tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post4765630820584877519..comments2023-11-18T03:53:14.179-08:00Comments on साईब्लाग [sciblog]: आखिर चार्ल्स डार्विन ने आखीर में यह क्या कह दिया !Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-34266301961733845702009-06-11T17:08:46.807-07:002009-06-11T17:08:46.807-07:00बहुत ही सुंदर लिखा है आपने और आपके पोस्ट के दौरान ...बहुत ही सुंदर लिखा है आपने और आपके पोस्ट के दौरान काफी जानकारी प्राप्त हुई उसके लिए धन्यवाद!Urmihttps://www.blogger.com/profile/11444733179920713322noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-49239554193710306592009-06-10T05:14:52.654-07:002009-06-10T05:14:52.654-07:00सृजनकर्ता --इस एक शब्द का लिख जाना डार्विन को दोनो...सृजनकर्ता --इस एक शब्द का लिख जाना डार्विन को दोनों तरफ से विवादों में घेर गया लगता है..<br /><br />कहीं ऐसा तो नहीं यह प्रकाशक की और से जोड़ दिया गया हो!किसी पता..OR/कहीं ऐसा तो नहीं वे खुद भी अंत तक आकर यही सोचने लगे..की कहीं तो कोई अदृश्य शक्ति है..[जिसे उन्होंने सृजनकर्ता कह दिया.]Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-81384942653722677532009-06-08T05:44:49.417-07:002009-06-08T05:44:49.417-07:00अगर हम किसी वस्तु के बारे में कहते हैं कि यह चरणबद...अगर हम किसी वस्तु के बारे में कहते हैं कि यह चरणबद्ध ढंग से बनी है, इसका यह अर्थ तो नहीं कि इसे किसी ने नहीं बनाया?zeashan haider zaidihttps://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-39317997899490129682009-06-08T03:31:54.066-07:002009-06-08T03:31:54.066-07:00जान बचानी हो तो ऐसा करना पद सकता है... और पत्नी वा...जान बचानी हो तो ऐसा करना पद सकता है... और पत्नी वाली बात भी गौर करने वाली है !Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-25987566339192444542009-06-07T22:22:11.577-07:002009-06-07T22:22:11.577-07:00हॉं, शायद वे अपने पूर्ववर्ती लोगों के हश्र को देखक...हॉं, शायद वे अपने पूर्ववर्ती लोगों के हश्र को देखकर डर गये हो। लेकिन मुझे लगता है कि वे इसके साथ ही साथ अपनी पत्नी को भी नाराज नहीं करना चाहते थे।Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-34550218797990284742009-06-07T18:40:30.329-07:002009-06-07T18:40:30.329-07:00मैंने यह पुस्तक नहीं पढ़ी इस लिये आत्मविश्वास के स...मैंने यह पुस्तक नहीं पढ़ी इस लिये आत्मविश्वास के साथ टिप्पणी करना मुश्किल है पर मुझे तो लगता है कि वे यह बताना चाहते थे कि लोगों को क्यों सृजन वाद समझ में आता है और वह क्यों जन प्रिय है।उन्मुक्तhttps://www.blogger.com/profile/13491328318886369401noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-28848177248722025442009-06-07T17:00:36.395-07:002009-06-07T17:00:36.395-07:00आभार इस ज्ञानवर्धक जानकारीपूर्ण पोस्ट के लिए.आभार इस ज्ञानवर्धक जानकारीपूर्ण पोस्ट के लिए.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-87079858178144134302009-06-07T16:47:05.225-07:002009-06-07T16:47:05.225-07:00दरअसल डार्विन की मान्यताओं पर् विवाद उनकी अस्पष्टत...दरअसल डार्विन की मान्यताओं पर् विवाद उनकी अस्पष्टताओं को लेकर ही हुआ है.पुस्तक का अंत ठीक उसी तरह है जिस तरह जीवन भर नास्तिक बने रहने के पश्चात अंत में मृत्युभय से ईश्वर की शरण मे चले जाना.<br />दूसरी बात.. हमारे यहाँ भी चार्वाक और बौद्ध दर्शन को नकारने के लिये मनु को स्थापित किया गया (सन्दर्भ:आम्बेडकर मनुस्मृती क्यों जलाई गई] तीसरी बात..यह अच्छे दर्ज़े की आस्तिकता क्या होती है? कोई खराब दर्जे की आस्तिकता भी होती है क्या?शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-51073766786419812962009-06-07T11:23:52.991-07:002009-06-07T11:23:52.991-07:00Don't interpret the way it suits you. Darvin c...Don't interpret the way it suits you. Darvin could not deny the creator as He can not be denied.मुनीश ( munish )https://www.blogger.com/profile/07300989830553584918noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-23730050833353985982009-06-07T08:43:18.567-07:002009-06-07T08:43:18.567-07:00दरअसल जिस प्रकार का विरोध इस पुस्तक पर हुआ, उसे दू...दरअसल जिस प्रकार का विरोध इस पुस्तक पर हुआ, उसे दूर करने के लिए शायद ये अंतिम पंक्तियां लिखी गई हों, यह जताने के लिए कि वे नास्तिक नहीं है। उस समय का ‘पर्सिक्यूशन’ तो जग-ज़ाहिर है ही।चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-45143573773846159912009-06-07T07:12:47.960-07:002009-06-07T07:12:47.960-07:00"क्या डार्विन तत्कालीन चर्च और पादरियों से डर..."क्या डार्विन तत्कालीन चर्च और पादरियों से डर गए थे और उन्हें आर्किमिडीज और ब्रूनो का दहशतनाक हश्र याद हो आया था जो उन्होंने यह समझौता वादी नजरिया अपना लिया ?"<br /><br />इस बात से सहमत हूँ.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-72418598314578361492009-06-07T06:18:17.099-07:002009-06-07T06:18:17.099-07:00चलिये, हमने भी झेल लिया कुछ सीमा तक। पर डार्विन के...चलिये, हमने भी झेल लिया कुछ सीमा तक। पर डार्विन के समापन में कोई गलत बात नहीं है। ईश्वर को नकारने से ही विज्ञान सिद्ध नहीं होता। <br />अच्छे दर्जे की आस्तिकता आपको अच्छा वैज्ञानिक बनाती है - यह मेरा मानना है।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-4163048384822331292009-06-07T03:20:02.135-07:002009-06-07T03:20:02.135-07:00स्टीफन हॉकिन्स ने भी अपनी पुस्तक चर्चा की है....
...स्टीफन हॉकिन्स ने भी अपनी पुस्तक चर्चा की है....<br /><br />Up to now, most scientists have been too occupied with the development of new theories that describe what<br />the universe is to ask the question why. On the other hand, the people whose business it is to ask why, the<br />philosophers, have not been able to keep up with the advance of scientific theories. In the eighteenth century, philosophers considered the whole of human knowledge, including science, to be their field and discussed questions such as: did the universe have a beginning? However, in the nineteenth and twentieth centuries, science became too technical and mathematical for the philosophers, or anyone else except a few specialists. Philosophers reduced the scope of their inquiries so much that Wittgenstein, the most famous philosopher of this century, said, “The sole remaining task for philosophy is the analysis of language.” What a comedown from the great tradition of philosophy from Aristotle to Kant!<br /><br />However, if we do discover a complete theory, it should in time be understandable in broad principle by everyone, not just a few scientists. Then we shall all, philosophers, scientists, and just ordinary people, be able to take part in the discussion of the question of why it is that we and the universe exist. If we find the answer to that, it would be the ultimate triumph of human reason – for then we would know the mind of God.<br />इस पैरा को पढ़ने के बाद आप खुद सोच सकते हैं कि डार्विन के ऐसा सोचने का कारण क्या हो सकता था?दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-57492249964428948902009-06-07T02:46:43.425-07:002009-06-07T02:46:43.425-07:00बहुत महती जानकारी दी है आपने. धन्यवाद.
रामराम.बहुत महती जानकारी दी है आपने. धन्यवाद.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-56841653679587056552009-06-07T01:19:50.260-07:002009-06-07T01:19:50.260-07:00बहुत ही ज्ञानवर्धक और उपयोगी पोस्ट !
कोई बड़ी ब...बहुत ही ज्ञानवर्धक और उपयोगी पोस्ट ! <br /><br />कोई बड़ी बात नहीं है कि डार्विन साहब ने अन्य शोधकर्मियों का हश्र देखकर ऐसा लिखा हो ! <br /><br />मुझे मेरे बचपन की बात याद आ रही है जो मेरे मास्टर जी ने सुनाई थी ! संभवतः बहादुर शाह जफर को डार्विन की थ्योरी के बारे में दरबारियों ने बताया तो जफ़र बहुत खिन्न हुए ! उन्होंने एक शेर लिखा और उसे डार्विन साहब तक पहुंचाने के लिए कहा ! शायद शेर कुछ यूँ था : <br /><br />'"डार्विन साहिब हकीकतन आप नामाकूल थे <br /> हम न मानेंगे कि वालिद आपके लंगूर थे !'" <br /><br />जयराम "विप्लव" जी आपकी बात पढ़कर एक सवाल कौंध रहा हैं कि हमारे यहाँ अगर विचारों की आजादी थी तो बौध धर्म को बाहर के मुल्कों में क्यों पराश्रय लेनी पडी ? और क्या आज भी आजादी है ?प्रकाश गोविंदhttps://www.blogger.com/profile/15747919479775057929noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-81085255843118452322009-06-07T01:03:27.730-07:002009-06-07T01:03:27.730-07:00बहुत सुंदर, आप का धन्यवादबहुत सुंदर, आप का धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-34818004539599496872009-06-07T00:51:38.400-07:002009-06-07T00:51:38.400-07:00वाकई विरोधाभास है !
अनिल भाई ! अच्छे विरोधाभास को ...वाकई विरोधाभास है !<br />अनिल भाई ! अच्छे विरोधाभास को उजागर किया है आपने । मुझे लगता है कि डार्विन की कलम से यह वाक्य सायास न होकर, अनायास ही निकल पड़ा होगा । एक महान जीवविज्ञानी तो वह अपने जीवन के दूसरे दौर में बने, इससे पहले तो उनका पालन-पोषण तत्कालीन समाज के उसी पारंपरिक परिवेश में हुआ होगा, जहां ईश्वर को जीवों और सारी दुनिया का रचयिता मानकर उसके आगे सिर झुकाने की परंपरा रही । इसलिए बहुत संभव है कि अपने अध्ययन में वैज्ञानिक नजरिये से किसी सृजनकर्ता के अस्तित्व को आधारहीन पाते हुए भी अंतस में जमे हुए संस्कारों की वजह से अंत में वह ऐसा लिख गए हों । वैसे पादरियों और चर्च के दबाव की बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि डार्विन के सिद्धांत पर चर्च ने काफी बखेड़ा किया था, ठीक उसी तरह जैसे टेलीस्कोप के आविष्कार के बाद धरती के गोल होने और पृथ्वी द्वारा सूर्य का चक्कर लगाने की बात को प्रामाणिक ढंग से पेश करने पर गैलिलियो को चर्च के कोपभाजन का शिकार होना पड़ा था ।<br />- कोलाहल से कौस्तुभkaustubhhttps://www.blogger.com/profile/07137704961577539697noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-61995455666816503692009-06-07T00:47:51.249-07:002009-06-07T00:47:51.249-07:00मुझे लगता है की इस पुस्तक को यदि इंटर /बी एस सी नह...<b>मुझे लगता है की इस पुस्तक को यदि इंटर /बी एस सी नहीं तो एम् एस सी बायलोजी कक्षाओं में अनिवार्य कर ही दिया जाना चाहिए ! मैंने तो इसके मुद्रित संस्करण को झेला है मगर यदि आपको फुरसत है तो ऊपर के लिंक पर जाकर यह पुनीत कार्य -अंजाम दे सकते हैं ! </b> खुद झेले तो दूसरों को काहे झेला रहे हो!अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-68205767972266665192009-06-07T00:00:58.493-07:002009-06-07T00:00:58.493-07:00आज कल ऐसे सवालों को बताने वाला या समझाने वाला कोई ...आज कल ऐसे सवालों को बताने वाला या समझाने वाला कोई शिक्षक नहीं मिलता .देश में अनुसन्धान के प्रति लोंगो की ललक पता नहीं कहा गुम हो गयी है .डार्विन के विचारों को सरल एवं सुस्पस्ट रूप में लोंगो के बीच ले जाने की जरूरत है .बहुत ही बेहतरीन और ज्ञानवर्धक पोस्ट .डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-88006640307530451052009-06-06T23:49:43.614-07:002009-06-06T23:49:43.614-07:00डार्विन हो या न्यूटन अथवा कोई अन्य वैज्ञानिक अथवा ...डार्विन हो या न्यूटन अथवा कोई अन्य वैज्ञानिक अथवा दार्शनिक सभी को आरम्भ में दम्भी समाज का कोप झेलना पड़ा है . <br />इस मामले में पश्चिम का अतीत काफी दागदार है , हमारे यहाँ ऐसा नही था यहाँ मनु को जितना maana गया चार्वाक को भी उतनी ही अआज़दी थी . आस्तिक और नास्तिक दोनों प्रकार के दर्शनों को उचित स्थान मिलता रहा है . परन्तु असिह्ष्णु और दिमागी बंदिशों में जीने वाला पश्चिम (आज भले ही उदार हो गए हों ) हमेशा नै बैटन को नकारता रहा है मैं भी आपकी पहली बात से सहमत हूँ " डार्विन तत्कालीन चर्च और पादरियों से डर गए थे और उन्हें आर्किमिडीज और ब्रूनो का दहशतनाक हश्र याद हो आया था "Jayram Viplavhttps://www.blogger.com/profile/16251643959205358549noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3362795456291072795.post-27376273612371800712009-06-06T23:43:21.897-07:002009-06-06T23:43:21.897-07:00aisa hi lagta hai darvin dar gaye hongeaisa hi lagta hai darvin dar gaye hongeVibrentyuwahttps://www.blogger.com/profile/16065895037612458063noreply@blogger.com