Saturday, 22 March 2008

आर्थर सी क्लार्क पर कुछ ऑर !

वादे के मुताबिक आर्थर सी क्लार्क पर मैं कुछ ऑर लेकर हाजिर हूँ मगर इधर उधर से जुटाए मैटर के आधार पर तैयार इस आलेख के बजाय हिन्दी ब्लॉग जगत मे इस महान शख्सियत पर चन्द्रभूषण जी का फर्स्ट हैण्ड लेखन ऑर उन्मुक्त जी की चिपकी जरूर देखी जानी जाहिए ।
आर्थर सी क्लार्क का जन्म 16 दिसबंर 1917 को इंग्लैण्ड में हुआ था। वे एक बार श्रीलंका में स्कूबा -समुद्री खेल प्रतियोगिता में भाग लेने पहुंचे तो यहाँ की धरती से उन्हें ऐसा मोह पैदा हुआ कि वे यहीं के हो के रह गए। उन्होंने लगभग १०० किताबें लिखी लेकिन जिस किताब को सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मिली वह है 1968 में लिखी '2001 ए स्पेस ओडिसी\ कथा प्रेमियों से इतर पाठकों मे भी लोकप्रिय हुयी । क्लार्क की इसी कृति पर स्टैनले कुब्रिक की फिल्म भी दुनिया भर मे चर्चा का विषय बनी । वे अपनी कथाओं में अंतरिक्ष यात्रा, स्पेस शटल, कंप्यूटर और सुपर कंप्यूटर के इस्तेमाल और संचार उपग्रहों के बारे में जिक्र करने के कारण दुनिया भर में पहचाने जाने लगे थे और \'इलेक्ट्रॉनिक कुटिया \'के पहले निवासी कहलाए थे।

क्लार्क ने १९४५ मे एक लेख लिखा था जिसमे यह दर्शाया गया था कि यदि भू स्थिर कक्षाओं मे उपग्रहों को स्थापित कर उनसे संचार संवहन कराया जाय तो समूची दुनिया मे एक साथ ही सहजता से संचार स्थापित हो सकता है .यद्यपि उन्होंने इस युक्ति को पेटेंट नही कराया मगर उनका यह स्वप्न जल्दी ही साकार हुआ और एक दशक बीतते बीतते पहला संचार उपग्रह धरती के भू स्थिर कक्षा मे स्थापित कर दिया गया . उन्होंने 1940 में यह भी घोषणा की थी कि मनुष्य सन १९८० के दशक तक तक चांद पर जा पहुंचेगा, चालीस के दशक में मनुष्य के चांद पर पहुंच जाने की कल्पना प्रस्तुत करने पर लोगों ने उनका उपहास किया,1969 में ही अमरीकी नागरिक नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर कदम रख दिए .तब अमरीका ने क्लार्क की सराहना करते हुए कहा था कि उन्होंने हमें चांद पर जाने के लिए बौद्विक रूप से प्रेरित किया.
आर्थर सी. क्लार्क महज लेखक ही नहीं एक भविष्यद्रष्टा थे, जिन्हे मानो दिक्काल की अनेक गुत्थियों के बारे मे आश्चर्यजनक रूप से मालूम हो जाता था . श्रीलंका में आजीवन रहे इस ब्रिटिश लेखक ने अभी पिछले दिसम्बर मे अपने 90 वें जन्मदिवस पर कुछ गिने चुने श्रोताओं के सामने अपनी \'अन्तिम इच्छा \'व्यक्त की थी कि श्रीलंका में जातीय संघर्ष खत्म हो जाए, दुनिया को स्वच्छ ऊर्जा का अजस्र स्रोत मिल जाए और अंतरिक्ष में बुद्धिमान प्राणियों से सम्पर्क बन जाय .
आसिमोव के रोबोटिक्स के तीन नियमों की ही तर्ज पर उन्होंने भी तीन नियमों की सौगात दी है -
1-यदि कोई मशहूर और सीनियर वैज्ञानिक कहता है कि अमुक चीज संभव है, तो वह निश्चित ही सही है। मगर यदि वह कुछ असंभव मानता है, तो वह संभवत: गलत हो सकता है।
2- संभावना की सीमाओं की थाह पाने के लिए असंभव की तरफ बढ़ना चाहिए और
3- कोई भी नई आधुनिक प्रौद्योगिकी किसी जादू से कम नहीं होती।
अनेक विज्ञान कथाकारों की ही भाति उनका भी मत था कि भविष्य के बारे में कोई नहीं बता सकता, अलबत्ता अगर कोई लेखक किसी आविष्कार का जिक्र करता है तो वह असल में एक संभावित दुनिया की बात कर रहा होता है जो वजूद मे आ सकती है और नही भी आ सकती है. अंतरिक्ष के बारे में क्लार्क के मन में निरंतर जिज्ञासा बनी रही ,यह बात दीगर थी के वे वैध लाईसेंस के बावजूद भी कभी ड्राईव नही किए . 1998 में महारानी ब्रिटानिया द्वारा नाइट की उपाधि से सम्मानित क्लार्क शीतयुद्ध के तनाव से परेशान थे, इसकी झलक उनके उपन्यासों में मिलती है।

वर्ष 1960 से पोलियो से ही ग्रस्त क्लार्क कभी-कभी व्हील चेयर का भी इस्तेमाल करते थे।
मृत्यु से पूर्व उन्होंने लिखित निर्देश छोड़ा था, जिसमें उन्होंने अपने अंतिम संस्कार में किसी तरह की धार्मिक रीति का पालन करने से मना किया है .

Tuesday, 18 March 2008

विज्ञान कथा के मसीहा आर्थर सी क्लार्क नही रहे !


आज सुबह सुबह ही उन्मुक्त जी
से जानकारी मिली कि विज्ञान कथा के मसीहा आर्थर सी क्लार्क नही रहे .यह विज्ञान कथा प्रेमियों के लिए किसी सदमे से कम नही है .विज्ञान कथा की मशहूर तिगड़ी आइज़क आजीमोव ,राबर्ट हीन्लिनऑर क्लार्क का यह आख़िरी पाया आज बिखर गया .यह वही क्लार्क हैं जिन्होंने १९४५ मे संचार उपग्रहों की सूझ रखी थी जिसके जरिये आज हम इंटरनेट पर उंगलियाँ थिरका रहे हैं .उनकी कई किताबों ,लगभग १०० मे मुझे रान्दिवू विथ रामा ऑर २००१ अ स्पेस ओडिसी बहुत प्रभावशाली लगी थी .क्लार्क ब्रिटेन के सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने के बाद भी १९५६ से श्रीलंका मे स्थायी तौर पर रह रहे थे ।
हम जल्दी ही उन पर हिन्दी ब्लागर्स के लिए विस्तृत चर्चा करेंगे अभी तो यह त्वरित प्रतिक्रिया थी एक अलग फॉरम पर हम एक शोक गोष्ठी आयोजित कर रहे हैं -
http://in.groups.yahoo.com/group/indiansciencefiction/message/1325

Sunday, 16 March 2008

विज्ञान की जन समझ !

विगत ७-८ मार्च को नयी दिल्ली मे नेशनल इन्सटीचयूट आफ साईंस ,टेक्नोलॉजी एंड डेवलेपमेंटल स्टडीज [NISTADS] की पहल पर आम जनता की वैज्ञानिक समझ के मुद्दे पर एक अंतररास्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ .यह पिछले वर्ष लंदन की रायल सोसायटी द्वारा आहूत वैज्ञानिक समागम की ही भारतीय आवृत्ति थी .मैंने भी इस आयोजन मे शिरकत की .इसमे विमर्श का मुद्दा यह था कि आम लोगों की विज्ञान संबन्धी समझ को कैसे मापा जाय ? कैसे ऐसे सार्वभौमिक संकेतांक विकसित किए जायं जो विभिन्न सांस्कृतिक विभिन्नताओं के बावजूद भी दुनिया भर मे लोगों के विज्ञान की समझ का एक आकलन कर सके .दुनिया भर से आए विज्ञान संचारकों और इस विषय पर शोध कर रहे विद्वानों ने अपने अपने शोध माडल प्रस्तुत किए जो ज्यादातर सान्खिकीय प्रस्तुतियां थी और मेरे जैसे साधारण सी प्रतिभा वाले व्यक्ति की समझ के परे थे ।
लेकिन इस विषय पर अब अध्ययन की शुरुआत भारत मे हो चुकी है और रिचक परिणाम सामने आयेंगे जैसे के केरला मे लोगों की विज्ञान संबन्धी समझ एनी राज्यों की तुलना मे अच्छी है जबकि बंगाल मे यह काफी कम है ,बिहार से भी कम /अपना उताम प्रदेश भी कयिओं से आगे है -अब यह गोबर पट्टी नही कही जायेगी .

Saturday, 23 February 2008

क्या महिलाओं के लिए छलावा है चरम सुख ?


पुरुषों मे चरम सुख की अनुभूति एक आम बात है जो स्खलन के साथ ही आनंदातिरेक कराने वाला होता है .मगर लंबे समय से विवाद रहा है की क्या महिलाओं मे भी कोई समान अनुभूति होती है और यदि हाँ तो इसका उदगम क्या है !अब वैज्ञानिकों ने महिला जननांग के एक ऐसे हिस्से- जी स्पाट -जैफेनबेर्ग स्पाट को सचमुच खोज लिया है जो चरमसुख के लिए जिम्मेवार है .वैज्ञानिकों ने खोज लिया है कि महिलाएं सेक्स के दौरान परम सुख किस तरह हासिल कर सकती हैं.
वैसे महिलाओं मे भग्नासा [क्लायिटोरिस ]को उद्दीपित कर उन्हें चरम सुख काम केलि के दौरान सहज ही दिलाया जा सकता है -यह बहुतों को पता है ,मगर यह नया खोजा गया जी सपाट-जैफेनबेर्ग स्पाट चूंकि ऐसी जगह स्थित है जहाँ इसे प्राकृतिक सहवास मे पुरूष अंग से ही उद्दीपित किया जा सकता है ,इसे कृत्रिम तरीके से उद्वेलित नही किया जा सकता .यह दीखता भी नही . वैज्ञानिक 1980 से ही इस खोज में लगे हुए थे और तब ही से ‘जी स्पॉट’ का वजूद विवादास्पद रहा है.
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‘न्यू साइंटिस्ट’ पत्रिका में जी स्पॉट’ पर रिसर्च कर रहे डॉक्टरों ने दावा किया है कि कुछ महिलाओं के जननांग में ये खास कोशिकाएं होती हैं जो सामान्य कोशिकाओं से ज़्यादा मोटी होती हैं. इसी ‘जी स्पॉट’ या इन ‘खास कोशिकाओं’ से ही ये महिलाएं सेक्स के परम सुख का अनुभव कर पाती हैं. एक्यूला विश्वविद्यालय के डॉक्टर इमैनुएल जेनिनि ने ‘जी स्पॉट’ के लोकेशन की खोज के लिए 20 महिलाओं को चुना.अल्ट्रासाउंड के ज़रिए इन सभी महिलाओं के जननांग में ‘जी स्पॉट’ या खास कोशिकाओं के आकार और उसके प्रकार को समझने की कोशिश की गई.
इस परीक्षण के दौरान, सेक्स सुख के चरम तक पहुंचने का दावा करने वाली नौ महिलाओं का ‘जी स्पॉट’ जननांग और मूत्रमार्ग के बीच पाया गया। लंदन के सेंट थॉमस अस्पताल के डॉक्टर टिम स्पेक्टर का कहना है कि, “ये मोटी कोशिकाएं स्त्री जननांग के ‘क्लाइटोरियस’ का हिस्सा हैं”.हमे पता है कि क्लाइटोरियस भी जननांग का अति संवेदनशील हिस्सा होता है. दरअसल, सेक्स को लेकर अलग-अलग महिलाओं के अलग-अलग अनुभव हैं. कई महिलाओं का अनुभव है कि वो सेक्स के बाद भी उस चरम आनंद तक नहीं पहुँच सकीं. जबकि, कई महिलाओं का कहना है कि उन्हें सेक्स की चरम संतुष्टि हासिल हो गई. लंदन के ही यूनिवर्सिटी कॉलेज की सेक्स साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर पेट्रा बोयनटन कहती हैं कि , “सभी महिलाओं की बनावट अलग होती है. किसी का ‘जी स्पॉट’ उसके जननांग के अंदर हो सकता है जबकि कुछ मे यह नही भी हो सकता .”

उनकी सलाह है, “महिलाओं को इस बात की फिक्र नहीं करनी चाहिए कि उसके जिस्म में ‘जी स्पॉट’है या नहीं. क्योंकि, इससे वो सिर्फ ‘जी स्पॉट’ के बारे में ही फिक्रमंद रहेंगी और बाकी चीज़ों के बारे में सोच ही नहीं सकेंगी.”
चलिए नारियों के लिए कम से कम एक और चरम आधार मिल गया है जिससे वे पुरुषों से बराबरी का दावा बनाए रख सकती हैं .

Friday, 25 January 2008

अन्तरिक्ष की उड़ान के लिए तैयार नए पर्यटक विमान !


अन्तरिक्ष की उड़ान के लिए तैयार नए पर्यटक विमान रनवे पर बस तैयार हो रहे हैं ,एक बानगी तो यही है .भारतीयों के लिए तो एक रियायती आफर भी है .ब्रितानी मूल के अन्तरिक्ष व्यवसायी रिचर्ड ब्रैंसन ने स्पेसशिप-2 अन्तरिक्ष की देहरी तक सैर सपाटे के लिए भारतीय पर्यटकों को दो लाख डालर-तकरीबन 80 लाख रुपये के एक किफायती `स्पेस टूर´ पैकेज का शुरूआती आफर दिया है। यह किफायती पैकेज उनकी निजी कम्पनी वर्जिन गैलेिक्टक की भारतीय शाखा `स्पाजियो´ के जरिये मुहैया होगी। बुकिंग शुरु भी हो गयी है। विर्जिन गैलेिक्टक इन अन्तरिक्ष पर्यटकों को विधिवत प्रशिक्षण भी देगी। लाइन में लगे सौ लोग प्रशिक्षण प्राप्त भी कर चुके हैं। आप भी ज्यादा सोच विचार न कीजिए यदि टेंट में माल हो तो जीवन के इस एक बारगी अनुभव के लिए अभी से लाइन में लग लीजिए। कौन जाने आपका नम्बर आते आते किसी भारी किफायती पैकेज का लाभ ही आपको मिल जाये!

Thursday, 24 January 2008

मंगल पर निर्वस्त्र महिला की मटरगस्ती ?



अखबारों मे आज का यह सनसनीखेज मामला अब सरेआम चर्चा का विषय बन चुका है -मंगल की सतह पर यह निर्वसना मोहक आलिंगन की मुद्रा लिए न जाने किसकी आतुर प्रतीक्षा कर रही है !यह खबर नेचर डाट काम वेब -द ग्रेट बियांड पत्रिका- http://blogs.nature.com/news/thegreatbeyond/2008/01/no_bigfoot_does_not_live_on_ma.htmlपर भी आ चुकी है -यह अकेली महिला मंगल पर क्या कर कर रही है जहाँ ९० फीसदी सीओ -२ है और बस नाम मात्र की प्राणवायु ,तापक्रम शून्य के नीचे और वायुदाब धरती से काफी कम !यह मामला भी धरती के येती जैसा है जो तमाम दावों के बाद भी आज तक प्रामाणिक तौर पर न तो देखा जा सका और न ही पकडा जा पाया है . इस चित्र को लेकर दावे प्रतिदावे शुरू हो चुके है -कोई इसे चट्टान का हिस्सा माने है तो कोई इसे मोहक आमंत्रण देती मंगल की नारी मान रहा है -मैं तो इसे चट्टान का ही एक भाग मान रहा हूँ जिसे शरारतपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया गया है - दाद देनी होगी मानव की कल्पना की कि वह ऐसे चित्र विचित्र रचनाओं मे कुछ ढूंढ लिया करती है -यह प्रवृत्ति मनोवैज्ञानिकों की भाषा मे पेरिडोलिया कहलाती है -अभी हाल मे किसी परित्यक्त इमारत पर लोगों ने साई बाबा का चेहरा देखा तो कहीं से पदों मे गणेश की तस्वीर उभरी दिखाई दी
.यह मामल भी कुछ ऐसा ही है ,मगर लोगों को तो एक मुद्दातो मिल ही गया है अखिल ब्रह्माण्ड मे हम अकेले नहीं - नक्षत्रों से कौन निमंत्रण देता मुझको मौन ...कही यहीमहिला तो नही ?

Wednesday, 23 January 2008

घड़ियाल के सचमुच के आंसू !!


पशु प्रेमिओं के लिए यह सचमुच बड़ी बुरी खबर है कि घड़ियाल के ऊपर भारी शामत आ गयी है ,जिस पर महज अब घडियाली आंसू बहाने से काम नही चलाने वाला है -उनके आंसू अब नकली नही रह गए .एक बड़ी [बुरी] खबर है कि घडियालों के लिए मशहूर रास्ट्रीय चम्बल अभयारन्य के लगभग १०० घडियाल किसी रहस्यमय बीमारी से ग्रस्त होकर मर गए हैं .इस खबर को बी बी सी तक ने प्रमुखता दी है ।
घड़ियाल गंगा नदी प्रणाली का एक देशज प्रतिनिधि है ,इसके लंबे थूथन के अन्तिम छोर पर एक मिटटी की घरिया [अर्थेन पोट ] नुमा रचना होती है जिसके कारण इसे घड़ियाल कहा जाता है .यह अपने संबन्धी मगरमच्छ की तुलना मे बहुत कम खतरनाक होता है मुख्य रुप से मछली खाकर ही अपना जीवन यापन करता है -गंगा प्रणाली मे ही पाई जाने वाली यह प्रजाति-Gavialis gangetica सबसे संकट ग्रस्त जंतुओं की सूची मे है -आख़िर इनके इस तरह से मरने का क्या रहस्य हो सकता है ?क्या इनका मुख्याहार -मछलियाँ तो संदूषित तो नही हैं ?या फिर एक बात मुझे यह भी कौंधती है कि कही गिद्धों के लगभग लुप्त हो जाने के बाद चम्बल नदी के आसपास मरे हुए पशु -ढोर जिन्हें गीध पलक झपकते चट कर जाते थे अब इन कुदरती सफायीकर्मिओं के न रहने पर भारी मात्रा मे चम्बल मे फेंके जा रहे होंगे और इन मृत अनिस्तारित पशुओं के शरीर मे डिक्लोफेनिक दवा के अंश घरियालों के शरीर मे जमा होकर ठीक उसी भाति इनके गुर्दों को नाकाम कर रहा है जैसे इसी दवा ने गिद्धों का लगभग खात्मा ही कर दिया .हम जानते है कि डिक्लोफेनिक एक दर्द निवारक प्रतिबंधित दवा है फिर भी पशुपालक इनका अब भी प्रयोग कर रहे हैं ।
जो भी हो घडियालों की इन बेसाख्ता मौतों पर जल्दी ही कुछ करना होगा -पर किसे ???