Friday, 14 November 2008

विज्ञान कथा पर राष्ट्रीय परिचर्चा का समापन ....

विज्ञान कथा पर पहली राष्ट्रीय परिचर्चा ( १०-१४ नवम्बर , 08 ) का कल समापन हो गया ! यदि आपको रुचिकर लगे तो यहाँ आप मिनट टू मिनट कार्यक्रम और यहाँ अतिथि प्रतिभागियों का विवरण देख सकते हैं -कल ही परिचर्चा का समापन हुआ है और आज अचानक ही सब सूना सूना सा हो गया है .पूरे विवरण को ब्लॉग करना है पर शायद कुछ समय लग जाय ,क्योंकि अभी तो सिर पर आयोजक का भूत ही सवार है, रचना धर्मिता डरी सहमी पिछवाडे से झाँक सी रही है की यह मुआ आयोजक हटे तो मैं कुछ अर्ज करुँ -तो मित्रों थोडा सब्र करें ! इस बीच चाँद पर हमारा तिरंगा लहर उठा है -यह हमारे लिए अपूर्व गौरव और स्वाभिमान की बात है .इस पर भी कुछ लिखना है -एक अलग फोरम की मित्र मंडली ने एक चर्चा यहाँ पहले ही छेड़ दी है -आप चाहें तो वहाँ पधार सकते हैं .

Tuesday, 11 November 2008

राष्ट्रीय परिचर्चा -विज्ञान कथा ,सत्र चालू आहे !

मित्रों ,जल्दी जल्दी कुछ बातें -कल उदघाटन सत्र और तीन तकनीकी सत्र पूरे हुए -यह मामला छाया रहा की विज्ञान कथा को मुख्य धारा के साहित्य में लानी के लिए क्या उपाय किया जाना चाहिए -या फिर इसे मुख्य धारा से बचा कर इसकी विधागत शुचिता को बचाए /बनाएं रहना चाहिए .क्योंकि मुख्यधारा की कई बुराईयों के समावेश से यह विधा अपनी विशिष्ट पहचान ही खो देगी .दूसरा मुद्दा यह रहा कि क्या विज्ञान कथा केवल पश्चिमी साहित्यिक सोच की उपज है या फिर इसके उदगम सूत्र भारत में भी तलाशे जा सकते हैं .आम मत से यह तय पाया गया कि भारत में मिथकों के प्रणयन और विज्ञान में फंतासी के प्रगटन में गहरा साम्य है -इन दोनों मुद्दों पर गहन विचार विमर्श से उद्भूत नवनीत -विचार को बनारस दस्तावेज -विज्ञान कथा -०८ में समाहित किया जायेगा .
कल के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जे आर एच विस्वविद्यालय के कुलपति महान गणितग्य प्रोफेस्सर एस एन दूबे थे जिन्होंने विज्ञान कथा की जड़ों को भारतीय पुराणों में स्थित पाया .अध्यक्षता प्रसिद्ध विज्ञान संचारक और राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद् नयी दिल्ली के निदेशक डॉ पटेरिया ने किया जिन्होंने विज्ञान कथा को विज्ञान के सहज संचार के माध्यम के रूप में विकसित करने पर बल दिया .
भारत की विभिन्न आंचलिक भाषाओं में भी विज्ञान कथा को प्रोत्साहन को बल दिया गया ,मराठी में तो यह पहले से ही समादृत है -
सत्र चालू आहे ......

Monday, 10 November 2008

बनारस में शुरू हुई राष्ट्रीय विज्ञान कथा परिचर्चा !

मित्रों ,मेरी व्यस्तता का अनुमान आप लगा सकते है -उक्त परिचर्चा के संयोजन का भार मेरे ही कमजोर कन्धों पर आ पडा है जो कल से इस धार्मिक नगरी में आरम्भ हो गयी है -कल हम लोगों ने जीशान हैदर जैदी लिखित विज्ञान कथा बुड्ढा फ्यूचर का पुतल रूपांतर देखा .शायद किसी विज्ञान कथा के पुतल रूपांतर का विश्व में यह पहला प्रयास रहा -लोगों ने इस प्रदर्शन की भूरि भूरि प्रशंसा की .दूसरे ,अमेरिकी लेखक और प्रोड्यूसर मार्क लुंड की फ़िल्म फर्स्ट वर्ल्ड का प्रीमियर शो भी हुआ जो यह इंगित करता है कि धरती पर परग्रही आ भी चुके हैं और छुप कर हमसे हिल मिल कर रह रहे हैं .यह तथ्य नासा को भी मालुम है पर वहाँ के लोग अपना होठ सिये हुए हैं ।
.कल ही विश्व विज्ञान दिवस भी था ,इस मौके को लक्ष्य कर हमने इसरो से आए वैज्ञानिक डॉ नेल्लाई एस मुथु से चाँद -कल्पना और यथार्थ पर एक बहुत ही रोचक और जानकारी वाला व्याख्यान सुना .
उक्त परिचर्चा में देश के कोने कोने से लगभग १०० प्रतिभागी आए हुए हैं .
पल प्रतिपल का कार्यक्रम आप यहाँ देख सकते हैं .

Tuesday, 4 November 2008

एक और दक्षिण -ऊत्तर मिलन :विज्ञान कथा पर राष्ट्रीय परिचर्चा !

हज़ार साल पहले केरल से चलकर शंकराचार्य ने मानव की ज्ञान बुभुक्षा के एक महायग्य में हविदान के लिए बनारस तक की पदयात्रा की और यहाँ आकर मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ किया .आज ज्ञान यज्ञ की उसी परम्परा के संवहन में दक्षिण भारत के दो दर्जन आधुनिक शंकराचार्य काशी पधार रहे हैं -एक नए समकालीन ज्ञानयग्य में भाग लेने .और मैं उसका साक्षी बन रहा हूँ ! यह मेरे लिए गौरव और रोमांच का क्षण है -
विज्ञान कथा -साईंस फिक्शन दरसल मानव ज्ञान की वह विधा है जिसमें मानव के भविष्य और आने वाली दुनिया- समाज के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा होती है -कहानियों के जरिये समाज पर पड़ने वाले विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संभावित प्रभावों का रोधक वर्णन किया जाता है -इस विधा को पश्चिमी साहित्य में बड़ा सम्मान मिला हुआ है मगर भारत में इसका वह विकास नही हुआ जो अपेक्षित था -मुख्य कारण तो यही है की साहित्यकारों ने इस ओर ज्यादा रूचि नही दिखाई -भारत में अब इस विधा के उन्नयन मे नयी पहल हुई है ।
अब होने वाली रास्त्रीय परिचर्चा की मुख्य बातों को इस ब्लॉग के माध्यम से मैं आप तक लाने का प्रयास करूंगा ।
यह रास्ट्रीय परिचर्चा से १४ तक है ।तैयारियां फुल स्विंग पर हैं !

Sunday, 2 November 2008

पुरूष पर्यवेक्षण :गरदन पर आ रुकी यात्रा !

ये पुरूष पर्यवेक्षण अब मेरे गले की हड्डी बनता जा रहा है -यह पर्यवेक्षण यात्रा के गर्दन तक आ पहुचने पर शिद्दत के साथ अहसास हो रहा है .अभी कोई आधे दर्जन ख़ास पड़ाव बाकी हैं और मेरा ध्यान उचट रहा है .वैज्ञानिक विषयों के निरूपण के साथ यही समस्या है -यदि पूरे मनोयोग से उनका निर्वाह नही हुआ तो फिर विषय के साथ न्याय भी नही हो पाता .यह भी दिख रहा है की जिस उत्साह के साथ बन्धु बाधवियों ने नारी -नखशिख सौन्दर्य यात्रा को लिया था वह सहकार पुरूष यात्रा में नही दिख रहा है .बहरहाल मैंने यह संकल्प लिया है तो पूरा तो करूंगा ही -
भले ही शनैः शनैः ....
आईये जल्दे जल्दी गर्दन की कुछ छूटी बातें हो जांय .गर्दन कई महत्वपूर्ण इशारों /भंगिमाओं को प्रगट करने में बड़ी मददगार है .यह वही अच्छी तरह रियलायिज कर सकता है जिसकी गरदन अकड़ गयी हो . जैसे हाँ या ना कहना ,दायें बाएँ गर्दन हिला कर नहीं (इनकार )और ऊपर नीचे गर्दन हिला कर हाँ (स्वीकार)के इशारे तो बहुत आम हैं .दूर से कोई जाना पहचाना आता दिखता है तो हम गर्दन कुछ पीछे की और ले जाकर अपनत्व दिखाते हुए उसका खैर मकदम करते हैं और गर्दन को झुका कर उसके सम्मान में अपनी पोजीशन डाउन दिखाते है -मगर यह बाद वाला सिग्नल ज्यादातर औपचारिकता ही है .यह किसी दबंग के सामने गर्दन झुकाने वाली भंगिमा नही है .नतमस्तक तो हम ईस्वर या ईश्वरीय सत्ता सरीखे के समक्ष ही होते हैं -मत्था टेकते हैं किसी बहुत ही आदरणीय के सम्मुख !
गले की मुसीबतें भी कुछ कम नही हैं अभी कल ही अनूप शुक्ल जी ने एक सन्दर्भ में टेटुआ दबाने का जिक्र छेड़ा था -लोगबाग आत्महत्या के निर्णय में इसी बिचारे गले के ही गले पड़ जाते हैं -चूंकि गर्दन से ही श्वास नलिका गुजरती है -फांसी का गहरा दंश इसी गले को ही झेलना पड़ता था .दंड देने के नृशंस प्रथाओं में धड से गर्दन को अलग करने का ही उपक्रम प्रमुख रहा है .
मनुष्य की विकास यात्रा में बिचारे गले ने क्या क्या नही झेला है फिर भी आज हम बहुतो की गर्दन सही सलामत है तो समझिये हम बहुत ही भाग्यशाली हैं .
एक निवेदन : पुरूष पर्यवेक्षण की यह यात्रा अभी कुछ समय तक इसी गर्दन पर ही सवार रहेगी -कुछ ऐसा आ पड़ा है की मुझे अपनी गर्दन की फिक्र हो आयी है -यह चर्चा अब एक पखवारे का विराम मांगती है सुधी जनों से .हाँ मैं कहीं जा नही रहा पर अभी ये चर्चा यहीं रुकेगी ! इस बीच मैं मित्रों के ब्लागों को देखता रहूँगा पर १५ नवम्बर तक टिप्पणी सक्रियक न रह पाऊँ .
आप से गुजारिश है कि भूलियेगा मत ! तो एक पखवारे के लिए विदा !

Saturday, 25 October 2008

पुरूष पर्यवेक्षण :आईये मापें गर्दन की लम्बाई !

कंठ मणि बोले तो ऐडम का ऐपल जो गर्दन की एक ख़ास पहचान है
गरदन या ग्रीवा दरअसल सर और धड के बीच तमाम जैवीय कार्यों का सेतु है -मुंह से पेट ,नाक से फेफडे और दिमाग से मेरुदंड तक रक्त नलिकाओं का संजाल है -कई मांसपेशियां हैं जो मनुष्य की गर्दन को कई इशारों -हामी और इनकार का माध्यम बनाती हैं .भारी भरकम और मोटी सी 'बैल सरीखी 'गर्दन परम्परा से पौरुष का द्योतक रही है ,' स्वान लाईक ' यानि हंसिनी सी सुराहीदार ग्रीवा स्त्रियोचित मानी गयी है .सच ही है -पुरूष की गर्दन मोटी, चौड़ी तथा स्त्री की लम्बी पतली होती है ।
नर और नारी के गरदन में एक और ख़ास लैंगिक विभेद 'ऐडम के ऐपल ' यानि कंठ (मणि ) या टेंटुआ की रचना को लेकर है -जो पुरुषों में अपेक्षया उभरा हुआ है .नारी की ऊंची और मधुर आवाज के लिए जहाँ छोटे से वोकल कार्ड के लिए छोटे से ही वायस बॉक्स की जरूरत होती है वहीं पुरुषों का वोकल कार्ड (१८ मिलीमीटर ) स्त्री के वोकल कार्ड (१३ मिलीमीटर ) से बड़ा होता है -किशोरावस्था से ही पुरुषों की आवाज भारी होने, फटने सी लगती है -
. पुरूष का स्वर यंत्र लैरिंक्स औरत के स्वर यंत्र की तुलना में लगभग ३० प्रतिशत बड़ा है .मगर नर नारी के स्वर यंत्रों की यह भिन्नता दरअसल किशोरावस्था के बाद ही उभरती है .वयः संधि पर आए किशोरों की आवाज भारी होने लगती है मगर युवा नारी के स्वर यंत्र अपने शैशव की मधुरता को लंबे समय तक बनाए रहते हैं ! आपने गौर किया ही होगा गायिकाएं बच्चों की आवाज में सहज ही गा लेती हैं -वे अपनी आवाज की स्वरावृत्ति २३०-२५५ यानि अधिक माधुर्यपूर्ण बनाए रख सकती हैं जबकि पुरूष की स्वरावृत्ति १३०-१४५ पर ही भारीपन लिए बनी रहती है .
एक रोचक अध्ययन के मुताबिक कबीलाई /आदिवासी समाजों में जहाँ पुरुषों की आवाज ऊंचे तरंग दैर्ध्य /आवृत्ति यानि सुरीली सी होती है वहीं शहरी युवाओं /पुरुषों की कम आवृत्ति वाली भारी सी होती है -इसी तरह की एक अबूझ पहेली यह भी है कि पेशेवर ( कोठेवालियां ) औरतों की आवाज दूसरी औरतों की तुलना में भारी यानि कम आवृत्ति वाली होती है - आवाज के मामले में अब उनका पेशा उन्हें पुरुशवत बनाता है या फिर उनका अव्यवस्थित सेक्स जीवन इसके मूल में है जो हार्मोनो के असंतुलन को प्रेरित करता हो -शोध चल रहा है
गर्दन के एक मुख्य आकर्षण और लैंकिक विभेद के रूप में कंठ मणि या टेंटुआ /घेघा भी है जिसे ऐडम का ऐपल कहते हैं .ऐडम के ऐपल का नामकरण भी बड़ा रोचक है .बाईबिल से जुडी दंतकथाएं बताती हैं कि यह ग्रीवा उभार दरअसल आदम के उस आदिम पाप की प्रतीति है जब हौवा द्वारा प्रेमार्पित वर्जित फल सेब को आदम ने चखा -चखा क्या ,पहला ही निवाला गले का फाँस बन अटक गया .वही कंठ मणि बन गया -ऐडम का ऐपल ! वैसेचलते चलते बता दूँ कि मूल बायिबल में ऐपल -सेब का जिक्र ही नही है -यह शब्द तो बाद का प्रक्षेप है .शास्त्री जी शायद कुछ स्पष्ट कर सकें -जारी !

Tuesday, 21 October 2008

दूर के नहीं अब चंदामामा !

चंद्रयान का रूट चार्ट
भारत का चन्द्र विजय अभियान शुरू हो गया ..आज सुबह ही चंद्रयान -१ चन्द्रमा की दूरी नापने चल पडा है -उसे आंध्रप्रदेश के सतीश धवन अन्तरिक्ष केन्द्र श्रीहरिकोटा से छोडा जा चुका है और वह पल पल चाँद की दूरी को हमसे कम कर रहा है -भारत के लिए भी अब चाँद ज़रा पास खिसक आया है .मानव रहित चंद्रयान -१ दो वर्षों के चन्द्र विजय अभियान पर निकल पडा है .यह एक तरह का रोबोटिक अभियान है जो चन्द्र सतह का एक त्रिविमीय नक्शा तैयार करेगा और बेशकीमती खनिजों की उपस्थिति भी मार्क करेगा .
यह अभियान ख़ास तौर पर चन्द्र ध्रुवों की सतह और सतह के नीचे बर्फ की मौजूदगी की भी पड़ताल करेगा और भविष्य के नाभिकीय संलयन ऊर्जा स्रोत हीलियम -३ की भी प्रचुरता का पता लगायेगा जिसकी धरती पर बेहद कमी है .मगर यह नाभिकीय ऊर्जा का एक अपार स्रोत है .साथ ही टाईटेनियम जैसे दुर्लभ तत्व की खोजबीन भी की जानी है .यह मिशन चाँद के पास और दूर के हिस्सों की भी पड़ताल करेगा ।
चंद्रयान-१ जिस पोलर सैटलाईट लांच वेहकल पर आरूढ़ है वह उसे एक पृथ्वी परिक्रमा पथ पर जा छोडेगा .जहाँ से वह चाँद की टेढी राह पर निकल चलेगा -जैसे ही वह चाँद की गुरुत्व सीमा में आयेगा कई मोटरें दगेगीं जिससे उसकी गति धीमी पड़ जायेगी .अब यह चाँद की लगभग वृत्ताकार कक्षा में १००० किमी ऊपर होगा और ४-५ दिनों में चाँद के १०० कमी नजदीक तक पहुँच जायेगा .
इस यान के साथ ही कई देशों के प्रोब भी हैं जिसकी चर्चा साईब्लाग पर पहले हो चुकी है .अब भारत ,चीन ,जापान और दक्षिण कोरिया सतेलाईट छोड़ने के बड़े मुनाफे वाले व्यवसाय पर नजरें जमाये हैं और अपने अन्तरिक्ष कार्यक्रमों को एक अंतर्रास्त्रीय सम्मान और आर्थिक लाभ के नजरिये से भी देख रहे हैं .
चीनियों की अन्तरिक्ष की चहलकदमी से अभी पिछले ही माह वह विश्व का तीसरा देश हो गया जिसने ऐसी क्षमता हासिल की है .
अफ़सोस यह है कि भारत के चन्द्र विजय अभियान को इस देश में ही सराहना नही मिल रही है -लोगों का कहना है कि भारत जैसे गरीब देश में जहाँ अभी भी लोगों को जीने खाने की मूलभूत सुविधाएं तक मुहैया नही हुयी हैइन कार्यकर्मों में संसाधनों को पानी की तरह बहाया जाना बुद्धिमानी नही है -इस अभियान पर तकरीबन ४ अरब रुपये खर्च हो रहे हैं .