Monday, 28 March 2011

सात अखरोट रोजाना फिर काहें को दिल का रोना

सोचा यह जानकारी आपसे साझा कर लूं -दिल को  मजबूत रखने के लिए अखरोट को सब मेवो में मुफीद पाया गया है.  इसमें एंटीआक्सीडेंट की मात्रा भरपूर है और किसी भी मेवे ,बादाम काजू पिस्ता और चीनिया बादाम(मूंगफली ) से ज्यादा है . इसमें पाया जाने वाली  वसा  असंतृप्त -पाली अन्सैचुरेटेड फैटी एसिड(प्यूफा ) होती है जो रक्त वाहिकाओं में कोलेस्ट्राल को नहीं जमने देती .


अखरोट इतना फायदेमंद है मगर फिर भी लोग इसके बजाय काजू पिस्ता आदि मेवो को ज्यादा अहमियत देते हैं .यह अध्ययन अमेरिकन  केमिकल सोसाईटी में जो विन्सन ,पी एच डी ने प्रस्तुत किया है .   उन्होंने अपने अध्ययन  में पाया है कि अखरोट में विटामिन ई से भी ज्यादा एंटी आक्सीडेंट होता है -मालूम हो की की यही एंटी आक्सीडेंट शरीर के लिए हानिकर फ्री रेडिकल्स का शमन करते हैं .विन्सन के अनुसार महज सात अखरोट आपके दिल को पर्याप्त सुरक्षा पहुंचा सकता है .उच्च  गुणता का प्रोटीन ,मिनरल्स और डायिटरी  फयिबर्स के लिए भी मेवे खासकर अखरोट जाना  जाता है .
अगर दिल को मजबूत रखना है तो अखरोट का इस्तेमाल कर सकते हैं मगर कम से कम सात रोजाना!


Monday, 14 March 2011

जापान में अब परमाणु के प्रकोप की आशंका-एक ताजातरीन रिपोर्ट

 भूकंप और सुनामी के बाद  जापान सदी के अब तक के भयंकर परमाणु प्रकोप के मुहाने पर है .फूकुशिमा के तीन नाभकीय सयंत्रों में मेल्टडाउन  से  परमाणु विकिरण का खतरा उत्पन्न हो गया है .यहाँ कुल छः खौलते पानी वाले परमाणु रिएक्टर हैं जो १९७० दशक के दौरान बने थे .इनमें परमाणु से बिजली बनाने की क्रियाविधि एक  सी  है -सभी  में एक केन्द्रिक पात्र (कोर वेसेल )  है जिसमें कई सौ ईधन छड़ें  हैं जो एक मिश्र धातु जिर्कोनियम की बनी  है जिसके भीतर रेडिओ धर्मी  यूरेनियम और ३-५ फीसदी  आईसोटोप यू -२३५ भी  है . संयंत्र -३ में प्लूटोनियम -२३९ भी है .यहीं एक श्रृखला बद्ध प्रक्रिया के तहत नियंत्रित नाभिकीय विघटन शुरू होता है और उत्पन्न ताप से  इर्द गिर्द का पानी खौलता है और भाप को  टर्बायिनों  से गुजार  कर   बिजली पैदा की जाती है .फिर नलियों के जरिये वही अति शुद्ध ठंडा पानी इन्ही  रेडियो धर्मी ईधन के इर्द गिर्द से लगातार गुजारा जाता है जिससे कोर वेसेल ठंडा बना रहता है, नहीं तो इसके अभाव में यह  पिघल सकता है -जिसे ही मेल्ट डाउन कहते हैं .कोर वेसेल के मेल्ट डाउन का मतलब है रेडिओ धर्मी विकिरण का बाहर फ़ैल जाना ...फुकूशिमा के तीन  सयंत्रों में इसी  मेल्ट डाउन की नौबत आ पहुँची है ...


११ मार्च को आये भूकंप और सुनामी के बाद ठन्डे पानी के परिभ्रमण की यही प्रक्रिया अवरुद्ध हो गयी और यहाँ के कोर वेसेल लगातार गर्म होते जा रहे हैं ..इसी को ठंडा करने के जी तोड़ प्रयत्न हो रहे हैं और इनमें बाहरी समुद्री जल लाकर डाला जा रहा है जिसका मतलब यह है कि अब ये संयंत्र दुबारा इस्तेमाल लायक नहीं रहेगें ...समुद्री पानी नाभकीय संयंत्र को प्रदूषित कर देता है -लेकिन अब कोई विकल्प भी शेष नहीं है -अगर यह समुद्री पानी भी इस्तेमाल नहीं हुआ तो कोर वेसेल पिघल कर रेडियो धर्मिता को बिखेर देगा ....आशंका यही है कि मेल्ट डाउन की प्रकिया शुरू हो गयी है और जिर्कोनियम की छड़ें  पिघल कर भाप से क्रिया कर हाईड्रोजन बना रही हैं और सयंत्र एक और अब तीन में इसी ज्वलनशील हायड्रोजन का विस्फोट हो चुका है और इन सयंत्रों के कुछ हिस्से छतों के साथ उड़ गए ...


सबसे बड़ा खतरा यही है कि कोर वेसेल के पिघल जाने से नाभिकीय ईधन की अनियंत्रित विघटन की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी और यह परमाणु प्रकोप की शुरुआत होगी ...सारे दुनिया की आँखे अब इसी घटनाक्रम  पर लगी हैं -यह वक्त है कि हम अपने परमाणु सयंत्रों की सुरक्षा की जांच भी कर ले -प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने इस बारे में आज ही राष्ट्र को आश्वस्त भी किया है . लेकिन उनका वक्तव्य केवल मौके के राजनीतिक लाभ लेने वाला बयान  ही बनकर नहीं रह जाना चाहिए ...

Sunday, 13 March 2011

चाँद : चाहे रहो दूर चाहे रहो पास : फर्क न पड़ेगा कुछ खास

अंतर्जाल पर एक गपोडिये ने यह अफवाह  क्या उड़ा दी कि सुपरमून और सुनामी का रिश्ता है -हिन्दी के कई टी वी चैनेल इसी मुद्दे को लेकर चिचियाना शुरू कर चुके हैं .अब दिन रात यह चिल्ल पों मची हुयी है कि आगामी १९ मार्च को चाँद के धरती से निकटस्थ होने (पेरिगी ) के चलते ही जापान की सुनामी आयी है . दावे हैं कि जब जब भी अतीत में चाँद धरती के सबसे निकट रहा है ऐसी ही आपदाएं ,प्रलयंकारी दृश्य धरती पर दिखे हैं ....आईये मामले की तह में जाते हैं .लेकिन यह पहले ही बताकर कि यह केवल एक बकवास है और चाँद का जापान में आयी सुनामी से कुछ लेना देना नहीं है .और सबसे पहले तो  इस बेसिर पैर  की खबर को  एक  फलित ज्योतिषी ने उडाई थी -उसने एक नया नाम दे दिया -सुपरमून!  जो और कुछ नहीं धरती के सबसे निकट होने पर दिखने वाला  चाँद है जो नया(प्रथमा )  या पूर्णिमा का हो सकता है !

चाँद धरती की परिक्रमा एक अंडाकार पथ में करता है और इस लिहाज से कभी वह धरती के काफी पास और कभी काफी दूर होता है -जब वह बहुत पास होता है तो उस अवस्था को ' perigee '  और दूरस्थ अवस्था को 'apogee ' कहते हैं -पेरिगी पर यह धरती से  354000 किमी और ऐपोजी के समय 410000 किमी दूर हो जाता है ...चूंकि चाँद धरती की परिक्रमा प्रत्येक माह में कर लेता है यह हर पखवारे में इन निकटस्थ और दूरस्थ स्थितियों से गुजरता है ..मगर जब जापान में भूकंप और सुनामी आयी तो चाँद धरती के निकटस्थ कहाँ था? ११ मार्च को तो यह लगभग ४ लाख किमी दूरी पर था मतलब दूरस्थ स्थिति के लगभग करीब -यह तो  आगामी १९ मार्च को यह धरती के सबसे निकट होगा ...फिर दूर के चाँद के गुरुत्व से भला जापान की सुनामी कैसे आयी होगी? 
 चाँद : चाहे रहो दूर चाहे रहो पास : फर्क न पड़ेगा कुछ खास 
बाईं ओर का चाँद धरती के निकटस्थ होने और दायीं ओर का दूरस्थ  होने का अंतर दिखाता है


यह सही है कि चाँद के धरती से सन्निकट होने पर समुद्रों में ज्वार भाटे आते हैं मगर यह स्थति सबसे प्रभावपूर्ण तब होती है जब अन्तरिक्ष में सूर्य ,पृथ्वी और चाँद एक  सीध में आते हैं -इस स्थिति में धरती पर इन आकाशीय पिंडों के गुरुत्व का बल ज्यादा लगता है ....बड़े ज्वार और बड़े भाटे (जल उतार ) आते हैं ....ऐसी स्थितियां नए चन्द्र (प्रथमा /एक्कम ) और पूर्ण चाँद (पूर्णिमा ) के समय होती हैं ...और जब ऐसी स्थितियां चन्द्र -पेरिगी के समय होती हैं तो गुरुत्व का बल धरती पर ज्यादा असरकारी हो जाता है ....मगर इतना  भी नहीं कि सुनामी सी आफत आ जाय ....बस केवल थोडा बड़े ज्वार और भांटे आते हैं जिनसे खौफ खाने की जरुरत नहीं है .

फिल प्लेट जो मेरे पसंदीदा ब्लागर हैं ने इस मामले को अपने ब्लॉग बैड अस्ट्रोनोमी  पर उठाया है और अच्छी तरह से यह समझाया है कि धरती पर चाँद का गुरुत्व इतना अधिक नहीं होता की यहाँ बड़े मौसमी बदलाव आ जाएँ ,भूकम्प और सुनामी आये  या ज्वालामुखियों में विस्फोट हो जाय!तो आगामी १९ मार्च को भी कम से कम चाँद के कारण कुछ नहीं होने वाला है ....हाँ इतनी बड़ी दुनिया में कहीं न कहीं भूकंप भी आएगा और ज्वालामुखी भी फूटेगा मगर यह तो केवल संयोग ही है -चाँद का इससे कोई सम्बन्ध नहीं है -खुद अपनी धरती  के विकार और मनुष्य की करतूतें इसका कारण भले ही हों ....

Saturday, 12 March 2011

सुनामी का सितम :सवाल और सबक

जापान में सुनामी के महाविध्वंस ने एक बार फिर जता  दिया है कि कुदरत के कहर के आगे मनुष्य कितना बौना और बेबस है .वैसे तो जापान भूकंप का देश ही कहा जाता है और इस लिहाज से वहां रोजाना की इस आपदा से जूझने को लोग तैयार रहते हैं मगर इस बार रिक्टर  स्केल पर ८.९ की तीव्रता के भूकंप के फ़ौरन बाद आयी विकराल सुनामी  ने मुझे फिल्म २०१२ के प्रलय -दृश्यों की याद दिला दी -फिल्म के कई दृश्य तो ऐसे हैं कि मानो फिल्म  निर्देशक ने जापान की इसी सुनामी को ही अपनी दिव्य दृष्टि से देख लिया हो ....किन्तु क्षोभ की बात यह है कि मानव मनीषा द्वारा  भविष्य का पूर्वाभास कर लेने के बाद भी इनसे निपटने की पुख्ता तैयारी  नहीं होती  और एक महाविनाश अपने दंश से मानवता को कराहता छोड़ जाता है ....काश भविष्य की  विभीषिकाओं का खाका खीचने वाली विज्ञान कथा फिल्मों से ही कुछ सबक लिया गया होता ...
 साई फाई फिल्म २०१२ का एक खंड प्रलय सा दृश्य 

कितना अभागा और अभिशप्त देश है जापान जिस बिचारे की मानों ऐसे ही हादसों से गुजरते रहने की नियति बन गयी है -दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान नाभकीय बमों ने दो शहरों-नागासाकी  और  हिरोशिमा  का लगभग खात्मा ही कर दिया था -आये दिन भूकंप वहां आते ही रहते हैं -फिर भी जापान वासियों का जज्बा तो देखिये वे फिर उठ बैठते हैं और  सीना ताने सिर उठाये खड़े ही नहीं हो जाते सारी दुनिया की एक बड़ी आर्थिक शक्ति भी बन जाते हैं ..जापान  विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति है ....मानवीय जिजीविषा की यह एक मिसाल है .इस बार तो जापान के बीस से ज्यादा शहरों  में सुनामी से कहर बरपा दिया -कई शहर तो नेस्तनाबूद हो गए हैं ! चलती ट्रेनें ,जहाज तक को लहरों ने लील लिया है ..लहर लहर शमशान का नजारा है   ....नाभिकीय आपात काल भी घोषित कर दिया गया है क्योकि  परमाणु रियेक्टरों को भारी क्षति पहुँची है .  परमाणुवीय  विकिरण का खतरा उत्पन्न हो गया है और इसके क्या गंभीर परिणाम हो सकते हैं इसे भला जापान से बेहतर कौन समझ सकता है जहाँ नागासाकी हिरोशिमा में आज भी विकिरण जनित जन्मजात विकलांगता अभिशाप बनी हुयी है .
 जापान में महासुनामी के  विध्वंस का एक दृश्य : १०-११  मार्च २०११

सबसे  हैरानी  वाली बात  यह है कि क्या जापान के भविष्य- नियोजकों ने इतने बड़े खतरे का कोई आकलन नहीं किया था? और यदि किया था तो क्या इसके लिए पर्याप्त तैयारियां नहीं की गयीं? कोई भी कह सकता है कि  भला कुदरत के आगे किसकी चल पाती है? मगर इस मुद्दे को ऐसे ही चलताऊ जवाब से नहीं टरकाया जा सकता ....हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी की किस प्रगति पर इतना गुमान करते हैं -मतलब साफ़ है प्रकृति की विनाश लीलाओं से निपटने के लिए अभी भी हमारे उपाय और तैयारियां नाकाफी है -हमारे जोखिम बचाव के इंतजाम  बचकाने हैं और आपदा प्रबंध शोचनीय!  अगर जापान जैसे देश में जोखिम पूर्वाभास ,हादसा मूल्यांकन और आपदा प्रबंध की यह स्थति है तो जरा सोचिये अपने भारत में अगर खुदा न खास्ता ऐसी बड़ी सुनामी आ  जाए तो क्या होगा? कुछ महानगरों का वजूद ही नक़्शे से मिट जाएगा .

भारत का एक बड़ा हिस्सा (पेनिस्युला ) समुद्र से घिरा है हमारे कई महानगर भी लबे तट हैं ..मुम्बई ,कोलकाता ,कोचीन गुजरात गोवा और द्वीपों की एक बड़ी श्रृखला सब सागर सहारे ही हैं ...हमें फ़ौरन जापान की इस महा काल सुनामी से सबक लेने होंगें -एक दूरगामी रणनीति बनानी होगी ..भगवान् भरोसे रहने की मानसिकता से उबरना होगा और तमाम अनुत्पादक परियोजनाओं ,कामों से ध्यान हटाकर एक ठोस परियोजना को मूर्त रूप देकर अपने बंदरगाहों और तटीय शहरों को यथासंभव सुनामी -प्रूफ करना होगा ...भारत की एक सुनामी हमें पहले ही चेतावनी दे चुकी है ...लेकिन हम अभी भी बेखबर है -यहाँ जोखिम और आपदा प्रबंध को लेकर कोई गंभीर सोच अभी भी नीति नियोजकों में नहीं है -और सबसे बढ़कर हमारी राजनीतिक इच्छाशक्ति को तो मानों काठ मार गया है  ...यह देश बड़े से बड़े घोटालों के लिए उर्वर बनता जा रहा है ...माननीय सासंदों के लिए निर्माण कार्यों का बजट २ करोड़ से पांच करोड़ करने का चिंतन तो यहाँ है मगर भारत के भविष्य के अनेक मुद्दों पर हमारी दृष्टि धुंधलाई सी हो गयी है ....यह स्थिति  कतई उचित नहीं कही जा सकती ..आईये हम इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठायें या फिर एक जापान  सरीखी किसी नियति के लिए तैयार रहें ...

Wednesday, 23 February 2011

सौर सुनामी चुपके से आयी और चली भी गयी.....

सारी दुनिया जब वैलेंटाईन समारोहों में मुब्तिला थी एक सौर लपट उठी और धरती को अपने आगोश में लेने चल पडी -मानो यह एक अन्तरिक्षीय वैलेंटाईन का नजारा हो!बहरहाल वैज्ञानिकों ने अब राहत की सांस ली है की इस सौर ज्वाला  ने धरती पर ज्यादा क़यामत नहीं ढाई ....जैसा कि २००३ में दुनिया के कई देशों में सौर ज्वालाओं के चलते ब्लैक  आउट की नौबत आ गयी थी -रेडिओ सिग्नल और विद्युत् आपूर्ति तक लडखडा गयी थी ..विगत  14 फरवरी  को सौर  ज्वालाओं का तूफान  पिछले अनेक सौर लपटों की तुलना में कम शक्तिशाली था , लेकिन इसने डरा  तो दिया ही था ....

 इक सौर लपट जो  उठी है अभी 
 
दरअसल सौर लपटें सूरज के सतह पर उसकी आंतरिक विद्युत चुम्बकीय गतिविधियों से निकली अपार ऊर्जा है जो कभी कभी सूरज की समस्त ऊर्जा के दस फीसदी तक भी जा पहुँचती है -यह अन्तरिक्ष में बेलगाम दौड़ पड़ती है ...और धरती तक भी दो चक्रों में आ पहुँचती है -जिसमें पहले चक्र में तो इसका प्रकाश है जो विद्युत् चुम्बकीय चमक के रूप में धरती तक बस मिनटों में आ पहुँचता है जो विगत १३ तारीख की ही रात में आ पहुंचा था और वैलेंटाईन की पूर्व संध्या पर ही धरती का संस्पर्श कर चुका था -दूसरा उप परमाणवी कणों का भभूका है जिसे धरती का चुम्बकीय कवच रोकने में सफल होगा ,हाँ  संचार प्रणालियां अस्त-व्यस्त जरुर हो सकती हैं और उपग्रहों और अंतरिक्षयात्रियों के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है।मगर लगता है संकट टल गया है .

दरअसल सौर गतिविधियों का एक ११ वर्षीय चक्र है जिसका नया दौर बस शुरू ही हुआ है .. और सौर ज्वालाओं जैसी गतिविधि की सक्रियता एक आम बात है -जिसे वैज्ञानिकों की भाषा में कोरोनल मॉस इजेक्शन भी      कहते हैं .कुछ लोगों ने इसका एक और रोचक नामकरण किया है -सौर सुनामी! फिलहाल यह समझ लीजिये कि एक सौर सुनामी चुपके से आयी और चली भी गयी है ..हाँ चुम्बकीय कणों ने ध्रुवों पर इन्द्रधनुषी आभा जरुर बिखेरी!आप स्पेस वेदर  डाट काम पर इन सौर लप्यों की ताजा तरीन जानकारी पर नजर रख सकते हैं!यूनिवर्स टुडे पर भी नजरें गडाई जा सकती हैं .





Wednesday, 2 February 2011

सैन्य अधिकारियों ने जब पूछा मछली मछली कितना पानी!

सैन्य अधिकारियों के एक हाई प्रोफाईल पंद्रह सदस्यीय दल ने कल शाम वाराणसी के राजकीय प्रक्षेत्र ऊंदी पर मछलियों की विविध प्रजातियों का अवलोकन किया और भारत में मत्स्य पालन की तकनीकों की जानकारी ली ..उन्होंने जाना कि भारत में प्रचलित मिश्रित (कम्पोजिट ) मत्स्य पालन में कैसे तीन देशज प्रजातियों कतला ,रोहू ,नैन और तीन विदेशी प्रजातियों ग्रास कार्प, सिल्वर कार्प, और कामन कार्प को एक साथ तालाबों में पाला जाता है .इनसे एक वर्ष में एक हेक्टेयर के तालाब से आसानी से पांच हजार किलो मछली का उत्पादन कर एक लाख रूपये तक का शुद्ध लाभ लिया जा सकता है .
 उंदी मत्स्य प्रक्षेत्र की जल श्री -रोहू 

भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के नियंत्रणाधीन राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय के मेजर जनरल अनिल मलिक के नेतृत्व में दक्षिण अफ्रीका, जापान, मलेशिया, यूएई व भूटान सेना के अफसरों समेत 15 सदस्यीय दल के प्रत्येक सदस्य को राज्य अतिथि का दर्जा दिया गया था ...सभी सदस्यों ने मछलियों की पाली जा रही प्रजातियों ,उससे जुड़े क्षेत्रीय विकास ,लाभ लागत से जुडी अनेक जिज्ञासाएं प्रगट कीं ....जिनका समाधान वर्तमान में उंदी पर कृषि तकनीक प्रबंध समिति  (आत्मा -एग्रीकल्चर टेक्नोलोजी मैनेजमेंट कमेटी ) के अधीन गठित कृषक सहायता समूह के अध्यक्ष मक़सूद आलम और मेरे द्वारा दी गयी .
बनारस में उंदी मत्स्य प्रक्षेत्र पर वर्तमान में मछली पालन का एक प्रदर्शनीय माडल तैयार हो गया है जिसे दूसरी जगहों पर अंगीकार किया जा सकता है ...आप भी जब बनारस आयें तो इस मत्स्य प्रक्षेत्र पर आपका स्वागत है ,सैन्य अधिकारियों ने इसे पसंद किया तो आप भी पसंद कर सकते हैं ..

स्थानीय अखबारों ने इस खबर को सुर्ख़ियों में जगह दी है -

सैन्य अफसरों ने उंदी में देखा मत्स्य पालन



Saturday, 29 January 2011

चुम्बन विज्ञान यानि फिलेमैटोलाजी के बारे में क्या जानते हैं आप ?

कहाँ चुम्बन जैसा सरस मन हरष विषय और कहाँ विज्ञान की नीरसता ..आईये मानवीय सर्जना के इन दोनों पहलुओं में तनिक सामंजस्य बिठाने का प्रयास करे .. चुम्बन के विज्ञान(philematology )  पर एक  नजर डालते हैं! 
विज्ञान की भाषा में चुम्बन -आस्कुलेशन(osculation)   किन्ही भी दो व्यक्तियों के बीच की  सबसे घनिष्ठ अभिव्यक्ति है जिसके चलते कितनी ही साहित्यिक ,सांगीतिक और चित्रकलाओं की गतिविधियाँ उत्प्रेरित - अनुप्राणित हुयी हैं ...कहते हैं कुछ चुम्बनों या उनकी दरकार ने इतिहास के रुख को भी पलट दिया है ..मगर यह सब यहाँ विषयांतर हो जाएगा -यहाँ साईंस ब्लॉग की भी मर्यादा तो बनाए रखनी है न ..बाकी सब के लिए तो क्वचिदन्यतोपि है ही ....निश्चय ही  चुम्बन एक नैसर्गिक सी लगने वाली अनुभूति है मगर क्या यह सहज बोध प्रेरित गतिविधि है ? आकंडे कहते हैं कि दुनिया में तकरीबन दस फीसदी लोग आपस में अधरों का स्पर्श  तक नहीं होने देते ..तब  भी इसे आखिर क्या सार्वभौमिक सांस्कृतिक गतिविधि मान ली जाय ? बहुत से वैज्ञानिक इसे महज सांस्कृतिक गतिविधि नहीं मानते .....चुम्बनों का पारस्परिक विनिमय साथी के कितनी ही जानकारियों का अनजाने ही साझा करा देती है ...हम प्रेम रसायनों -फेरोमोंस का साझा करते हैं ....  प्रेम रसायनों(डोपा माईन,सेरोटोनिन आदि )    का एक पूरा काकटेल ही साझा हो जाता है और हमारे सामजिक बंध को और मजबूती दे देता है ,तनाव घटाता है ,उत्साह उत्प्रेरण और हाँ सुगम यौनिकता की राह भी प्रशस्त करता है यानि जैसा भी  संदर्भ /अवसर हो .....हम पर एक जनून तो तारी हो ही जाता है -यह सचमुच प्रभावकारी और सशक्त है -आजमाया हुआ नुस्खा है अगर किसी ने न आजमाया हो तो फिर हाथ कंगन को आरसी क्या ? 

सहज चुम्बन दिव्य सुखाभास की अनुभूति देता है ...और मस्तिष्क के 'प्रेमिल क्षेत्रों' को प्रेरित कर प्रेम रसायनों का एक पूरा डोज रक्त धमनियों में उड़ेल देता है ...यह सब महज सामाजिक औपचारिकताओं से भी निश्चय ही अलग एक कार्य व्यापार का संसार सृजित करता है ....हम जानते हैं हमारे नर वानर कुल के कुछ सदस्य अपने बच्चों को मुंह से मुंह खाना खिलाने के दौरान अधरों के संपर्क में आते हैं और शायद चुम्बन-व्यवहार का उदगम   इसी गतिविधि से ही  हुआ हो मगर ज्यादातर वैज्ञानिक मानते हैं कि इसका उदगम और विकास साथी के लैंगिक चयन में भी  भूमिका निभाते हैं -इसी दौरान साथी की शारीरिक जांच भी इस लिहाज से हो जाती है कि उनका जोड़ा संतति वहन के लिए  पूर्णतया निरापद है भी या नहीं ...मतलब संतानोत्पत्ति और उनके लालन  पालन में तो कहीं कोई लफड़ा नहीं रहेगा -यह सब रासायनिक परीक्षण चुम्बन के  दौरान ही अनजाने हो जाता है ....कितने ही प्रेम सम्बन्ध इन्ही कारणों से आगे नहीं बढ़ पाते -रासायनिक लाल झंडी है चुम्बन ....फिर शुरू होता है तुम अलग मैं अलग की कहानी और असली माजरा समझ में नहीं आता ...कई बार तो पहला चुम्बन ही निर्णायक हो जाता है ..अवचेतन तुरत फुरत भांप जाता है की अरे यह नामुराद तो बच्चे की जिम्मेदारी नहीं उठा पायेगा ...वैज्ञानिकों की माने तो चुम्बन भावी घनिष्टतम संपर्कों की देहरी है ..लाघ गए तो चक्रव्यूह का  अंतिम फाटक भी फतह नहीं तो देहरी पर ही काम तमाम .....
तो यह चुम्बन -आलेख शेरिल किरशेंनबौम की 'द साईंस आफ किसिंग' पुस्तक से परिचय कराने के लिए और किसी को नजराने के लिये लिखा गया है ...और अगर आपमें और अधिक जिज्ञासा जगा सका तो अंतर्जाल अवगाहन का विकल्प तो आपके पास है ही -हम विज्ञान संचारको का काम बस प्यासे को कुंए तक पंहुचा देना भर है ....पानी आप खुद निकालिए और पीजिये .....
एक मिनट का यह वीडियो भी देख सकते हैं ....



http://www.youtube.com/watch?v=7ykfQANwS_w&feature=player_embedded