tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post5961458845586278731..comments2023-11-18T03:53:14.179-08:00Comments on साईब्लाग [sciblog]: आईये मनोविज्ञान और व्यवहार शास्त्र के फर्क को समझें!Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger60125tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-28034553090993463472010-07-21T09:07:59.109-07:002010-07-21T09:07:59.109-07:00लेख फिर उसके बाद हुये शास्त्रार्थ से खूब ज्ञानवर्ध...लेख फिर उसके बाद हुये शास्त्रार्थ से खूब ज्ञानवर्धन हुआ । <br />बहुत दिनों के बाद आया हूं । सुबह का भूला अगर दूसरे दिन की शाम को लौट आये तो भी उसे क्या आप भूला ही कहेंगे । आभार ।कृष्ण मोहन मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/14783932323882463991noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-25413510418175521482010-06-23T06:40:58.957-07:002010-06-23T06:40:58.957-07:00फूल् किसे चढायें इतने दिन से ध्यानलगा कर बैठे थे। ...फूल् किसे चढायें इतने दिन से ध्यानलगा कर बैठे थे। गिरिजेश जी हुकम दें । सुन देख पढ रहे हैं दिल्चस्प विषय को<br /> धन्यवाद । शुभकामनायेंनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-61242836688428747582010-06-20T05:10:39.315-07:002010-06-20T05:10:39.315-07:00आप ने कहा-
वयस्क मनुष्य में सहज बोध बस संभवतः सिक्...आप ने कहा-<br />वयस्क मनुष्य में सहज बोध बस संभवतः सिक्स्थ सेन्स तक ही रह गया है -क्योंकि उसने तंत्रिका विकास में सर्वोच्च स्थान ले रखा है -बुद्धि का प्रयोग यहाँ प्रधान है ! <br />इस के उपरांत शायद बहस का निष्कर्ष ही निकल आया है। मुझे लगता है कि लवली जी भी यही कहना चाहती हैं।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-15652523454476570322010-06-11T10:48:51.268-07:002010-06-11T10:48:51.268-07:00मैं तो चित्र ही देखती रह गयी..पढ़ सब लिया लेकिन सिर...मैं तो चित्र ही देखती रह गयी..पढ़ सब लिया लेकिन सिर्फ चित्र दिमाग पर अंकित हो गया..दोनों की मासूमियत , अजब दृश्य ..और नियति का खेल.Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-86988900178943237602010-06-11T05:39:20.522-07:002010-06-11T05:39:20.522-07:00उपर्युक्त लिंक पर मेरे निम्न विचार पोस्ट किये गए थ...उपर्युक्त लिंक पर मेरे निम्न विचार पोस्ट किये गए थे मगर उन्हें प्रकाशित नहीं किया गया ....<br /> यह अकादमीय सहिष्णुता और स्वस्थ परम्पराओं विरुद्ध है और अपने वैचारिक विरोधी को येन केंन प्रकार उपेक्षित करने<br /> की कुटिल नीति है -ऐसा पहले भी हो चुका है -इन हथकंडों से क्या कभी गहन विचार विमर्श हो सकता है?<br /> मैं अपनी टिप्पणी यहाँ अभिलेखार्थ ,आगामी यथावश्यक संदर्भ और सुधी जनों के परिशीलानार्थ हेतु प्रस्तुत करता हूँ-<br /><br /> १-डेज्मांड मोरिस के भी कुछ मुखर विरोधी हैं ,डार्विन के भी थे .....और हैं आज भी ...फिर भी उनकी जैव विज्ञान व्यवहार शास्त्र में आज एक सम्मानजनक पोजीशन है !<br /> २-सहज बोध/वृत्ति और अनुवर्ती प्रतिवर्त दोनों अलग विषय हैं -एक नहीं ,आप अनुवर्ती प्रतिवर्त की चर्चा कर रही है जो मूलतः आनुवंशिक उद्गम का है -हाथ से अचानक छूती चीज को सहसा उठाने का उपक्रम एक ऐसा ही अनुवर्त है -खतरनाक भी हो सकता है -हाथ से छूता रेजर ,उस्तरा पकड़ने के चक्कर में आपके हाथ को घायल कर सकता है ..जाहिर है इसमें चेतनता का कोई रोल नहीं है !<br /> ३अपने आदिवासी औरतों की संकल्पना की जांच आप उन्हें वहां से दूसरे समाज लाकर कर सकती है ! उनके समाज में एक दूसरा व्यवहार हैबिचुयेशन प्रभावी होता है -रूस के कुछ क्षेत्रों में अनावृत्त बक्श महिलायें लोगों को आकर्षित करती हैं लोग तवज्जो ही नहीं देते -नंगा बाबा नंग धडंग घूमते हैं -कोइ प्रभाव नहीं रहता -यह हैबिचुएशन है !<br /> अभी और पढ़िए !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-69137520034387116862010-06-10T10:48:57.561-07:002010-06-10T10:48:57.561-07:00@ एल.गोस्वामी जी और डाक्टर अरविन्द मिश्र जी
सबसे...@ एल.गोस्वामी जी और डाक्टर अरविन्द मिश्र जी <br /><br />सबसे पहले देर से आने के लिये खेद ...कार्याधिक्य था सो समय पर प्रतिक्रिया नही दे पाये ! मित्रो सर्वप्रथम तो यह निवेदन कि यहां कोई अदालत नही है हम भी आपके समान इस मुद्दे पर अपने विचार रखने के अभिलाषी माने जायें ! <br />अब आप दोनो महानुभावों से एक सवाल ...क्या यह सम्भव है कि विषय पर चर्चा के समय आप दोनों एक दूसरे को सम्बोधित किये बिना केवल विषयगत विचार प्रस्तुत करें ?<br />पहले क्या हुआ ? जो भी हुआ , बुरा हुआ ?<br />शल्य क्रिया ...आरोप प्रत्यारोप... समय लगेगा घावों के भरने मे ...! क्या आपको नही लगता कि हम सब पारस्परिक सौजन्यता के अधिकारी है ?<br />मित्रो अतीत को कुरेदने के बजाये अगर वर्तमान को 'सहज' कर आगे बढने की सम्मति आप दोनों दे सकें तो शुभचिंतकों को हार्दिक प्रसन्नता होगी ! केवल और केवल आग्रह...एक दूसरे को सम्बोधित करनें की बजाये 'मुद्दे' को अपने शब्द दें ! अपेक्षाओं सहित ! आदर सहित !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-32112596628929163412010-06-10T03:27:56.089-07:002010-06-10T03:27:56.089-07:00":लोग व्यक्तिगत अहम् की तुष्टि के लिए दूसरों ...":लोग व्यक्तिगत अहम् की तुष्टि के लिए दूसरों का अपमान करने पर तुले हो ऐसे में विनम्रता बोझ लगने लगाती है."<br />जी रचना जी ,यही तो मैं भी कहूं इत्ती से निर्णय के लिए इतना बहस ! कहकर पहले ही किनारा करतीं ....<br />And now she is pleading (for her) innocence before Ali Sa!Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-26960571609382125152010-06-10T03:23:14.648-07:002010-06-10T03:23:14.648-07:00अली सा ,
मामला अब आपकी अदालत में पहुँच गया है ह...अली सा ,<br />मामला अब आपकी अदालत में पहुँच गया है हुजूर -मगर मुझे सुनवाई का अवसर दिए कोई फैसला मत सुना दीजियेगा हुजूर ! यह रहा कैवियेट -<br />अब देखिये न क्या क्या न कहा गया है मेरे खिलाफ अब तक -<br />(संदर्भ-http://anvarat.blogspot.com/2010/06/blog-post_05.html और यह पोस्ट )<br />"आपके उस भ्रम का निवारण करुँगी...जो आपको इस अंतिम स्थिति पर खिंच लाया है."<br />(भ्रम का निवारण -कौन करेगा ? मैं करूंगी ? विशेषज्ञता का आधार ? अंतिम स्थिति -कृपया पढ़ें पागलपन !)<br />"एक वाक्य तो आप मेरी लिखी मान्यता को गलत कोट कर न सके" .<br />( यह दंभ है या फिर ?किस बात का दंभ ? )<br /><br />"मानव के व्यवहार का अध्ययन मनोविज्ञान में ही किया जाता ई ..और वो ही मेरा क्षेत्र है."<br />(इस घोषणा का कोई आधार ? इस विषय में कोई ख़ास डिग्री वगैरह ? )<br /><br />-- कृपया अपने भ्रमो को जबरजस्ती मेरे उपर आरोपित न किया करे ..<br />(ऐसा कब किया? भ्रम और आरोपण -एक वाक्य में दो आरोप )<br />सहज वृत्ति की जड़ें आनुवंशिकी में निहित होती हैं - इस पर सिर्फ हँसा जा सकता है.<br />(ज्ञान का यही स्तर असली है )<br /><br />भ्रम मिश्रित पूर्वाग्रह के साथ शेष जिंदगी चैन से महान होने का भ्रम पाले रहें ..<br />(भ्रम मिश्रित पूर्वाग्रह -मगर किसका ? शेष जिन्दगी -शीघ्र मृत्यु का श्राप! -आखिर इतना क्लेश क्यूं ? )<br />इतने आक्रामक मनुष्य के सामने जाकर मुझे फिजिकल वायलेंस का खतरा सताने लगता है<br />(आक्रामक मनुष्य ? फिजिकल वायलेंस -मुझ पर किसी भी अदालत में कोई ऐसा आरोप लंबित नहीं है -बिना पास्ट रिकार्ड देखे ऐसा गहन आरोप ? फिजिकल वायलेंस में बलात्कार भी आता होगा ? इसे प्रोवोकेशन समझा जाय ?<br />अभद्र व्यवहार और असभ्यता आपके लिए सामान्य बात है<br />(यह देखिये फैसला आ गया -मेरे कितने ब्लॉग मित्र ऐसा मेरे बारे में कहते हैं ? )<br />मनोविज्ञान में अपनी सीमाएं स्वीकार कर लीजिये . वरना यह अज्ञानतापूर्ण अहंकार बना रहेगा.<br />(यह किसका अहंकार बोल रहा है ?)<br />मुर्ख किसे बनाते हैं ? अपने पाठकों को ?<br />(यह भी एक महाज्ञानी होने का बोध ! )<br />पहले खुद समझ लीजिये फिर किसी को समझाइये.<br />(यह भी उपदेशात्मक !)<br />मनोविज्ञान पर अपने ज्ञान को अद्यतन करिए ..तब प्रवचन दीजिये<br />(यह भी ज्ञान वाणी !)<br />अब आप फैसला कीजिये !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-38345273065028723902010-06-09T22:07:08.199-07:002010-06-09T22:07:08.199-07:00..लोग व्यक्तिगत अहम् की तुष्टि के लिए दूसरों का अप.....लोग व्यक्तिगत अहम् की तुष्टि के लिए दूसरों का अपमान करने पर तुले हो ऐसे में विनम्रता बोझ लगने लगाती है.<br /><br />behas to abhi khatam nahin hui haen , padh rhaey haen par yae niskarsh nikalnae kae liyae itni behas ki jarurat kyun padi !!!!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-32170252966023678732010-06-09T21:29:28.136-07:002010-06-09T21:29:28.136-07:00@अली जी - मैं कुछ नही बोलना चाहती थी .. ..आप देख ...@अली जी - मैं कुछ नही बोलना चाहती थी .. ..आप देख सकते हैं मैंने पूरी बहस में सिर्फ अपने ऊपर लगाये गए आरोपों का ऊत्तर दिया है ..कोई कब तक बर्दाश्त करेगा ..कोई सीमा तो होती होगी ...?<br /><br />..लोग व्यक्तिगत अहम् की तुष्टि के लिए दूसरों का अपमान करने पर तुले हो ऐसे में विनम्रता बोझ लगने लगाती है. जैसा की मैं कह चुकी ... अब जब पूरा ज्ञान उलीच लें मित्रगन तब ही मैं जवाब दूंगी.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-34708308471431415332010-06-09T17:04:04.168-07:002010-06-09T17:04:04.168-07:00@अली सा ,आप पीड़ित हुए समझिये हम पीड़ित हुए ...
मगर ...@अली सा ,आप पीड़ित हुए समझिये हम पीड़ित हुए ...<br />मगर दिल कड़ा करके रखिये न -<br />मनुष्य के इतिहास में ये स्थितियां कोई नवीन नहीं हैं<br />इनकी पुनरावृत्ति होती रही है -<br />मैं मुखौटों छल प्रपंच को पसंद नहीं करता ...<br />और ऐसी शक्तियां मुझसे दैव योगात टकराती तो हैं मगर अपना रास्ता नापती हैं<br />और समय के बियाबान में खो जाती हैं ...<br />ऐसा होता आया है फिर वही घटित हो रहा है !<br />इसमें कुछ भी नया नहीं !मेरा अंतर्बोध भवितव्यता को भांप रहा है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-60925664772005175052010-06-09T16:56:34.633-07:002010-06-09T16:56:34.633-07:00द्विवेदी जी ,
सहज बोध जैवीय विकास यात्रा में तंत्र...द्विवेदी जी ,<br />सहज बोध जैवीय विकास यात्रा में तंत्रिका तंत्र के क्रमिक विकास के आरंभिक चरण का एक प्रमुख व्यवहार प्रतिरूप है जो पूरी तरह नैसर्गिक /वंशानुगत व्यवहार है -कई कीट पतंग अपना पूरा जीवन चक्र सहज बोध /वृत्ति (एक ही है दोनों=इंस्टिंक्ट ) के प्रभाव में पूरा कर डालते हैं -तैतैये मिट्टी का घरौंदा बनाते हैं ,अंडे देते हैं मर जाते हैं -अन्डो से बच्चे निकल कर बिना माँ बाप के सिखाये ठीक वही व्यवहार अपनाते हैं .नवजात पक्षी लम्बी प्रवास यात्राओं पर चल देते हैं जबकि उनके माँ बाप उन्हें छोड़ पहले ही उड़ चले होते हैं -कौन दिखाता है उन्हें रास्ता ? यही सहज बोध है ! अनेक उदाहरण हैं !<br />आप दुरुस्त फरमा रहे हैं वयस्क मनुष्य में सहज बोध बस संभवतः सिक्स्थ सेन्स तक ही रह गया है -क्योंकि उसने तंत्रिका विकास में सर्वोच्च स्थान ले रखा है -बुद्धि का प्रयोग यहाँ प्रधान है ! मगर यह मनुष्य में पूरी तरह से लुप्त हो गया हो गया हो नहीं कहा जा सकता है ...बच्चों में सहज बोध की कुछ गतिविधियाँ दीखती हैं बाद में उनकी जगह अधिगम मतलब सीखना ले लेता है-Sci ब्लॉग पर .हम प्राणी व्यवहार में इन व्यवहार प्रतिरूपों का अध्ययन करते ही आये हैं और करते ही रहेगें -यह सब मेरे ज्ञान का प्रदर्शन नहीं बल्कि अपने अल्प अर्जित ज्ञान को बाँटने /साझा करने की एक कशिश भर है बस!<br />इन विषयों में बेसिक्स की सही समझ जरूरी है जिसके लिए गहन अध्ययन जरूरी है वरना सब गुण गोबर है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-14256250318684122082010-06-09T12:03:26.093-07:002010-06-09T12:03:26.093-07:00कई बार आये और टिप्पणियां पढ़कर दुखी मन से वापस लौट...कई बार आये और टिप्पणियां पढ़कर दुखी मन से वापस लौटे भला इस तरह के माहौल में कोई भी प्रतिक्रिया सहज कहां रह पायेगी ? कुछ टिप्पणीकारों ने विषयांतर की कोशिश क्यों की होगी इसे समझा जा सकता है ! एक अच्छे खासे मुद्दे पर व्यक्तिगत समस्याओं जैसी प्रेत छाया और कटुता का अतिरेक ... कम से कम हमें अच्छा नहीं लगा ! कतिपय शब्द / संबोधन जिनके उपयोग के बिना भी बहस आगे बढ़ाई जा सकती थी पर... ! <br />निवेदन मात्र इतना है कि गंभीर मुद्दों पर चर्चा के समय विनयशीलता अपेक्षित है ! कृपया यह भी सुन लीजिये कि हम जैसे मित्र आते तो संवाद की गरज से हैं पर अनघट के अंदेशे और अनहोनी की आशंका लिये पलट पड़ते हैं ! अतः अब आप ही तय करेंगे कि हम यहां ठहरें या प्रस्थान करें ?उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-16601047275519982242010-06-09T09:00:16.334-07:002010-06-09T09:00:16.334-07:00आप ने अपने इस आलेख में सहजबोध की बात की है। लेकिन ...आप ने अपने इस आलेख में सहजबोध की बात की है। लेकिन मुझे यह सहजबोध मनुष्य का सामान्य व्यवहार नहीं लगता। मनुष्य में एक नई चीज विकसित हुई है और वह है, चेतना (consciousness)। मेरे विचार में एक वयस्क मनुष्य के व्यवहार में सहजबोध से बहुत अधिक उस की चेतना की भूमिका है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-23096310404519139122010-06-09T08:33:48.832-07:002010-06-09T08:33:48.832-07:00Sorry I am writing in English. There is reason for...Sorry I am writing in English. There is reason for that.<br /><br />Girish ji, like I said, there is difficulty in writing words of different language in Devnagri. The words I wrote are names. In my opinion, they can be written as you write them or as I write them both are correct. It depends where you live and how it is pronounced at that place. But I am not an expert in this field and I could be wrong. Ajit ji is the right person to throw some light on it. <br /><br />I had met a Finnish lady and did talk to her about Linux and then wrote a post '<a href="http://unmukt-hindi.blogspot.com/2007/08/helga-katherine-linux.html" rel="nofollow">हेलगा कैटरीना और लीनुक्स</a>'. She did tell me the same pronunciation as you have told me. However I happen to talk technical people about it and when I pronounce लीनुक्स they laugh at me so I have changed. <br /><br />There is no problem in SCIM so far as writing any ऋ और र से जुडी और मात्राए. If you could tell me the words then I can tell you how to write them. It is quite easy.<br /><br />In phonetic keyboard in SCIM, you can write the following as<br />पृथ्वी = pRTvI<br />प्रार्थना = pfrarfTna <br />ऋ = ] <br />ऱ = }उन्मुक्तhttps://www.blogger.com/profile/13491328318886369401noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-87462713447368800242010-06-09T07:57:29.791-07:002010-06-09T07:57:29.791-07:00@इस अंतिम परीक्षा में भी आप उत्तीर्ण हो गए वत्स !इ...@इस अंतिम परीक्षा में भी आप उत्तीर्ण हो गए वत्स !इस धरती की निर्दंद्व उपभोग करो अब -वीर भोग्या वसुंधरा !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-17108996995624686752010-06-09T07:36:37.119-07:002010-06-09T07:36:37.119-07:00@ उन्मुक्त जी,
सहमत हूं. लेकिन लिनेक्स नहीं लिनुक...@ उन्मुक्त जी, <br />सहमत हूं. लेकिन लिनेक्स नहीं लिनुक्स या लिनक्स <br />उबुन्तू और फेडोरा . :) <br /> मैंने सबका प्रयोग किया है लेकिन लिनुक्स में ऋ और र से जुडी और मात्राए कष्ट देती हैं . मैं scim का प्रयोग करता हूँ. कोइ और राह हो तो बताइए .<br /><br />@ अरविंद जी<br />- गुस्सा हो आती - गुस्सा आ जाता है. वैसे गुस्सा पुल्लिंग है. <br />- सुन्दर वर्तनी मुक्त टिप्पणी - सुन्दर वर्तनी दोष मुक्त टिप्पणी <br />- इन दोनों नामालूम प्रेत विनाशक न जाने कहाँ हैं ? - नामालूम इन दिनों प्रेत विनाशक कहाँ हैं ?<br /><br />:)गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-39319327036363899792010-06-09T06:19:29.801-07:002010-06-09T06:19:29.801-07:00@दिनेश जी :-D ...इस व्याख्या के लिए आपकी निश्चय ही...@दिनेश जी :-D ...इस व्याख्या के लिए आपकी निश्चय ही तारीफ की जानी चहिये ..."सुन्दर"<br />विवाद सामने आएगा यह पूर्व पीठिका है ... पहला मौका अरविन्द जी के पास है ...पहले वे लिख लें.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-54022378224615070152010-06-09T05:53:05.654-07:002010-06-09T05:53:05.654-07:00बहस बहुत अच्छी चल रही है। नतीजे निश्चित रूप से अच्...बहस बहुत अच्छी चल रही है। नतीजे निश्चित रूप से अच्छे ही होंगे। तीखापन भी है, लेकिन हम कोटा वालों को तो कचौड़ियों की आदत पड़ी हुई हैं, जिन में तेज मिर्चें होती हैं, गरम-गरम कड़ाही से निकलते ही सब को सब से पहले चाहिए। कतार खत्म होने के पहले कड़ाही से निकली कचौड़ियां खत्म हो जाती हैं। जब कि एक घाण में कम से कम तीन सौ निकलती होंगी। फिर खाने वाला सी...,सी... करता हुआ खाता जाता है, पर पानी के नल या टंकी के पास खड़ा हो कर। <br />सो इस तीखी मिर्चों के स्वाद वाली चर्चा मैं आनंद खूब है। बस ठंडे पानी की बोतल पास रखनी पड़ रही है। वैसे कोई बड़ा और मौलिक विवाद सामने नहीं आ रहा है। पर दोनों विषयों इथोलॉजी और साइकोलॉजी के बारे में बहुत कुछ जानने को मिल रहा है। अरविंद जी और लवली जी से दोनों विषयों पर और भी बहुत कुछ जानने की इच्छा है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-44940438508937946012010-06-09T03:28:17.616-07:002010-06-09T03:28:17.616-07:00@ लिंक के लिए धन्यवाद वह ..और टॉप के सारे psycholo...@ लिंक के लिए धन्यवाद वह ..और टॉप के सारे psychology विषयक इंग्लिश ब्लॉग मैं रेग्युलर ही पढ़ती हूँ.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-17933182453546944482010-06-09T03:13:59.012-07:002010-06-09T03:13:59.012-07:00पहले अरविन्द जी पोस्ट पूरी कर ले ..फिर मैं इसका जव...पहले अरविन्द जी पोस्ट पूरी कर ले ..फिर मैं इसका जवाब लिखूंगी ... ऐसे ४-५ लाइन के कमेन्ट से कुछ नही होने वाला है.<br /><br />हर किसी की सीमाएं होती ही है ..आलोचना भी ..पर इन्सान के पास दिमाग भी होता है जो उन्हें सही से व्याख्यायित करके समाधान निकालता है. अब जब तक अरविन्द जी निष्कर्ष न लिख दें .मैं टिप्पणी नही करुँगी . आपका लेख पूरा हो जाए फिर मैं लिखूंगी. <br />@ab inconvenienti - आपसे कई मामलों में सहमत रही हूँ ..पर व्यवहार शास्त्र समय के साथ बहुत प्रोग्रेस कर चुका है ..मेरा मंतव्य उस और ध्यान दिलाना भी है. अरविन्द जी से मुझे कोई आशा नही है .. वे अक्सर जो करते आये हैं ..वही कर रहे हैं ..यानि व्यक्तिगत आक्षेप लगाना ..पर आपसे इस विषय में बात होगी.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-31145016466527551342010-06-09T02:58:49.727-07:002010-06-09T02:58:49.727-07:00कहा कुछ जाता है लोग समझ कुछ लेते हैं!!!
मैंने कहा...कहा कुछ जाता है लोग समझ कुछ लेते हैं!!!<br /><br />मैंने कहा की नए शोधों से मोरिस के शोधों में कई नई बातें जुड़ी हैं, कुछ निष्कर्षों में बदलाव और कुछ संशोधित किये गए हैं. यह विज्ञान की सामान्य प्रक्रिया है, किसी का काम संपूर्ण नहीं होता, न किसी वैज्ञानिक की बात पत्थर की लकीर होती है. न्यूटन, डार्विन, मेंडल, आइन्स्टीन, फ्रायड, जुंग जैसों तक के कुछ सिद्धांत गलत या अधूरे पाए गए, इससे वे या उनका काम अप्रासंगिक नहीं हो जाता. बाकियों का तो पता नहीं पर मेरे कोई कलुषित कर्म नहीं हैं, न ही कोई हित सध रहा है. पर फिर भी मैं इसकी व्याख्या से काफी हद तक संतुष्ट हूँ. <br /><br />जो मनोविज्ञान और मानव व्यव्हार अध्ययन में रूचि रखते हों उनके लिए एक लिंक :<br /><br />http://www.psychologytoday.com/topics/evolutionary-psychologyab inconvenientihttps://www.blogger.com/profile/16479285471274547360noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-32649756714986081032010-06-09T02:55:17.844-07:002010-06-09T02:55:17.844-07:00@पहले तो यह कि काले कलुषित मंसूबों के हम लोग स्व...@पहले तो यह कि काले कलुषित मंसूबों के हम लोग स्वच्छ पवित्र आत्माओं से कोई प्रतिवाद न करें !वे देवदूतियाँ हैं !<br />यह भी बताता चलूँ कि डेज्मोंन्ड मोरिस की प्रासंगिकता आज भी है ,उनकी अद्यतन ,२००७ की पुस्तक नेकेड वूमैन है -डार्विन १५० वर्ष पहलेरहे<br />केवल इसलिए ही वे आउट डेटेड नहीं हैं -आज डार्विनवाद को अगर जैविकी से निकाल दिया जाय तो जो कुछ बचेगा वह उल्लेखनीय नहीं होगा ..<br />बाद के व्यवहार विदों में ई ओ विल्सन हैं जो समाज जैविकी के प्रणेता हैं और डेज्मोंन्ड मोरिस को उन्होंने प्रचुरता से संदर्भित किया है -मैं निजी तौर पर डेज्मोंन्ड मोरिस आधुनिक डार्विन का दर्जा देता हूँ -जैसे स्टीफेंन हाकिंग को आज का आईनस्टीन कह सकते हैं ...है क्या मित्र कि गोबर पट्टी यह इसलिए है कि यहाँ बहुत लोगों को हांकने की आदते हैं -जिनके लिए ग्रामीण इलाकों में एक कहावत प्रचलित है -बिच्छू का मन्त्र न जाने सांप के मुंह में उंगली डाले -बेसिक्स ही नहीं पता पर चले हैं विवेचन करने....बहुत अफसोसजनक परिदृश्य है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-28933186939406675592010-06-09T01:18:11.291-07:002010-06-09T01:18:11.291-07:00@ab inconvenienti @अरविन्द जी के उतना समझाने पर भी...@ab inconvenienti @अरविन्द जी के उतना समझाने पर भी ..उनका चिंतन भी आप जैसा ही एकांगी है. समग्रता से आप लोग देखना नही चाहते क्योंकि इससे आपके हित नही सध रहे ... हर व्यक्ति वही सही मानेगा जिससे की उसके कलुषित कर्मो में व्यवधान उत्पन न हो ..व्यवहार वाद भी आज Behavior Management पर जा टिका है .. एक आप लोग है ५० साल पहले की खोज से मनुष्य के व्यवहार को इंटरप्रेट करना चाह रहे हैं. जिनके पीछे आपको अपने लचर तर्क है.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-70996275150921418272010-06-08T22:41:24.703-07:002010-06-08T22:41:24.703-07:00बहुत बढिया पोस्ट और उतना ही बढिया शास्त्रार्थ।बहुत बढिया पोस्ट और उतना ही बढिया शास्त्रार्थ।Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com