH नारे के साथ यह आज एक अरब लोगों तक अपनी अपील लेकर जा पहुँची है ! मेरी यह दरख्वास्त भी इसी अपील का एक बहुअल्प विनम्र हिस्सा भर है !इसका पूरा ब्योरा कोपेनहेगेन में इसी वर्ष तय वर्ल्ड क्लाईमेट चेंज कांफ्रेंस में रखा जायेगा ! जिसमें विश्व की सरकारों द्वारा ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ प्रभावी कदम के लिए प्रबल जनमत जुटने की तैयारी है !

तो आज आप अपने मतदान के लिए अपने घर के बिजली के स्विचों को मतदान -स्विच बनाएं -ठीक रात्रि साढे आठ बजे स्वेच्छा से घर की बिजली गोल कर दें और एक घंटे बिना बिजली के बिताएं -यह आपका प्रतीकात्मक विरोध होगा उन स्थितियों से जिनसे धरती की आबो हवा ही नही ख़ुद धरती माँ पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं !

भारत सहित ७४ दूसरे देशों का यह संकल्प है ! धरती प्रहर ( रत्रि साढे आठ बजे और साढे नौ के बीच ) में अपना वोट दीजिये ताकि धरती तरह तरह के पर्यावरणीय आघातों ,प्रदूषणों से बची रहे और प्रकारांतर से ख़ुद हमारा अस्तित्व भी सही सलामत रहे !

वाराणसी के टाइम्स आफ इंडिया ने आज इस मुहिम को बुलंद स्वर दिया है जबकि हिन्दी अख़बार बस भारतीय जनतंत्र के चुनावी महायग्य से ही ध्यान नही बटा पा रहे !
आईये धरती माँ के लिए एक वोट आप भी दीजिये !

Wednesday, 25 March 2009

एक अन्तरिक्ष यात्री का चिट्ठा ....!

सांद्रा मैग्नस
यहाँ हम जमीन पर बैठे टिपिया रहे हैं कोई आकाश -अन्तरिक्ष के पार से चिट्ठे लिख रहा है -और यह हैं अन्तरिक्ष यात्री सांद्रा मैग्नस जो अन्तरिक्ष से एक ब्लॉग लिखती हैं -स्पेस बुक ! वे बस अगले कुछ दिनों में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आई एस एस ) से धरती पर लौटने वाली हैं ! मेरे एक पसंदीदा ब्लॉग -बैड अस्ट्रोनोमी के ब्लागर फिल प्लैट लिखते हैं कि सांद्रा मैग्नस एकमात्र वह शख्श हैं जो अन्तरिक्ष से ब्लागिंग करती हैं ! डिस्कवरी यान से सांद्रा आई एस एस तक पहुँची थीं ! फिल प्लैट ने सांद्रा के अन्तरिक्ष यात्रा के अनुभव पर लिखे ब्लॉग को भी लिंक किया है ! मैंने जब अन्तरिक्ष से की गयी इस चिट्ठाकारिता को देखा तो आप से भी इस अलौकिक अनुभव को बाटने के लिए व्यग्र हो गया ! मैं यहाँ सांद्रा के चिट्ठे के कुछ अंशों के उद्धरण देने का लोभ रोक नही पा रहा -


"...मुझे सही सही तो नही पता कि मैं अन्तरिक्ष में कहाँ थी मगर रात हो चुकी थी और मैंने एक कक्ष की खिड़की के निकट अपने को संभाला .....मैं कोशिश करूंगी कि जो कुछ मैंने देखा उसे शब्द चित्रों में प्रस्तुत करुँ ....यह घोर निबिड़ रात्रि है ..अब अफ्रीका के ऊपर तूफ़ान के चलते बिजलियाँ कौंध सी रही हैं ऐसा लग रहा है कि आतिशबाजी हो रही हो ! लगता है कोई बड़ा तूफ़ान है जो फैलता जा रहा है ! .....यद्यपि कि धरती का क्षितिज अलक्षित है ,बादलों की बिजलियों और शहरों की चमक में धरती और अन्तरिक्ष का फर्क साफ तौर पर देखा जा सकता है ! रात्रि कालीन उत्तरी धरती के क्षितिज को काली रोशनाई के मानिंद आकाश से सहज ही अलग कर देखा जा सकता है .धरती के पार्श्व के एक छोर से निकलती सी लग रही आकाश गंगा (मिल्की वे ) मानो अपनी ओर यात्रा के लिए पुकार सी रही है .....यह सब मुझे विस्मित सा कर रहा है... ओह कितना सुंदर !

कभी कभार कोई जलबुझ करती लाल रोशनी भी रह रह कर दिख जाती है जो दरअसल सैटेलाईट हैं ..ये तेजी से गुजर जाते हैं ! चमचमाते तारे भी अद्भुत लग रहे हैं ...इस समय आई एस एस रात्रि भ्रमण कर रहा है अंधेरे की कारस्तानी का दर्शक बन रहा है ....अभी नीचे तो अँधेरा ही है मगर तारों से जगमगाती यामिनी अब विदा ले रही है क्योंकि सूर्यदेव की चमक अंधेरे के वजूद को मिटाने पर आमादा है ! मगर धरती पर सूर्योदय के ठीक पहले एक दम से कृष्णता फैल गयी है और कुछ भी दिख नही रहा है जैसे न तो धरती और न ही आसमान का कोई वजूद है ! बस जैसे मैं ही अस्तित्व में हूँ और अन्धता के एक महासागर में खो सी गयी हूँ और जहाँ सूरज बस खिलखिलाने वाला है और लो धरती तक सूरज की किरने जा पहुँचीं और वह एक बार फिर से सहसा ही प्रगट हो गयी है ...तारे सहसा ही छुप गए हैं यद्यपि वे वही हैं जहाँ थे ......."


यह वह कविता है जिसे अन्तरिक्ष से लिखे ब्लॉग पर डाला गया है ! इस महिला को भला कौन नही आदर देगा ! सांद्रा को सलाम !





Monday, 23 March 2009

पुरूष पर्यवेक्षण विशेषांक -4

बात पुरूष विशेषांग की चल रही थी .....यह कैसी बिडम्बना है कि मनुष्य को अप्रतिम सुखानुभूति कराने वाले इस अंग विशेष को कौन कहे प्यार पुचकार और लाड प्यार से सहेज सवांर के रखने की इस पर तो जोर जुल्म का जो दौर दौरा है वह हैरतअंगेज है ! बड़ी दर्द भरी दास्ताँ है इसकी ! सुनिए मन लगाय !

एक प्रथा है खतने या सुन्नत करने की जिसमें शिश्नाग्रच्छद ( फोरस्किन ) को बचपन में ही बेरहमी से काट कर अलग कर दिया जाता है ! और खतने की यह नृशंसता पुरूष ही नही नारी के खाते में भी प्रचलन में है ! यह विचित्र प्रथा सभ्यता के शायद उदगम से ही मनुष्य का अभिशाप बनी हुयी है ! जो बस महज अंधविश्वासों के चलते परवान चढ़ती गयी है -चाहे धर्म की आड़ लेकर या सांस्कृतिक रीति रिवाजों की दुहाई देकर ! हमारे कुछ आदि कल्पनाशील पुरुषों को लगा रहा होगा की जैसे सांप केचुली बदल कर मानों एक नया अवतार ही ले लेता है तो अगर मनुष्य के इस सर्पांग (शिश्न ) की केंचुली (फोरस्किन !) भी काट डाली जाय तो उसका अगला जन्म शर्तियाँ बेहतर हो जायेगा ! चमचमाते सांप सा ही ! तो फिर ट्राई करने में क्या जाता है ? और तभी से शुरू हो गयी यह बर्बर व्यवस्था !

और पीढियां दर पीढियां इसे अपनाती गयीं और कालांतर में यह एक सामुदायिक पहचान का प्रतीक बन बैठा !अब इस का निवारण और मुश्किल बन उठा ! प्राचीन मिस्र में ४००० ईशा वर्ष पूर्व से ही इस रिवाज के प्रमाण हैं ! ओल्ड टेस्टामेंट में अब्राहम ने इस प्रथा के पक्ष में आज्ञा जारी की !यहूदी और अरबी लोगों में यह परम्परा बदस्तूर चल निकली ! मोहम्मद के बारे में यह कहा जाता है की वे पैदा ही बिना फोरस्किन के हुए थे (एक ऐसी स्थिति जो मेडिकल दुनिया में अनजानी नही है ) ! फिर तो उनके पुरूष अनुयायियों में यह एक रिवाज ही बन गया !

हैरानी की बात तो यह है कि आगे चलकर यह "सामुदायिक बोध" इस बर्बर कृत्य के औचित्य को सिद्ध करने पर तुल गया -वैज्ञानिक और मेडिकल आधारों पर इसके एक लाभप्रद और स्वास्थ्य हितकारी पद्धति होने के तर्क गढे जाने लगे ! नीम हकीमों ने यह कहा की इस चमड़ी के रहते मनुष्य रति केंद्रित हो जाता है और कुछ ने तो ऐसी बीमारियों की लम्बी फेहरिस्त पेश की जिसमें इस चमड़ी के बने रहने से हिस्टीरिया ,मिर्गी ,रात्रि स्खलन और नर्वस बने रहने आदि के भयावह रोग शामिल कर दिए गए थे ! अब इस बैंड पार्टी में आधुनिक चिकित्सक भी निहित स्वार्थों के चलते शामिल हो गये ! और मिथ और मेडिकल की एक नयी जुगलबंदी शुरू हो गयी ! हद तो तब हुयी जब दुनिया की जानी मानी चिकित्सा पत्रिका -लैंसेट ने १९३२ में यह रिपोर्ट छापी की फोरस्किन के बने रहने से कैंसर तक हो सकता है (आप ने कभी शिश्न कैंसर के बारे में सुना भी है ?) कहा कि इस चमड़ी के अन्दर दबी रहने रहने वाली गन्दगी से पुरूष ही नही जिस नारी से वह संसर्ग करता है उसे भी कैंसर ही सकता है ! इस रिपोर्ट की छीछालेदरशुरू हुयी तो यह कहा गया कि इससे प्रोस्ट्रेट कैंसर होता है ! मतलब शिश्न से जुडी एक अंदरूनी ग्रन्थि में ! इस रिपोर्ट का नतीजा भयावह रहा -१९३० के दशक में ७५% अमेरिकियों ने खतना करा लिया ! और यह प्रतिशत बढ़ता ही गया ! १९७३ में ८४ % ,१९७६ में ८७ % और यह ट्रेंड भी भी बना हुआ है ।

कई शोधों में यह साबित हो गया है कि यह एक मिथ ही है और फोरस्किन से कोई भी समस्या नही होती .बल्कि यह अतिसंवेदनशीलता से बचाते हुए रति रति सुख की अवधि को लंबा करता है ! बच्चों में कुछ साल तक यह अवश्य ठीक से नही खुलता -कुछ बच्चों में इसका मुंह ज्यादा ही सकरा होता है और माँ बाप परेशान हो उठते हैं मगर बड़ा होने के साथ ही यह समस्या अपवादों को छोड़कर समाप्त हो जाती है !लैंसेट के लेख में आंकडों की कमियाँ पाई गयी थी -दरअसल लोग अपने एक पूर्वाग्रह और जातीय पहचान बनाये रखने की खातिर इस पूरी प्रथा को आज भी वैज्ञानिकता का जामा पहनाने में लगे हैं !जबकि इसका बच्चों के कोमल मन पर क्या प्रभाव पड़ता है और उनकी सायकोलोजी किस तरह प्रभावित होती है इस पर जो अध्ययन हो भी रहे हैं उन्हें दर किनार कर दिया जा रहा है !

अमेरिका में तो मेडिकल ( ग्राउंड ) खतना बदस्तूर जारी रहा है जबकि हाल में इसमें गिरावट भी दर्ज हुयी है ! मगर ब्रिटेन में यह अब काफी कम हो गया है १९७२ में जब इसका प्रतिशत अमेरिका में ८० था ब्रिटेन में महज ०.४१ रहा -वहां नेशनल हेल्थ स्कीम ने खतने की मनाही कर दीथी ! अमेरिका में खतने को लेकर करोडो डालर का इंश्योरेंस व्यवसाय फल फूल रहा है और वहां इस प्रथा का एक व्यावसायिक पहलू भी स्थापित हो चला है !

(पुरूष पर्यवेक्षण विशेषांक समाप्त ! )

Wednesday, 18 March 2009

पुरूष पर्यवेक्षण विशेषांक -3

मनुष्य विशेषांग एक तरह से शुक्राणुवाही अंग /नलिका ही तो है ! मगर यह दो मामलों में बहुत विशिष्ट है -
१-मनुष्य के दूसरे नर वानर (प्रायिमेट ) सदस्यों के शारीरिक डील डौल के अनुपात में उनके जननांग छोटे हैं जबकि मनुष्य अपवाद के तौर पर ऐसा प्रायिमेट है जिसका विशेष अंग उसके शरीर के अनुपात में काफी बडा है ! और
२-इसे सपोर्ट करने के लिए कोई अतिरिक्त बोन (हड्डी) भी नही है जबकि एक छोटे आकार के बानर के अंग विशेष को हड्डी का सपोर्ट भी है ।

मनुष्य के आकार की तुलना में तीन गुना भारी भरकम गोरिल्ला का विशेष अंग तो बहुत छोटा है .मनुष्य के अंग विशेष के सहजावस्था की लम्बाई अमूमन ४ इंच ,व्यास १,१/४ इंच ,परिधि ३,१/२ इंच और उत्थित अवस्था में औसत लम्बाई ६ इंच ,व्यास १,१/२ इंच ,परिधि ४,१/२ इंच तक जा पहुँचती है !मगर इसकी साईज को लेकर विश्व के कई भौगोलिक क्षेत्रों में काफी विभिन्नताएं देखी गयी हैं और इसका सबसे बड़ा आकार १३,३/४ इंच तक देखा गया है .अजीब बात यह है कि शारीरिक डील डौल और अंग विशेष समानुपात में नही पाये जाते बल्कि देखा यह गया है कि बड़े अंग विशेष के गर्वीले वाहक प्रायः छोटे कद काठी के लोग ही होते हैं और बड़े डील डौल वालों में इसका विपरीत होता है ! उत्थित अंग विशेष का जमीन से कोण ४५ डिग्री होता है जो टार्गेट का सही कोण है !

अपने उत्थित अवस्था में यह विशेष अंग कुदरती अभियांत्रिकी का बेजोड़ नमूना है -ऐसी कठोर किंतु हड्डी विहीन और रक्त नलिकाओं के बारीक संजाल से युक्त रचना प्रकृति में शायद ही कोई दूसरी है ! और ऐसा भी कुदरत की एक सोची समझी सूझ है - साथी के यौन सुख में वृद्धि की ! यह बात बंदरों के अंग विशेष के उदाहरण से स्पष्ट हो जायेगी ! बन्दर का जननांग जहाँ छोटा सा कील सरीखा ,हड्डी युक्त होता है ,मादा के निमित्त मात्र तीन ही प्रयासों में साहचर्य /सहवास की इतिश्री कर लेता है ! फलतः बंदरिया यौन सुख का वह चरमानंद(आर्गैस्म ) नही उठा पाती जैसा कि मानव मादा को प्रकृति की ओर से सहज ही उपहार स्वरूप प्रदत्त है !

मनुष्य प्रजाति में नर और मादा दोनों ही यौनक्रिया से जोरदार रूप से पुरस्कृत किए गये हैं जिन्हें चरम आनंदानुभूति का वह वरदान मिला है जिससे पूरा प्राणी जगत अमूमन वंचित है -जिस अनुभव की शाब्दिक व्याख्या बडे बड़े शब्द ज्ञानी भी नही कर पाते -एक महान चिंतक ने तो इस परमानंद को सम्भोग से समाधि तक के आध्यात्मिक अनुभव की परिधि में ले जा रखा था ! मगर जीव विज्ञानी और व्यवाहारविद इसे कुदरत की वह युक्ति बताते हैं जिससे दम्पति के बीच प्रगाढ़ता बढे और वे दोनों अपने शिशु के लालन पालन की एक अत्यधिक लम्बी अवधि में साथ साथ रहें ! यह "पेयर बांड" को और भी घनिष्ट बनाए रखने और एक दूसरे के प्रति समर्पित रहने का निरंतर रिवार्ड है !

जाहिर है मनुष्य में यौन क्रिया केवल प्रजनन के लिए नही बल्कि दम्पति के रिश्तों के बीच सीमेंट का काम भी करती है ! यह मनुष्य प्रजाति की उत्तरजीविता ,संतति संवहन के लिए बहुत जरूरी है ! इसलिए ही इस अद्भुत आनंद की तलाश में वह अपने मार्ग के अनेक बन्धनों और बाधाओं को भी पार कर जाना चाहता है .चरमानंद की अनुभूति मनुष्य के मस्तिष्क में मार्फीन सदृश रसायनों की अच्छी खासी खेप के कारण होती है जो आह्लाद का अतिरेक तो कराती ही हैं साथ ही तत्क्षण कई दुःख दर्द के भुलावे हेतु जादुई औषधि तुल्य बन जाती हैं ! यदि यह धरती कोटि कोटि मानवों से पटती गयी है तो इसमें आश्चर्य कैसा -चरमानन्दानुभूति के चलते तो यह होना ही था न ?