नई हालीवुड फिल्म मार्शियन (मंगल ग्रह के निवासी) में दर्शया गया है कि लाल ग्रह रहने के लिए किस तरह एक अत्यंत भयानक जगह है। मंगल की सतह घातक विकिरण के कारण असुरक्षित है। यहाँ माइनस 60 डिग्री फारेनहाइट के नीचे औसत तापमान रहता है ,इस लिहाज से मंगल ग्रह की तुलना में अंटार्कटिका पिकनिक के लिए एक अच्छी जगह है। यही नहीं यहाँ 96% कार्बन डाइऑक्साइड है, और इस माहौल में साँस नहीं लिया जा सकता।
इस सब के बावजूद मंगल ग्रह पर मानव बस्तियों की संभावना है। हाल ही में इस ग्रह पर पानी बहने के पुख्ता प्रमाण भी मिल गए हैं। हालांकि यह पानी विषैला है। 2027 तक नासा द्वारा इस ग्रह पर एक दर्जन तक मानव के अवतरण का प्लान है.पहली प्राथमिकता वहां तक के निरापद परिवहन की है। परिवहन तंत्र स्थापित हो जाने के बाद, बस्तियों बसाने का काम बहुत पीछे नहीं रह जाएगा। 25 करोड़ मील दूर एक प्रतिकूल वातावरण में जीवित रहने के लिए क्या क्या पापड़ बेलने होंगे?
एक अंतरिक्ष युगीन मंगलवासी गुफा मानव की कल्पना
और भोजन क्या होगा? आईये सबसे पहले, भोजन पर ही विचार करें। पहले कुछ दशकों के लिए तो शीत शुष्कन (फ्रीज़ ड्राईड) विधि से तैयार भोजन समय समय पर पृथ्वी से ही फेरी ( ferried ) किया जाएगा। पता चला है कि ताजा सब्जियों के उगाने के लिए मंगल ग्रह की मिट्टी एक अच्छा माध्यम हो सकती है, हालांकि, हाईड्रोपोनिक्स ( airponics ) - हवा में पौधों के उगाने के तरीकों को चुनना होगा।पानी के लिए नासा एक dehumidifier की तरह तकनीक का इस्तेमाल करने पर शोध कर रहा है। वहां WAVAR (जल वाष्प सोखने वाला रिएक्टर),भी स्थापित किया जा सकता है। यह ध्रुवों पर बर्फ के रूप में जमे, धूल की परत के नीचे ग्लेशियरों में, मिट्टी में जमे हुए और सोतों और भूमिगत जलाशयों से पानी का निष्कर्षण कर सकेगा ।
हम पृथ्वी पर ब्रह्मांडीय किरणों से घने वातावरण तथा चुंबकीय क्षेत्र द्वारा सौर विकिरण से सुरक्षित हैं, किन्तु यह सुरक्षा मंगल ग्रह पर गायब है। विकिरण को ब्लॉक करने के लिए एक तरह से आश्रय भवनों के चारों ओर मिट्टी ढेर लगाना (मंगल ग्रह पर regolith कहा जाता है) होगा। मोटी ईंट की दीवार सरीखा निर्माण भी किया जा सकता है. एक सरल रास्ता गुफाओं को खोजने का भी हो सकता है। ज्वालामुखियों द्वारा बनाये गए निष्क्रिय लावा ट्यूब, विशेष रूप से उपयोगी हो सकते हैं।
मंगल ग्रह पर बहुत कम दबाव है, इसलिए विशेष दबाव वाले कपड़े(स्पेस स्यूट ) अनिवार्य है, इसके बिना मानव शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जैसे त्वचा और आंतरिक अंगों का भुरभुरा होना। कम दबाव के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने की जुगतों पर विचार हो रहा है और नए अनुसंधान प्रगति पर हैं जिससे मनुष्य सहज दबाव में जीवन यापन कर सके। और, ज़ाहिर है, हमें श्वसन के लिए आक्सीजन भी लेनी है । मशीनें इसमें मदद कर सकती हैं । नासा के परीक्षण में 2020 में मंगल ग्रह के लिए Moxie नामक एक प्रयोगात्मक डिवाइस भेजने की योजना है। यह मंगल ग्रह के वातावरण से रॉकेट ईंधन और श्वसन दोनों के लिए बाहर से ऑक्सीजन मुहैया कर सकता है।
सुदूर भविष्य के मंगल ग्रह के सैलानियों को रोजमर्रा की कठिनाइयों से निजात पाने के लिए उसे पृथ्वी की तरह बनाने की कोशिश (टेराफोर्मिंग) पर जोर होगा। ध्रुवों के तापमान का कुछ ही डिग्री के परिवर्तन से तो परिदृश्य बहुत बदल जाएगा । सूर्य के प्रकाश को प्रतिबिंबित करने के लिए मंगल की कक्षा में विशाल दर्पण की तरह सौर पालों की व्यवस्था करनी होगी। ऐसी प्रौद्योगिकी मंगल ग्रह को एक ग्रीनहाउस गैस चक्र में प्रवेश कराएगी। जिससे दशकों के भीतर, तरल पानी मध्यवर्ती क्षेत्रों के आसपास समशीतोष्ण क्षेत्रों में प्रवाहित हो सकता है। यह जलीय ऑक्सीजन को तोड़ने , कुछ पौधों को विकसित करने के लिए अनुकूल होगा । जल वाष्प से अधिक विकिरण भी ब्लॉक होगा।
हम अपने ही जीन में परिवर्तन करने के लिए वायरस संचालित नयी तकनीकों का उपयोग कर सकते हैं अर्थात खुद को मंगल ग्रह के लिए अनुकूलित (Pantropy) कर सकेगें। अधिक कार्बन डाइऑक्साइड युक्त साँस लेने और विकिरण को सहन करने के लिए मनुष्यों की नयी कोटि उत्पन्न की जा सकती है ।यह सब बहुत काल्पनिक लग सकता है किन्तु मानव के अंतरिक्ष में बस्तियां बसाने के अभियानों की यह तो बस शुरुआत है। मंगल मानवीय संभावनाओं का मील का पत्थर होगा !