tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post893289030376357042..comments2023-11-18T03:53:14.179-08:00Comments on साईब्लाग [sciblog]: ......और हो आग दोनों तरफ़ बराबर लगी हुयी .... पशु पक्षियों के प्रणय सम्बन्ध (6)-(डार्विन द्विशती विशेष ब्लागमाला )Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-22862128044562385402009-07-27T05:30:36.500-07:002009-07-27T05:30:36.500-07:00@उन्मुक्त जी ,धयान रखूंगा!@उन्मुक्त जी ,धयान रखूंगा!Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-2368454391053800882009-07-27T05:20:42.007-07:002009-07-27T05:20:42.007-07:00Gajab.Gajab.Science Bloggers Associationhttps://www.blogger.com/profile/11209193571602615574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-27787436230866355332009-07-26T18:34:19.372-07:002009-07-26T18:34:19.372-07:00आप । या , या ( ) या ! चिन्ह जगह देकर क्यों लगाते ह...आप । या , या ( ) या ! चिन्ह जगह देकर क्यों लगाते हैं। मेरे विचार से यह शब्द के समाप्त होते लगने चाहिये। इस तरह से लगाने पर यह अक्सर पंक्ति के शुरू में आ जाते हैं। जैसे इस चिट्ठी के तीसरे पैराग्राफ की दूसरी पंक्ति में हो रहा है। यहां ) चिन्ह पंक्ति के शुरू में लगा है। यह कुछ अजीब लगता है।उन्मुक्तhttps://www.blogger.com/profile/13491328318886369401noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-46716965539456306122009-07-26T03:29:25.870-07:002009-07-26T03:29:25.870-07:00बेहतरीन जानकारी.बेहतरीन जानकारी.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-81023213971242120642009-07-26T01:46:28.792-07:002009-07-26T01:46:28.792-07:00@शरद जी वैसे तो मनुष्यता हर दृष्टी से प्रकृति के व...@शरद जी वैसे तो मनुष्यता हर दृष्टी से प्रकृति के विरुद्ध हैं ..आप क्या सिखने की बात कर रहे हैं ?<br /><br />वहां सिर्फ जरूरतें हैं ..यहाँ समकालीन समाज की नीतियाँ (भले ही सापेक्ष) भी है अपवादों को छोड़ दिया जाय तब ..दुबारा कहती हूँ, मनुष्यता प्रकृति के विरुद्ध ही है.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-13015021704714437252009-07-25T21:28:03.992-07:002009-07-25T21:28:03.992-07:00ज्ञानवर्धक. हम होते तो इस वीडियो को भी चिपका देते
...ज्ञानवर्धक. हम होते तो इस वीडियो को भी चिपका देते<br />http://www.youtube.com/watch?v=nS1tEnfkk6MP.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-14406340157748237632009-07-25T14:08:39.352-07:002009-07-25T14:08:39.352-07:00भय निद्रा मैथुन आहार यह प्राणि जीवन की जैविक विशेष...भय निद्रा मैथुन आहार यह प्राणि जीवन की जैविक विशेषतायें हैं मनुष्य सदा प्राणियों से सीखता आया है मछ्लियों से हमने साँस लेना सीखा है काश प्रनय लीला भी सीख लेते तो शायद संसार मे इतना अनाचार ना होताशरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-89877985469039105702009-07-25T09:00:30.778-07:002009-07-25T09:00:30.778-07:00बहुत बढ़िया लेख-माला!बहुत बढ़िया लेख-माला!Vinayhttps://www.blogger.com/profile/08734830206267994994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-40170484900640114012009-07-25T07:40:03.036-07:002009-07-25T07:40:03.036-07:00अच्छी जानकारी.अच्छी जानकारी.डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-90461307573365171442009-07-25T07:38:53.170-07:002009-07-25T07:38:53.170-07:00सुंदर सूचनाएँ दे रहे हैं आप! मुझे तो इस से बहुत कु...सुंदर सूचनाएँ दे रहे हैं आप! मुझे तो इस से बहुत कुछ जानने को मिल रहा है जीवजगत के व्यवहार के मामले में।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com