tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post6143888142863805553..comments2023-11-18T03:53:14.179-08:00Comments on साईब्लाग [sciblog]: साइब्लाग की भूमिका नंबर दो-धर्म और विज्ञानArvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-21901870688782343302009-08-30T09:16:18.435-07:002009-08-30T09:16:18.435-07:00शब्दों का आशय वही होता है जो प्रदत्त समय में उसके ...शब्दों का आशय वही होता है जो प्रदत्त समय में उसके प्रचलित अर्थ में ध्वनित होता है।<br /><br />धर्म के मूल में आस्थाएं और परंपराएं होती है।<br />वहां संदेह और तर्क के लिए सामान्यतयाः कोई जगह नहीं होती।<br /><br />तर्कबुद्धि के जरिए जब विश्व और मनुष्य के साथ उसके संबंधों की तार्किक व्याख्याएं की जाने लगी तो उसे एक नये शब्द फ़िलासाफ़ी से पुकारा जाने लगा।<br /><br />इस शब्द का ही हमारा पारंपरिक पर्याय दर्शन है।<br /><br />संदेहों ने विज्ञान तक पहुंचाया, और तर्कों ने दर्शन तक। दोनों एक दूसरे से नाभिनालबद्ध हैं।<br /><br />दर्शन के तार्किक निष्कर्षों ने विज्ञान के लिए ऊर्वर भूमि प्रदान की, वहीं विज्ञान की खोजों और नियमसंगीतियों ने दर्शन को एक सार्विक रूपता प्रदान की।<br /><br />आप के लेख और अन्योनास्ति की टिप्पणी में जो आकांक्षा ‘धर्म’ शब्द से इच्छित है, वह आपको इस ‘दर्शन’ शब्द में ही मिल सकती है।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-34067003017309645442008-08-17T09:23:00.000-07:002008-08-17T09:23:00.000-07:00आप् का लेख बहुत सटीक है । मेर मानना है कि धर्म आज ...आप् का लेख बहुत सटीक है । मेर मानना है कि धर्म आज के युग की सबसे बडी आवश्यकता है ,क्यों कि धर्म सनातन शाश्वत होता है और सबसे बडी बात यह है कि धर्म प्राक्रतिक होता है ; यह हमें प्रक्रितिके निकट लेजाता है । यहां धर्म से मेराआशय निरुक्ति द्वारा परिभाषित "ध्र "(क्रप्या शुद्ध पढें सफ्ट्वेर सही है )धातु से जिस् की उत्पत्ति कही गयी है नकि अंगरेजी के रिलीजन से , जिसका वास्तविक भावार्थ सम्प्रदाय होता है । धर्म अपने आप जन्म लेता है ,जबकि सम्प्रदाय किसि न किसी द्वारा स्थापित या प्रतिपादित । धर्म समाज को जोडता है ,सम्प्रदाय समाज को सीमित करता । आस्था और श्रद्धा के ज्वार तक तो सम्प्रदायिकता स्विकार्य है ,परन्तु जब यही आस्था और श्रद्धा अन्ध-रुढिवादता में परिवर्तित हो जाती है तो समाज को तोडने वाली होजाती है ;विषकुम्भ होजाती । <BR/> आप पायेंगे कि इसी प्रकार कई और शब्द भी गलत परिपेक्ष्य मे परिभाषित किये जा रहे हैं । <BR/><BR/>ऐसा ही एक शब्द " शूद्र "है ; क्षुद्र असमाजिक विचार धारा एवं मानसिकता तथा बुद्धिहीनता को प्रगट करने वाले शब्द को व्यर्थ दोष दिया जा रहा है । <BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/>d'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::https://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com